à¤à¤µà¤¾à¤¨à¥€à¤¶à¤‚करौ वनà¥à¤¦à¥‡ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸à¤°à¥‚पिणौ। याà¤à¥à¤¯à¤¾à¤‚ विना न पशà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤à¤¿ सिदà¥à¤§à¤¾à¤ƒ सà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤ƒà¤¸à¥à¤¥à¤®à¥€à¤¶à¥à¤µà¤°à¤®à¥à¥¥ (शà¥à¤°à¥€ रामचरितमानस, बालकाणà¥à¤¡) मैं à¤à¤µà¤¾à¤¨à¥€ और शंकर की वनà¥à¤¦à¤¨à¤¾ करता हूà¤...जो शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ और विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ के रूप में सबके हृदय में वास करते हैं। बिना शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ और विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ के सिदà¥à¤§ à¤à¥€ अपने अंदर बैठे ईशà¥à¤µà¤° को नहीं देख सकते हैं।