Aaj paisa, carreer, competition, success, naam, shoharat ... In sab ke peeche bhaagte bhaagte apne man ki shanti, dil ka sukoon kahin bohot peeche choot gaya hai. Ye andhi daud hame sirf aur sirf bhagaaye liye ja rahi hai aur yunhi ekdin humara ant aa jaata hai. Tab lagta hai ki, uff... Apni zindagi mei do pal chain ke kabhi jiye hi nai. Toh kyun na aaj hi shuru karen. Humare hindi saahitya ke anmol khazane se aise kuch bahumoolya moti aapke liye chun ke laayi hoon jo aapke antar man ko sahlaayenge, aapko jeewan ka marm batayenge.
Priya Malik ki tamaam behtareen poetries me se ye ek or nayab moti hai. Bewafaai ka dansh jhelne waale insaan ke man par kya guzarti hai, wo stree Jo janti hai ki uska husband bewafaa hai, usko cheat kar raha hai, us stree ke manobhavo ko piroya hai is bebak si poetry me Priya ne. Ye mere Dil k behad kareeb hai or aj mai isko padhkar shayad Priya k alfàazo me apni or har aisi stree ki baat kah rahi hu, dekhe aapke Dil ko kitna chhuti hai ye...... Please comment...
Tute hue dilon ko raahat deti, unko tute tukdo me bhi khubsurti dikhane wali, itna mazbut banane wali ki wo baar baar tutne se bhi na ghabraaye - aisi beautiful kavita ko Priya malik ne likha h. Mai to bas is kavita ko apna swar de rahi hu kyuki ye kavita mujhko bahot andar tak chhuti hai, mujhko jiwan jine ka ek alag hi nazariya pradan karti hai. Kyu na aap bhi ekbaar iska jaadu mahsoos kare ....
Vishuddh prem ki gaharaiyon ko abhivyakt karti hui ek bahut pyari or dil ko chhu lene wali kavita hai yah. Chhoti umra k kavi Vijay shree tanveer ki spasht, sidhi par sidhi dil me jaa lagne wali bhasha ka kamaal hai yah kavita.
Advance technology ki is robotic duniya me sachchaa pyar talaashti ek sundar si kavita. Mridul jajbato se is kavita ko Priya malik ne sanwara hai, sajaya hai, likha hai, gaya hai.
Hindi bhasha ki sundaratam abhivyakti hai yah kavita jo Pramod tiwariji ne likhi hai. Nadi ki anginat visheshataen hame batati hai. Nadi ka sangharsh, uska paropkari swabhaav ...Sabkuchh hai is kavita me. Manushya yadi chahe to kitna kuchh sikh sakta hai nadi se.
उर्दू फ़ारसी के मशहूर भारतीय शायर मिर्जा असदुल्ला बेग खां "गालिब" की बेहतरीन नज़्म है- "हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले, बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले"। गालिब साहब की ग़ज़लों की ही तरह उनके खतों और उनके किस्सों को भी उतना ही प्यार मिला है पढ़ने- सुनने वालों का। मेरी ये कोशिश रहेगी कि इस सीरीज के जरिये मैं भी अपने दर्शकों का अपने सुनने वालों का आशीर्वाद पा सकूँ।
उर्दू फ़ारसी के मशहूर भारतीय शायर मिर्जा असदुल्ला बेग खां "गालिब" की बेहतरीन नज़्म है- "हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है"। गालिब साहब की ग़ज़लों की ही तरह उनके खतों और उनके किस्सों को भी उतना ही प्यार मिला है पढ़ने- सुनने वालों का। मेरी ये कोशिश रहेगी कि इस सीरीज के जरिये मैं भी अपने दर्शकों का अपने सुनने वालों का आशीर्वाद पा सकूँ।
उर्दू फ़ारसी के मशहूर भारतीय शायर मिर्जा असदुल्ला बेग खां "गालिब" की बेहतरीन नज़्म है- ये न थी हमारी किस्मत की विसाले यार होता। गालिब साहब की ग़ज़लों की ही तरह उनके खतों और उनके किस्सों को भी उतना ही प्यार मिला है पढ़ने- सुनने वालों का। मेरी ये कोशिश रहेगी कि इस सीरीज के जरिये मैं भी अपने दर्शकों का अपने सुनने वालों का आशीर्वाद पा सकूँ।
कविवर भवानी प्रसाद मिश्र की एक छोटी सी दिल के बेहद करीबी कविता है ये जो यह दिखाती है कि सुखों की कमी में पले- बढ़े बच्चों को जब कही अनायास सुख मिलता है तो वे कैसे झिझकते है। उनको लगता ही नही है कि ये सुख उनका भी हो सकता है या फिर अतीत के कड़वे अनुभव उन्हें सुख को खुशी खुशी महसूस ही नही करने देते हैं। ऐसे में एक पिता के दिल के जज्बात व्यक्त किये गए हैं जो अपने बच्चों को सुख देना चाहता है पर वो बच्चे इतना डरते है सुख को देखकर कि वह उन्हें चाहकर भी सुख को महसूस करने को बढ़ावा नही दे पा रहा है।
दिवाली का उत्सव हमारे तन, मन, प्राण में तथा समस्त धरती पर छा जाने वाला एक अद्भुत आनंदोत्सव है। आज की रात दीयों और लाइट की जगमगाहट धरती से अमावस्या की कालिमा को मिटा देती है। लेकिन जो निचले तबके के लाचार लोग उस रात भी अंधकार में डूबे होते हैं, हमे खुशी का एक दीया उनके घर भी जलाने का प्रण लेना चाहिए। रोते हुओं को हंसाना चाहिए। तभी इस महापर्व की सार्थकता है। आज की कविता में गोपालदास नीरज का ऐसा ही कहना है.. "दीये से मिटेगा न मन का अंधेरा, धरा को उठाओ गगन को झुकाओ।"
मशहूर शायर, गीतकार साहिर लुधियानवी अपनी बेहतरीन शायरी और लाज़वाब नज़्मों के लिए जाने जाते हैं। हिंदी सिनेमा उनकी लेखनी का शुक्रगुजार है कि उन्होंने अनगिनत अविस्मरणीय सदाबहार गानों से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को बहुत ऊँचे मुकाम पर पहुंचाया है। कहते है कि "वियोगी होगा पहला कवि, आह से निकला होगा गान, बही होगी आंखों से कोई कविता अनजान।" और सच मे साहिर की हर नज़्म उनकी जान, उनकी महबूबा, उनकी प्रेयसी अमृता प्रीतम के ही लिए उनकी कलम से निकली मालूम होती है। आइये सुनते हैं एक बहुत ही सुनी हुई और कभी ना भूलने वाली उनकी नज़्म फिर से। कभी कभी मेरे दिल मे......
ये जोशीली कविता हमे जीवन मे सफलता प्राप्त करने का मूल मंत्र बताती है। श्री सोहनलाल द्विवेदी की लिखी यह कविता हमे गिर के उठने औऱ उठकर संभालने तथा पुनः प्रयास करने को प्रेरित करती है। यह मोटिवेशनल कविता हमे कहती है कि एक नन्ही सी चींटी अपने रास्ते मे आने वाली दीवार पे जब चढ़ती है तो उस प्रयास में वह सैकड़ों बार नीचे गिर जाती है, वह फिर भी बार बार चढ़ती है, जबतक वह चढ़ नही जाती हार नही मानती है तो हम तो सृष्टि के महानतम प्राणी मानव है, हम एक ही प्रयास में असफल होने से हार कैसे मान लें। बल्कि हमे तो अपनी असफलताओ से सीख लेनी चाहिए तथा अपनी कमी को दूर करके बार बार सफलता के लिए संघर्ष करना चाहिए। हमारे मन का विश्वास औऱ हमारी लगातार की कोशिश हमें हमारे लक्ष्य तक जरूर पहुँचाएगी।
यह एक बड़ी सुंदर सी देशभक्ति की कविता है, जिसमे एक फूल के मनोभाव को चित्रित किया गया है। उसके मन की इच्छा को, उसके दिल की ख्वाहिश को जाहिर किया गया है। उसकी इच्छा में उसके तमाम गुण- रूप, रस, सुंदरता, सुगंध - सब अदृश्य हो गए हैं, रह गई है सिर्फ कोमलता, जिसे वह देश के वीर सैनिकों की राहों में उनके पैरों के नीचे बिछा देना चाहता है ताकि उन्हें कोई कंकड़ कोई काँटा ना चुभे। ऐसी भावना अपने वीर सैनिको के लिए हम सभी देशवासियो के हृदय में भी हो यही इस कविता का मूल भाव है।
दुष्यंत कुमार त्यागी, छोटी सी उम्र के दिग्गज शायर की ग़ज़ल है इस एपिसोड में। सत्तर के दशक में आक्रोशित, अपने ही देश मे अपने ही नेताओं द्वारा जनता छली हुई जनता के मन की बात कह जाने वाले युवा कवि ने अपनी कविताओं में सत्ता के प्रति तीव्र आक्रोश व्यक्त किया है। आम भाषा मे साधारण व्यक्ति का प्यार भी अति साधारण उपमाओं के जरिये लिखा है। आइये सुनते हैं।
नारी के इश्क़ की चाहत एक आधुनिका नारी की ही ज़ुबानी सुनिए। नारी की इच्छाओं की बातें तो बहुत लोग करते हैं, मज़ाक भी बनाते हैं, परंतु समाज की काल्पनिक बातों से परे, एक नारी के मन से ही पूछिए कि वह क्या चाहती है, तो आपको एहसास होगा कि उसके लिए भौतिक सुखों का कोई वजूद ही नही। उसको तो वह अलौकिक, वह दिव्य प्रेम चाहिए जिसमें 'स्व' की कोई गुंजाइश ही न हो। जिसमें तुम और मैं नही सिर्फ 'हम' हो । जो बेबाक, बेतकल्लुफ, बेलौस, बेमिसाल बंदगी हो। सुनिए मशहूर कवयित्री प्रिया मालिक की कलम से।
इस प्यारी सी कविता में महाकवि दिनकर ने चाँद को एक मानव के रूप में चित्रित है। इसमें चाँद अपने माता से अपने लिए ऊन की ड्रेस लेने की जिद कर रहा है। वह बताता है कि आसमान के सफर में हर समय उसे ठंड लगती है, वह ठिठुरता रहता है तो उसको तो झिंगोला चाहिए ही। उसके बाद उसकी माता का उत्तर और फिर चाँद की बाते।। सब बहोत ही मज़ेदार है।
रक्षाबंधन, भारत का एक बेहद खूबसूरत त्योहार जो भाई- बहन के अटूट प्यार को सेलिब्रेट करता है। यह वो रेशमी धागा है जो कितनी भी दूर होने के बावजूद भाई बहन को आपस मे बाँध के रखता है। यह हमारे भारत की महान संस्कृति है जिसमे हर एक रिश्ते के लिए अलग अलग मनाए जाते हैं ताकि हम हर रिश्ते का महत्व समझ सकें। यह कविता एक भाई और एक बहन के हृदय का उदगार है एक दूसरे के लिए।
15 अगस्त 1947 को पहली बार हो या आज की हीरक जयंती को - स्वतंत्रता दिवस हम सभी भारतवासी बहुत ही उल्लास के साथ मनाते हैं। त्योहार की, आज़ादी की खुशी तो हमसभी जरूर सेलिब्रेट करते हैं किन्तु हम उन बलिदानियों को भूलते जा रहे है, जिन्होंने अपनी ज़िंदगियाँ हमारी आज़ादी के लिए कुर्बान कर दीं। हमे लगता है कि हम नही भूले पर जरा ट्राय करें आपको कितने शहीदों के नाम याद हैं, कितनों के जन्मदिन या पुण्य तिथि याद है- जबकि उनकी संख्या हज़ारों- लाखों में है !! आज उन्ही शहीदों की बदौलत हम आज़ाद फ़िज़ा में साँस ले पा रहे हैं। इनकी कुर्बानियों से भारत अब सोने की चिड़िया से सोने का शेर बन चुका है- ऐसे वीर जवानों को सलाम करते हुए उनकी शान में राष्ट्रकवि दिनकर की इक छोटी सी कविता प्रस्तुत है।
नारी के दुखों, तकलीफो, शोषण, समाज में बराबरी पाने का संघर्ष, उसपर होने वाले कटाक्ष--- सुनिये एक नारी के ही शब्दों में।
बुद्ध बनने की प्रक्रिया बड़ी कठिन होती है। व्यक्ति स्वयं तो महात्मा बन जाता है, सिद्धि प्राप्त कर लेता है किंतु उसके घरवाको पर, उसकी पत्नी पर, नवजात बच्चे पर दुखों का कितने पहाड़ टूट पड़ते हैं जिसका विचार वह उस समय नहीं कर पाता है। मैथिलीशरण गुप्त जी की इस कविता में गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधई की इसी व्यथा का वर्णन किया गया है
मेड़ता के राजकुल में पली-बढ़ी, मेवाड़ के राजवंश में ब्याह के आई एक निर्भय, साहसी, सुदृढ़ चरित्र वाली, कृष्णभक्त मीराबाई को कौन नहीं जानता है! मध्ययुगीन पुरुषप्रधान समाज की दमनकारी नीतियों के विरुद्ध आवाज उठाने वाली मीराबाई ने अपने देवर राणा विक्रमजीत तथा पुरे परिवार द्वारा अपने ऊपर किये गए अत्याचारों का अपने साहित्य द्वारा सारा भेद खोलकर रख दिया। हालाँकि इसकी सजा उन्हें अनेक तरह से सताकर दी गई। उन्हें मारने के भी बहुत उपाय किये गए किन्तु मीराबाई अपने कृष्ण भक्ति के पथ पर अडिग रही। राजकुल छोड़ दिया, मंदिरो में रहने लगी। माधुर्य भाव से श्रीकृष्ण की भक्ति में लीं रहते हुए असंख्य पदों, गीतों से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है इन्होंने।
एक जोशीली कविता , जो हमें यह सिखाती है कि मानव को अपने लिए नई-नई मंजिलों की तलाश करनी चाहिए और उस तक पहुँचने के लिए नए रास्ते भी स्वयं ही चुनने चाहिए। बने बनाए रास्तों पर तो कमज़ोर तथा हारे हुए इंसान चलते हैं।
कविवर बच्चन जी की एक दिल को छू लेने वाली कविता जो अनेक उदाहरणों द्वारा हमें यह बताती है कि कोई अपना प्रिय जब हमसे बिछड़ जाता है तो उसकी जगह तो कोई भी दूसरा नहीं ले पाता है किन्तु उसकी याद को मन में संजोकर रखते हुए भी अपना जीवन मुस्कराकर जीना सीखना चाहिए। अमावस्या की रात के अन्धकार को दूर करने के लिए हम चाँद को तो जमीन पर नहीं ला सकते हैं परंतु अपनी कुटिया में एक छोटा सा दीपक जलाकर हम अपने हिस्से में कुछ रोशनी तो ला ही सकते हैं न !!
अपने स्वजनों से बिछुड़न की दर्द भरी त्रासदी को बयां करती नीरज की मार्मिक कविता किसका आज के कोविड-19 की त्रासदी से काफी हद तक सहसंबंध है।
ग़ज़लों की रुमानियत को संजोए हुए, प्यार-मुहोबत- महबूब के ख्वाबों में खोया हुआ, सपनो की बातें करने वाला यह शायर अपने शेरों में वास्तविकता को भी साथ लेके चलता है। बशीर बद्र के पास ज़ख्म है, छाले हैं, तो उनसे निजात पाने की एक प्रैक्टिकल एप्रोच भी है। और यही खासियत उनको भीड़ से अलग पहचान देती है
फागुन की मदमस्त बहारें और उसपर ऋतुराज बसंत की आगमन, कोयल की कूक और महुआ की मादकता, आमो की मंजरियाँ और सरसों की पीली चूनर--- इन सभी छटाओं को स्वयं में समेटे हुए हैं आज की छोटी छोटी कविताएं और फागुन के दोहे।
जीवन की तीसरी अवस्था में जब हम अपनी जिम्मेदारियों से निश्चिन्त हो जाते है तब स्वयं की ओर लौटने की प्रेरणा देती, अपने मन को परिंदा बनाके अपनी छोटी छोटी ख्वाहिशों को भरपूर जी लेने की तमन्ना जगाती, स्वयं को स्वयं से मिलाती, अपने मन का कर लेने को उकसाती एक लाजवाब छोटी सी कविता।
ऋतुराज बसंत में चलने वाली हवा को इस कविता में एक चंचल, अल्हड़, नटखट, शोख किशोरी की तरह प्रस्तुत किया गया है। जिस प्रकार बसंत ऋतु की मादकता से हर प्राणी उल्लास और उमंग से भर जाता है, बावरा सा हो जाता है ठीक उसी प्रकार हवा पर भी बसंत का असर हो गया है और वह भी बावरी हो गई है।
पेश है मशहूर शायरा अमृता प्रीतम की दिलकश नज़्म जो उनके रूहानी इश्क़ की खुली इबारत है। "साहिर लुधियानवी, अमृता, इमरोज़"- ये एक ऐसा त्रिकोणीय प्रेम था जो अमृता की किताबों में अमर हो गया है। ये नज़्म अमृता का अपने पति इमरोज़ से वादा है कि अभी नहीं तो कभी न कभी, कही न कही, किसी न किसी रूप में वे उनसे ज़रूर मिलेगी।
एक ही विषय निर्झर" पर लिखी गई मानव जीवन की दो सर्वथा विपरीत अवस्थाओं: युवावस्था के जोश एवं वृद्धावस्था की असमर्थता को दर्शाती दो छोटी कविताएं।
जंगे ज़िन्दगी के संघर्षों से थक चुके व्यक्ति को झकझोर कर जगा देने वाली, नए जोश से भरकर आत्मविश्वास जगा देने वाली, फिर से कर्मपथ पर आगे बढ़ाने वाली एक प्रभावशाली कविता।
उदात्त प्रेम की ऊँची नीची जलतरंगों में मन को भिगोती हुई यह रहस्यवादी कविता प्रेम के सभी पहलुओं को टटोलती है, हृदय की गहराइयों में छिपी सभी परतों को हमारे समक्ष खोलने का प्रयत्न करती है।
भारत माता को गुलामी की जंजीरों से आज़ाद कराने के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस का देश के जोशीले नवयुवको के नाम एक खूनी आह्वान। "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा"- महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस के इस जोशीले नारे से सम्बंधित घटना पर आधारित पद्मश्री गोपाल व्यास की पौरुष जगाने वाली कविता।
मंज़िल को पाने का सफर कभी भी आसान नहीं होता है। हमें उसके रास्ते में अनेक बाधाओं रूपी चिलचिलाती धूप का सामना करना ही पड़ता है। जो व्यक्ति इन मुश्किलों को झेलकर अपना रास्ता स्वयं बनाकर आगे बढ़ता जाए वही मंज़िल को पाता है।
सामाजिक शोषण व अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाने को प्रेरित करती, स्वयं के अस्तित्व को तलाश करने का आह्वान देती हुई एक सशक्त कृति ।
स्वाभिमानी, परम शक्तिशाली , सूर्यपुत्र कर्ण की गौरवगाथा: यह कहानी समाज के तमाम उपेक्षितों और स्वाभिमानी नवयुवको की है जिनको विरासत में कुछ नहीं मिला जो सिर्फ अपने बल पर समाज में स्थापित हुए हैं।
स्वाभिमानी, परम शक्तिशाली , सूर्यपुत्र कर्ण की गौरवगाथा: यह कहानी समाज के तमाम उपेक्षितों और स्वाभिमानी नवयुवको की है जिनको विरासत में कुछ नहीं मिला जो सिर्फ अपने बल पर समाज में स्थापित हुए हैं।
स्वाभिमानी, परम शक्तिशाली , सूर्यपुत्र कर्ण की गौरवगाथा: यह कहानी समाज के तमाम उपेक्षितों और स्वाभिमानी नवयुवको की है जिनको विरासत में कुछ नहीं मिला जो सिर्फ अपने बल पर समाज में स्थापित हुए हैं।
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स्वाभिमानी, परम शक्तिशाली ,महादानी, सूर्यपुत्र कर्ण की गौरवगाथा: यह कहानी समाज के तमाम उपेक्षितों और स्वाभिमानी नवयुवको की है जिनको विरासत में कुछ नहीं मिला जो सिर्फ अपने बल पर समाज में स्थापित हुए हैं।
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जब सारी सृष्टि गहन निद्रा में डूबी होती है, सब ओर अँधेरे ने डेरा डाल रखा है, ऐसे में सूर्य की पहली किरणों के आने का पूर्वाभास नन्हे पक्षियों को कैसे हो जाता है!! प्रकृति का यह अनबूझ रहस्य पन्त की नज़र से देखें ।
जीवन की कठिनाइयों से डट कर मुकाबला करके मंज़िल प्राप्त करने के लिए एक जोशीली व प्रेरणादायक कविता।
प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत की प्रसिद्ध रचना, जिसमे प्राकृतिक सौंदर्य को नारी सौंदर्य की तुलना में श्रेष्ठ बताया है। वे आजीवन अपनी आँखों में प्रकृति की नैसर्गिक सुंदरता भर लेना चाहते हैं।
यह चिरकाल तक अमर रहने वाली एक श्रेष्ठ कविता है जो हमें निराशा के अंधेरे से निकालकर अपने कर्मपथ पर आगे बढ़ने के लिए, ऊर्जावान बनाए रखने के लिए एक संजीवनी बूटी का काम करती है।
अकाल की तकलीफों तथा उससे उबरने की प्रक्रिया में मनुष्यों के साथ साथ उनके सहारे पलने वाले जीवों के की भी वेदना और प्रसन्नता का मार्मिक चित्रण।