Its all about life stories. Love is everywhere.
भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुद्दआ । मौत ने तो धर दबोचा एक चीते कि तरह ज़िंदगी ने जब छुआ तो फ़ासला रखकर छुआ । गिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नही पेट भरकर गालियां दो, आह भरकर बददुआ । विज्ञापन क्या वज़ह है प्यास ज्यादा तेज़ लगती है यहाँ लोग कहते हैं कि पहले इस जगह पर था कुँआ । आप दस्ताने पहनकर छू रहे हैं आग को आप के भी ख़ून का रंग हो गया है साँवला । इस अंगीठी तक गली से कुछ हवा आने तो दो जब तलक खिलते नहीं ये कोयले देंगे धुँआ । दोस्त, अपने मुल्क कि किस्मत पे रंजीदा न हो उनके हाथों में है पिंजरा, उनके पिंजरे में सुआ । इस शहर मे वो कोई बारात हो या वारदात अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं
किसी भी इमारत के बनने में उन हज़ारों मजदूरों का पसीना होता है जिन्हें इमारत बनने के बाद याद नही रखा जाता।
उस ज़माने में काउंसिल हाउस जो कि आज का संसद भवन है, का शुमार दिल्ली की बेहतरीन इमारतों में किया जाता था. काउंसिल हाउस में सेफ़्टी बिल पेश होने से दो दिन पहले 6 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त काउंसिल हाउस के असेंबली हॉल गए थे ताकि ये जायज़ा लिया जा सके कि पब्लिक गैलरी किस तरफ़ हैं और किस जगह से वहाँ बम फेंके जाएंगे. वो ये हर क़ीमत पर सुनिश्चित करना चाहते थे कि उनके फेंके गए बमों से किसी का नुक़सान न हो. हाँलाकि 'ट्रेड डिस्प्यूट बिल' पास किया जा चुका था जिसमें मज़दूरों द्वारा की जाने वाली हर तरह की हड़ताल पर पाबंदी लगा दी गई थी, लेकिन 'पब्लिक सेफ़्टी बिल' पर अध्यक्ष विट्ठलभाई पटेल ने अभी तक अपना फ़ैसला नहीं सुनाया था. इस बिल में सरकार को संदिग्धों को बिना मुक़दमा चलाए हिरासत में रखने का अधिकार दिया जाना था.
एक घटना तेर याद बहत दन बीते ु जलावतन हु जीतीं ह या मर गयीं- कु छ पता नहं िसफ' एक बार एक घटना हई थी ु *याल+ क रात बड़ गहर थी और इतनी ःत0ध थी क प2ा भी हले तो बरस+ के कान च6क जाते.. फर तीन बार लगा जैसे कोई छाती का 9ार खटखटाये और दबे पांव छत पर चढ़ता कोई और नाखून+ से पछली दवार को कु रेदता….. तीन बार उठ कर म ने सांकल टटोली अंधेरे को जैसे एक गभ' पीड़ा थी वह कभी कु छ कहता और कभी चुप होता ?य+ अपनी आवाज को दांत+ म दबाता फर जीती जागती एक चीज और जीती जागती आवाज “म काले कोस+ से आयी हंू ूहAरय+ क आंख से इस बदन को चुराती
*!! चिंता !!* ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ एक राजा की पुत्री के मन में वैराग्य की भावनाएं थीं। जब राजकुमारी विवाह योग्य हुई तो राजा को उसके विवाह के लिए योग्य वर नहीं मिल पा रहा था। राजा ने पुत्री की भावनाओं को समझते हुए बहुत सोच-विचार करके उसका विवाह एक गरीब संन्यासी से करवा दिया। राजा ने सोचा कि एक संन्यासी ही राजकुमारी की भावनाओं की कद्र कर सकता है। विवाह के बाद राजकुमारी खुशी-खुशी संन्यासी की कुटिया में रहने आ गई। कुटिया की सफाई करते समय राजकुमारी को एक बर्तन में दो सूखी रोटियां दिखाई दीं। उसने अपने संन्यासी पति से पूछा कि रोटियां यहां क्यों रखी हैं? संन्यासी ने जवाब दिया कि ये रोटियां कल के लिए रखी हैं, अगर कल खाना नहीं मिला तो हम एक-एक रोटी खा लेंगे। संन्यासी का ये जवाब सुनकर राजकुमारी हंस पड़ी। राजकुमारी ने कहा कि मेरे पिता ने मेरा विवाह आपके साथ इसलिए किया था, क्योंकि उन्हें ये लगता है कि आप भी मेरी ही तरह वैरागी हैं, आप तो सिर्फ भक्ति करते हैं और कल की चिंता करते हैं। सच्चा भक्त वही है जो कल की चिंता नहीं करता और भगवान पर पूरा भरोसा करता है। अगले दिन की चिंता तो जानवर भी नहीं करते हैं, हम तो इंसान हैं। अगर भगवान चाहेगा तो हमें खाना मिल जाएगा और नहीं मिलेगा तो रातभर आनंद से प्रार्थना करेंगे। ये बातें सुनकर संन्यासी की आंखें खुल गई। उसे समझ आ गया कि उसकी पत्नी ही असली संन्यासी है। उसने राजकुमारी से कहा कि आप तो राजा की बेटी हैं, राजमहल छोड़कर मेरी छोटी सी कुटिया में आई हैं, जबकि मैं तो पहले से ही एक फकीर हूं, फिर भी मुझे कल की चिंता सता रही थी। सिर्फ कहने से ही कोई संन्यासी नहीं होता, संन्यास को जीवन में उतारना पड़ता है। आपने मुझे वैराग्य का महत्व समझा दिया। *शिक्षा:-* अगर हम भगवान की भक्ति करते हैं तो विश्वास भी होना चाहिए कि भगवान हर समय हमारे साथ है। उसको (भगवान) हमारी चिंता हमसे ज्यादा रहती हैं। कभी आप बहुत परेशान हों, कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा हो तो आप आँखें बंद करके विश्वास के साथ पुकारें, सच मानिये थोड़ी देर में आपकी समस्या का समाधान मिल जायेगा।
*!! चावल का दाना !!* ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ एक भिखारी एक दिन सुबह अपने घर के बाहर निकला। त्यौहार का दिन है। आज गाँव में बहुत भिक्षा मिलने की संभावना है। वो अपनी झोली में थोड़े से चावल दाने डाल कर, बाहर आया। चावल के दाने उसने डाल लिये हैं अपनी झोली में, क्योंकि झोली अगर भरी दिखाई पड़े तो देने वाले को आसानी होती है, उसे लगता है कि किसी और ने भी दिया है। सूरज निकलने के क़रीब है। रास्ता सोया है। अभी लोग जाग ही रहे हैं। मार्ग पर आते ही सामने से राजा का रथ आता हुआ नजर आता है।सोचता है आज राजा से अच्छी भीख मिल जायेगी, राजा का रथ उसके पास आकर रूक जाता है। उसने सोचा, “धन्य हैं मेरा भाग्य ! आज तक कभी राजा से भिक्षा नहीं माँग पाया, क्योंकि द्वारपाल बाहर से ही लौटा देते हैं। आज राजा स्वयं ही मेरे सामने आकर रूक गया है। भिखारी ये सोच ही रहा होता है अचानक राजा उसके सामने एक याचक की भाँति खड़ा होकर उससे भिक्षा देने की मांग करने लगता है। राजा कहता है कि आज देश पर बहुत बड़ा संकट आया हुआ है, ज्योतिषियों ने कहा है इस संकट से उबरने के लिए यदि मैं अपना सब कुछ त्याग कर एक याचक की भाँति भिक्षा ग्रहण करके लाऊँगा तभी इसका उपाय संभव है। तुम आज मुझे पहले आदमी मिले हो इसलिए मैं तुमसे भिक्षा मांग रहा हूँ। यदि तुमने मना कर दिया तो देश का संकट टल नहीं पायेगा इसलिए तुम मुझे भिक्षा में कुछ भी दे दो। भिखारी तो सारा जीवन माँगता ही आया था कभी देने के लिए उसका हाथ उठा ही नहीं था। सोच में पड़ गया की ये आज कैसा समय आ गया है, एक भिखारी से भिक्षा माँगी जा रही है, और मना भी नहीं कर सकता। बड़ी मुशकिल से एक चावल का दाना निकाल कर उसने राजा को दिया। राजा वही एक चावल का दाना ले खुश होकर आगे भिक्षा लेने चला गया। सबने उस राजा को बढ़-बढ़कर भिक्षा दी। परन्तु भिखारी को चावल के दाने के जाने का भी गम सताने लगा। जैसे-तैसे शाम को वह घर आया। भिखारी की पत्नी ने भिखारी की झोली पलटी तो उसमें उसे भीख के अन्दर एक सोने का चावल का दाना भी नजर आया। भिखारी की पत्नी ने उसे जब उस सोने के दाने के बारे में बताया तो वो भिखारी छाती पीटके रोने लगा। जब उसकी पत्नी ने रोने का कारण पूछा तो उसने सारी बात उसे बताई। उसकी पत्नी ने कहा, “तुम्हें पता नहीं, कि जो दान हम देते हैं, वही हमारे लिए स्वर्ण है। जो हम इकट्ठा कर लेते हैं, वो सदा के लिए मिट्टी का हो जाता है।" उस दिन से उस भिखारी ने भिक्षा माँगनी छोड़ दी, और मेहनत करके अपना तथा परिवार का भरण-पोषण करने लगा। जिसने सदा दुसरों के आगे हाथ फैलाकर भीख माँगी थी अब खुले हाथ से दान-पुण्य करने लगा। धीरे-धीरे उसके दिन भी बदलने लगे। जो लोग सदा उससे दूरी बनाया करते थे अब उसके समीप आने लगे। वो एक भिखारी की जगह दानी के नाम से जाना जाने लगा। *शिक्षा:-* जिस इन्सान की प्रवृति देने की होती है उसे कभी किसी चीज की कमी नहीं होती और जो हमेशा लेने की नियत रखता है उसका कभी पूरा नहीं पड़ता।
जानिए आखिर क्यों एमरजेंसी के समय किशोर कुमार के गीतों पर लगा दिया गया था बैन ? जयंती पर विशेष किशोर कुमार हिंदी सिनेमा के सबसे प्रतिभाशाली हरफनमौला कलाकारों में शुमार हैं। किशोर ने फिल्म इंडस्ट्री में बतौर एक्टर एंट्री की थी। किशोर कुमार की पहली फिल्म #शिकारी' 1946 में रिलीज हुई थी। फिल्म में किशोर कुमार के बड़े भाई अशोक कुमार लीड रोल में थे। किशोर कुमार को पहली बार देव आनंद की फिल्म '#जिद्दी' (1948) में गाने का मौका मिला। आपातकाल में लगा था बैन 4 अगस्त को मध्य प्रदेश के #खंडवा शहर में जन्मे #किशोर_कुमार ने एक से बढ़कर एक हिट गाने दिए लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब उनके गानों को बैन कर दिया गया था। 1975 में जब इंदिरा गांधी सरकार ने आपातकाल लगा दिया था। तो इसके शिकार किशोर कुमार भी हुए थे। दरअसल, आपातकाल के दौरान कांग्रेस चाहती थी कि सरकारी योजनाओं की जानकारी किशोर कुमार अपनी आवाज में गाना गाकर दें।उस दौरान सूचना प्रसारण मंत्री #वीसी_शुक्ला थे। उन्होंने किशोर कुमार के पास संदेशा भिजवाया कि वो इंदिरा गांधी के लिए गीत गाएं जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक सरकारी की आवाज पहुंचे लेकिन किशोर कुमार ने गाना गाने से मना कर दिया। किशोर कुमार ने संदेश देने वाले से पूछा कि उन्हें ये गाना क्यों गाना चाहिए तो उसने कहा, क्योंकि वीसी शुक्ला ने ये आदेश दिया है। आदेश देने की बात सुनकर किशोर कुमार भड़क गए और उन्होंने उसे डांटते हुए मना कर दिया। यह बात कांग्रेस को इस कदर नागवार गुजरी कि उन्होंने किशोर कुमार के गाने ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर बैन कर दिए। यह बैन 3 मई 1976 से लेकर आपातकाल खत्म होने तक जारी रहा। किशोर कुमार के गाने ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर नहीं चलाए जाते थे। अपनी धुन के पक्के किशोर कुमार ने एक बार कहा था, 'कौन जाने वो क्यों आए लेकिन कोई भी मुझसे वो नहीं करा सकता जो मैं नहीं करना चाहता। मैं किसी दूसरे की इच्छा या हुकूम से नहीं गाता।' जी हां, जो सरकार से भी पंगा ले ले वैसा कोई अपनी वसूलों का पक्का ही कर सकता है। कोई हमदम ना रहा किशोर कुमार का एक बेहद कर्णप्रिय गीत है, ‘कोई हमदम न रहा, कोई सहारा न रहा' जो आज 50 साल बाद भी टाइमलेस क्लासिक है।यह गीत उनके व मधुबाला के अभिनय से सजी 1961 में आई ‘झुमरू' फिल्म का है। जिसमें न सिर्फ इस गीत का फिल्मांकन उन पर हुआ था बल्कि इसका संगीत भी उन्होंने ही दिया था,लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इस गीत को सबसे पहले उनके बड़े भाई अशोक कुमार ने गाया था, ‘झुमरू' बनने के लगभग 25 साल पहले आई वह फिल्म थी ‘जीवन नैया' (1936)। आंधी फिल्म के सारे गाने मुझे काफी पसंद हैं। सबसे प्यारा गाना है तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं। गोलमाल फिल्म का भी गाना आनेवाला पल बहुत ही सुंदर है। मुकदर का सिकंदर का ओ साथी रे भी लाजवाब है। किशोर साहब के व्यक्तित्व की कुछ बातें ध्यान देने योग्य हैं वे आलराउंडर थे, जिंदादिल थे और कंजूस भी थे । तीन महानायकों की आवाज बने किशोर कुमार ने हिन्दी सिनेमा के तीन नायकों को महानायक का दर्जा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उनकी आवाज के जादू से देवआनंद सदाबहार हीरो कहलाये और राजेश खन्ना को सुपर स्टार बनाने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है। कहा जाता है कि किशोर की आवाज के कारण ही अमिताभ बच्चन महानायक कहलाने लगे। पांच रुपया बारह आना किशोर कुमार इन्दौर के क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़े थे और उनकी आदत थी कॉलेज की कैंटीन से उधार लेकर खुद भी खाना और दोस्तों को भी खिलाना। वह ऐसा समय था जब 10-20 पैसे की उधारी भी बहुत मायने रखती थी। किशोर कुमार पर जब कैंटीन वाले के पांच रुपया बारह आना उधार हो गए और कैंटीन का मालिक जब उनको अपने पांच रुपया बारह आना चुकाने को कहता तो वे कैंटीन में बैठकर ही टेबल पर गिलास, और चम्मच बजा बजाकर पाँच रुपया बारह आना गा-गाकर कई धुन निकालते थे और कैंटीन वाले की बात अनसुनी कर देते थे। बाद में उन्होंने अपने एक गीत में इस पांच रुपया बारह आना का बहुत ही खूबसूरती से इस्तेमाल किया। शायद बहुत कम लोगों को पाँच रुपया बारह आना वाले गीत की यह असली कहानी मालूम होगी। उन्होंने 1951 में फणी मजूमदार द्वारा निर्मित फिल्म 'आंदोलन' में हीरो के रूप में काम किया मगर फिल्म फ्लॉप हो गई।
आज रूबरू होते हैं, साहिर साहब की ज़िंदगी के कुछ दिलचस्प पहलुओं से और उनके लेखन की गहराइयों से, ज़िन्दगी का ऐसा कोई पल नहीं जिसपर उन्होंने न लिखा हो। अपने पति फज़ल मोहम्मद से तलाक के बाद इनकी माँ अपने भाई के पास आकर रहने लगीं. साहिर का बचपन भी दूसरे बच्चों से कुछ अलग ही रहा। बचपन में जब उन्हें दूध दिया जाता तो कहते कि इसमें पानी मिलाओ और जब पानी मिलाया जाता तो कहते कि अब इसको अलग करो। उनकी मां उन्हें सर्जन या जज बनाना चाहती थीं, लेकिन किस्मत 'अब्दुल हई' को कुछ और ही बनाना चाहती थी। साहिर को अपना नाम इकबाल की एक नज़्म से मिला जो उन्होंने अपने उस्ताद दाग देहलवी की शान में लिखी थी। इसमें उन्हें 'साहिर' नाम बहुत पसंद आया जिसका मतलब होता है 'जादूगर' यहीं से उन्होंने नए नाम को अपना लिया और इसके साथ जोड़ लिया शहर ए पैदाइश ‘लुधियानवी'। 'चल बसा दाग,अहा! मय्यत उसकी जेब-ए-दोष है आखिरी शायर जहानाबाद का खामोश है इस चमन में होंगे पैदा बुलबुल-ए-शीरीज भी सैकडों साहिर भी होगें, सहीने इजाज भी हूबहू खींचेगा लेकिन इश्क की तस्वीर कौन' मशहूर शायर 'कैफी आजमी' ने 'तल्खियां' की तारीफ में कहा था ~ 'मैं अक्सर यह सोचने पर मजबूर हो जाता हूं कि मैं साहिर को उनकी शायरी के जरिये जानता हूं या फिर उनकी शायरी को खुद उनके जरिये से? मैं यह कबूल करता हूं कि इस बारे में मैं अभी तक किसी नतीजे पर नही पहुंचा हूँ। ऐसा महसूस होता है कि, साहिर ने अपनी शख्सियत का जादू अपनी शायरी में उतार दिया है और उनकी शायरी के जादू का अक्स उनकी शख्सियत में हूबहु उतर आया है। तल्खियां पढते वक़्त ऐसा महसूस होता है कि शायर की रुह अपनी बुलंद तथा साफ आवाज में बात कर रही है' साहिर को जब पंजाब में दंगों की खबर मिली तो वह बहुत परेशान हुए उन्होंने लिखा ~ 'ये जलते हुए घर किसके हैं, ये कटे हुए तन किसके हैं तकरीम के अंधे तूफां में, लुटते हुए गुलाब किसके हैं ऐ सहबर मुल्क ओ कौम बता, ये किसका लहू है और कौन मरा' मुंबई में अपने संघर्ष को उन्होंने कुछ यूँ बयां किया ~ 'यार ! ये मुम्बई शहर है, बाहर से आये लोगों से दो साल जद्दोज़हद मांगता है और इसके बाद बड़े प्यार से गले लगाता है।' उनकी फिल्मों में गीत लिखने की शुरुआत १९४५ में हुई। उन्होंने पहली बार फ़िल्म 'आजादी की राह पर' के लिए गीत लिखे। इस दौरान इनकी मुलाकात मजरूह सुलतानपुरी, कैफी आज़मी, मजाज़ लखनवी जैसी हस्तियों से हुई। साहिर की शोहरत का आलम यह था कि जब बी आर चोपड़ा के छोटे भाई यश चोपड़ा मुंबई आए तो उन्होंने किसी हीरो हीरोइन से नहीं बल्कि साहिर से मिलने की ख्वाहिश जाहिर की थी। साहिर साहब की एक और दिलचस्प बात उनके जो गीत लता जी गाती थीं। उस गीत की फ़ीस वो लता जी की फ़ीस से १ रुपए ज्यादा लेते थे। इस कारण लता जी ने साहिर साहब के काफी गीत नहीं गाये। बाद में बी आर चोपड़ा के समझाने पर लता मंगेशकर वापस साहिर के गीत गाने लगीं। साहिर साहब की शायरी के अलग अलग पहलू ~ #एक_तरफ_मोहब्बत_नजर_आती_है तआरुफ़ रोग बन जाए तो उसको भूलना बेहतर तआलुक बोझ बन जाए तो उसको तोड़ना अच्छा वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा #तो_दूसरी_तरफ_ताजमहल_पर_खफा_हो_रहे_हैं ये चमनज़ार ये जमुना का किनारा ये महल ये मुनक़्क़श दर-ओ-दीवार, ये महराब ये ताक़ इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़ मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से! #किसी_नज़्म_में_अच्छी_सुबह_की_उम्मीद वो सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह कभी तो आएगी इन काली सदियों के सर से, जब रात का आंचल ढलकेगा जब अम्बर झूम के नाचेगी, जब धरती नग़मे गाएगी वो सुबह कभी तो आएगी … #तो_कहीं_समाज_की_गलतियों_पे_तंज ये महलों, ये तख़्तों, ये ताजों की दुनिया ये इनसां के दुश्मन समाजों की दुनिया ये दौलत के भूखे रिवाज़ों की दुनिया ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है #तो_कभी_रूमानी अभी ना जाओ छोड़ के, कि दिल अभी भरा नहीं #तो_कभी_दार्शनिक_भाव मैं पल दो पल का शायर हूं पल दो पल मेरी कहानी है #तो_कभी_एक_खिन्न_कवि कभी-कभी मेरे दिल में खयाल आता है #तो_कभी_एक_समर्पित_कवि मेरे दिल में आज क्या है तू कहे तो मैं बता दूं #जीवन_से_संतुष्ट_भाव मांग के साथ तुम्हारा मैंने मांग लिया संसार! #प्रेम_से_समझौता_करने_का_भाव चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों #मोहब्बत_में_निराशा जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला #एक_निश्चिंत_कवि मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया #एक_असांसारिक_भाव ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है #देशप्रेम_की_भावना ये देश है वीर जवानों का #एक_विद्रोही_शायर जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां है #एक_निराशावादी_भाव तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-जिंदगी से हम
एक शहर में एक अमीर आदमी रहता था। उसको पैसों का बहुत घमण्ड था। एक बार किसी कारण से उसकी आँखों मे इन्फेक्शन हो गया और उसकी आँखों मे बुरी तरह जलन होने लगी। वह कई डॉक्टरों के पास गया, लेकिन किसी भी डॉक्टर को उसकी परेशानी समझ नही आयी। वह बहुत परेशान होने लगा। वह अपना इलाज कराने विदेश चला गया। वहाँ एक बड़े डॉक्टर ने उसकी आँखे देखी और कहा – मैंने अपनी पूरी लाइफ में अभी तक ऐसा केस नही देखा है। ( वह आदमी बहुत डर जाता है ) वह डॉक्टर से पूछता है – क्या हुआ डॉक्टर। डॉक्टर कहते है – आपकी आंखों में एलर्जी हो गयी है। आप सिर्फ ‘ हरा रंग देख सकते है। यदि आप हरे कलर के अलावा' दूसरे कलर' देखोगे, तो आपकी आंखों में जलन होने लगेगी और धीरे-धीरे आपकी आंखों की रोशनी चली जायेगी। ( वह बहुत उदास हो जाता है )। उसके पास पैसा तो बहुत होता है, इसलिए वह पेंटर को बुलाता है और कहता है – तुम इस घर को ‘ हरा कलर ‘ कर दो और जहाँ भी, मैं जाता हूं, पूरी जगह को हरा कर दो। उसने अपनी गली, सड़क ,बोर्ड सब कुछ हरा करवा दिया। उसने बहुत पैसा खर्च कर दिया, फिर भी कोई ना कोई ऐसी चीज रह जाती। जिसको हरा नही किया जा सकता था। जैसे नीला आसमान, खाना खाने के लिए रोटी, और शरीर का कलर, सब चीजों को हरा कलर नही किया जा सकता था। ( उसका हर रोज बहुत ज्यादा पैसा ख़र्च हो जाता था ) एक दिन उसी गली से एक लड़का निकल रहा था। उसने देखा कि, चारो ओर हरा कलर ही क्यों है। उसने वहां कुछ लोगो से पूछा – कि यहाँ चारो ओर ‘हरा कलर' क्यों है। लोगो ने बताया कि, यहाँ एक अमीर आदमी रहता है। उसकी आँखों मे एलर्जी है। अगर वह हरे कलर के अलावा दूसरा कलर देखता है तो उसकी आँखों मे जलन होने लगती है। इसलिए सब जगह हरा कलर है। वह लड़का उस आदमी के पास जाता है और कहता है – आपने सभी जगह को हरा क्यों कर दिया है। आपकी परेशानी का दूसरा इलाज भी हो सकता है। आपकी परेशानी का इलाज बहुत ही सस्ता और आसान है। आप वेवजह ही इतना पैसा खर्च करते हो। वह आदमी कहता है – आप बताओ, इस परेशानी का क्या हाल हो सकता है। लड़का कहता है – आपकी परेशानी का हल अभी निकल सकता है। आप एक ‘हरे कलर का चश्मा पहनो।' जिससे आपको सारी चीजे हरी दिखाई देंगी। जो बहुत ही सस्ता होगा और आपका एक पैसा भी खर्च नही होगा। ( यह सुनकर उस अमीर आदमी की आंखें खुली की खुली रह जाती है ) वह सोचता है, कि कितना आसान तरीका है। मैं, ना जाने कितना पैसा खर्च करता रहा। मैं हड़बड़ी में फैसले लेता रहा। मेरी परेशानी का हल मेरे सामने था। अगर, मैं आराम से इस बारे मे सोचता, तो आसानी से हल निकल आता। *शिक्षा:-* दोस्तों, कई बार हमारे सामने कुछ परेशानियां आ जाती है। जो बहुत ही आसान होती है। उसका हल भी हमारे सामने होता है। लेकिन हम हड़बड़ाहट में ठीक से सोच नहीं पाते हैं और घबरा जाते हैं, जिससे हम अपनी लाइफ में गलत फैसले ले लेते हैं।
एक गरीब आदमी था। वह हर रोज अपने गुरु के आश्रम जाकर वहां साफ-सफाई करता और फिर अपने काम पर चला जाता था। अक्सर वो अपने गुरु से कहता कि आप मुझे आशीर्वाद दीजिए तो मेरे पास ढेर सारा धन-दौलत आ जाए। एक दिन गुरु ने पूछ ही लिया कि क्या तुम आश्रम में इसीलिए काम करने आते हो। उसने पूरी ईमानदारी से कहा कि हां, मेरा उद्देश्य तो यही है कि मेरे पास ढ़ेर सारा धन आ जाए, इसीलिए तो आपके दर्शन करने आता हूं। पटरी पर सामान लगाकर बेचता हूं। पता नहीं, मेरे सुख के दिन कब आएंगे। गुरु ने कहा कि तुम चिंता मत करो। जब तुम्हारे सामने अवसर आएगा तब ऊपर वाला तुम्हें आवाज थोड़ी लगाएगा। बस, चुपचाप तुम्हारे सामने अवसर खोलता जाएगा। युवक चला गया। समय ने पलटा खाया, वो अधिक धन कमाने लगा। इतना व्यस्त हो गया कि आश्रम में जाना ही छूट गया। कई वर्षों बाद वह एक दिन सुबह ही आश्रम पहुंचा और साफ-सफाई करने लगा। गुरु ने बड़े ही आश्चर्य से पूछा- क्या बात है, इतने बरसों बाद आए हो, सुना है बहुत बड़े सेठ बन गए हो। वो व्यक्ति बोला- बहुत धन कमाया। अच्छे घरों में बच्चों की शादियां की, पैसे की कोई कमी नहीं है पर दिल में चैन नहीं है। ऐसा लगता था रोज सेवा करने आता रहूं पर आ ना सका। गुरुजी, आपने मुझे सब कुछ दिया पर जिंदगी का चैन नहीं दिया। गुरु ने कहा कि तुमने वह मांगा ही कब था? जो तुमने मांगा वो तो तुम्हें मिल गया ना। फिर आज यहां क्या करने आए हो ? उसकी आंखों में आंसू भर आए, गुरु के चरणों में गिर पड़ा और बोला- अब कुछ मांगने के लिए सेवा नहीं करूंगा। बस दिल को शान्ति मिल जाए। गुरु ने कहा- पहले तय कर लो कि अब कुछ मांगने के लिए आश्रम की सेवा नहीं करोगे, बस मन की शांति के लिए ही आओगे। गुरु ने समझाया कि चाहे मांगने से कुछ भी मिल जाए पर दिल का चैन कभी नहीं मिलता इसलिए सेवा के बदले कुछ मांगना नहीं है। वो व्यक्ति बड़ा ही उदास होकर गुरु को देखता रहा और बोला- मुझे कुछ नहीं चाहिए। आप बस, मुझे सेवा करने दीजिए। सच में, मन की शांति सबसे अनमोल है।
जिस समय रावण मरणासन्न अवस्था में था, उस समय भगवान श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा कि इस संसार से नीति, राजनीति और शक्ति का महान् पंडित विदा ले रहा है, तुम उसके पास जाओ और उससे जीवन की कुछ ऐसी शिक्षा ले लो जो और कोई नहीं दे सकता। श्रीराम की बात मानकर लक्ष्मण मरणासन्न अवस्था में पड़े रावण के सिर के नजदीक जाकर खड़े हो गए शिक्षा मिलती है विनम्रता से, अधिकार से नहीं कुछ देर इंताजार और अपने को अपमानित महसूस करने के बाद लक्ष्मण श्री राम के पास पहुंचे और बोले, 'भइया! मरणासन्न पड़ा है लेकिन इसका का अहंकार...' इससे पहले लक्ष्मण अपनी बात पूरी कर पाते श्री राम ने बीच में टोका, 'लक्ष्मण मेरे भाई! अहंकार रावण में नहीं तुममे है. विजयी होने का. रावण युद्ध हार चुका है. अब वह हमारा शत्रु नहीं है. तुम उससे कुछ लेने गए थे तो उसके पैरों के पास याचक की मुद्रा में खड़े होते लेकिन तुम तो सिर के पास आदेश वाली मुद्रा में खड़े थे. शिक्षा पाने के लिए अधिकार नहीं विनम्रता की जरूरत होती है.यदि किसी से ज्ञान प्राप्त करना हो तो उसके चरणों के पास खड़े होना चाहिए न कि सिर की ओर।' लक्ष्मण बात समझ गए वे तुरंत वहां से जाकर रावण के पैरों के पास खड़े होकर शिक्षा देने के लिए अनुरोध किया. उस समय महापंडित रावण ने लक्ष्मण को तीन बातें बताई जो जीवन में सफलता की कुंजी है! 1-शुभस्य शीघ्रम पहली बात जो रावण ने लक्ष्मण को बताई वह ये थी कि शुभ कार्य जितनी जल्दी हो कर डालना और अशुभ को जितना टाल सकते हो टाल देना चाहिए यानी शुभस्य शीघ्रम्। मैंने श्रीराम को पहचान नहीं सका और उनकी शरण में आने में देरी कर दी, इसी कारण मेरी यह हालत हुई। 2-प्रतिद्वंद्वी को कमजोर न समझो दूसरी बात यह कि अपने प्रतिद्वंद्वी, अपने शत्रु को कभी अपने से छोटा नहीं समझना चाहिए, मैं यह भूल कर गया। मैंने जिन्हें साधारण वानर और भालू समझा उन्होंने मेरी पूरी सेना को नष्ट कर दिया। मैंने जब ब्रह्माजी से अमरता का वरदान मांगा था तब मनुष्य और वानर के अतिरिक्त कोई मेरा वध न कर सके ऐसा कहा था क्योंकि मैं मनुष्य और वानर को तुच्छ समझता था। मेरी मेरी गलती हुई। 3-राज को राज ही रहने दो रावण ने लक्ष्मण को तीसरी और अंतिम बात ये बताई कि अपने जीवन का कोई राज हो तो उसे किसी को भी नहीं बताना चाहिए। यहां भी मैं चूक गया क्योंकि विभीषण मेरी मृत्यु का राज जानता था। ये मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती थी.
*महात्मा गांधी की पुण्य तिथि पर विशेष -* *"कैसा बीता था महात्मा गांधी का आख़िरी दिन"* *शुक्रवार 30 जनवरी 1948 की शुरुआत एक आम दिन की तरह हुई।* हमेशा की तरह महात्मा गांधी तड़के साढ़े तीन बजे उठे।प्रार्थना की, दो घंटे अपनी डेस्क पर कांग्रेस की नई ज़िम्मेदारियों के मसौदे पर काम किया और इससे पहले कि दूसरे लोग उठ पाते, छह बजे फिर सोने चले गए। काम करने के दौरान वह अपनी सहयोगियों आभा और मनु का बनाया नींबू और शहद का गरम पेय और मीठा नींबू पानी पीते रहे। दोबारा सोकर आठ बजे उठे।दिन के अख़बारों पर नज़र दौड़ाई, और फिर ब्रजकृष्ण ने तेल से उनकी मालिश की। नहाने के बाद उन्होंने बकरी का दूध, उबली सब्ज़ियां, टमाटर और मूली खाई और संतरे का रस भी पिया।शहर के दूसरे कोने में *पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के वेटिंग रूम में नाथूराम गोडसे, नारायण आप्टे और विष्णु करकरे* अब भी गहरी नींद में थे। *पटेल से क्यों मिलने वाले थे, गांधी?* डरबन के उनके पुराने साथी *रुस्तम सोराबजी* सपरिवार गांधी से मिलने आए। इसके बाद रोज़ की तरह वह दिल्ली के मुस्लिम नेताओं से मिले। उनसे बोले, *''मैं आप लोगों की सहमति के बग़ैर वर्धा नहीं जा सकता।''* *गांधी जी के नज़दीकी सुधीर घोष और उनके सचिव प्यारेलाल ने नेहरू और पटेल के बीच मतभेदों पर* *लंदन टाइम्स में छपी एक टिप्पणी* पर उनकी राय मांगी,इस पर गांधी ने कहा, कि वह यह मामला पटेल के सामने उठाएंगे, जो चार बजे उनसे मिलने आ रहे हैं, और फिर वह नेहरू से भी बात करेंगे जिनसे शाम सात बजे उनकी मुलाक़ात तय थी। उधर, बिरला हाउस के लिए निकलने से पहले नाथूराम गोडसे ने कहा, कि उनका मूंगफली खाने को जी चाह रहा है। आप्टे उनके लिए मूंगफली ढूंढने निकले लेकिन थोड़ी देर बाद आकर बोले- ''पूरी दिल्ली में कहीं भी मूंगफली नहीं मिल रही, क्या काजू या बादाम से काम चलेगा?'' *गोडसे को सिर्फ़ मूंगफली चाहिए थी।* लेकिन गोडसे को सिर्फ़ मूंगफली ही चाहिए थी। आप्टे फिर बाहर निकले और इस बार मूंगफली का बड़ा लिफ़ाफ़ा लेकर वापस लौटे। गोडसे मूंगफलियों पर टूट पड़े। तभी आप्टे ने कहा, कि अब चलने का समय हो गया है। *चार बजे वल्लभभाई पटेल अपनी पुत्री मनीबेन के साथ गांधी से मिलने पहुंचे, और प्रार्थना के* समय यानी शाम पांच बजे के बाद तक उनसे मंत्रणा करते रहे।सवा चार बजे गोडसे और उनके साथियों ने कनॉट प्लेस के लिए एक तांगा किया। वहां से फिर उन्होंने दूसरा तांगा किया और बिरला हाउस से दो सौ गज पहले उतर गए। उधर पटेल के साथ बातचीत के दौरान गांधी चरखा चलाते रहे और आभा का परोसा शाम का खाना बकरी का दूध, कच्ची गाजर, उबली सब्ज़ियां और तीन संतरे खाते रहे।आभा को मालूम था कि गांधी को प्रार्थना सभा में देरी से पहुँचना बिल्कुल पसंद नहीं था, वह परेशान हुई, पटेल को टोकने की उनकी हिम्मत नहीं हुई, आख़िरकार वह भारत के लौह पुरुष थे। उनकी यह भी हिम्मत नहीं हुई कि वह गांधी को याद दिला सकें कि उन्हें देर हो रही है। *जब सभा के लिए निकले गांधी -* बहरहाल उन्होंने गांधी की जेब घड़ी उठाई और धीरे से हिलाकर गांधी को याद दिलाने की कोशिश की कि उन्हें देर हो रही है।अंत: *मणिबेन* ने हस्तक्षेप किया और गांधी जब प्रार्थना सभा में जाने के लिए उठे तो पांच बज कर 10 मिनट होने को आए थे।गांधी ने तुरंत अपनी चप्पल पहनी और अपना बायां हाथ मनु और दायां हाथ आभा के कंधे पर डालकर सभा की ओर बढ़ निकले. रास्ते में उन्होंने आभा से मज़ाक किया। गाजरों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा, कि आज तुमने मुझे मवेशियों का खाना दिया। आभा ने जवाब दिया, ''लेकिन बा इसको घोड़े का खाना कहा करती थीं।'' गांधी बोले, ''मेरी दरियादिली देखिए कि मैं उसका आनंद उठा रहा हूँ, जिसकी कोई परवाह नहीं करता.'' आभा हँसी लेकिन उलाहना देने से भी नहीं चूकीं, *''आज आपकी घड़ी सोच रही होगी, कि उसको नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।''* *गोडसे ने मनु को धक्का दिया और...* *गांधी बोले, ''मैं अपनी घड़ी की तरफ़ क्यों देखूं.'' फिर गांधी गंभीर हो गए, ''तुम्हारी वजह से मुझे 10 मिनट की देरी हो गई है।* नर्स का यह कर्तव्य होता है, कि वह अपना काम करे चाहे वहां ईश्वर भी क्यों न मौजूद हो। प्रार्थना सभा में एक मिनट की देरी से भी मुझे चिढ़ है.'' यह बात करते-करते गांधी प्रार्थना स्थल तक पहुँच चुके थे। दोनों बालिकाओं के कंधों से हाथ हटाकर गांधी ने लोगों के अभिवादन के जवाब में उन्हें जोड़ लिया। बाईं तरफ से नाथूराम गोडसे उनकी तरफ झुका और मनु को लगा, कि वह गांधी के पैर छूने की कोशिश कर रहा है। आभा ने चिढ़कर कहा, कि उन्हें पहले ही देर हो चुकी है, उनके रास्ते में व्यवधान न उत्पन्न किया जाए। लेकिन गोडसे ने मनु को धक्का दिया, और उनके हाथ से माला और पुस्तक नीचे गिर गई।
India Republic Day: जानिए गणतंत्र दिवस का इतिहास, महत्व और रोचक तथ्य Republic Day 2020: डॉ. भीमराव अंबेडकर (B. R. Ambedkar) ने संविधान को दो साल, 11 महीने और 18 दिनों में तैयार कर राष्ट्र को समर्पित किया था. आपको बता दें, हमारा संविधान विश्व का सबसे बड़ा संविधान माना जाता है. January 26, 2020 : भारतीय संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान को अपनाया था. Republic Day 2020: भारत में हर साल 26 जनवरी (26 January) को गणतंत्र दिवस (Republic Day) मनाया जाता है.. इस साल देश 71वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. दरअसल, 26 जनवरी 1950 को हमारे देश में संविधान लागू हुआ, जिसके उपलक्ष्य में हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है. एक स्वतंत्र गणराज्य बनने के लिए भारतीय संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को संविधान अपनाया गया था, लेकिन इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था. डॉ. भीमराव अंबेडकर (B. R. Ambedkar) ने संविधान को दो साल, 11 महीने और 18 दिनों में तैयार कर राष्ट्र को समर्पित किया था. आपको बता दें कि हमारा संविधान विश्व का सबसे बड़ा संविधान माना जाता है. इसे बनाने वाली संविधान सभा के अध्यक्ष भीमराव अंबेडकर थे, जबकि जवाहरलाल नेहरू, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे. गणतंत्र दिवस का इतिहास गणतंत्र दिवस का इतिहास (Republic Day History) बड़ा ही रोचक है. एक स्वतंत्र गणराज्य बनने और देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए संविधान को 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 (26 January) को इसे एक लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया. साल 1929 की दिसंबर में लाहौर में पंडित जावरहलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का अधिवेशन किया गया था. इस अधिवेशन में प्रस्ताव पारित करते हुए इस बात की घोषणा की गई कि यदि अंग्रेज सरकार द्वारा 26 जनवरी 1930 तक भारत को डोमीनियन का दर्जा नहीं दिया गया तो भारत को पूर्ण रूप से स्वतंत्र देश घोषित कर दिया जाएगा. 26 जनवरी 1930 तक जब अंग्रेज सरकार ने कुछ नहीं किया तब कांग्रेस ने उस दिन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा की और अपना सक्रिय आंदोलन आरंभ किया. उस दिन से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने तक 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता रहा. इसके बाद 15 अगस्त 1947 को वास्तविक स्वतंत्रा प्राप्त करने के बाद इस दिन स्वतंत्रता दिवस मनाया जाने लगा. भारत के आज़ाद हो जाने के बाद संविधान सभा की घोषणा हुई और इसने अपना कार्य 9 दिसम्बर 1947 से शुरू किया. संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे. 26 जनवरी 1950 को कैसे लागू हुआ संविधान? डॉ० भीमराव आंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे. संविधान निर्माण में कुल 22 समितीयां थी, जिसमें प्रारूप समिति (ड्राफ्टींग कमेटी) सबसे प्रमुख और महत्त्वपूर्ण समिति थी और इस समिति का कार्य संपूर्ण 'संविधान लिखना' या 'निर्माण करना' था. प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर थे. प्रारूप समिति ने और उसमें विशेष रूप से डॉ. आंबेडकर ने 2 साल, 11 महीने और 18 दिन में भारतीय संविधान का निर्माण किया और संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को 26 नवंबर 1949 को भारत का संविधान सुपूर्द किया.
किसी नगर में एक बूढ़ा चोर रहता था। सोलह वर्षीय उसका एक लड़का भी था। चोर जब ज्यादा बूढ़ा हो गया तो अपने बेटे को चोरी की विद्या सिखाने लगा। कुछ ही दिनों में वह लड़का चोरी विद्या में प्रवीण हो गया। दोनों बाप बेटा आराम से जीवन व्यतीत करने लगे। एक दिन चोर ने अपने बेटे से कहा, ”देखो बेटा, साधु-संतों की बात कभी नहीं सुननी चाहिए। अगर कहीं कोई महात्मा उपदेश देता हो तो अपने कानों में उंगली डालकर वहां से भाग जाना, समझे। “हां बापू, समझ गया।” एक दिन लड़के ने सोचा, क्यों न आज राजा के घर पर ही हाथ साफ कर दूं। ऐसा सोचकर उधर ही चल पड़ा। थोड़ी दूर जाने के बाद उसने देखा कि रास्ते में बगल में कुछ लोग एकत्र होकर खड़े हैं। उसने एक आते हुए व्यक्ति से पूछा, “उस स्थान पर इतने लोग क्यों एकत्र हुए हैं?” उस आदमी ने उत्तर दिया, ”वहां एक महात्मा उपदेश दे रहे हैं।“ यह सुनकर उसका माथा ठनका। ‘इसका उपदेश नहीं सुनूंगा।' ऐसा सोचकर अपने कानों में उंगली डालकर वह वहां से भाग निकला। जैसे ही वह भीड़ के निकट पहुंचा एक पत्थर से ठोकर लगी और वह गिर गया। उस समय महात्मा जी कह रहे थे, ”कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए। जिसका नमक खाएं उसका कभी बुरा नहीं सोचना चाहिए। ऐसा करने वाले को भगवान सदा सुखी बनाए रखते हैं।“ ये दो बातें उसके कान में पड़ीं। वह झटपट उठा और कान बंद कर राजा के महल की ओर चल दिया। वहां पहुंचकर जैसे ही अंदर जाना चाहा कि उसे वहां बैठे पहरेदार ने टोका, ”अरे कहां जाते हो? तुम कौन हो?“ उसे महात्मा का उपदेश याद आया, ‘झूठ नहीं बोलना चाहिए।' चोर ने सोचा, आज सच ही बोल कर देखें। उसने उत्तर दिया, ”मैं चोर हूं, चोरी करने जा रहा हूं।“ ”अच्छा जाओ।“ उसने सोचा राजमहल का नौकर होगा। मजाक कर रहा है। चोर सच बोलकर राजमहल में प्रवेश कर गया। एक कमरे में घुसा। वहां ढेर सारा पैसा तथा जेवर देख उसका मन खुशी से भर गया। एक थैले में सब धन भर लिया और दूसरे कमरे में घुसा। वहां रसोई घर था। अनेक प्रकार का भोजन वहां रखा था। वह खाना खाने लगा। खाना खाने के बाद वह थैला उठाकर चलने लगा कि तभी फिर महात्मा का उपदेश याद आया, ‘जिसका नमक खाओ, उसका बुरा मत सोचो।' उसने अपने मन में कहा, ‘खाना खाया उसमें नमक भी था। इसका बुरा नहीं सोचना चाहिए।' इतना सोचकर, थैला वहीं रख वह वापस चल पड़ा। पहरेदार ने फिर पूछा, ”क्या हुआ, चोरी क्यों नहीं की?“ देखिए जिसका नमक खाया है, उसका बुरा नहीं सोचना चाहिए। मैंने राजा का नमक खाया है, इसलिए चोरी का माल नहीं लाया। वहीं रसोई घर में छोड़ आया।“ इतना कहकर वह वहां से चल पड़ा। उधर रसोइए ने शोर मचाया, ”पकड़ो, पकड़ों चोर भागा जा रहा है।“ पहरेदार ने चोर को पकड़कर दरबार में उपस्थित किया। राजा के पूछने पर उसने बताया कि एक महात्मा के द्वारा दिए गए उपदेश के मुताबिक मैंने पहरेदार के पूछने पर अपने को चोर बताया क्योंकि मैं चोरी करने आया था। आपका धन चुराया लेकिन आपका खाना भी खाया, जिसमें नमक मिला था। इसीलिए आपके प्रति बुरा व्यवहार नहीं किया और धन छोड़कर भागा। उसके उत्तर पर राजा बहुत खुश हुआ और उसे अपने दरबार में नौकरी दे दी। वह दो-चार दिन घर नहीं गया तो उसके बाप को चिंता हुई कि बेटा पकड़ लिया गया-लेकिन चार दिन के बाद लड़का आया तो बाप अचंभित रह गया अपने बेटे को अच्छे वस्त्रों में देखकर। लड़का बोला- ”बापू जी, आप तो कहते थे कि किसी साधु संत की बात मत सुनो। लेकिन मैंने एक महात्मा की बात सुनी और उसी के मुताबिक काम किया तो देखिए सच्चाई का फल, मुझे राजमहल में अच्छी नौकरी मिल गई।“ *सदैव प्रसन्न रहिये।* *जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।* ✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी। वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी, जिसे कोई भी ले सकता था। एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रास्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता - "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा।" दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा... वो कुबड़ा रोज रोटी लेकर जाता रहा और इन्हीं शब्दों को बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा।" वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी कि- "कितना अजीब व्यक्ति है, एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका।" एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली- "मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी।" और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी और जैसे ही उसने रोटी को खिड़की पर रखने कि कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और वह रुक गई और वह बोली- "हे भगवन! मैं ये क्या करने जा रही थी?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे की आँच में जला दिया। एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी। हर रोज़ की तरह वह कुबड़ा आया और रोटी लेके, "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा" बड़बड़ाता हुआ चला गया। इस बात से बिलकुल बेख़बर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है..। हर रोज़ जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र की सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था। महीनों से उसकी कोई ख़बर नहीं थी। ठीक उसी शाम को उसके दरवाज़े पर एक दस्तक होती है। वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है। अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है। वह पतला और दुबला हो गया था। उसके कपड़े फटे हुए थे और वह भूखा भी था, भूख से वह कमज़ोर हो गया था। जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा- "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ। आज जब मैं घर से एक मील दूर था, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया, मैं मर गया होता। लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था, उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया। भूख के मारे मेरे प्राण निकल रहे थे, मैंने उससे खाने को कुछ माँगा, उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि- "मैं हर रोज़ यही खाता हूँ, लेकिन आज मुझसे ज़्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है, सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो।" जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी, माँ का चेहरा पीला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाज़े का सहारा लिया। उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था, अगर उसने वह रोटी आग में जला कर नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत? और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिल्कुल स्पष्ट हो चूका था- *"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा ।"* *शिक्षा:* हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको, फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या ना हो..!!
*इन पांच लघु कहानी से समझे* *उपभोगवाद की हकीकत* 1. सर में भयंकर दर्द था सो अपने परिचित केमिस्ट की दुकान से सर दर्द की गोली लेने रुका। दुकान पर नौकर था, उसने मुझे गोली का पत्ता दिया , तो उससे मैंने पूछा गोयल साहब कहाँ गए हैं , *तो उसने कहा साहब के सर में दर्द था ,* *सो सामने वाली दुकान में कॉफी पीने गये हैं।* अभी आते होंगे! मैं अपने हाथ मे लिए उस दवाई के पत्ते को देखने लगा.?
दूसरों को दिखाने के लिए हमें जीवन नही जीना चाहिए... जीवन का आनंद हर पल में लेते रहें... मनुष्य माटी का पुतला है..माटी में ही मिल जाएगा...जो पास है वही पर्याप्त है... सदैव मुस्कुराते रहिए।
जब से ख़बर पढ़ी है,देखी है अजीब सी मन में कसमसाहट है। अजीब सी घृणा के भाव आ रहे हैं जा रहे हैं। गुस्सा बेहिसाब आ रहा है पर किसपर करूँ ये समझ नही आ रहा है। दोषी कौन है ? ये प्रश्न यक्ष प्रश्न बनकर सामने खड़ा हुआ है जिसका सही जवाब नही सूझ रहा है अगर आप को मिले तो जरूर कमेंट करें ताकि महसूस कर सकूं के इंसानों के बीच में हूँ नरपषुओं के बीच में नही क्योंकि मित्र मंडली में संख्या बहुत है पर शायद उनकी जुबान भी जाति,धर्म के तालों से बंद है। #उत्तर प्रदेश के #हाथरस जिले में मनीषा नाम की लड़की का गैंगरेप हुआ है..लड़की दलित वर्ग से आती है..लड़की की जुबान काट दी गई...रीढ़ की हड्डी( स्पाइनल कॉर्ड) तोड़ दी गई है...और आज दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में उस लड़की की मौत हो गई है... अब प्रश्न ये उठ रहा है कि गैंग रेप किसका हुआ उस लड़की का या हमारी संस्कृति का... सरकार के खोखले वादों का ....या झूठे नारों ,स्लोगन का..जिसमें बेटी बचाओ को बहुत बढ़ा चढ़ा के प्रचारित किया जाता है... आज 2020 में भी जाति,धर्म की भावना खत्म नही हुई है हम सब के मस्तिष्क से...तभी तो सरकार अलग अलग वर्ग,जाति, धर्म के लोगों में तरह तरह की योजना लागू करती है...और समाज के लोग अपनी अपनी जाति,धर्म,रंग के अनुसार उन योजनाओं के पीछे लार टपकाते भागते रहते हैं और खामोश रहते हैं। जुबान उस लड़की की कटी है ताकि वो अपराधियों के नाम न बोल सके...या हम सब की जुबान काट दी गई है जो इतना सब देख सुनकर भी मौन हैं...पहले भी खामोश थे आज भी खामोशी के साथ ये सोचकर कि हम क्यों फालतू की खबरों पर ध्यान दे...कौन सा हमारे घर में हुआ है..ये तो होता रहता है...चुप हैं... रीढ़ की हड्डी उस लड़की की टूटी है या हमारे सिस्टम की टूटी है...हमारे और आपके स्पाइनल कॉर्ड पर चोट की गई है...जिसका दर्द हमें अभी महसूस नही हो रहा है...हम इंतजार में है कि हमारे साथ जब ऐसा होगा या वाकई हम इतने लाचार हो चुके हैं कि हम सीधे खड़े होकर विरोध नही कर सकते ऐसी घटनाओं का। क्या हम ऐसी शर्मनाक घटनाओं के देश को भारत कहते हैं...क्या हम किताबों में लिखे "यत्र नारी पूज्यंते, तत्र देवता रमन्ते" जिसमें नारी की पूजा होने पर भगवान के खुश होने को माना गया है की अवधारणा को सिर्फ किताबी ज्ञान तक सीमित मानते हैं...क्या वर्ष में दो बार नवरात्र मनाने में कन्याओं का पूजन,देवी के मंदिर में जुटी भीड़ सिर्फ दिखावा है,ढोंग है...क्या लड़कियों के हमसे गलती से पैर लग जाने पर उनके पैर छूना ढोंग है...क्या बेटियां होने पर घर पर लक्ष्मी आई है कह कर बधाई देना भी एक दिखावा है....क्या बेटियों के पैर पूजना भी सिर्फ एक दिखावा बन चुका है... क्यों हमें बलात्कार के पीछे की घटनाओं में उनके कम कपड़ों,उनके खुलेपन के दोष देने में अपनी बहादुरी समझते हैं...हम अपनी नज़रों में छिपे घटिया सोच, अपने दिमाग की गंदी समझ,अपने बेटों में छुपे दरिंदों की पहचान क्यों नही कर पाते...क्यों ऐसी घटनाओं में माँ, बहन अपने बेटों,भाइयों का पक्ष लेते नज़र आती है...क्यों मीडिया और हम केवल महिलाओं में छिपे ऐब की तलाश में लगे रहते हैं... और समाज में मां ,बहन की गालियों में क्यों नारी के नाम पर ही गाली दी जाती है...क्यों केवल महिलाओं के निजी अंग पर प्रहार किया जाता है.. जबकि हम सब का जन्म उसी अंग से हुआ है...हम कब तक सरकार ,पुलिस,कानून को दोषी ठहराते रहेंगे...हम कब समझेंगे के इस तरह के अपराध में हम सब बराबर के दोषी हैं...कभी अपने लड़कों की गलतियों पर पर्दा डालकर,कभी अपनी लड़कियों को ज्यादा छूट देकर...तो कभी ये सोचकर कि हम कर भी क्या लेंगे । हम कैसे लोकतंत्र में है जहाँ अपनी आवाज उठाने से हमें डर लगता है... कैसे देश में है जहाँ अकेले आने जाने में डर लगता है... कैसे धर्म का पालन कर रहे हैं जिसकी लिखी कही गई बातें मानने में शर्म आती है...हम इंसानियत को समझते भी है या सिर्फ अपनी धुन,अपने काम,अपनी अंधी दौड़ में दौड़े जा रहे हैं....जिसका अंत एक गहरी काली खाई है...जहां पहुँचने के बाद लौटने का कोई रास्ता नही... अंत में एक आखरी बात के ये जो #daughtersday मनाने का चलन शुरू हुआ है उसको बंद कर दो अगर तुम बेटी वाले होकर भी बेटियों के लिए आवाज नही उठा सकते...बंद कर दो कन्याओं का पूजन भी अगर उनकी रक्षा नही कर सकते...बंद कर दो बेटियों के नाम पर नारे गढ़ना...#बेटीबचाओ अभियान चलाना...क्योंकि आने वाले कल में ये सारी हरकतें मानवता को शर्मशार करेंगी। #StopRape #manishavalmiki #BetiBachaoBetiPadhao #हाथरस
दोस्तों जीवन में सही दिशा का होना बहुत जरूरी है. प्रणाम का महत्व जीवन में क्या असर डालता है आइये सुनते हैं...
*!! धैर्यशील शिष्य !!* >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>> एक बार कि बात है, एक गुरू अपने कुछ शिष्यों के साथ पैदल ही यात्रा पर थे। वे चलते-चलते किसी गांव में पहुंच गए। ये गांव काफी बड़ा था, वहां घूमते हुए उन्हें काफी देर हो गयी थी। गुरू जी थक चुके थे और उन्हें बहुत प्यास लगी थी, तो उन्होनें अपने एक शिष्य से कहा कि हम इसी गांव में कुछ देर रूकते हैं, तुम मेरे लिए पानी ले आओ। *सदैव प्रसन्न रहिये।* *जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
अमृता प्रीतम और प्रेम शायद पर्याय थे एक दूसरे के। साहिर अमृता के प्रेम ने इस कहानी को अमर कर दिया।
दो अलग-अलग देश, दो अलग-अलग पृष्ठभूमि, दो अलग-अलग संस्कृतियां लेकिन एक साझा भाग्य। जी हां, यह राजीव गांधी और सोनिया गांधी की प्रेम-कहानी नहीं है। एक प्रेम कहानी जो एक राजनीतिक मामला बन गया; राजीव गांधी और सोनिया गांधी की प्रेम कहानी इतनी जुनून और गर्मजोशी से भरी है कि यह लेखकों को एक प्रेम कहानी को कलमबद्ध करने के लिए प्रेरित कर सकती है। युवा जोड़े राजीव गांधी ने एक खूबसूरत इतालवी लड़की को कैम्ब्रिज में एक ग्रीक रेस्तरां में बैठे देखा और उसके लिए तुरंत गिर पड़े। यह इतालवी लड़की भविष्य की श्रीमती सोनिया गांधी के अलावा और कोई नहीं थी। बहुत ही आकर्षक राजीव गांधी ने रेस्तरां के मालिक चार्ल्स एंटोनी से पूछा कि वह उन्हें अपने करीब रखे, जिसके लिए मालिक ने काफी रकम की मांग की। उस दिन, वह सोनिया की सुंदरता से इतना मंत्रमुग्ध हो गया कि उसने तुरंत उसके बारे में एक पेपर नैपकिन पर एक कविता लिखी और उसे चार्ल्स के माध्यम से सबसे अच्छी शराब की एक बोतल के साथ भेजा। सिमी ग्रेवाल के साथ एक टॉक शो पर, राजीव ने कहा: "जब मैंने पहली बार सोनिया को देखा तो मुझे पता था कि वह मेरे लिए लड़की है। मैंने सोनिया को बहुत सीधा और मुखर पाया, कभी भी कुछ नहीं छिपाया। वह बहुत गर्म है और एक व्यक्ति के रूप में समझती है।" दोनों अक्सर बाहर जाने लगे और सत्यजीत रे की पाथेर पांचाली पहली फिल्म थी जिसे उन्होंने एक साथ देखा था। मां से मिलना भले ही राजीव कैंब्रिज में एक आम व्यक्ति की तरह रहे, लेकिन यह तथ्य कि वे एक महान राजनीतिक नेता, इंदिरा गांधी के पुत्र थे, उनकी वास्तविकता का एक बड़ा हिस्सा था। राजीव ने सोनिया के प्रति अपने प्यार का इजहार करते हुए अपनी मां को एक पत्र लिखा। श्रीमती गांधी ने पत्र प्राप्त किया और अपनी चाची के साथ चर्चा करने के बाद, विजयलक्ष्मी पंडित ने अपनी भावी बहू से मिलने का फैसला किया। श्रीमती गांधी ने 1965 में नेहरू प्रदर्शनी के लिए लंदन के लिए उड़ान भरी और यह वहां था कि राजीव ने सोनिया को अपनी मां से मिलवाया। उस समय, युवा जोड़े ने एक-दूसरे से शादी करने का मन बना लिया था। खुले विचारों वाले नेता होने के नाते, इंदिरा उनके प्रेमालाप के रास्ते में नहीं आईं लेकिन उन्होंने सुझाव दिया कि सोनिया को अंतिम कॉल करने से पहले भारत का दौरा करना चाहिए। एक डरा हुआ पिता इस तथ्य के बावजूद कि इंदिरा गांधी ने मैच को आसानी से स्वीकार कर लिया, सोनिया के पिता, श्री स्टेफानो मेनो, अपनी बेटी के फैसले के बारे में थोड़ा आशंकित थे। वह अपनी बेटी को इतनी दूर जमीन पर भेजने से डरता था। उन्हें राजीव के लिए पसंद था लेकिन अपनी बेटी को एक राजनीतिक परिवार में शादी करने के लिए बहुत उत्सुक नहीं थे। जैसा कि यह अब तक की सबसे बड़ी प्रेम कहानी थी, राजीव 1967 में अपनी इंजीनियर की डिग्री पूरी किए बिना भारत लौट आए और सोनिया ने 1968 में 21 साल की उम्र में शुरुआत में उनका साथ दिया। कैम्ब्रिज से लौटने के बाद वह पायलट बन गईं, इससे पहले वह बच्चन परिवार के साथ रहीं। शादी की शुरुआत हुई। सिविल शादी इंदिरा गांधी ने महसूस किया कि राजीव और सोनिया एक दूसरे के बारे में गंभीर थे। इसलिए, उसने अनावश्यक गपशप से बचने के लिए, जल्दी शादी करने का फैसला किया। उसने घटनाओं में गहरी दिलचस्पी ली और उसके मार्गदर्शन में सब कुछ आयोजित किया गया। जनवरी 1968 के अंत तक राजीव और सोनिया की सगाई हो गई। मेहंदी समारोह नई दिल्ली के विलिंगडन क्रीसेंट में बच्चन के घर पर हुआ। 25 फरवरी, 1968 को पीएम के घर के पीछे के बगीचे में एक नागरिक विवाह हुआ। शादी एक सुरुचिपूर्ण थी और इसमें कई प्रसिद्ध राजनेताओं, व्यापारियों और मशहूर हस्तियों ने भाग लिया था। समारोह के बाहर पत्रकारों की एक ब्रिगेड खड़ी थी, बस समारोह की एक झलक पाने के लिए। फूल, रंगोली, भव्य बुफे और संगीत थे, लेकिन इंदिरा गांधी के पिता, पं। जवाहरलाल नेहरू की अनुपस्थिति सभी को महसूस हुई। उसकी माँ, बहन और मामा, हालाँकि, समारोहों का एक बड़ा हिस्सा थे। अगले दिन हैदराबाद हाउस में एक भव्य रिसेप्शन का आयोजन किया गया। घर और दुनिया राजीव गांधी पहले एक पारिवारिक व्यक्ति थे और फिर कुछ और। सोनिया और राजीव ने 19 जून, 1970 को अपने बेटे, राहुल गांधी और 12 जनवरी, 1972 को उनकी बेटी प्रियंका गांधी का स्वागत किया। सोनिया मुख्य रूप से एक पत्नी और एक माँ थी। वह कभी नहीं चाहती थीं कि उनके पति राजनीति में शामिल हों। राजीव भी राजनीति का हिस्सा बनने से हिचक रहे थे। उन्होंने सोनिया से वादा किया कि वह इस मांग वाले पेशे का प्रमुख हिस्सा नहीं बनेंगी। संजीव गांधी की अचानक मृत्यु के बाद, राजीव को अपनी पत्नी की माँ की मदद करने के लिए किए गए वचन को तोड़ना पड़ा। सोनिया उन दिनों के लिए रोई जब राज
*इस कहानी को पढ़कर सारी ज़िन्दगी की टेंशन खत्म हो जायेगी...
एक बार एक आदमी रेगिस्तान में कहीं भटक गया। उसके पास खाने-पीने की जो थोड़ी-बहुत चीजें थीं वो जल्द ही ख़त्म हो गयीं और पिछले दो दिनों से वो पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहा था। वह मन ही मन जान चुका था कि अगले कुछ घंटों में अगर उसे कहीं से पानी नहीं मिला तो उसकी मौत पक्की है। पर कहीं न कहें उसे ईश्वर पर यकीन था कि कुछ चमत्कार होगा और उसे पानी मिल जाएगा… तभी उसे एक झोपड़ी दिखाई दी! उसे अपनी आँखों यकीन नहीं हुआ। पहले भी वह मृगतृष्णा और भ्रम के कारण धोखा खा चुका था…पर बेचारे के पास यकीन करने के आलावा को चारा भी तो न था! आखिर ये उसकी आखिरी उम्मीद जो थी! वह अपनी बची-खुची ताकत से झोपडी की तरफ रेंगने लगा…जैसे-जैसे करीब पहुँचता उसकी उम्मीद बढती जाती… और इस बार भाग्य भी उसके साथ था, सचमुच वहां एक झोपड़ी थी! पर ये क्या? झोपडी तो वीरान पड़ी थी! मानो सालों से कोई वहां भटका न हो। फिर भी पानी की उम्मीद में आदमी झोपड़ी के अन्दर घुसा, अन्दर का नजारा देख उसे अपनी आँखों पे यकीन नहीं हुआ…वहां एक हैण्ड पंप लगा था, आदमी एक नई उर्जा से भर गया…पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसता वह तेजी से हैण्ड पंप चलाने लगा। लेकिंग हैण्ड पंप तो कब का सूख चुका था…आदमी निराश हो गया…उसे लगा कि अब उसे मरने से कोई नहीं बचा सकता…वह निढाल हो कर गिर पड़ा! तभी उसे झोपड़ी के छत से बंधी पानी से भरी एक बोतल दिखी! वह किसी तरह उसकी तरफ लपका! वह उसे खोल कर पीने ही वाला था कि तभी उसे बोतल से चिपका एक कागज़ दिखा….उस पर लिखा था- इस पानी का प्रयोग हैण्ड पंप चलाने के लिए करो…और वापस बोतल भर कर रखना नहीं भूलना। ये एक अजीब सी स्थिति थी, आदमी को समझ नहीं आ रहा था कि वो पानी पिए या उसे हैण्ड पंप में डालकर उसे चालू करे! उसके मन में तमाम सवाल उठने लगे… अगर पानी डालने पे भी पंप नहीं चला….अगर यहाँ लिखी बात झूठी हुई…और क्या पता जमीन के नीचे का पानी भी सूख चुका हो। लेकिन क्या पता पंप चल ही पड़े….क्या पता यहाँ लिखी बात सच हो…वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे! फिर कुछ सोचने के बाद उसने बोतल खोली और कांपते हाथों से पानी पंप में डालने लगा। पानी डालकर उसने भगवान् से प्रार्थना की और पंप चलाने लगा…एक-दो-तीन….और हैण्ड पंप से ठंडा-ठंडा पानी निकलने लगा! वो पानी किसी अमृत से कम नहीं था… आदमी ने जी भर के पानी पिया, उसकी जान में जान आ गयी, दिमाग काम करने लगा। उसने बोतल में फिर से पानी भर दिया और उसे छत से बांध दिया। जब वो ऐसा कर रहा था तभी उसे अपने सामने एक और शीशे की बोतल दिखी। खोला तो उसमे एक पेंसिल और एक नक्शा पड़ा हुआ था जिसमे रेगिस्तान से निकलने का रास्ता था। आदमी ने रास्ता याद कर लिया और नक़्शे वाली बोतल को वापस वहीँ रख दया। इसके बाद वो अपनी बोतलों में पानी भर कर वहां से जाने लगा। कुछ आगे बढ़ कर उसने एक बार पीछे मुड़ कर देखा…फिर कुछ सोच कर वापस उस झोपडी में गया और पानी से भरी बोतल पे चिपके कागज़ को उतार कर उस पर कुछ लिखने लगा। उसने लिखा- मेरा यकीन करिए…ये काम करता है! *शिक्षा*:- दोस्तों, ये कहानी Life के बारे में है। ये हमे सिखाती है कि बुरी से बुरी स्थिति में भी अपनी उम्मीद नहीं छोडनी चाहिए और इस कहानी से ये भी शिक्षा मिलती है कि कुछ बहुत बड़ा पाने से पहले हमें अपनी ओर से भी कुछ देना होता है। जैसे उस आदमी ने नल चलाने के लिए मौजूद पूरा पानी उसमे डाल दिया। देखा जाए तो इस कहानी में पानी जीवन में मौजूद अच्छी चीजों को दर्शाता है। कुछ ऐसी चीजें जिसकी हमारे नार में Value है। किसी के लिए ये ज्ञान हो सकता है तो किसी के लिए प्रेम तो किसी और के लिए पैसा! ये जो कुछ भी है उसे पाने के लिए पहले हमें अपनी तरफ से उसे कर्म रुपी हैण्ड पंप में डालना होता है और फिर बदले में आप अपने योगदान से कहीं अधिक मात्रा में उसे वापस पाते हैं।
जीवन में कई बार ऐसा होता है जब हम सोचते हैं कि हर काम हम ही करते हैं। जबकि सत्य यह है कि ईश्वर को जो काम हमसे करना होता है उसका प्रबंध वो खुद करता है। इसलिए कभी मन में ये विचार न लाएं के मैं न होता तो क्या होता।
हमारे जीवन में होने वाली हर अच्छी, बुरी घटना में ईश्वर का हाथ होता है। हमें ईश्वर पर विश्वास रखना चाहिए। उसके किसी भी कार्य पर शंका नही करनी चाहिए।
ट्रेजिडी क़वीन मीना कुमारी न केवल एक बेहतरीन अदाकारा थी बल्कि एक बेहतरीन रचनाकार भी थी।
बहुत समय पहले की बात है , आइस्लैंड के उत्तरी छोर पर एक किसान रहता था . उसे अपने खेत में काम करने वालों की बड़ी ज़रुरत रहती थी लेकिन ऐसी खतरनाक जगह , जहाँ आये दिन आंधी –तूफ़ान आते रहते हों , कोई काम करने को तैयार नहीं होता था . किसान ने एक दिन शहर के अखबार में इश्तहार दिया कि उसे खेत में काम करने वाले एक मजदूर की ज़रुरत है . किसान से मिलने कई लोग आये लेकिन जो भी उस जगह के बारे में सुनता , वो काम करने से मना कर देता . अंततः एक सामान्य कद का पतला -दुबला अधेड़ व्यक्ति किसान के पास पहुंचा .किसान ने उससे पूछा , “ क्या तुम इन परिस्थितयों में काम कर सकते हो ?” “ ह्म्म्म , बस जब हवा चलती है तब मैं सोता हूँ .” व्यक्ति ने उत्तर दिया . किसान को उसका उत्तर थोडा अजीब लगा लेकिन चूँकि उसे कोई और काम करने वाला नहीं मिल रहा था इसलिए उसने व्यक्ति को काम पर रख लिया. मजदूर मेहनती निकला , वह सुबह से शाम तक खेतों में म्हणत करता , किसान भी उससे काफी संतुष्ट था .कुछ ही दिन बीते थे कि एक रात अचानक ही जोर-जोर से हवा बहने लगी , किसान अपने अनुभव से समझ गया कि अब तूफ़ान आने वाला है . वह तेजी से उठा , हाथ में लालटेन ली और मजदूर के झोपड़े की तरफ दौड़ा . जल्दी उठो , देखते नहीं तूफ़ान आने वाला है , इससे पहले की सबकुछ तबाह हो जाए कटी फसलों को बाँध कर ढक दो और बाड़े के गेट को भी रस्सियों से कास दो .” किसान चीखा . मजदूर बड़े आराम से पलटा और बोला , “ नहीं जनाब , मैंने आपसे पहले ही कहा था कि जब हवा चलती है तो मैं सोता हूँ !!!.” यह सुन किसान का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया , जी में आया कि उस मजदूर को गोली मार दे , पर अभी वो आने वाले तूफ़ान से चीजों को बचाने के लिए भागा . किसान खेत में पहुंचा और उसकी आँखें आश्चर्य से खुली रह गयी , फसल की गांठें अच्छे से बंधी हुई थीं और तिरपाल से ढकी भी थी , उसके गाय -बैल सुरक्षित बंधे हुए थे और मुर्गियां भी अपने दडबों में थीं … बाड़े का दरवाज़ा भी मजबूती से बंधा हुआ था . साड़ी चीजें बिलकुल व्यवस्थित थी …नुक्सान होने की कोई संभावना नहीं बची थी.किसान अब मजदूर की ये बात कि “ जब हवा चलती है हमारी ज़िन्दगी में भी कुछ ऐसे तूफ़ान आने तय हैं , ज़रुरत इस बात की है कि हम उस मजदूर की तरह पहले से तैयारी कर के रखें ताकि मुसीबत आने पर हम भी चैन से सो सकें. जैसे कि यदि कोई विद्यार्थी शुरू से पढ़ाई करे तो परीक्षा के समय वह आराम से रह सकता है, हर महीने बचत करने वाला व्यक्ति पैसे की ज़रुरत पड़ने पर निश्चिंत रह सकता है, इत्यादि. तो चलिए हम भी कुछ ऐसा करें कि कह सकें – ” जब हवा चलती है तो मैं सोता हूँ.”
ईश्वर पर विश्वास ईश्वर की आराधना प्रणाली से अधिक महत्वपूर्ण है।
पढ़ाई से ज्ञान तो मिल सकता है पर चतुराई नही। कुछ ऐसा ही पढ़े लिखे sdm साहब के सामने चतुर ग्रामीण ने किया।
अमिताभ बच्चन को एंग्री यंग मैन बनाने वाले निर्माता ,निर्देशक प्रकाश मेहरा की जयंती पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ अनसुनी दास्तान लेकर आपके सामने प्रस्तुत हूँ।
उत्तर प्रदेश में अपराधियों को सजा से पहले मिलता है राजनीतिक दलों का सरंक्षण। इसी क्रम में पेश है गैंगेस्टर अतीक अहमद की कहानी
सरकारी महकमे पर व्यंग्य करती हुई कृष्ण चन्द्र की रचना जामुन का पेड़