Indian Raaga Series

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Indian Raaga Series is designed for the lovers of Indian classical music, with each episode we provide interesting information about the shastriya sangeet of India and the performing artists of this genre, stay tuned with Krishnmohan Mishra and Sangya Tandon for a great musical experience.

Radio Playback India


    • Dec 9, 2021 LATEST EPISODE
    • infrequent NEW EPISODES
    • 13m AVG DURATION
    • 23 EPISODES


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    Latest episodes from Indian Raaga Series

    राग यमन और श्रीया झा से बातचीत

    Play Episode Listen Later Dec 9, 2021 39:09


    भेंटकर्ता : शुभ्रा ठाकुर नाम- कु.श्रीया झा माता- श्रीमती अर्चना झा पिता-श्री उमेश कुमार झा शिक्षा- B.A.(HONS) -ENG वर्तमान मैं क्राइस्ट यूनिवर्सिटी, बैंगलोर से MA English with communication studies की पढ़ाई जारी है। शास्त्रीय संगीत -विद (6 वर्षीय) शौक- गायन,एवम वादन (गिटार,हारमोनियम,ढोलक), अभिनय, चित्रकारी,पठन एवम योग मेरी प्रथम गुरु, मेरी माँ से मैने संगीत की शिक्षा प्राप्त की तथा, इंदिरा कला एवम संगीत विश्विद्यालय,खैरागढ़ से, श्री रवीश कलगांवकर जी के सानिध्य में संगीत का रियाज़ एवम शिक्षा अभी भी जारी है। उपलब्धियां- * स्कूल में अंतर-सदन गायन एवम रंगोली प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार * D.P.S.durg में सांस्कृतिक सचिव -2017 * छत्तीसगढ़ आइडियल -2013(संगीत प्रतियोगिता) * भिलाई इस्पात संयंत्र के क्रीड़ा एवम सांस्कृतिक समूह द्वारा आयोजित शास्त्री संगीत, सुगम संगीत एवम लोक गायन प्रतियोगिता (2012,13,14) में विजेता *भारत सांस्कृतिक महोत्सव-2015 में शास्त्रीय एवम सुगम संगीत मे पुरस्कृत *Delhi Public School Society ,नई दिल्ली द्वारा आयोजित अखिल भारतीय हिंदुस्तानी वोकल संगीत महोत्सव 2016 में प्रथम स्थान * ASSOCIATION OF UNIVERSITIES द्वारा आयोजित राष्ट्रीय युवा महोत्सव फरवरी एवम नवंबर 2019 में गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय ,बिलासपुर का प्रतिनिधित्व एवम पुरस्कृत * केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा गांधीनगर,गुजरात मेँ आयोजित "एक भारत ,श्रेष्ठ भारत" कार्यक्रम 2020 में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व ।

    राग अहीर भैरव और निमिषा सिंघल से बातचीत

    Play Episode Listen Later Dec 2, 2021 29:54


    निमिषा सिंघल का जन्म बुलंदशहर में हुआ खुर्जा व मेरठ में शिक्षा दीक्षा हुई , शिक्षा : एमएससी, बी.एड,एम. फिल, सूक्ष्मजैविकी में एम.फिल पूरी करने के बाद शास्त्रीय संगीत में प्रवीण तक का सफ़र तय किया। आज कल निमिषा जी आगरा में रहती हैं। संगीत के साथ साथ वे समर्थ साहित्यकार और कला(oil painting) के क्षेत्र में भी माहिर हैं। कविताएँ और कहानियां लिखती रही हैं। उनका एक एकल काव्य संँग्रह भी प्रकाशित है कविता कोश में रचनाएंँ प्रकाशित हो चुकी हैं। ताज महोत्सव 2016 - 2018 में भजन गजल प्रस्तुति का अवसर पा चुकी हैं। यूट्यूब पर काव्य रस सरोवर साहित्यिक चैनल का सन्चालन करती हैं। निमिषा जी बताती हैं कि बचपन से ही पुरानी फिल्मों के शास्त्रीय संगीत आधारित गाने बेहद पसंद थे। प्राम्भिक संगीत शिक्षा के बाद डॉक्टर कुसुम सिंह जी जो आगरा घराने से हैं उनसे बुलंदशहर जाकर संगीत की शिक्षा लेना प्रारंभ कर दिया वहां शारदा संगीत विद्यालय जो प्रयाग यूनिवर्सिटी से एफिलेटेड है से जूनियर व सीनियर डिप्लोमा किया। फिर प्राचीन कला केंद्र चंडीगढ़ से संगीत भूषण में डिप्लोमा लिया साथ ही प्रयाग यूनिवर्सिटी से 5 th-6th ईयर कंप्लीट किया। इसके बाद सेंट्रल संगीत कला केंद्र न्यू दिल्ली से इन्होंने प्रवीण की डिग्री ली। प्रकाशन : *सर्वप्रिय प्रकाशन नई दिल्ली से एकल काव्य संग्रह प्रकाशित 'जब नाराज होगी प्रकृति' * अमर उजाला,,मेरी सहेली में रचनाएंँ प्रकाशित। सम्मान /पुरस्कार 1. सर्वश्रेष्ठ सदस्य एवं सर्वश्रेष्ठ कवि सम्मान सावन.इन (अक्टूबर 2019,जनवरी2020) 2.अमृता प्रीतम स्मृति कवयित्री सम्मान 2020 3. बागेश्वरी साहित्य सम्मान 2020 4. सुमित्रानंदन पंत स्मृति सम्मान 2020 5.साहित्यनामा तरंगिनि ऑडियो प्रतियोगिता की विजेता। 6.चिकार्षा मातृभाषा गौरव सम्मान 2021 7.साहित्यनामा तरंगिनि नारी शक्ति पर लेख प्रतियोगिता की विजेता 8.सर्वप्रिय प्रकाशन एवं मुद्रणालय सरकारी समिति रायपुर छत्तीसगढ़ की विशेष आमंत्रित सदस्य व प्रकाशन समिति की सदस्य नियुक्त। 9.स्त्री दर्पण साहित्यिक पटल की कार्यकारिणी सदस्य। *गीता परिवार से श्रीमद्भगवद्गीता के शुद्ध उच्चारण पर गीता गुंजन प्रशस्ति पत्र प्राप्त। *अंतर्राष्ट्रीय मां भारती कविता महायज्ञ में कविता पाठ।

    बनारस और ग्वालियर घराने की उभरती गायिका प्राप्ति पुराणिक से बातचीत

    Play Episode Listen Later Nov 25, 2021 18:50


    प्राप्ति पुराणिक वाराणसी की एक उभरती हुई 20 वर्षीय शास्त्रीय और उप-शास्त्रीय संगीत की गायिका हैं। प्राप्ति , वाराणसी के पंडित देवाशीष डे की शिष्या हैं और शिल्पायन-द म्यूजिक हब में भी सीखती हैं। वह प्रयाग संगीत समिति से छठा वर्ष कर रही है और शैक्षणिक क्षेत्र में वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से बीए अर्थशास्त्र (ऑनर्स) कर रही है। पुरस्कार: 1) सेंटर फॉर कल्चरल रिसोर्सेज एंड ट्रेनिंग (सीसीआरटी), भारत सरकार द्वारा जूनियर नेशनल स्कॉलरशिप के प्राप्तकर्ता (वर्ष 2014-15 से)। 2) वर्ष 2017 में शिल्पायन में लेवल टेस्ट 6 को सफलतापूर्वक पास करके उन्होंने "शिल्पयान प्रवीण" की उपाधि प्राप्त की। विदुषी डॉ अश्विनी भिड़े देशपांडे के हाथों पुरस्कार मिला। 3) उन्होंने 2013 में ख्याल में संगीत नाटक अकादमी में बाल वर्ग में पहला और राज्य स्तर पर ठुमरी में तीसरा स्थान हासिल किया। 4) उन्हें 2021 में श्री इंद्रदेव सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स, सिकंदराबाद, तेलंगाना में लाइव प्रदर्शन करके ₹10,000 का नकद पुरस्कार मिला। प्रदर्शन: (उनमें से कुछ का उल्लेख करते हुए) ️आल इंडिया रेडियो, वाराणसी में कई बार प्रदर्शन किया। ️2012 में दैनिक जागरण के संपादक समारोह पर प्रस्तुति दी। ️2013 में कानपुर के बिल्हौर में "बिल्हौर महोत्सव" में प्रदर्शन किया। पर्यटन दिवस पर प्रदर्शन किया गया जो 2017 में दशाश्वमेध घाट "बजादा" पर आयोजित किया गया था। ️“सुभ-ए-बनारस”, वाराणसी के मंच पर प्रस्तुति। ️ 2019 में "संगीत संकल्प" द्वारा "काशी संगीत संकल्प" में प्रदर्शन किया। ️ महामारी काल के दौरान विभिन्न प्रतिष्ठित आभासी प्लेटफार्मों पर प्रदर्शन किया और पूरे भारत के 30 से अधिक विभिन्न पृष्ठों जैसे महाराष्ट्र, राजस्थान, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और कई अन्य पर लगभग 30 से अधिक विभिन्न रागों का गायन किया। भारत के विभिन्न निजी संगीत कार्यक्रमों और शहरों जैसे - नई दिल्ली, नागपुर, पुणे, लखनऊ, कानपुर, अयोध्या, विंध्याचल के साथ-साथ वाराणसी में भी प्रदर्शन किया।

    राग भैरव और बातचीत श्रुति प्रभला से

    Play Episode Listen Later Nov 18, 2021 24:20


    राग भैरव और बातचीत श्रुति प्रभला से (1) Bal Rang Award - 2005 (2) Voice Of seepat winner - 2016 (3) Got selected in Gurukul Anubhav Scholarship scheme held by spic macay. * One of the scholar amongst 10 all over India. (4) went to ITC SANGEET RESEARCH ACADEMY Kolkata (5) Disciple under faculty of SRA - Ustad Waseem Ahmad Khan, 17th generation of Agra Gharana (6) Winner of National Level Singing competition held by Andhra Association Raipur (7) Second runnerup in voice of world International competition held from Doha Qatar. Being the only one from India (8) Sang official Corona song for NTPC. Song name :- Jeet Jahi India (9) Got the opportunity to sing as a classical vocalist in Chhattisgarh Rajyotsava 1st November 2021

    राग बागश्री और बातचीत आख्या सिंह से

    Play Episode Listen Later Nov 11, 2021 29:20


    रेडियो प्ले बैकइंडिया के भारतीय राग पॉडकास्ट की दूसरी शृंखला हम शुरू कर रहे हैं। इसमें कुछ नवोदित और कुछ प्रतिष्ठित शास्त्रीय संगीत कलाकारों से रेडियो प्लेबैक इंडिया के anchors बातचीत करेंगे। किसी राग पर बातचीत होगी और कलाकार का गायन भी शामिल किया जाएगा। आज इस पहली कड़ी में दिल्ली की नवोदित कलाकार आख्या सिंग से RPI की प्रज्ञा मिश्रा बातचीत कर रही हैं। कलाकार का नाम : आख्या सिंह ( Aakhya Singh ) कला : शास्त्रीय गायन गुरू : विदुषी ऊषा भट्ट जी ( जयपुर- ग्वालियर घराना ) शिक्षा : (1) अखिल भारतीय गंधर्व महाविद्यालय मंडल मुंबई से "माध्यम प्रथम" की परीक्षा उत्तीर्ण की (2) प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद से शास्त्रीय गायन में सीनियर डिप्लोमा (3) दिल्ली विश्वविद्यालय से शास्त्रीय गायन में बीए ऑनर्स (4) संप्रति शास्त्रीय गायन में परास्नातक (एम ए ) पाठ्यक्रम की पढ़ाई । उपलब्धियां : 1- संस्कार टीवी चैनल द्वारा इनके गाए गीत और भजन रिलीज । 2 - नई दिल्ली के त्रिवेणी सभागार तथा इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर सभागार जैसे प्रतिष्ठित मंचों से शास्त्रीय और सुगम संगीत गायन । 3- आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से कार्यक्रमों का प्रसारण 4- विश्व हिन्दी परिषद के फेसबुक पर प्रस्तुति जिसे 50,000 से अधिक लोगों ने देखा और सुना । विशेष : 1- संगीत और साहित्य से जुड़ी कई निजी संस्थाओं में प्रस्तुति । 2 - विभिन्न साहित्यिक और संगीत संस्थाओं द्वारा सम्मानित 3- Aakhya Singh के नाम से यूट्यूब चैनल जिस पर इनके गायन से संबंधित वीडियो अपलोड हैं । 4- Your Lyrics My Voice के नाम से फेसबुक पेज

    लोकगीतों में कृष्ण दर्शन

    Play Episode Listen Later Aug 28, 2021 17:47


    जन्माष्टमी के अवसर पर रेडियो प्लैबैक इंडिया की विशेष प्रस्तुति लोकगायिका कुसुम वर्मा की प्रस्तुति, लोकगीतों में कृष्ण दर्शन

    दस थाट, दस राग और दस गीत –4 : भैरव थाट

    Play Episode Listen Later Jul 22, 2021 8:43


    आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन पिछले अंकों में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि वर्तमान में प्रचलित थाट पद्धति पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे द्वारा प्रवर्तित है। भातखण्डे जी ने गम्भीर अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि तत्कालीन प्रचलित राग-वर्गीकरण की जितनी भी पद्धतियाँ उत्तर भारतीय संगीत में प्रचार में आईं और उनके काल में अस्तित्व में थीं, उनके रागों के वर्गीकरण के नियम आज के रागों पर लागू नहीं हो सकता। गत कुछ शताब्दियों में सभी रागों में परिवर्तन एवं परिवर्द्धन हुए हैं, अतः उनके पुराने और नए स्वरूपों में कोई समानता नहीं है। भातखण्डे जी ने तत्कालीन राग-रागिनी प्रणाली का परित्याग किया और इसके स्थान पर जनक मेल और जन्य प्रणाली को राग वर्गीकरण की अधिक उचित प्रणाली माना। उन्हें इस वर्गीकरण का आधार न केवल दक्षिण में, बल्कि उत्तर में ‘राग-तरंगिणी', ‘राग-विबोध', ‘हृदय-कौतुक', और ‘हृदय-प्रकाश' जैसे ग्रन्थों में मिला। आज हमारी चर्चा का थाट है- ‘भैरव'। इस थाट में प्रयोग किये जाने वाले स्वर हैं- सा, रे॒(कोमल), ग, म, प, ध॒(कोमल), नि । अर्थात ऋषभ और धैवत स्वर कोमल और शेष स्वर शुद्ध प्रयोग होते हैं। थाट ‘भैरव' का आश्रय राग ‘भैरव' ही है। यह सम्पूर्ण-सम्पूर्ण जाति का राग है, अर्थात इसके आरोह और अवरोह में सात-सात स्वरों का प्रयोग किया जाता है। राग ‘भैरव' में कोमल ऋषभ और कोमल धैवत का प्रयोग होता है। शेष सभी स्वर शुद्ध होते हैं। राग में आरोह के स्वर- सारे(कोमल)गम पध(कोमल) निसां तथा अवरोह के स्वर- सांनिध(कोमल) पमग रे(कोमल) सा होते हैं। इस राग का वादी स्वर धैवत और संवादी स्वर ऋषभ होता है। इस राग के गायन-वादन का समय प्रातःकाल होता है। राग भैरव के स्वर समूह भक्तिरस का सृजन करने में समर्थ हैं।

    दस थाट, दस राग और दस गीत –3 : खमाज थाट

    Play Episode Listen Later Jul 15, 2021 8:44


    आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन इन दिनों हम भारतीय संगीत के दस थाटों पर चर्चा कर रहे हैं। पिछले अंकों में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि संगीत के रागों के वर्गीकरण के लिए थाट प्रणाली को अपनाया गया। थाट और राग के विषय में कभी-कभी यह भ्रम हो जाता है कि पहले थाट और फिर उससे राग की उत्पत्ति हुई होगी। दरअसल ऐसा नहीं है। रागों की संरचना अत्यन्त प्राचीन है। रागों में प्रयुक्त स्वरों के अनुकूल मिलते स्वर जिस थाट के स्वरों में मौजूद होते हैं, राग को उस थाट विशेष से उत्पन्न माना गया है। मध्य काल में राग-रागिनी प्रणाली प्रचलन में थी। बाद में इस प्रणाली की अवैज्ञानिकता सिद्ध हो जाने पर थाट-वर्गीकरण के अन्तर्गत समस्त रागों को विभाजित किया गया। हमारे शास्त्रकारों ने थाट के नामकरण के लिए ऐसे रागों का चयन किया, जिसके स्वर थाट के स्वरों से मेल खाते हों। थाट के नामकरण के उपरान्त सम्बन्धित राग को उस थाट का आश्रय राग कहा गया। आज का थाट खमाज है। खमाज थाट के स्वर होते हैं- सा, रे ग, म, प ध, नि॒। अर्थात इस थाट में निषाद स्वर कोमल और शेष सभी स्वर शुद्ध होते हैं। इस थाट का आश्रय राग ‘खमाज' कहलाता है। ‘खमाज' राग में थाट के अनुकूल निषाद कोमल और शेष सभी स्वर शुद्ध होते हैं। यह षाड़व-सम्पूर्ण जाति का राग है। अर्थात राग के आरोह में छः स्वर और अवरोह में सात स्वर प्रयोग किये जाते हैं। खमाज के आरोह में सा, ग, म, प, ध नि सां और अवरोह में सां, नि, ध, प, म, ग, रे, सा स्वरों का प्रयोग होता है। आरोह में ऋषभ स्वर नहीं लगता। राग में दोनों निषाद का प्रयोग होता है। आरोह में शुद्ध निषाद और अवरोह में कोमल निषाद लगाया जाता है। वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर निषाद होता है। इस राग के गायन-वादन का समय रात्रि का दूसरा प्रहर होता है।

    दस थाट, दस राग और दस गीत –2 : बिलावल थाट

    Play Episode Listen Later Jul 2, 2021 7:37


    आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन भारतीय संगीत के रागों को उनमें लगने वाले स्वरों के अनुसार वर्गीकृत करने की प्रणाली को थाट कहा जाता है। पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे ने कुल दस थाट के अन्तर्गत सभी रागों का वर्गीकरण किया था। उन्होने थाट के कुछ लक्षण बताए हैं। किसी भी थाट में कम से कम सात स्वरों का प्रयोग ज़रूरी है। थाट में ये सात स्वर स्वाभाविक क्रम में रहने चाहिये। अर्थात सा के बाद रे, रे के बाद ग आदि। थाट को गाया-बजाया नहीं जा सकता। इसके स्वरों के अनुकूल किसी राग की रचना की जा सकती है, जिसे गाया बजाया जा सकता है। एक थाट से कई रागों की रचना हो सकती है। इस श्रृंखला की पहली कड़ी में हमने आपको ‘कल्याण' थाट का परिचय दिया था। आज का दूसरा थाट है- ‘बिलावल'। इस थाट में प्रयोग होने वाले स्वर हैं- सा, रे, ग, म, प, ध, नि अर्थात सभी शुद्ध स्वर का प्रयोग होता है। पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे कृत ‘क्रमिक पुस्तक मालिका' (भाग-1) के अनुसार ‘बिलावल' थाट का आश्रय राग ‘बिलावल' ही है। इस थाट के अन्तर्गत आने वाले अन्य प्रमुख राग हैं- अल्हैया बिलावल, बिहाग, देशकार, हेमकल्याण, दुर्गा, शंकरा, पहाड़ी, भिन्न षडज, हंसध्वनि, माँड़ आदि। राग ‘बिलावल' में सभी सात शुद्ध स्वरों का प्रयोग होता है। वादी स्वर धैवत और संवादी स्वर गांधार होता है। इस राग के गायन-वादन का समय प्रातःकाल का प्रथम प्रहर होता है।

    दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट

    Play Episode Listen Later Jun 24, 2021 8:17


    आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के साप्ताहिक स्तम्भ ‘राग ' के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत' के प्रथम अंक में आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था। वर्तमान समय में रागों के वर्गीकरण के लिए यही पद्धति प्रचलित है। भातखण्डे जी द्वारा प्रचलित ये 10 थाट हैं- कल्याण, बिलावल, खमाज, भैरव, पूर्वी, मारवा, काफी, आसावरी, तोड़ी और भैरवी। इन्हीं 10 थाटों के अन्तर्गत प्रचलित-अप्रचलित सभी रागों को सम्मिलित किया गया है। भारतीय संगीत में थाट स्वरों के उस समूह को कहते हैं जिससे रागों का वर्गीकरण किया जा सकता है। पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में 'राग तरंगिणी' ग्रन्थ के लेखक लोचन कवि ने रागों के वर्गीकरण की परम्परागत 'ग्राम और मूर्छना प्रणाली' का परिमार्जन कर मेल अथवा थाट प्रणाली की स्थापना की। लोचन कवि के अनुसार उस समय सोलह हज़ार राग प्रचलित थे। इनमें 36 मुख्य राग थे। सत्रहवीं शताब्दी में थाटों के अन्तर्गत रागों का वर्गीकरण प्रचलित हो चुका था। थाट प्रणाली का उल्लेख सत्रहवीं शताब्दी के ‘संगीत पारिजात' और ‘राग विबोध' नामक ग्रन्थों में भी किया गया है। लोचन कवि द्वारा प्रतिपादित थाट प्रणाली का प्रचलन लगभग 300 सौ वर्षों तक होता रहा। उन्नीसवीं शताब्दी अन्तिम और बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे ने भारतीय संगीत के बिखरे सूत्रों को न केवल संकलित किया बल्कि संगीत के कई सिद्धान्तों का परिमार्जन भी किया। दस थाटों की आधुनिक प्रणाली का सूत्रपात भातखण्डे जी ने ही किया था। भातखण्डे जी द्वारा निर्धारित दस थाट क्रमानुसार हैं- कल्याण, बिलावल, खमाज, भैरव, पूर्वी, मारवा, काफी, आसावरी, भैरवी, और तोड़ी। इन दस थाटों के क्रम में पहला थाट है कल्याण, जिसकी चर्चा आज के अंक में।

    दोनों मध्यम स्वर वाले राग – 10 राग पूर्वी

    Play Episode Listen Later Jun 17, 2021 5:27


    आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन रे ध कोमल गाइए, दोनों मध्यम मान, ग-नि वादी-संवादि सों, राग पूर्वी जान। पूर्वी थाट का आश्रय राग पूर्वी है। यह सम्पूर्ण-सम्पूर्ण जाति का राग है, अर्थात इसके आरोह और अवरोह में सभी सात स्वर प्रयोग होते हैं। राग पूर्वी के आरोह के स्वर- सा रे(कोमल), ग, म॑(तीव्र) प, ध(कोमल), नि सां और अवरोह के स्वर- सां नि ध(कोमल) प, म॑(तीव्र) ग, रे(कोमल) सा होते हैं। इस राग में कोई भी स्वर वर्जित नहीं होता। ऋषभ और धैवत कोमल तथा मध्यम के दोनों प्रकार प्रयोग किये जाते हैं। राग पूर्वी का वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर निषाद होता है तथा इसे दिन के अन्तिम प्रहर में गाया-बजाया जाता है। राग पूर्वी के आरोह में हमेशा तीव्र मध्यम स्वर का प्रयोग किया जाता है। जबकि अवरोह में दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग होता है। कभी-कभी दोनों माध्यम स्वर एकसाथ भी प्रयोग होते है। इस राग की प्रकृति गम्भीर होती है, अतः मींड़ और गमक का काम अधिक किया जाता है। यह पूर्वांगवादी राग है, जिसे अधिकतर सायंकालीन सन्धिप्रकाश काल में गाया-बजाया जाता है। राग का चलन अधिकतर मंद्र और मध्य सप्तक में होता है।

    दोनों मध्यम स्वर वाले राग – 9 राग ललित

    Play Episode Listen Later Jun 11, 2021 7:21


    आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन ‘दोनों मध्यम स्वर वाले राग' की नवीं कड़ी में आज हम राग ललित के स्वरूप की चर्चा करेंगे। राग ललित पूर्वी थाट के अन्तर्गत माना जाता है। इस राग में कोमल ऋषभ, कोमल धैवत तथा दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। आरोह और अवरोह दोनों में पंचम स्वर पूर्णतः वर्जित होता है। इसीलिए इस राग की जाति षाड़व-षाड़व होती है। अर्थात, राग के आरोह और अवरोह में 6-6 स्वरों का प्रयोग होता है। भातखण्डे जी ने राग ललित में शुद्ध धैवत के प्रयोग को माना है। उनके अनुसार यह राग मारवा थाट के अन्तर्गत माना जाता है। राग ललित की जो स्वर-संरचना है उसके अनुसार यह राग किसी भी थाट के अनुकूल नहीं है। मारवा थाट के स्वरों से राग ललित के स्वर बिलकुल मेल नहीं खाते। राग ललित में शुद्ध मध्यम स्वर बहुत प्रबल है और राग का वादी स्वर भी है। इसके विपरीत मारवा में शुद्ध मध्यम सर्वथा वर्जित होता है। राग का वादी स्वर शुद्ध मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है।

    दोनों मध्यम स्वर वाले राग – 8 राग भटियार

    Play Episode Listen Later Jun 4, 2021 7:03


    आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन आरोही नी अल्प ले, मध्यम दोऊ सम्हार, रे कोमल, संवाद म स, क़हत राग भटियार। अर्थात इस राग में कोमल ऋषभ और दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। आरोह में निषाद स्वर का अल्प प्रयोग किया जाता है। यह मारवा थाट का सम्पूर्ण जाति का राग है। अधिकतर विद्वान इस राग को बिलावल थाट के अन्तर्गत मानते हैं। बिलावल थाट का राग मानने का कारण है कि इस राग में शुद्ध मध्यम स्वर प्रधान होता है, जबकि राग मारवा में शुद्ध मध्यम का प्रयोग होता ही नहीं। स्वरूप की दृष्टि से भी यह मारवा के निकट भी नहीं है। राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। यह रात्रि के अन्तिम प्रहर विशेष रूप से प्रातःकालीन सन्धिप्रकाश काल में गाया-बजाया जाने वाला राग है। प्रातःकालीन सन्धिप्रकाश रागों में कोमल ऋषभ और शुद्ध गान्धार के साथ-साथ शुद्ध मध्यम स्वर का प्रयोग भी किया जाता है। तीव्र मध्यम स्वर का भी प्रयोग होता है, किन्तु अल्प। अवरोह के स्वर वक्रगति से लिये जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि यह पाँचवीं शताब्दी के राजा भर्तृहरि की राग रचना है। उत्तरांग प्रधान यह राग भंखार के काफी निकट होता है। राग भंखार में पंचम स्वर पर ठहराव दिया जाता है, जबकि राग भटियार में शुद्ध मध्यम पर। राग भटियार वक्र जाति का राग है। इसमें षडज स्वर से सीधे धैवत पर जाते हैं, जो अत्यन्त मनोहारी होता है। यह राग गम्भीर, दार्शनिक भाव और जीवन के उल्लास की अभिव्यक्ति देने में पूर्ण समर्थ है।

    दोनों मध्यम स्वर वाले राग – 7 राग नन्द

    Play Episode Listen Later May 27, 2021 9:06


    आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन दो मध्यम अरु शुद्ध स्वर, आरोहण रे हानि, स-प वादी-संवादी तें, नन्द राग पहचानि। आज के अंक में हमने आपके लिए दोनों मध्यम स्वरों से युक्त, अत्यन्त मोहक राग ‘नन्द' चुना है। इस राग को नन्द कल्याण, आनन्दी या आनन्दी कल्याण के नाम से भी पहचाना जाता है। यह कल्याण थाट का राग माना जाता है। यह षाडव-सम्पूर्ण जाति का राग है, जिसके आरोह में ऋषभ स्वर का प्रयोग नहीं होता। इसके आरोह में शुद्ध मध्यम का तथा अवरोह में दोनों मध्यम का प्रयोग किया जाता है। इसका वादी स्वर षडज और संवादी स्वर पंचम माना जाता है। यह राग कामोद, हमीर और केदार के निकट होता है अतः गायन-वादन के समय राग नन्द को इन रागों से बचाना चाहिए। राग नन्द से मिल कर राग नन्द भैरव, नन्द-भैरवी, नन्द-दुर्गा और नन्द-कौंस रागों का निर्माण होता है। राग नन्द में तीव्र मध्यम स्वर का अल्प प्रयोग अवरोह में पंचम स्वर के साथ किया जाता है, जैसा कि कल्याण थाट के अन्य रागों में किया जाता है। राग नन्द में राग बिहाग, कामोद, हमीर और गौड़ सारंग का सुन्दर समन्वय होता है। यह अर्द्ध चंचल प्रकृति का राग होता है। अतः इसमें विलम्बित आलाप नहीं किया जाता। साथ ही इस राग का गायन मन्द्र सप्तक में नहीं होता। इस राग का हर आलाप अधिकतर मुक्त मध्यम से समाप्त होता है। आरोह में ही मध्यम स्वर पर रुकते हैं, किन्तु अवरोह में ऐसा नहीं करते। राग नन्द में पंचम और ऋषभ स्वर की संगति बार-बार की जाती है। आरोह में धैवत और निषाद स्वर अल्प प्रयोग किया जाता है, इसलिए उत्तरांग में पंचम से सीधे तार सप्तक के षडज पर पहुँचते है।

    दोनों मध्यम स्वर वाले राग – 6 : गौड़ सारंग

    Play Episode Listen Later May 20, 2021 8:41


    आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन इस श्रृंखला में अभी तक आपने जो राग सुने हैं, वह सभी कल्याण थाट के राग माने जाते हैं और इन्हें रात्रि के पहले प्रहर में ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। दोनों मध्यम स्वर स्वर से युक्त आज का राग, ‘गौड़ सारंग' भी कल्याण थाट का माना जाता है, किन्तु इस राग के गायन-वादन का समय रात्रि का प्रथम प्रहर नहीं बल्कि दिन का दूसरा प्रहर होता है। राग गौड़ सारंग में दोनों मध्यम के अलावा सभी स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। इस राग के आरोह और अवरोह में सभी सात स्वर प्रयोग होते हैं, इसीलिए इसे सम्पूर्ण-सम्पूर्ण जाति का राग कहा जाता है। परन्तु इसमे आरोह और अवरोह के सभी स्वर वक्र प्रयोग किये जाते है, इसलिए इसे वक्र सम्पूर्ण जाति का राग माना जाता है। राग का वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर धैवत होता है।

    दोनों मध्यम स्वर वाले राग – 5 : राग हमीर

    Play Episode Listen Later May 13, 2021 10:13


    कल्याणहिं के थाट में, दोनों मध्यम जान, ध-ग वादी-संवादि सों, राग हमीर बखान। दिन के पाँचवें प्रहर या रात्रि के पहले प्रहर में गाने-बजाने वाला, दोनों मध्यम स्वर से युक्त एक और राग है, हमीर। मूलतः राग हमीर दक्षिण भारतीय संगीत पद्यति से इसी नाम से उत्तर भारतीय संगीत में प्रचलित राग के समतुल्य है। राग हमीर को कल्याण थाट के अन्तर्गत माना जाता है। इस राग में दोनों मध्यम का प्रयोग होने और तीव्र मध्यम का अल्प प्रयोग होने के कारण कुछ प्राचीन ग्रन्थकार और कुछ आधुनिक संगीतज्ञ इसे बिलावल थाट के अन्तर्गत मानते हैं। ऐसा मानना तर्कसंगत भी है, क्योंकि इस राग का स्वरूप राग बिलावल से मिलता-जुलता है। किन्तु अधिकांश विद्वान राग हमीर को कल्याण थाट-जन्य ही मानते हैं। इस राग में दोनों मध्यम स्वर के साथ शेष सभी स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते है। राग की जाति सम्पूर्ण-सम्पूर्ण होती है, अर्थात आरोह और अवरोह में सात-सात स्वर प्रयोग किये जाते हैं। राग का वादी स्वर धैवत और संवादी स्वर गान्धार होता है। यहाँ भी रागों के गायन-वादन के समय सिद्धान्त और व्यवहार में विरोधाभाष है। समय सिद्धान्त के अनुसार जिन रागों का वादी स्वर पूर्व अंग का होता है उस राग को दिन के पूर्वांग अर्थात मध्याह्न 12 बजे से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच गाया-बजाया जाना चाहिए। इसी प्रकार जिन रागों का वादी स्वर उत्तर अंग का हो उसे दिन के उत्तरांग में अर्थात मध्यरात्रि 12 से मध्याह्न 12 बजे के बीच प्रस्तुत किया जाना चाहिए। परन्तु राग हमीर का वादी स्वर धैवत है, अर्थात उत्तर अंग का स्वर है। स्वर सिद्धान्त के अनुसार इस राग को दिन के उत्तरांग में गाया-बजाना जाना चाहिए। परन्तु राग हमीर रात्रि के पहले प्रहर में अर्थात दिन के पूर्वांग में गाया-बजाया जाता है। सिद्धान्त और व्यवहार में परस्पर विरोधी होते हुए राग हमीर को समय सिद्धान्त का अपवाद मान लिया गया है।

    दोनों मध्यम स्वर वाले राग – 4 : राग श्यामकल्याण

    Play Episode Listen Later May 6, 2021 7:04


    चढ़ते धैवत त्याग कर, दोनों मध्यम मान, स-म वादी-संवादी सों, क़हत श्यामकल्याण। दोनों मध्यम स्वरों से युक्त राग श्यामकल्याण हमारी श्रृंखला, ‘दोनों मध्यम स्वर वाले राग' की चौथी कड़ी का राग है। तीव्र मध्यम स्वर की उपस्थिति के कारण इस राग को कल्याण थाट के अन्तर्गत माना जाता है। आरोह में गान्धार और धैवत स्वर वर्जित होता है तथा अवरोह में सभी सातो स्वर प्रयोग किये जाते हैं। दोनों मध्यम के अलावा शेष सभी स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। आरोह में पाँच और अवरोह में सात स्वर प्रयोग किये जाने के कारण राग श्यामकल्याण की जाति औड़व-सम्पूर्ण होती है। राग के आरोह में तीव्र मध्यम और अवरोह में दोनों मध्यम स्वरो का प्रयोग किया जाता है। इसका वादी स्वर पंचम और संवादी स्वर षडज होता है। श्रृंखला के पिछले रागों की तरह राग श्यामकल्याण का गायन-वादन भी पाँचवें प्रहर अर्थात रात्रि के प्रथम प्रहर में किया जाता है।

    दोनों मध्यम स्वर वाले राग – 3 : राग छायानट

    Play Episode Listen Later Apr 29, 2021 12:13


    जबहिं थाट कल्याण में, दोनों मध्यम पेखि, प रे वादी-संवादि सों, छायानट को देखि। दोनों मध्यम स्वर वाले रागों के क्रम में तीसरा राग ‘छायानट' है। इससे पूर्व की कड़ियों में आपने राग कामोद और केदार का रसास्वादन किया था। यह दोनों राग, कल्याण थाट से सम्बद्ध हैं और इनको रात्रि के पहले प्रहर में ही गाने-बजाने की परम्परा है। आज का राग छायानट भी इसी वर्ग का राग है। राग छायानट, कल्याण थाट के अन्तर्गत माना जाता है। इसमें दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। यह सम्पूर्ण-सम्पूर्ण जाति का राग होता है, अर्थात आरोह और अवरोह में सात-सात स्वरों का प्रयोग किया जाता है। अवरोह में काभी-कभी राग की सुन्दरता को बढ़ाने के लिए विवादी स्वर के रूप में कोमल निषाद स्वर का प्रयोग कर लिया जाता है। तीव्र मध्यम का अल्प प्रयोग दो पंचम स्वरों के बीच होता है। परन्तु गान्धार और पंचम स्वरों के बीच तीव्र मध्यम स्वर का प्रयोग कभी नहीं किया जाता। राग छायानट में तीव्र मध्यम स्वर को थाट-वाचक स्वर माना गया है। इसी आधार पर यह राग कल्याण थाट के अन्तर्गत माना जाता है। कुछ विद्वान इस राग में तीव्र मध्यम का प्रयोग नहीं करते और इसे बिलावल थाट का राग मानते है। इस राग का वादी स्वर ऋषभ और संवादी स्वर पंचम होता है। कुछ विद्वान इस राग का वादी स्वर पंचम और संवादी स्वर ऋषभ मानते हैं, किन्तु ऐसा मानने पर यह राग उत्तरांग प्रधान हो जाएगा। वास्तव में ऐसा है नहीं, राग में ऋषभ का स्थान इतना महत्त्वपूर्ण है कि इसे वादी स्वर माना जाता है। इस राग के गायन-वादन का समय रात्रि का प्रथम प्रहर माना जाता है।

    दोनों मध्यम स्वर वाले राग – 2 : राग केदार

    Play Episode Listen Later Apr 22, 2021 8:43


    दो मध्यम केदार में, स म संवाद सम्हार, आरोहण रे ग बरज कर, उतरत अल्प गान्धार। भक्तिरस की अभिव्यक्ति के लिए केदार एक समर्थ राग है। कर्नाटक संगीत पद्यति में राग हमीर कल्याणी, राग केदार के समतुल्य है। औड़व-षाड़व जाति, अर्थात आरोह में पाँच और अवरोह में छह स्वरों का प्रयोग होने वाला यह राग कल्याण थाट के अन्तर्गत माना जाता है। प्राचीन ग्रन्थकार राग केदार को बिलावल थाट के अन्तर्गत मानते थे, आजकल अधिकतर गुणिजन इसे कल्याण थाट के अन्तर्गत मानते हैं। इस राग में दोनों मध्यम का प्रयोग होता है। शुद्ध मध्यम का प्रयोग आरोह और अवरोह दोनों में तथा तीव्र मध्यम का प्रयोग केवल अवरोह में किया जाता है। आरोह में ऋषभ और गान्धार स्वर और अवरोह में गान्धार स्वर वर्जित होता है। कभी-कभी अवरोह में गान्धार स्वर का अनुलगन कण का प्रयोग कर लिया जाता है। राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। इस दृष्टि से यह उत्तरांग प्रधान राग होगा, क्योंकि मध्यम स्वर उत्तरांग का और षडज स्वर पूर्वाङ्ग का स्वर होता है। मध्यम स्वर का समावेश सप्तक के पूर्वांग में नहीं हो सकता। राग का एक नियम यह भी है कि वादी-संवादी दोनों स्वर सप्तक के अंग में नहीं हो सकते। इस दृष्टि से यह राग उत्तरांग प्रधान तथा दिन के उत्तर अंग में अर्थात रात्रि 12 बजे से दिन के 12 बजे के बीच गाया-बजाया जाना चाहिए। परन्तु राग केदार प्रचलन में इसके ठीक विपरीत रात्रि के पहले प्रहर में ही गाया-बजाया जाता है। राग केदार उपरोक्त नियम का अपवाद है। इस राग का गायन-वादन रात्रि के पहले प्रहर में किया जाता है।

    दोनों मध्यम स्वर वाले राग – 1 : राग कामोद

    Play Episode Listen Later Apr 15, 2021 9:20


    कल्याणहिं के थाट में दोनों मध्यम लाय, प-रि वादी-संवादि कर, तब कामोद सुहाय। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के साप्ताहिक के मंच पर श्रृंखला – ‘दोनों मध्यम स्वर वाले राग' की आज से शुरुआत हो रही है। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों की चर्चा करेंगे, जिनमें दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। संगीत के सात स्वरों में ‘मध्यम' एक महत्त्वपूर्ण स्वर होता है। हमारे संगीत में मध्यम स्वर के दो रूप प्रयोग किये जाते हैं। स्वर का पहला रूप शुद्ध मध्यम कहलाता है। 22 श्रुतियों में दसवाँ श्रुति स्थान शुद्ध मध्यम का होता है। मध्यम का दूसरा रूप तीव्र या विकृत मध्यम कहलाता है, जिसका स्थान बारहवीं श्रुति पर होता है। शास्त्रकारों ने रागों के समय-निर्धारण के लिए कुछ सिद्धान्त निश्चित किये हैं। इन्हीं में से एक सिद्धान्त है, “अध्वदर्शक स्वर”। इस सिद्धान्त के अनुसार राग का मध्यम स्वर महत्त्वपूर्ण हो जाता है। अध्वदर्शक स्वर सिद्धान्त के अनुसार राग में यदि तीव्र मध्यम स्वर की उपस्थिति हो तो वह राग दिन और रात्रि के पूर्वार्द्ध में गाया-बजाया जाएगा। अर्थात, तीव्र मध्यम स्वर वाले राग 12 बजे दिन से रात्रि 12 बजे के बीच ही गाये-बजाए जा सकते हैं। इसी प्रकार राग में यदि शुद्ध मध्यम स्वर हो तो वह राग रात्रि 12 बजे से दिन के 12 बजे के बीच का अर्थात उत्तरार्द्ध का राग माना गया। कुछ राग ऐसे भी हैं, जिनमें दोनों मध्यम स्वर प्रयोग होते हैं। इस श्रृंखला में हम ऐसे ही रागों की चर्चा करेंगे। श्रृंखला के पहले अंक में आज हम राग कामोद के स्वरूप की चर्चा कर रहे हैं। आलेख -कृष्णमोहन मिश्रा गायन - आख्या सिंह प्रस्तुति - संज्ञा टंडन

    चैत्र मास में चैती गीतों का लालित्य

    Play Episode Listen Later Apr 8, 2021 8:42


    आज हम आपसे संगीत की एक ऐसी शैली पर चर्चा करेंगे जो मूलतः ऋतु प्रधान लोक संगीत की शैली है, किन्तु अपनी सांगीतिक गुणबत्ता के कारण इस शैली को उपशास्त्रीय मंचों पर भी अपार लोकप्रियता प्राप्त है। भारतीय संगीत की कई ऐसी लोक-शैलियाँ हैं, जिनका प्रयोग उपशास्त्रीय संगीत के रूप में भी किया जाता है। होली पर्व के बाद, आरम्भ होने वाले चैत्र मास से ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। इस परिवेश में चैती गीतों का गायन आरम्भ हो जाता है। गाँव की चौपालों से लेकर मेलों में, मन्दिरों में चैती के स्वर गूँजने लगते हैं। आज के अंक से हम आपसे चैती गीतों के विभिन्न प्रयोगों पर चर्चा आरम्भ करेंगे। उत्तर भारत में इस गीत के प्रकारों को चैती, चैता और घाटो के नाम से जाना जाता है। चैती गीतों की प्रकृति-प्रेरित धुनें, इनका श्रृंगार रस से ओतप्रोत साहित्य और चाँचर ताल के स्पन्दन में निबद्ध होने के कारण यह लोक गायकों के साथ-साथ उपशास्त्रीय गायक-वादकों के बीच समान रूप से लोकप्रिय है।

    रंग-गुलाल के उड़ते बादलों के बीच धमार का धमाल

    Play Episode Listen Later Apr 1, 2021 10:37


    भारतीय पर्वों में होली एक ऐसा पर्व है, जिसमें संगीत-नृत्य की प्रमुख भूमिका होती है। जनसामान्य अपने उल्लास की अभिव्यक्ति के लिए देशज संगीत से लेकर शास्त्रीय संगीत का सहारा लेता है। इस अवसर पर विविध संगीत शैलियों के माध्यम से होली की उमंग को प्रस्तुत करने की परम्परा है। इन सभी भारतीय संगीत शैलियों में होली की रचनाएँ प्रमुख रूप से उपलब्ध हैं। मित्रों, पिछली तीन कड़ियों में हमने संगीत की विविध शैलियों में राग काफी के प्रयोग पर चर्चा की है। राग काफी फाल्गुनी परिवेश का चित्रण करने में समर्थ होता है। श्रृंगार रस के दोनों पक्ष, संयोग और वियोग, की सहज अभिव्यक्ति राग काफी के स्वरों से की जा सकती है। आज के अंक में हम होली के उल्लास और उमंग की अभिव्यक्ति करती रचनाएँ तो प्रस्तुत करेंगे, परन्तु ये रचनाएँ राग काफी से इतर रागों में निबद्ध होंगी। आज की प्रस्तुतियों के राग हैं, केदार, खमाज और सोहनी। आलेख: श्री कृष्णमोहन मिश्र वाचन: संज्ञा टंडन गायक स्वर : ऋचा देबराज

    Thumri Hori In Raag Kaafi राग काफी में ठुमरी होरी

    Play Episode Listen Later Mar 25, 2021 7:56


    फाल्गुन मास में शीत ऋतु का क्रमशः अवसान और ग्रीष्म ऋतु की आगमन होता है। यह परिवेश उल्लास और श्रृंगार भाव से परिपूर्ण होता है। प्रकृति में भी परिवर्तन परिलक्षित होने लगता है। रस-रंग से परिपूर्ण फाल्गुनी परिवेश का एक प्रमुख राग काफी होता है। स्वरों के माध्यम से फाल्गुनी परिवेश, विशेष रूप से श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति के लिए राग काफी सबसे उपयुक्त राग है। इस राग में ठुमरी, टप्पा, खयाल, तराना और भजन सभी विधायें उपलब्ध हैं। आज के अंक में हम आपसे राग काफी की कुछ होरी की चर्चा करेंगे, साथ ही गायिका अच्छन बाई, विदुषी गिरिजा देवी और पण्डित भीमसेन जोशी के बारे में कुछ जानकारियां भी देने की कोशिश करेंगे।

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