Welcome to "Sampurn Shiv Puran," a captivating podcast that takes you on a mystical journey into the world of Hindu mythology and spirituality. Join us as we dive deep into the rich tapestry of the Shiv Puran, bringing ancient tales of Lord Shiv to life through engaging storytelling, revealing profound wisdom, epic battles, and timeless teachings that have shaped Hindu culture for millennia. With nearly 500 chapters to explore, prepare to be captivated by the vast depth and breadth of the Shiv Puran in each episode.
मृत्युञ्जय महारुद्र त्राहि मां शरणागतम्जन्म मृत्युजरारोगैः पीड़ितं कर्म बन्धनैः ।।१।।मन्त्रेणाक्षर हीनेन पुष्पेण विफलेन चपूजितोसि महादेव तत्सर्वं क्षम्यतां मम ।।२।।करचरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वाश्रवननयंजं वा मानसं वापराधम् ।।३।।विहितमविहितं वा सर्वमेततक्षमस्वजय जय करुणाब्धे श्री महादेवशम्भो ।।४।।।। ॐ मृत्युञ्जयाय तत्सत् नमम ॐ ।।
"भगवान् नन्दी का वहाँ आना और दृष्टिपात मात्र से पाशछेदन एवं ज्ञानयोग का उपदेश कर के चला जाना, शिवपुराण की महिमा तथा ग्रन्थ का उपसंहार"
"वायुदेव का अन्तर्धान, ऋषियों का सरस्वती में अवभृथ- स्नान और काशी में दिव्य तेज का दर्शन कर के ब्रह्माजी के पास जाना, ब्रह्मा जी का उन्हें सिद्धि-प्राप्ति की सूचना देकर मेरु के कुमार-शिखर पर भेजना"
"ध्यान और उस की महिमा, योगधर्म तथा शिवयोगी का महत्त्व, शिवभक्त या शिव के लिये प्राण देने अथवा शिवक्षेत्र में मरण से तत्काल मोक्ष-लाभ का कथन"
"योगमार्ग के विघ्न, सिद्धि सूचक उपसर्ग तथा पृथ्वी से लेकर बुद्धि- तत्त्वपर्यन्त ऐश्वर्यगुणों का वर्णन, शिव-शिवा के ध्यान की महिमा"
"योग के अनेक भेद, उसके आठ और छ: अंगों का विवेचन -यम, नियम, आसन, प्राणायाम, दशविध, प्राणों को जीतने की महिमा, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि का निरूपण"
"पारलौकिक फल देने वाले कर्म-शिवलिंग-मह्यव्रत की विधि और महिमा का वर्णन"
"ऐहिक फल देने वाले कर्मों और उनकी विधि का वर्णन, शिव-पूजन की विधि, शान्ति-पुष्टि आदि विविध काम्य कर्मो में विभिन्न हवनीय पदार्थों के उपयोग का विधान"
शिव के पाँच आवरणों में स्थित सभी देवताओं की स्तुति तथा उनसे अभीष्टपूर्ति एवं मंगल की कामना""
"आवरणपूजा की विस्तृत विधि तथा उक्त विधि से पूजन की महिमा का वर्णन"
"काम्य कर्म के प्रसंग में शक्ति सहित पंचमुख महादेव की पूजा के विधान का वर्णन"
"पंचाक्षर-मन्त्र के जप तथा भगवान् शिव के भजन-पूजन की महिमा, अग्निकार्य के लिये कुण्ड और वेदी आदि के संस्कार, शिवाग्नि की स्थापना और उसके संस्कार, होम, पूर्णाहुति, भस्म के संग्रह एवं रक्षण की विधि तथा हवनान्त में किये जाने वाले कृत्य का वर्णन"
"शिवपूजा की विशेष विधि तथा शिव-भक्ति की महिमा"
"शिवपूजन-की विधि"
"अन्तर्याग अथवा मानसिक पूजाविधि का वर्णन"
"योग्य शिष्य के आचार्यपद पर अभिषेक का वर्णन तथा संस्कार के विविध प्रकारों का निर्देश"
"साधक-संस्कार और मन्त्र-माहात्म्य का वर्णन"
"षडध्वशोधान की विधि - 2"
"षडध्वशोधान की विधि - 1"
"समय-संस्कार या समयाचार की दीक्षा की विधि"
"त्रिविध दीक्षा का निरूपण, शक्तिपात की आवश्यकता तथा उसके लक्षणोंका वर्णन, गुरुका महत्त्व, ज्ञानी गुरु से ही मोक्ष की प्राप्ति तथा गुरु के द्वारा शिष्य की परीक्षा"
"गुरु से मंत्र लेने तथा उसके जप करने की विधि, पाँच प्रकार के जप तथा उनकी महिमा, मंत्र गणना के लिए विभिन्न प्रकार की मालाओं का महत्व तथा अँगुलियों के उपयोग का वर्णन, जप के लिए उपयोगी स्थान तथा दिशा, जप में वर्जनीय बातें, सदाचार का महत्व, आस्तिकता की प्रशंशा, तथा पंचाक्षर मंत्र की विशेषता का प्रतिपादन"
"पंचाक्षर-मन्त्र की महिमा, उसमें समस्त वाङ्मय की स्थिति, उसकी उपदेशपरम्परा, देवीरूपा पंचाक्षरीविद्या का ध्यान, उसके समस्त और व्यस्त अक्षरों के ऋषि, छन्द, देवता, बीज, शक्ति तथा अंगन्यास आदि का विचार"
"पंचाक्षर-मन्त्र के माहात्म्य का वर्णन"
"वर्णाश्रम-धर्म तथा नारी-धर्म का वर्णन; शिव के भजन, चिन्तन एवं ज्ञान की महत्ता का प्रतिपादन"
"भगवान् शिवके प्रति श्रद्धा-भक्ति की आवश्यकता का प्रतिपादन, शिवधर्म के चार पादों का वर्णन एवं ज्ञानयोग के साधनों तथा शिवधर्म के अधिकारियों का निरूपण, शिवपूजन के अनेक प्रकार एवं अनन्यचित्त से भजन की महिमा"
"शिव के अवतार, योगाचार्यों तथा उनके शिष्यों की नामावली"
"शिव-ज्ञान, शिव की उपासना से देवताओं को उनका दर्शन, सूर्यदेव में शिव की पूजा करके अर्घ्यदान की विधि तथा व्यासावतारों का वर्णन"
"परमेश्वर की शक्ति का ऋषियों द्वारा साक्षात्कार, शिव के प्रसाद से प्राणियों की मुक्ति, शिव की सेवा भक्ति तथा पाँच प्रकार के शिव-धर्म का वर्णन"
"शिव के शुद्ध, बुद्ध, मुक्त, सर्वमय, सर्वव्यापक एवं सर्वातीत स्वरूप का तथा उनकी प्रणवरूपता का प्रतिपादन"
"परमेश्वर शिव के यथार्थ स्वरूप का विवेचन तथा उनकी शरण में जाने से जीव के कल्याण का कथन"
"शिव और शिवा की विभूतियों का वर्णन"
"भगवान् शिव की ब्रह्मा आदि पंचमूर्तियों, ईशानादि ब्रह्ममूर्तियों तथा पृथ्वी एवं शर्व आदि अष्टमूर्तियों का परिचय और उनकी सर्वव्यापकता का वर्णन"
"उपमन्यु द्वारा श्रीकृष्ण को पाशुपत ज्ञान का उपदेश"
"ऋषियों के पूछने पर वायुदेव का श्रीकृष्ण और उपमन्यु के मिलन का प्रसंग सुनाना, श्रीकृष्ण को उपमन्यु से ज्ञान का और भगवान् शंकर से पुत्र का लाभ"
"भगवान् शंकर का इन्द्ररूप धारण कर के उपमन्यु के भक्तिभाव की परीक्षा लेना, उन्हें क्षीरसागर आदि देकर बहुत से वर देना और अपना पुत्र मान कर पार्वती के हाथ में सौंपना, कृतार्थ हुए उपमन्यु का अपनी माता के स्थान पर लौटना"
"बालक उपमन्यु को दूध के लिये दु:खी देख माता का उसे शिव की तथा उपमन्यु की तीव्र तपस्या"
"पाशुपत-व्रत की विधि और महिमा तथा भस्मधारण की महत्ता"
"परम धर्म का प्रतिपादन, शैवागम के अनुसार पाशुपत ज्ञान तथा उसके साधनों का वर्णन"
"ऋषियों के प्रश्न का उत्तर देते हुए वायुदेव के द्वारा शिव के स्वतन्त्र एवं सर्वानुग्राहक स्वरूप का प्रतिपादन"
"जगत् ‘वाणी और अर्थ रूप' है - इसका प्रतिपादन"
अग्नि और सोम के स्वरूपका विवेचन तथा जगत की अग्नीषोमात्मकता का प्रतिपादन
"मन्दराचल पर गौरी देवी का स्वागत, महादेवजी के द्वारा उनके और अपने उत्कृष्ट स्वरूप एवं अविच्छेद्य सम्बन्ध पर प्रकाश तथा देवी के साथ आये हुए व्याघ्र को उनका गणाध्यक्ष बना कर अन्तःपुर के द्वार पर सोमनन्दी नाम से प्रतिष्ठित करना"
"गौरी देवी का व्याघ्र को अपने साथ ले जाने के लिये ब्रह्माजी से आज्ञा माँगना, ब्रह्माजी का उसे दुष्कर्मी बता कर रोकना, देवी का शरणागत को त्यागने से इनकार करना, ब्रह्माजी का देवी की महत्ता बता कर अनुमति देना, और देवी का माता- पिता से मिल कर मन्दराचल को जाना"
"पार्वती की तपस्या, एक व्याघ्र पर उनकी कृपा, ब्रह्माजी का उनके पास आना, देवी के साथ उनका वार्तालाप, देवी के द्वारा काली त्वचा का त्याग और उससे कृष्णवर्णा कुमारी कन्या के रूप में उत्पन्न हुई कौशिकी के द्वारा शुम्भ-निशुम्भ का वध"
"भगवान् शिव का पार्वती तथा पार्षदों के साथ मन्दराचल पर जाकर रहना, शुम्भ निशुम्भ के वध के लिये ब्रह्माजी की प्रार्थना से शिव का पार्वती को 'काली' कहकर कुपित करना और काली का ‘गौरी' होने के लिये तपस्या के निमित्त जाने की आज्ञा माँगना"
"महादेव जी के शरीर से देवी का प्राकट्य और देवी के भ्रूमध्य-भाग से शक्ति का प्रादुर्भाव"
"ब्रह्माजी के द्वारा अर्द्धनारीश्वर रूप की स्तुति तथा उस स्त्रोत की महिमा"
"भगवान् रुद्र के ब्रह्माजी के मुख से प्रकट होने का रहस्य, रुद्र के महामहिम स्वरूप का वर्णन, उनके द्वारा रुद्रगणों की सृष्टि तथा ब्रह्माजी के रोकने से उनका सृष्टि से विरत होना"
"ब्रह्माजी की मूर्छा, उनके मुख से रुद्रदेव का प्राकट्य, सप्राण हुए ब्रह्माजी के द्वारा आठ नामों से महेश्वर की स्तुति तथा रुद्र की आज्ञा से ब्रह्मा द्वारा सृष्टि-रचना"
"महेश्वर की महत्ता का प्रतिपादन"