Audiotales - A different take on storytelling...
हम सब एक जैसे है.. ना कोई बेहतर है, ना कोई किसी से कम...
फ़र्क़ है अब इतना, कि अब कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता...
हर रात बाहर बेठता हूँ. उस खामोशी में कई ख़्वाब बुनता हूँ...
कौन थी? मालूम नहीं... अक्सर सपनो में आया करती थी...
तेरी झोली ख़ुशियों से भरना चाहता हूँ, मैं सिर्फ़ तेरी ख़ुशी चाहता हूँ...
कोई ख़्वाजा है तो उसके सिर की क़सम.. बहुत प्यार करता हूँ...
आज यूँही शाम को छत्त पे खड़ा था, एक हवा का झोंका चला...
ठीक है, तुम कहती हो तो आज के बाद ऐसा नहीं होगा...
आज फिर ना कुछ कह पाया.. तुम बोलती रही और मै चुप चाप सुनता रहा...
तुम भी सोचती होगी ना, की क्या से क्या हो गया, जो कभी नहीं सोचा था, आज वो भी हो गया, है ना... अब क्या सोचती हो तुम, क्या कोई नया ख़्वाब बुनती हो तुम, नयी जगह टटोलती हो, सपना देखती हो? अतरंगी सा, सतरंगी सा, मेरा? क्यूँकि मैं तो रोज़ देखता हूँ, रोज़ महसूस करता हूँ, आस पास, हर जगह, सच्ची.. तुम्हारी क़सम...
वक़्त सब बदल देता है, तुम्हें.. मुझे.. हम सबको.. पीछे रह जाती है सिर्फ़, बातें.. मुलाक़ातें.. हसीन रातें.. तसल्ली है इस बात कि जी रहे है, साँसें चल रही है, आँख लग रही है, बस अब चैन नहीं.. सपना नहीं.. तुम नहीं.. मैं नहीं.. कुछ भी नहीं...