Stories of Vikram Betaal विक्रम बेताल की कहानियाँ

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*बेताल पचीसी * राजा विक्रम और एक बेताल की कहानियों की शृंखला है बेताल पच्चीसी। पेड़ पर लटके हुए एक बेताल को एक योगी तक पहुँचाना था राजा विक्रम को। राजा उस बेताल को अपनी पीठ पर लादकर ले जाने लगा। बेताल ने कहा राजा मैं तुझे एक कहानी सुनाऊंगा, पर शर्त ये है कि तुझे चुप रहना है। अगर तू बोला तो मैं वापिस…

Sameer Goswami


    • Apr 25, 2018 LATEST EPISODE
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    26: बेताल पच्चीसी : पच्चीसवीं कहानी : बेताल पच्चीसी : Betal Pachcheesi

    Play Episode Listen Later Apr 25, 2018 3:54


    बेताल पच्चीसी - पच्चीसवीं कहानी!! योगी राजा को और मुर्दे को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। बोला, "हे राजन्! तुमने यह कठिन काम करके मेरे साथ बड़ा उपकार किया है। तुम सचमुच सारे राजाओं में श्रेष्ठ हो।" इतना कहकर उसने मुर्दे को उसके कंधे से उतार लिया और उसे स्नान कराकर फूलों की मालाओं से सजाकर रख दिया। फिर मंत्र-बल से बेताल का आवाहन करके उसकी पूजा की। पूजा के बाद उसने राजा से कहा, "हे राजन्! तुम शीश झुकाकर इसे प्रणाम करो।" राजा को बेताल की बात याद आ गयी। उसने कहा, "मैं राजा हूँ, मैंने कभी किसी को सिर नहीं झुकाया। आप पहले सिर झुकाकर बता दीजिए।" योगी ने जैसे ही सिर झुकाया, राजा ने तलवार से उसका सिर काट दिया। बेताल बड़ा खुश हुआ। बोला, "राजन्, यह योगी विद्याधरों का स्वामी बनना चाहता था। अब तुम बनोगे। मैंने तुम्हें बहुत हैरान किया है। तुम जो चाहो सो माँग लो।" राजा ने कहा, "अगर आप मुझसे खुश हैं तो मेरी प्रार्थना है कि आपने जो चौबीस कहानियाँ सुनायीं, वे, और पच्चीसवीं यह, सारे संसार में प्रसिद्ध हो जायें और लोग इन्हें आदर से पढ़े।" बेताल ने कहा, "ऐसा ही होगा। ये कथाएँ ‘बेताल-पच्चीसी’ के नाम से मशहूर होंगी और जो इन्हें पढ़ेंगे, उनके पाप दूर हो जायेंगे।" यह कहकर बेताल चला गया। उसके जाने के बाद शिवजी ने प्रकट होकर कहा, "राजन्, तुमने अच्छा किया, जो इस दुष्ट साधु को मार डाला। अब तुम जल्दी ही सातों द्वीपों और पाताल-सहित सारी पृथ्वी पर राज्य स्थापित करोगे।" इसके बाद शिवजी अन्तर्धान हो गये। काम पूरे करके राजा श्मशान से नगर में आ गया। कुछ ही दिनों में वह सारी पृथ्वी का राजा बन गया और बहुत समय तक आनन्द से राज्य करते हुए अन्त में भगवान में समा गया।

    25: बेताल पच्चीसी : चौबीसवीं कहानी : माँ बेटी के बच्चों मे रिश्ता क्या : Maan beti ke bachchon me rishta kya

    Play Episode Listen Later Apr 24, 2018 4:47


    माँ-बेटी के बच्चों में क्या रिश्ता हुआ? बेताल पच्चीसी - चौबीसवीं कहानी! किसी नगर में मांडलिक नाम का राजा राज करता था। उसकी पत्नी का नाम चडवती था। वह मालव देश के राजा की लड़की थी। उसके लावण्यवती नाम की एक कन्या थी। जब वह विवाह के योग्य हुई तो राजा के भाई-बन्धुओं ने उसका राज्य छीन लिया और उसे देश-निकाला दे दिया। राजा रानी और कन्या को साथ लेकर मालव देश को चल दिया। रात को वे एक वन में ठहरे। पहले दिन चलकर भीलों की नगरी में पहुँचे। राजा ने रानी और बेटी से कहा कि तुम लोग वन में छिप जाओ, नहीं तो भील तुम्हें परेशान करेंगे। वे दोनों वन में चली गयीं। इसके बाद भीलों ने राजा पर हमला किया। राजा ने मुकाबला किया, पर अन्त में वह मारा गया। भील चले गये। उसके जाने पर रानी और बेटी जंगल से निकलकर आयीं और राजा को मरा देखकर बड़ी दु:खी हुईं। वे दोनों शोक करती हुईं एक तालाब के किनारे पहुँची। उसी समय वहाँ चंडसिंह नाम का साहूकार अपने लड़के के साथ, घोड़े पर चढ़कर, शिकार खेलने के लिए उधर आया। दो स्त्रियों के पैरों के निशान देखकर साहूकार अपने बेटे से बोला, "अगर ये स्त्रियाँ मिल जों तो जायें जिससे चाहो, विवाह कर लेना।" लड़के ने कहा, "छोटे पैर वाली छोटी उम्र की होगी, उससे मैं विवाह कर लूँगा। आप बड़ी से कर लें।" साहूकार विवाह नहीं करना चाहता था, पर बेटे के बहुत कहने पर राजी हो गया। थोड़ा आगे बढ़ते ही उन्हें दोनों स्त्रियां दिखाई दीं। साहूकार ने पूछा, "तुम कौन हो?" रानी ने सारा हाल कह सुनाया। साहूकार उन्हें अपने घर ले गया। संयोग से रानी के पैर छोटे थे, पुत्री के पैर बड़े। इसलिए साहूकार ने पुत्री से विवाह किया, लड़के ने रानी से हुई और इस तरह पुत्री सास बनी और माँ बेटे की बहू। उन दोनों के आगे चलकर कई सन्तानें हुईं। इतना कहकर बेताल बोला, "राजन्! बताइए, माँ-बेटी के जो बच्चे हुए, उनका आपस में क्या रिश्ता हुआ?" यह सवाल सुनकर राजा बड़े चक्कर में पड़ा। उसने बहुत सोचा, पर जवाब न सूझ पड़ा। इसलिए वह चुपचाप चलता रहा। बेताल यह देखकर बोला, "राजन्, कोई बात नहीं है। मैं तुम्हारे धीरज और पराक्रम से खुश हूँ। मैं अब इस मुर्दे से निकला जाता हूँ। तुम इसे योगी के पास ले जाओ। जब वह तुम्हें इस मुर्दे को सिर झुकाकर प्रणाम करने को कहे तो तुम कह देना कि पहले आप करके दिखाओ। जब वह सिर झुकाकर बतावे तो तुम उसका सिर काट लेना। उसका बलिदान करके तुम सारी पृथ्वी के राजा बन जाओगे। सिर नहीं काटा तो वह तुम्हारी बलि देकर सिद्धि प्राप्त करेगा।" इतना कहकर बेताल चला गया और राजा मुर्दे को लेकर योगी के पास आया।

    24: बेताल पच्चीसी : तेईसवीं कहानी : योगी पहले रोया फिर हंसा क्यों : Yogi phle roya fir hansa kyon

    Play Episode Listen Later Apr 23, 2018 3:32


    योगी पहले क्यों रोया, फिर क्यों हँसा? बेताल पच्चीसी - तेईसवीं कहानी! कलिंग देश में शोभावती नाम का एक नगर है। उसमें राजा प्रद्युम्न राज करता था। उसी नगरी में एक ब्राह्मण रहता था, जिसके देवसोम नाम का बड़ा ही योग्य पुत्र था। जब देवसोम सोलह बरस का हुआ और सारी विद्याएँ सीख चुका तो एक दिन दुर्भाग्य से वह मर गया। बूढ़े माँ-बाप बड़े दु:खी हुए। चारों ओर शोक छा गया। जब लोग उसे लेकर श्मशान में पहुँचे तो रोने-पीटने की आवाज़ सुनकर एक योगी अपनी कुटिया में से निकलकर आया। पहले तो वह खूब ज़ोर से रोया, फिर खूब हँसा, फिर योग-बल से अपना शरीर छोड़ कर उस लड़के के शरीर में घुस गया। लड़का उठ खड़ा हुआ। उसे जीता देखकर सब बड़े खुश हुए। वह लड़का वही तपस्या करने लगा। इतना कहकर बेताल बोला, "राजन्, यह बताओ कि यह योगी पहले क्यों रोया, फिर क्यों हँसा?" राजा ने कहा, "इसमें क्या बात है! वह रोया इसलिए कि जिस शरीर को उसके माँ-बाप ने पाला-पोसा और जिससे उसने बहुत-सी शिक्षाएँ प्राप्त कीं, उसे छोड़ रहा था। हँसा इसलिए कि वह नये शरीर में प्रवेश करके और अधिक सिद्धियाँ प्राप्त कर सकेगा।" राजा का यह जवाब सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा जाकर उसे लाया तो रास्ते में बेताल ने कहा, "हे राजन्, मुझे इस बात की बड़ी खुशी है कि बिना जरा-सा भी हैरान हुए तुम मेरे सवालों का जवाब देते रहे हो और बार-बार आने-जाने की परेशानी उठाते रहे हो। आज मैं तुमसे एक बहुत भारी सवाल करूँगा। सोचकर उत्तर देना।" इसके बाद बेताल ने यह कहानी सुनायी।

    23: बेताल पच्चीसी : बाइसवीं कहानी : शेर बनाने का अपराध किसने किया : Sher banane ka apradh kisne kiya

    Play Episode Listen Later Apr 22, 2018 3:26


    शेर बनाने का अपराध किसने किया? बेताल पच्चीसी - बाईसवीं कहानी!! कुसुमपुर नगर में एक राजा राज्य करता था। उसके नगर में एक ब्राह्मण था, जिसके चार बेटे थे। लड़कों के सयाने होने पर ब्राह्मण मर गया और ब्राह्मणी उसके साथ सती हो गयी। उनके रिश्तेदारों ने उनका धन छीन लिया। वे चारों भाई नाना के यहाँ चले गये। लेकिन कुछ दिन बाद वहाँ भी उनके साथ बुरा व्यवहार होने लगा। तब सबने मिलकर सोचा कि कोई विद्या सीखनी चाहिए। यह सोच करके चारों चार दिशाओं में चल दिये। कुछ समय बाद वे विद्या सीखकर मिले। एक ने कहा, "मैंने ऐसी विद्या सीखी है कि मैं मरे हुए प्राणी की हड्डियों पर मांस चढ़ा सकता हूँ।" दूसरे ने कहा, "मैं उसके खाल और बाल पैदा कर सकता हूँ।" तीसरे ने कहा, "मैं उसके सारे अंग बना सकता हूँ।" चौथा बोला, "मैं उसमें जान डाल सकता हूँ।" फिर वे अपनी विद्या की परीक्षा लेने जंगल में गये। वहाँ उन्हें एक मरे शेर की हड्डियाँ मिलीं। उन्होंने उसे बिना पहचाने ही उठा लिया। एक ने माँस डाला, दूसरे ने खाल और बाल पैदा किये, तीसरे ने सारे अंग बनाये और चौथे ने उसमें प्राण डाल दिये। शेर जीवित हो उठा और सबको खा गया। यह कथा सुनाकर बेताल बोला, "हे राजा, बताओ कि उन चारों में शेर बनाने का अपराध किसने किया?" राजा ने कहा, "जिसने प्राण डाले उसने, क्योंकि बाकी तीन को यह पता ही नहीं था कि वे शेर बना रहे हैं। इसलिए उनका कोई दोष नहीं है।" यह सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा जाकर फिर उसे लाया। रास्ते में बेताल ने एक नयी कहानी सुनायी।

    22: बेताल पच्चीसी : इक्कीसवीं कहानी : सबसे ज़्यादा प्रेम मे अंधा कौन : Sabse zyada prem me andha kaun tha

    Play Episode Listen Later Apr 21, 2018 3:59


    सबसे ज्यादा प्रेम में अंधा कौन था? - बेताल पच्चीसी - इक्कीसवीं कहानी!! विशाला नाम की नगरी में पदमनाभ नाम का राजा राज करता था। उसी नगर में अर्थदत्त नाम का एक साहूकार रहता था। अर्थदत्त के अनंगमंजरी नाम की एक सुन्दर कन्या थी। उसका विवाह साहूकार ने एक धनी साहूकार के पुत्र मणिवर्मा के साथ कर दिया। मणिवर्मा पत्नी को बहुत चाहता था, पर पत्नी उसे प्यार नहीं करती थी। एक बार मणिवर्मा कहीं गया। पीछे अनंगमंजरी की राजपुरोहित के लड़के कमलाकर पर निगाह पड़ी तो वह उसे चाहने लगी। पुरोहित का लड़का भी लड़की को चाहने लगा। अनंगमंजरी ने महल के बाग़ मे जाकर चंडीदेवी को प्रणाम कर कहा, "यदि मुझे इस जन्म में कमलाकर पति के रूप में न मिले तो अगले जन्म में मिले।" यह कहकर वह अशोक के पेड़ से दुपट्टे की फाँसी बनाकर मरने को तैयार हो गयी। तभी उसकी सखी आ गयी और उसे यह वचन देकर ले गयी कि कमलाकर से मिला देगी। दासी सबेरे कमलाकर के यहाँ गयी और दोनों के बगीचे में मिलने का प्रबन्ध कर आयी। कमलाकर आया और उसने अनंगमंजरी को देखा। वह बेताब होकर मिलने के लिए दौड़ा। मारे खुशी के अनंगमंजरी के हृदय की गति रुक गयी और वह मर गयी। उसे मरा देखकर कमलाकर का भी दिल फट गया और वह भी मर गया। उसी समय मणिवर्मा आ गया और अपनी स्त्री को पराये आदमी के साथ मरा देखकर बड़ा दु:खी हुआ। वह स्त्री को इतना चाहता था कि उसका वियोग न सहने से उसके भी प्राण निकल गये। चारों ओर हाहाकार मच गया। चंडीदेवी प्रकट हुई और उसने सबको जीवित कर दिया। इतना कहकर बेताल बोला, "राजन्, यह बताओ कि इन तीनों में सबसे ज्यादा विराग में अंधा कौन था?" राजा ने कहा, "मेरे विचार में मणिवर्मा था, क्योकि वह अपनी पत्नी को पराये आदमी को प्यार करते देखकर भी शोक से मर गया। अनंगमंजरी और कमलाकर तो अचानक मिलने की खुशी से मरे। उसमें अचरज की कोई बात नहीं थी।" राजा का यह जवाब सुनकरव बेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा को वापस जाकर उसे लाना पड़ा। रास्ते में बेताल ने फिर एक कहानी कही।

    21: बेताल पच्चीसी : बीसवीं कहानी : बालक क्यों हंसा : Balak kyon hansa

    Play Episode Listen Later Apr 20, 2018 4:42


    बालक क्यों हँसा? बेताल पच्चीसी - बीसवीं कहानी! चित्रकूट नगर में एक राजा रहता था। एक दिन वह शिकार खेलने जंगल में गया। घूमते-घूमते वह रास्ता भूल गया और अकेला रह गया। थक कर वह एक पेड़ की छाया में लेटा कि उसे एक ऋषि-कन्या दिखाई दी। उसे देखकर राजा उस पर मोहित हो गया। थोड़ी देर में ऋषि स्वयं आ गये। ऋषि ने पूछा, "तुम यहाँ कैसे आये हो?" राजा ने कहा, "मैं शिकार खेलने आया हूँ। ऋषि बोले, "बेटा, तुम क्यों जीवों को मारकर पाप कमाते हो?" राजा ने वादा किया कि मैं अब कभी शिकार नहीं खेलूँगा। खुश होकर ऋषि ने कहा, "तुम्हें जो माँगना हो, माँग लो।" राजा ने ऋषि-कन्या माँगी और ऋषि ने खुश होकर दोनों का विवाह कर दिया। राजा जब उसे लेकर चला तो रास्ते में एक भयंकर राक्षस मिला। बोला, "मैं तुम्हारी रानी को खाऊँगा। अगर चाहते हो कि वह बच जाय तो सात दिन के भीतर एक ऐसे ब्राह्मण-पुत्र का बलिदान करो, जो अपनी इच्छा से अपने को दे और उसके माता-पिता उसे मारते समय उसके हाथ-पैर पकड़ें।" डर के मारे राजा ने उसकी बात मान ली। वह अपने नगर को लौटा और अपने दीवान को सब हाल कह सुनाया। दीवान ने कहा, "आप परेशान न हों, मैं उपाय करता हूँ।" इसके बाद दीवान ने सात बरस के बालक की सोने की मूर्ति बनवायी और उसे कीमती गहने पहनाकर नगर-नगर और गाँव-गाँव घुमवाया। यह कहलवा दिया कि जो कोई सात बरस का ब्राह्मण का बालक अपने को बलिदान के लिए देगा और बलिदान के समय उसके माँ-बाप उसके हाथ-पैर पकड़ेंगे, उसी को यह मूर्ति और सौ गाँव मिलेंगे। यह ख़बर सुनकर एक ब्राह्मण-बालक राजी हो गया, उसने माँ-बाप से कहा, "आपको बहुत-से पुत्र मिल जायेंगे। मेरे शरीर से राजा की भलाई होगी और आपकी गरीबी मिट जायेगी।" माँ-बाप ने मना किया, पर बालक ने हठ करके उन्हें राजी कर लिया। माँ-बाप बालक को लेकर राजा के पास गये। राजा उन्हें लेकर राक्षस के पास गया। राक्षस के सामने माँ-बाप ने बालक के हाथ-पैर पकड़े और राजा उसे तलवार से मारने को हुआ। उसी समय बालक बड़े ज़ोर से हँस पड़ा। इतना कहकर बेताल बोला, "हे राजन्, यह बताओ कि वह बालक क्यों हँसा?" राजा ने फौरन उत्तर दिया, "इसलिए कि डर के समय हर आदमी रक्षा के लिए अपने माँ-बाप को पुकारता है। माता-पिता न हों तो पीड़ितों की मदद राजा करता है। राजा न कर सके तो आदमी देवता को याद करता है। पर यहाँ तो कोई भी बालक के साथ न था। माँ-बाप हाथ पकड़े हुए थे, राजा तलवार लिये खड़ा था और राक्षस भक्षक हो रहा था। ब्राह्मण का लड़का परोपकार के लिए अपना शरीर दे रहा था। इसी हर्ष से और अचरज से वह हँसा।" इतना सुनकर बेताल अन्तर्धान हो गया और राजा लौटकर फिर उसे ले आया। रास्ते में बेताल ने फिर कहानी शुरू कर दी।

    20: बेताल पच्चीसी : उन्नीसवीं कहानी : पिंड का अधिकारी कौन : Pind ka adhikari kaun

    Play Episode Listen Later Apr 19, 2018 5:36


    पिण्ड दान का अधिकारी कौन - बेताल पच्चीसी - उन्नीसवीं कहानी!! वक्रोलक नामक नगर में सूर्यप्रभ नाम का राजा राज करता था। उसके कोई सन्तान न थी। उसी समय में एक दूसरी नगरी में धनपाल नाम का एक साहूकार रहता था। उसकी स्त्री का नाम हिरण्यवती था और उसके धनवती नाम की एक पुत्री थी। जब धनवती बड़ी हुई तो धनपाल मर गया और उसके नाते-रिश्तेदारों ने उसका धन ले लिया। हिरण्यवती अपनी लड़की को लेकर रात के समय नगर छोड़कर चल दी। रास्ते में उसे एक चोर सूली पर लटकता हुआ मिला। वह मरा नहीं था। उसने हिरण्यवती को देखकर अपना परिचय दिया और कहा, "मैं तुम्हें एक हज़ार अशर्फियाँ दूँगा। तुम अपनी लड़की का ब्याह मेरे साथ कर दो।" हिरण्यवती ने कहा, "तुम तो मरने वाले हो।" चोर बोला, "मेरे कोई पुत्र नहीं है और निपूते की परलोक में सदगति नहीं होती। अगर मेरी आज्ञा से और किसी से भी इसके पुत्र पैदा हो जायेगा तो मुझे सदगति मिल जायेगी।" हिरण्यवती ने लोभ के वश होकर उसकी बात मान ली और धनवती का ब्याह उसके साथ कर दिया। चोर बोला, "इस बड़ के पेड़ के नीचे अशर्फियाँ गड़ी हैं, सो ले लेना और मेरे प्राण निकलने पर मेरा क्रिया-कर्म करके तुम अपनी बेटी के साथ अपने नगर में चली जाना।" इतना कहकर चोर मर गया। हिरण्यवती ने ज़मीन खोदकर अशर्फियाँ निकालीं, चोर का क्रिया-कर्म किया और अपने नगर में लौट आयी। उसी नगर में वसुदत्त नाम का एक गुरु था, जिसके मनस्वामी नाम का शिष्य था। वह शिष्य एक वेश्या से प्रेम करता था। वेश्या उससे पाँच सौ अशर्फियाँ माँगती थी। वह कहाँ से लाकर देता! संयोग से धनवती ने मनस्वामी को देखा और वह उसे चाहने लगी। उसने अपनी दासी को उसके पास भेजा। मनस्वामी ने कहा कि मुझे पाँच सौ अशर्फियाँ मिल जायें तो मैं एक रात धनवती के साथ रह सकता हूँ। हिरण्यवती राजी हो गयी। उसने मनस्वामी को पाँच सौ अशर्फियाँ दे दीं। बाद में धनवती के एक पुत्र उत्पन्न हुआ। उसी रात शिवाजी ने सपने में उन्हें दर्शन देकर कहा, "तुम इस बालक को हजार अशर्फियों के साथ राजा के महल के दरवाज़े पर रख आओ।" माँ-बेटी ने ऐसा ही किया। उधर शिवाजी ने राजा को सपने में दर्शन देकर कहा, "तुम्हारे द्वार पर किसी ने धन के साथ लड़का रख दिया है, उसे ग्रहण करो।" राजा ने अपने नौकरों को भेजकर बालक और अशर्फियों को मँगा लिया। बालक का नाम उसने चन्द्रप्रभ रखा। जब वह लड़का बड़ा हुआ तो उसे गद्दी सौंपकर राजा काशी चला गया और कुछ दिन बाद मर गया। पिता के ऋण से उऋण होने के लिए चन्द्रप्रभ तीर्थ करने निकला। जब वह घूमते हुए गयाकूप पहुँचा और पिण्डदान किया तो उसमें से तीन हाथ एक साथ निकले। चन्द्रप्रभ ने चकित होकर ब्राह्मणों से पूछा कि किसको पिण्ड दूँ? उन्होंने कहा, "लोहे की कीलवाला चोर का हाथ है, पवित्रीवाला ब्राह्मण का है और अंगूठीवाला राजा का। आप तय करो कि किसको देना है?" इतना कहकर बेताल बोला, "राजन्, तुम बताओ कि उसे किसको पिण्ड देना चाहिए?" राजा ने कहा, "चोर को; क्योंकि उसी का वह पुत्र था। मनस्वामी उसका पिता इसलिए नहीं हो सकता कि वह तो एक रात के लिए पैसे से ख़रीदा हुआ था। राजा भी उसका पिता नहीं हो सकता, क्योंकि उसे बालक को पालने के लिए धन मिल गया था। इसलिए चोर ही पिण्ड का अधिकारी है।" इतना सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा को वहाँ जाकर उसे लाना पड़ा। रास्ते में फिर उसने एक कहानी सुनाई।

    19: बेताल पच्चीसी : अट्ठारहवीं कहानी : विद्या क्यों नष्ट हो गयी : Vidya kyon nasht ho gayi

    Play Episode Listen Later Apr 18, 2018 5:08


    विद्या क्यों नष्ट हो गयी? बेताल पच्चीसी -अठारहवीं कहानी उज्जैन नगरी में महासेन नाम का राजा राज करता था। उसके राज्य में वासुदेव शर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था, जिसके गुणाकर नाम का बेटा था। गुणाकर बड़ा जुआरी था। वह अपने पिता का सारा धन जुए में हार गया। ब्राह्मण ने उसे घर से निकाल दिया। वह दूसरे नगर में पहुँचा। वहाँ उसे एक योगी मिला। उसे हैरान देखकर उसने कारण पूछा तो उसने सब बता दिया। योगी ने कहा, "लो, पहले कुछ खा लो।" गुणाकर ने जवाब दिया, "मैं ब्राह्मण का बेटा हूँ। आपकी भिक्षा कैसे खा सकता हूँ?" इतना सुनकर योगी ने सिद्धि को याद किया। वह आयी। योगी ने उससे आवभगत करने को कहा। सिद्धि ने एक सोने का महल बनवाया और गुणाकार उसमें रात को अच्छी तरह से रहा। सबेरे उठते ही उसने देखा कि महल आदि कुछ भी नहीं है। उसने योगी से कहा, "महाराज, उस स्त्री के बिना अब मैं नहीं रह सकता।" योगी ने कहा, "वह तुम्हें एक विद्या प्राप्त करने से मिलेगी और वह विद्या जल के अन्दर खड़े होकर मंत्र जपने से मिलेगी। लेकिन जब वह लड़की तुम्हें मेरी सिद्धि से मिल सकती है तो तुम विद्या प्राप्त करके क्या करोगे?" गुणाकर ने कहा, "नहीं, मैं स्वयं वैसा करूँगा।" योगी बोला, "कहीं ऐसा न हो कि तुम विद्या प्राप्त न कर पाओ और मेरी सिद्धि भी नष्ट हो जाय!" पर गुणाकर न माना। योगी ने उसे नदी के किनारे ले जाकर मंत्र बता दिये और कहा कि जब तुम जप करते हुए माया से मोहित होगे तो मैं तुम पर अपनी विद्या का प्रयोग करूँगा। उस समय तुम अग्नि में प्रवेश कर जाना।" गुणाकर जप करने लगा। जब वह माया से एकदम मोहित हो गया तो देखता क्या है कि वह किसी ब्राह्मण के बेटे के रूप में पैदा हुआ है। उसका ब्याह हो गया, उसके बाल-बच्चे भी हो गये। वह अपने जन्म की बात भूल गया। तभी योगी ने अपनी विद्या का प्रयोग किया। गुणाकर मायारहित होकर अग्नि में प्रवेश करने को तैयार हुआ। उसी समय उसने देखा कि उसे मरता देख उसके माँ-बाप और दूसरे लोग रो रहे हैं और उसे आग में जाने से रोक रहे हैं। गुणाकार ने सोचा कि मेरे मरने पर ये सब भी मर जायेंगे और पता नहीं कि योगी की बात सच हो या न हो। इस तरह सोचता हुआ वह आग में घुसा तो आग ठंडी हो गयी और माया भी शान्त हो गयी। गुणाकर चकित होकर योगी के पास आया और उसे सारा हाल बता दिया। योगी ने कहा, "मालूम होता है कि तुम्हारे करने में कोई कसर रह गयी।" योगी ने स्वयं सिद्धि की याद की, पर वह नहीं आयी। इस तरह योगी और गुणाकर दोनों की विद्या नष्ट हो गयी। इतनी कथा कहकर बेताल ने पूछा, "राजन्, यह बताओ कि दोनों की विद्या क्यों नष्ट हो गयी?" राजा बोला, "इसका जवाब साफ़ है। निर्मल और शुद्ध संकल्प करने से ही सिद्धि प्राप्त होती है। गुणाकर के दिल में शंका हुई कि पता नहीं, योगी की बात सच होगी या नहीं। योगी की विद्या इसलिए नष्ट हुई कि उसने अपात्र को विद्या दी।" राजा का उत्तर सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा वहाँ गया और उसे लेकर चला तो उसने यह कहानी सुनायी।

    18: बेताल पच्चीसी : सत्रहवीं कहानी : अधिक साहसी कौन : Adhik Sahsi kaun

    Play Episode Listen Later Apr 17, 2018 4:24


    अधिक साहसी कौन : बेताल पच्चीसी - सत्रहवीं कहानी!! चन्द्रशेखर नगर में रत्नदत्त नाम का एक सेठ रहता था। उसके एक लड़की थी। उसका नाम था उन्मादिनी। जब वह बड़ी हुई तो रत्नदत्त ने राजा के पास जाकर कहा कि आप चाहें तो उससे ब्याह कर लीजिए। राजा ने तीन दासियों को लड़की को देख आने को कहा। उन्होंने उन्मादिनी को देखा तो उसके रुप पर मुग्ध हो गयीं, लेकिन उन्होंने यह सोचकर कि राजा उसके वश में हो जायेगा, आकर कह दिया कि वह तो कुलक्षिणी है राजा ने सेठ से इन्कार कर दिया। इसके बाद सेठ ने राजा के सेनापति बलभद्र से उसका विवाह कर दिया। वे दोनों अच्छी तरह से रहने लगे। एक दिन राजा की सवारी उस रास्ते से निकली। उस समय उन्मादिनी अपने कोठे पर खड़ी थी। राजा की उस पर निगाह पड़ी तो वह उस पर मोहित हो गया। उसने पता लगाया। मालूम हुआ कि वह सेठ की लड़की है। राजा ने सोचा कि हो-न-हो, जिन दासियों को मैंने देखने भेजा था, उन्होंने छल किया है। राजा ने उन्हें बुलाया तो उन्होंने आकर सारी बात सच-सच कह दी। इतने में सेनापति वहाँ आ गया। उसे राजा की बैचेनी मालूम हुई। उसने कहा, "स्वामी उन्मादिनी को आप ले लीजिए।" राजा ने गुस्सा होकर कहा, "क्या मैं अधर्मी हूँ, जो पराई स्त्री को ले लूँ?" राजा को इतनी व्याकुलता हुई कि वह कुछ दिन में मर गया। सेनापति ने अपने गुरु को सब हाल सुनाकर पूछा कि अब मैं क्या करूँ? गुरु ने कहा, "सेवक का धर्म है कि स्वामी के लिए जान दे दे।" राजा की चिता तैयार हुई। सेनापति वहाँ गया और उसमें कूद पड़ा। जब उन्मादिनी को यह बात मालूम हुई तो वह पति के साथ जल जाना धर्म समझकर चिता के पास पहुँची और उसमें जाकर भस्म हो गयी। इतना कहकर बेताल ने पूछा, "राजन्, बताओ, सेनापति और राजा में कौन अधिक साहसी था?" राजा ने कहा, "राजा अधिक साहसी था; क्योंकि उसने राजधर्म पर दृढ़ रहने के लिए उन्मादिनी को उसके पति के कहने पर भी स्वीकार नहीं किया और अपने प्राणों को त्याग दिया। सेनापति कुलीन सेवक था। अपने स्वामी की भलाई में उसका प्राण देना अचरज की बात नहीं। असली काम तो राजा ने किया कि प्राण छोड़कर भी राजधर्म नहीं छोड़ा।" राजा का यह उत्तर सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा उसे पुन: पकड़कर लाया और तब उसने यह कहानी सुनायी।

    17: बेताल पच्चीसी : सोलहवीं कहानी : सबसे बड़ा काम किसने किया : Sabse bada kaam kisne kiya

    Play Episode Listen Later Apr 16, 2018 5:04


    सबसे बड़ा काम किसने किया? - बेताल पच्चीसी सोलहवीं कहानी|| हिमाचल पर्वत पर गंधर्वों का एक नगर था, जिसमें जीमूतकेतु नामक राजा राज करता था। उसके एक लड़का था, जिसका नाम जीमूतवाहन था। बाप-बेटे दोनों भले थे। धर्म-कर्म मे लगे रहते थे। इससे प्रजा के लोग बहुत स्वच्छन्द हो गये और एक दिन उन्होंने राजा के महल को घेर लिया। राजकुमार ने यह देखा तो पिता से कहा कि आप चिन्ता न करें। मैं सबको मार भगाऊँगा। राजा बोला, "नहीं, ऐसा मत करो। युधिष्ठिर भी महाभारत करके पछताये थे।" इसके बाद राजा अपने गोत्र के लोगों को राज्य सौंप राजकुमार के साथ मलयाचल पर जाकर मढ़ी बनाकर रहने लगा। वहाँ जीमूतवाहन की एक ऋषि के बेटे से दोस्ती हो गयी। एक दिन दोनों पर्वत पर भवानी के मन्दिर में गये तो दैवयोग से उन्हें मलयकेतु राजा की पुत्री मिली। दोनों एक-दूसरे पर मोहित हो गये। जब कन्या के पिता को मालूम हुआ तो उसने अपनी बेटी उसे ब्याह दी। एक रोज़ की बात है कि जीमूतवाहन को पहाड़ पर एक सफ़ेद ढेर दिखाई दिया। पूछा तो मालूम हुआ कि पाताल से बहुत-से नाग आते हैं, जिन्हें गरुड़ खा लेता है। यह ढेर उन्हीं की हड्डियों का है। उसे देखकर जीमूतवाहन आगे बढ़ गया। कुछ दूर जाने पर उसे किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी। पास गया तो देखा कि एक बुढ़िया रो रही है। कारण पूछा तो उसने बताया कि आज उसके बेटे शंखचूड़ नाग की बारी है। उसे गरुड़ आकर खा जायेगा। जीमूतवाहन ने कहा, "माँ, तुम चिन्ता न करो, मैं उसकी जगह चला जाऊँगा।" बुढ़िया ने बहुत समझाया, पर वह न माना। इसके बाद गरुड़ आया और उसे चोंच में पकड़कर उड़ा ले गया। संयोग से राजकुमार का बाजूबंद गिर पड़ा, जिस पर राजा का नाम खुदा था। उस पर खून लगा था। राजकुमारी ने उसे देखा। वह मूर्च्छित हो गयी। होश आने पर उसने राजा और रानी को सब हाल सुनाया। वे बड़े दु:खी हुए और जीमूतवाहन को खोजने निकले। तभी उन्हें शंखचूड़ मिला। उसने गरुड़ को पुकार कर कहा, "हे गरुड़! तू इसे छोड़ दे। बारी तो मेरी थी।" गरुड़ ने राजकुमार से पूछा, "तू अपनी जान क्यों दे रहा है?" उसने कहा, "उत्तम पुरुष को हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए।" यह सुनकर गरुड़ बहुत खुश हुआ उसने राजकुमार से वर माँगने को कहा। जीमूतवाहन ने अनुरोध किया कि सब साँपों को जिला दो। गरुड़ ने ऐसा ही किया। फिर उसने कहा, "तुझे अपना राज्य भी मिल जायेगा।" इसके बाद वे लोग अपने नगर को लौट आये। लोगों ने राजा को फिर गद्दी पर बिठा दिया। इतना कहकर बेताल बोला, "हे राजन् यह बताओ, इसमें सबसे बड़ा काम किसने किया?"राजा ने कहा "शंखचूड़ ने?" बेताल ने पूछा, "कैसे?" राजा बोला, "जीमूतवाहन जाति का क्षत्री था। प्राण देने का उसे अभ्यास था। लेकिन बड़ा काम तो शंखचूड़ ने किया, जो अभ्यास न होते हुए भी जीमूतवाहन को बचाने के लिए अपनी जान देने को तैयार हो गया।" इतना सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा उसे लाया तो उसने फिर एक कहानी सुनायी।

    16: बेताल पच्चीसी : पन्द्र्हवी कहानी : क्या चोरी की गयी चीज़ पर चोर का अधिकार होता है : Kya chori kee gayi cheez pr chor ka adhikar hota hai

    Play Episode Listen Later Apr 15, 2018 5:49


    क्या चोरी की गयी चीज़ पर चोर का अधिकार होता है: बेताल पच्चीसी पन्द्रहवीं कहानी नेपाल देश में शिवपुरी नामक नगर मे यशकेतु नामक राजा राज करता था। उसके चन्द्रप्रभा नाम की रानी और शशिप्रभा नाम की लड़की थी। जब राजकुमारी बड़ी हुई तो एक दिन वसन्त उत्सव देखने बाग़ में गयी। वहाँ एक ब्राह्मण का लड़का आया हुआ था। दोनों ने एक-दूसरे को देखा और प्रेम करने लगे। इसी बीच एक पागल हाथी वहाँ दौड़ता हुआ आया। ब्राह्मण का लड़का राजकुमारी को उठाकर दूर ले गया और हाथी से बचा दिया। शशिप्रभा महल में चली गयी; पर ब्राह्मण के लड़के के लिए व्याकुल रहने लगी। उधर ब्राह्मण के लड़के की भी बुरी दशा थी। वह एक सिद्धगुरू के पास पहुँचा और अपनी इच्छा बतायी। उसने एक योग-गुटिका अपने मुँह में रखकर ब्राह्मण का रूप बना लिया और एक गुटिका ब्राह्मण के लड़के के मुँह में रखकर उसे सुन्दर लड़की बना दिया। राजा के पास जाकर कहा, "मेरा एक ही बेटा है। उसके लिए मैं इस लड़की को लाया था; पर लड़का न जाने कहाँ चला गया। आप इसे यहाँ रख ले। मैं लड़के को ढूँढ़ने जाता हूँ। मिल जाने पर इसे ले जाऊँगा।" सिद्धगुरु चला गया और लड़की के भेस में ब्राह्मण का लड़का राजकुमार के पास रहने लगा। धीरे-धीरे दोनों में बड़ा प्रेम हो गया। एक दिन राजकुमारी ने कहा, "मेरा दिल बड़ा दुखी रहता है। एक ब्राह्मण के लड़के ने पागल हाथी से मरे प्राण बचाये थे। मेरा मन उसी में रमा है।" इतना सुनकर उसने गुटिका मुँह से निकाल ली और ब्राह्मण-कुमार बन गया। राजकुमार उसे देखकर बहुत प्रसन्न हुई। तबसे वह रात को रोज़ गुटिका निकालकर लड़का बन जाता, दिन में लड़की बना रहता। दोनों ने चुपचाप विवाह कर लिया। कुछ दिन बाद राजा के साले की कन्या मृगांकदत्ता का विवाह दीवान के बेटे के साथ होना तय हुआ। राजकुमारी अपने कन्या-रूपधार ब्राह्मणकुमार के साथ वहाँ गयी। संयोग से दीवान का पुत्र उस बनावटी कन्या पर रीझ गया। विवाह होने पर वह मृगांकदत्ता को घर तो ले गया; लेकिन उसका हृदय उस कन्या के लिए व्याकुल रहने लगा उसकी यह दशा देखकर दीवान बहुत हैरान हुआ। उसने राजा को समाचार भेजा। राजा आया। उसके सामने सवाल थ कि धरोहर के रूप में रखी हुई कन्या को वह कैसे दे दे? दूसरी ओर यह मुश्किल कि न दे तो दीवान का लड़का मर जाये। बहुत सोच-विचार के बाद राजा ने दोनों का विवाह कर दिया। बनावटी कन्या ने यह शर्त रखी कि चूँकि वह दूसरे के लिए लायी गयी थी, इसलिए उसका यह पति छ: महीने तक यात्रा करेगा, तब वह उससे बात करेगी। दीवान के लड़के ने यह शर्त मान ली। विवाह के बाद वह उसे मृगांकदत्ता के पास छोड़ तीर्थ-यात्रा चला गया। उसके जाने पर दोनों आनन्द से रहने लगे। ब्राह्मणकुमार रात में आदमी बन जाता और दिन में कन्या बना रहता। जब छ: महीने बीतने को आये तो वह एक दिन मृगांकदत्ता को लेकर भाग गया। उधर सिद्धगुरु एक दिन अपने मित्र शशि को युवा पुत्र बनाकर राजा के पास लाया और उस कन्या को माँगा। शाप के डर के मारे राजा ने कहा, "वह कन्या तो जाने कहाँ चली गयी। आप मेरी कन्या से इसका विवाह कर दें।" वह राजी हो गया और राजकुमारी का विवाह शशि के साथ कर दिया। घर आने पर ब्राह्मणकुमार ने कहा, "यह राजकुमारी मेरी स्त्री है। मैंने इससे गंधर्व-रीति से विवाह किया है।" शशि ने कहा, "यह मेरी स्त्री है, क्योंकि मैंने सबके सामने विधि-पूर्वक ब्याह किया है।" बेताल ने पूछा, "शशि दोनों में से किस की पत्नी है?" राजा ने कहा, "मेरी राय में वह शशि की पत्नी है, क्योंकि राजा ने सबके सामने विधिपूर्वक विवाह किया था। ब्राह्मणकुमार ने तो चोरी से ब्याह किया था। चोरी की चीज़ पर चोर का अधिकार नहीं होता।" इतना सुनना था कि बेताल गायब हो गया और राजा को जाकर फिर उसे लाना पड़ा। रास्ते में बेताल ने फिर एक कहानी सुनायी।

    15: बेताल पच्चीसी : चौदहवीं कहानी : चोर ज़ोर से रोया फिर हंसा क्यों : Chor zor se roya fir hansa kyo

    Play Episode Listen Later Apr 14, 2018 4:31


    चोर ज़ोर-ज़ोर से क्यों रोया और फिर हँसा? - बेताल पच्चीसी - चौदहवीं कहानी।। अयोध्या नगरी में वीरकेतु नाम का राजा राज करता था। उसके राज्य में रत्नदत्त नाम का एक साहूकार था, जिसके रत्नवती नाम की एक लड़की थी। वह सुन्दर थी। वह पुरुष के भेस में रहा करती थी और किसी से भी ब्याह नहीं करना चाहती थी। उसका पिता बड़ा दु:खी था। इसी बीच नगर में खूब चोरियाँ होने लगी। प्रजा दु:खी हो गयी। कोशिश करने पर भी जब चोर पकड़ में न आया तो राजा स्वयं उसे पकड़ने के लिए निकला। एक दिन रात को जब राजा भेष बदलकर घूम रहा था तो उसे परकोटे के पास एक आदमी दिखाई दिया। राजा चुपचाप उसके पीछे चल दिया। चोर ने कहा, "तब तो तुम मेरे साथी हो। आओ, मेरे घर चलो।" दोनो घर पहुँचे। उसे बिठलाकर चोर किसी काम के लिए चला गया। इसी बीच उसकी दासी आयी और बोली, "तुम यहाँ क्यों आये हो? चोर तुम्हें मार डालेगा। भाग जाओ।" राजा ने ऐसा ही किया। फिर उसने फौज लेकर चोर का घर घेर लिया। जब चोर ने ये देखा तो वह लड़ने के लिए तैयार हो गया। दोनों में खूब लड़ाई हुई। अन्त में चोर हार गया। राजा उसे पकड़कर राजधानी में लाया और से सूली पर लटकाने का हुक्म दे दिया। संयोग से रत्नवती ने उसे देखा तो वह उस पर मोहित हो गयी। पिता से बोली, "मैं इसके साथ ब्याह करूँगी, नहीं तो मर जाऊँगी। पर राजा ने उसकी बात न मानी और चोर सूली पर लटका दिया। सूली पर लटकने से पहले चोर पहले तो बहुत रोया, फिर खूब हँसा। रत्नवती वहाँ पहुँच गयी और चोर के सिर को लेकर सती होने को चिता में बैठ गयी। उसी समय देवी ने आकाशवाणी की, "मैं तेरी पतिभक्ति से प्रसन्न हूँ। जो चाहे सो माँग।" रत्नवती ने कहा, "मेरे पिता के कोई पुत्र नहीं है। सो वर दीजिए, कि उनसे सौ पुत्र हों।" देवी प्रकट होकर बोलीं, "यही होगा। और कुछ माँगो।" वह बोली, "मेरे पति जीवित हो जायें।" देवी ने उसे जीवित कर दिया। दोनों का विवाह हो गया। राजा को जब यह मालूम हुआ तो उन्होंने चोर को अपना सेनापति बना लिया। इतनी कहानी सुनाकर बेताल ने पूछा, ‘हे राजन्, यह बताओ कि सूली पर लटकने से पहले चोर क्यों तो ज़ोर-ज़ोर से रोया और फिर क्यों हँसते-हँसते मर गया?" राजा ने कहा, "रोया तो इसलिए कि वह राजा रत्नदत्त का कुछ भी भला न कर सकेगा। हँसा इसलिए कि रत्नवती बड़े-बड़े राजाओं और धनिकों को छोड़कर उस पर मुग्ध होकर मरने को तैयार हो गयी। स्त्री के मन की गति को कोई नहीं समझ सकता।"   इतना सुनकर बेताल गायब हो गया और पेड़ पर जा लटका। राजा फिर वहाँ गया और उसे लेकर चला तो रास्ते में उसने यह कथा कही।

    14: बेताल पच्चीसी : तेरहवीं कहानी : अपराधी कौन : Apradhi kaun

    Play Episode Listen Later Apr 13, 2018 3:59


    अपराधी कौन? - बेताल पच्चीसी - तेरहवीं कहानी बनारस में देवस्वामी नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसके हरिदास नाम का पुत्र था। हरिदास की बड़ी सुन्दर पत्नी थी। नाम था लावण्यवती। एक दिन वे महल के ऊपर छत पर सो रहे थे कि आधी रात के समय एक गंधर्व-कुमार आकाश में घूमता हुआ उधर से निकला। वह लावण्यवती के रूप पर मुग्ध होकर उसे उड़ाकर ले गया। जागने पर हरिदास ने देखा कि उसकी स्त्री नही है तो उसे बड़ा दुख हुआ और वह मरने के लिए तैयार हो गया। लोगों के समझाने पर वह मान तो गया; लेकिन यह सोचकर कि तीरथ करने से शायद पाप दूर हो जाय और स्त्री मिल जाय, वह घर से निकल पड़ा। चलते-चलते वह किसी गाँव में एक ब्राह्मण के घर पहुँचा। उसे भूखा देख ब्राह्मणी ने उसे कटोरा भरकर खीर दे दी और तालाब के किनारे बैठकर खाने को कहा। हरिदास खीर लेकर एक पेड़ के नीचे आया और कटोरा वहाँ रखकर तालाब मे हाथ-मुँह धोने गया। इसी बीच एक बाज किसी साँप को लेकर उसी पेड़ पर आ बैठा ओर जब वह उसे खाने लगा तो साँप के मुँह से ज़हर टपककर कटोरे में गिर गया। हरिदास को कुछ पता नहीं था। वह उस खीर को खा गया। ज़हर का असर होने पर वह तड़पने लगा और दौड़ा-दौड़ा ब्राह्मणी के पास आकर बोला, "तूने मुझे जहर दे दिया है।" इतना कहने के बाद हरिदास मर गया। पति ने यह देखा तो ब्राह्मणी को ब्रह्मघातिनी कहकर घर से निकाल दिया। इतना कहकर बेताल बोला, "राजन्! बताओ कि साँप, बाज, और ब्राह्मणी, इन तीनों में अपराधी कौन है?" राजा ने कहा, "कोई नहीं। साँप तो इसलिए नहीं क्योंकि वह शत्रु के वश में था। बाज इसलिए नहीं कि वह भूखा था। जो उसे मिल गया, उसी को वह खाने लगा। ब्राह्मणी इसलिए नहीं कि उसने अपना धर्म समझकर उसे खीर दी थी और अच्छी दी थी। जो इन तीनों में से किसी को दोषी कहेगा, वह स्वयं दोषी होगा। इसलिए अपराधी ब्राह्मणी का पति था जिसने बिना विचारे ब्राह्मणी को घर से निकाल दिया।" इतना सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा को वहाँ जाकर उसे लाना पड़ा। बेताल ने चलते-चलते नयी कहानी सनायी।

    13: बेताल पच्चीसी : बारहवीं कहानी : दीवान की मृत्यु क्यों : Diwan ki mritu kyo

    Play Episode Listen Later Apr 12, 2018 5:27


    दीवान की मृत्यु क्यूँ ? - बेताल पच्चीसी - बारहवीं कहानी| किसी ज़माने में अंगदेश मे यशकेतु नाम का राजा था। उसके दीर्घदर्शी नाम का बड़ा ही चतुर दीवान था। राजा बड़ा विलासी था। राज्य का सारा बोझ दीवान पर डालकर वह भोग में पड़ गया। दीवान को बहुत दु:ख हुआ। उसने देखा कि राजा के साथ सब जगह उसकी निन्दा होती है। इसलिए वह तीरथ का बहाना करके चल पड़ा। चलते-चलते रास्ते में उसे एक शिव-मन्दिर मिला। उसी समय निछिदत्त नाम का एक सौदागर वहाँ आया और दीवान के पूछने पर उसने बताया कि वह सुवर्णद्वीप में व्यापार करने जा रहा है। दीवान भी उसके साथ हो लिया। दोनों जहाज़ पर चढ़कर सुवर्णद्वीप पहुँचे और वहाँ व्यापार करके धन कमाकर लौटे। रास्ते में समुद्र में एक दीवान को एक कृल्पवृक्ष दिखाई दिया। उसकी मोटी-मोटी शाखाओं पर रत्नों से जुड़ा एक पलंग बिछा था। उस पर एक रूपवती कन्या बैठी वीणा बजा रही थी। थोड़ी देर बाद वह ग़ायब हो गयी। पेड़ भी नहीं रहा। दीवान बड़ा चकित हुआ। दीवान ने अपने नगर में लौटकर सारा हाल कह सुनाया। इस बीच इतने दिनों तक राज्य को चला कर राजा सुधर गया था और उसने विलासिता छोड़ दी थी। दीवान की कहानी सुनकर राजा उस सुन्दरी को पाने के लिए बेचैन हो उठा और राज्य का सारा काम दीवान पर सौंपकर तपस्वी का भेष बनाकर वहीं पहुँचा। पहुँचने पर उसे वही कल्पवृक्ष और वीणा बजाती कन्या दिखाई दी। उसने राजा से पूछा, "तुम कौन हो?" राजा ने अपना परिचय दे दिया। कन्या बोली, "मैं राजा मृगांकसेन की कन्या हूँ। मृगांकवती मेरा नाम है। मेरे पिता मुझे छोड़कर न जाने कहाँ चले गये।" राजा ने उसके साथ विवाह कर लिया। कन्या ने यह शर्त रखी कि वह हर महीने के शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष की चतुर्दशी और अष्टमी को कहीं जाया करेगी और राजा उसे रोकेगा नहीं। राजा ने यह शर्त मान ली। इसके बाद कृष्णपक्ष की चतुर्दशी आयी तो राजा से पूछकर मृगांकवती वहाँ से चली। राजा भी चुपचाप पीछे-पीछे चल दिया। अचानक राजा ने देखा कि एक राक्षस निकला और उसने मृगांकवती को निगल लिया। राजा को बड़ा गुस्सा आया और उसने राक्षस का सिर काट डाला। मृगांकवती उसके पेट से जीवित निकल आयी। राजा ने उससे पूछा कि यह क्या माजरा है तो उसने कहा, "महाराज, मेरे पिता मेरे बिना भोजन नहीं करते थे। मैं अष्टमी और चतुदर्शी के दिन शिव पूजा यहाँ करने आती थी। एक दिन पूजा में मुझे बहुत देर हो गयी। पिता को भूखा रहना पड़ा। देर से जब मैं घर लौटी तो उन्होंने गुस्से में मुझे शाप दे दिया कि अष्टमी और चतुर्दशी के दिन जब मैं पूजन के लिए आया करूँगी तो एक राक्षस मुझे निगल जाया करेगा और मैं उसका पेट चीरकर निकला करूँगी। जब मैंने उनसे शाप छुड़ाने के लिए बहुत अनुनय की तो वह बोले, "जब अंगदेश का राजा तेरा पति बनेगा और तुझे राक्षस से निगली जाते देखेगा तो वह राक्षस को मार देगा। तब तेरे शाप का अन्त होगा।" इसके बाद राजा उसे लेकर नगर में आया। दीवान ने यह देखा तो उसका हृदय फट गया। और वह मर गया। इतना कहकर बेताल ने पूछा, "हे राजन्! यह बताओ कि स्वामी की इतनी खुशी के समय दीवान का हृदय फट गया?" राजा ने कहा, "इसलिए कि उसने सोचा कि राजा फिर स्त्री के चक्कर में पड़ गया और राज्य की दुर्दशा होगी।" राजा का इतना कहना था कि बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा ने वहाँ जाकर फिर उसे साथ लिया तो रास्ते में बेताल ने यह कहानी सुनायी।

    12: बेताल पच्चीसी : ग्यारहवीं कहानी : सबसे अधिक सुकुमार कौन : Sabse adhik sukumaar kaun

    Play Episode Listen Later Apr 11, 2018 4:30


    सबसे अधिक सुकुमार कौन? - बेताल पच्चीसी ग्यारहवीं कहानी!! गौड़ देश में वर्धमान नाम का एक नगर था, जिसमें गुणशेखर नाम का राजा राज करता था। उसके अभयचन्द्र नाम का दीवान था। उस दीवान के समझाने से राजा ने अपने राज्य में शिव और विष्णु की पूजा, गोदान, भूदान, पिण्डदान आदि सब बन्द कर दिये। नगर में डोंडी पिटवा दी कि जो कोई ये काम करेगा, उसका सबकुछ छीनकर उसे नगर से निकाल दिया जायेगा। एक दिन दीवान ने कहा, "महाराज, अगर कोई किसी को दु:ख पहुँचाता है और उसके प्राण लेता है तो पाप से उसका जन्म-मरण नहीं छूटता। वह बार-बार जन्म लेता और मरता है। इससे मनुष्य का जन्म पाकर धर्म बढ़ाना चाहिए। आदमी को हाथी से लेकर चींटी तक सबकी रक्षा करनी चाहिए। जो लोग दूसरों के दु:ख को नहीं समझते और उन्हें सताते हैं, उनकी इस पृथ्वी पर उम्र घटती जाती है और वे लूले-लँगड़े, काने, बौने होकर जन्म लेते हैं।" राजा ने कहा "ठीक है।" अब दीवान जैसे कहता, राजा वैसे ही करता। दैवयोग से एक दिन राजा मर गया। उसकी जगह उसका बेटा धर्मराज गद्दी पर बैठा। एक दिन उसने किसी बात पर नाराज होकर दीवान को नगर से बाहर निकलवा दिया। कुछ दिन बाद, एक बार वसन्त ऋतु में वह इन्दुलेखा, तारावली और मृगांकवती, इन तीनों रानियों को लेकर बाग़ में गया। वहाँ जब उसने इन्दुलेखा के बाल पकड़े तो उसके कान में लगा हुआ कमल उसकी जाँघ पर गिर गया। कमल के गिरते ही उसकी जाँघ में घाव हो गया और वह बेहोश हो गयी। बहुत इलाज हुआ, तब वह ठीक हुई। इसके बाद एक दिन की बात कि तारावली ऊपर खुले में सो रही थी। चांद निकला। जैसे ही उसकी चाँदनी तारावली के शरीर पर पड़ी, फफोले उठ आये। कई दिन के इलाज के बाद उसे आराम हुआ। इसके बाद एक दिन किसी के घर में मूसलों से धान कूटने की आवाज हुई। सुनते ही मृगांकवती के हाथों में छाले पड़ गये। इलाज हुआ, तब जाकर ठीक हुए। इतनी कथा सुनाकर बेताल ने पूछा, "महाराज, बताइए, उन तीनों में सबसे ज्यादा कोमल कौन थी?" राजा ने कहा, "मृगांकवती, क्योंकि पहली दो के घाव और छाले कमल और चाँदनी के छूने से हुए थे। तीसरी ने मूसल को छुआ भी नहीं और छाले पड़ गये। वही सबसे अधिक सुकुमार हुई।" राजा के इतना कहते ही बेताल नौ-दो ग्यारह हो गया। राजा बेचारा फिर मसान में गया और जब वह उसे लेकर चला तो उसने एक और कहानी सुनायी।

    11: बेताल पच्चीसी : दसवीं कहानी-सबसे अधिक त्यागी कौन, Sabse adhik tyagi kaun

    Play Episode Listen Later Apr 10, 2018 5:00


    दसवीं कहानी-सबसे अधिक त्यागी कौन गांधार देश में ब्रह्मदत्त नाम का राजा राज करता। उसके राज्य में एक वैश्य था, जिसका नाम हिरण्यदत्त था। उसके मदनसेना नाम की एक कन्या थी। एक दिन मदनसेना अपनी सखियों के साथ बाग़ में गयी। वहाँ संयोग से सोमदत्त नामक सेठ का लड़का धर्मदत्त अपने मित्र के साथ आया हुआ था। वह मदनसेना को देखते ही उसपर ऐसा मोहित हुआ की उससे प्रेम करने लगा। घर लौटकर वह सारी रात उसके लिए बैचेन रहा। अगले दिन वह फिर बाग़ में गया। मदनसेना वहाँ अकेली बैठी थी। उसके पास जाकर धर्मदत्त ने अपने प्रेम का प्रस्ताव रखा परन्तु मदनसेना ने इंकार कर दिया। बहुत कहने पर भी जब मदनसेना न मानी तब उसने कहा, “तुम मुझसे प्यार नहीं करोगी तो मैं प्राण दे दूँगा।” और पास ही बह रही एक नदी में कूद गया। कुछ देर तक तो मदनसेना सोचती रही कि जब डूबने लगेगा तो खुद तैरकर बाहर निकल आयेगा लेकिन जब युवक डूबने के पश्चात भी तैरकर बाहर नहीं आया तब मदनसेना नदी में कूद पड़ी और उस युवक को बचा लायीं। “तुम कितने मूर्ख हो, यदि नदी में डूब जाते तो…तुम तैरकर बाहर क्यों नहीं आये।” “मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकता। मैं मरने के लिए ही कूदा था, मुझे तैरना नहीं आता।” मदनसेना का ह्रदय द्रवित हो गया वो कुछ न बोल सकी। फिर धर्मदत्त बोला, “मदनसेना मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ, मैं पूर्णिमा के दिन तुम्हारी प्रतिक्षा करूंगा, तुम आओगी।” “यदि ईश्वर ने चाहा तो जरूर आऊंगी” इतना कहकर मदनसेना चली गयी। उधर मदनसेना को देखने उसके घर लड़के वाले आये हुए थे। मदनसेना के माता-पिता को लड़का बहुत पसंद था और उन सभी को मदनसेना। बात कुछ ऐसी थी कि लड़के की दादी का अंत समय निकट था और वो मरने से पहले अपने पोते का विवाह होते देखना चाहती थी इसलिए आनन-फानन में दो दिनों में ही विवाह संपन्न करने का फैसला लिया गया। मदनसेना अपने माता-पिता की इच्छा को इंकार न कर सकी। उसका विवाह हो गया और वह जब अपने पति के पास गयी तो उदास होकर बोली, “आप मुझ पर विश्वास करें और मुझे अभय दान दें तो एक बात कहूँ।” पति ने विश्वास दिलाया तो उसने सारी बात कह सुनायी। सुनकर पति ने उसे चरित्रहीन समझा और उसे मन ही मन त्यागकर उसने जाने की आज्ञा दे दी और उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। मदनसेना अच्छे-अच्छे कपड़े और गहने पहन कर चली। रास्ते में उसे एक चोर मिला। उसने उसका आँचल पकड़ लिया। मदनसेना ने कहा, “तुम मुझे छोड़ दो। मेरे गहने लेना चाहते हो तो लो।” चोर बोला, “मैं तो तुम्हें चाहता हूँ।” मदनसेना ने उसे सारा हाल कहा, “पहले मैं वहां हो आऊँ, तब तुम्हारे पास आऊँगी।” चोर ने उसे छोड़ दिया और वह भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। मदनसेना धर्मदत्त के पास पहुँची। उसे देखकर वह बड़ा खुश हुआ और उसने पूछा, “तुम अपने पति से बचकर कैसे आयी?” मदनसेना ने सारी बात सच-सच कह दी। धर्मदत्त पर उसका बड़ा गहरा असर पड़ा। उसे मदनसेना के साथ समय बिताना अच्छा नहीं लग रहा था। उसने मदनसेना को समझाकर वापस उसे घर जाने को कहा। मदनसेना चल पड़ी। फिर वह चोर के पास आयी। चोर सब कुछ जानकर ब़ड़ा प्रभावित हुआ और उसे अपने आप पर ग्लानि महसूस हुयी। उसने मदनसेना को बिना कुछ किये जाने दिया। इस प्रकार मदनसेना सबसे बचकर पति के पास आ गयी। पति ने भी सारा हाल देख लिया था वह बहुत प्रसन्न हुआ और उसके साथ आनन्द से रहने लगा। इतना कहकर बेताल बोला, “बताओ विक्रम! बताओ, अब तुम्हारा न्याय क्या कहता है। पति, धर्मदत्त और चोर, इनमें से कौन अधिक त्यागी है?” विक्रम ने कहा, “जो त्याग बिना स्वार्थ के किया जाता है वही सच्चा त्याग कहलाता हैं। चोर का त्याग ही सबसे बड़ा त्याग हैं। मदनसेना का पति तो उसे दूसरे आदमी पर रुझान होने से त्याग देता है। धर्मदत्त उसे इसलिए छोड़ता है कि उसका मन बदल गया था, फिर उसे यह डर भी रहा होगा कि कहीं उसका पति उसे राजा से कहकर दण्ड न दिलवा दे। लेकिन चोर का किसी को पता न था, फिर भी उसने उसे छोड़ दिया, न तो गहने ही लिए। इसलिए वह उन दोनों से अधिक त्यागी था।” राजा का यह जवाब सुनकर बेताल बोला- “तुम सच में बड़े न्यायी हो, तुम्हारा न्याय विश्व में अमर होगा। और फिर पेड़ पर जा लटका। राजा विक्रमादित्य फिर उसके पीछे तेज कदमों से चल पड़े।

    10: बेताल पच्चीसी : नवीं कहानी-सर्वश्रेष्ठ वर कौन, Sarvshreshth ver kaun

    Play Episode Listen Later Apr 9, 2018 4:04


    नवीं कहानी-सर्वश्रेष्ठ वर कौन चम्मापुर नाम का एक नगर था, जिसमें चम्पकेश्वर नाम का राजा राज करता था। उसके सुलोचना नाम की रानी थी और शशिबाला नाम की लड़की। राजकुमारी यथा नाम तथा गुण थी। जब वह बड़ी हुई तो उसका रूप और निखर गया। उसके यौवन के चर्चे दूर-दूर तक होने लगे। राजा और रानी को उसके विवाह की चिन्ता हुई। चारों ओर इसकी खबर फैल गयी। आस-पड़ोस के देशों से रिश्ते आने लगे। दूर-दराज़ के बहुत-से राजाओं ने अपनी-अपनी तस्वीरें बनवाकर भेंजी, पर राजकुमारी ने किसी को भी पसन्द न किया। राजा ने कहा, “बेटी, कहो तो स्वयंवर करूँ?” लेकिन वह राजी नहीं हुई। आख़िर राजा ने तय किया कि वह उसका विवाह उस आदमी के साथ करेगा, जो रूप, बल और ज्ञान, इन तीनों में बढ़ा-चढ़ा होगा। संयोगवश एक दिन राजा के पास चार देश के चार वर आये। वैशाली के राजकुमार ने कहा, “मेरे जैसा रेश्म का वस्त्र कोई तैयार नहीं कर सकता, मैं एक कपड़ा बनाकर पाँच लाख में बेचता हूँ, इस विद्या को मेरे अलावा और कोई नहीं जानता।” और उसने राजा को कई रेशमी वस्त्र दिये। सभी, वस्त्रों की चमक-दमक देखकर आश्चर्यचकित रह गये। अवन्ति के राजकुमार ने कहा, “मैं जल-थल के पशुओं की भाषा जानता हूँ। इसके साथ ही मैं शरीर के सभी अंगों के बारे में भी जानता हूँ। राजकुमारी को कभी शारीरिक कष्ट नहीं होगा। चोल देश के राजकुमार ने कहा, “मैं शब्दवेधी तीर चलाना जानता हूँ। धनुर्विद्या में मुझे कोई परास्त नहीं कर सकता।” बंग देश के राजकुमार ने कहा, “मैं इतना शास्त्र पढ़ा हूँ कि मेरा कोई मुकाबला नहीं कर सकता। मुझे वेदों तथा पुराणों से लेकर गीता तक सभी कंठस्थ हैं।” चारों की बातें सुनकर राजा सोच में पड़ गये। वे सुन्दरता में भी एक-से-एक बढ़कर थे। उसने राजकुमारी को बुलाकर उनके गुण और रूप का वर्णन किया, पर वह चुप रही। इतना कहकर बेताल बोला, “राजन्, तुम बताओ कि राजकुमारी को किससे विवाह करना चाहिए? नहीं बताओगे तो तुम्हारी खोपड़ी फट जाएगी ये मेरा श्राप हैं” विक्रम बोला, “जो कपड़ा बनाकर बेचता है, वह शूद्र है। जो पशुओं की भाषा तथा शरीर के अंगों की जानकारी रखता है, वह वैश्य है। जो शास्त्र पढ़ा है, ब्राह्मण है; पर जो शब्दवेधी तीर चलाना जानता है, वह राजकुमारी का सजातीय है और उसके योग्य है। राजकुमारी उसी को मिलनी चाहिए।” राजा के इतना कहते ही बेताल भयानक अट्टहास करते हुए गायब हो गया। विक्रम फिर उसके पीछे-पीछे पीपल के पेड़ की तरफ चल पड़े।

    9: बेताल पच्चीसी : आठवीं कहानी-सबसे बढ़कर कौन, Sabse badhker kaun

    Play Episode Listen Later Apr 8, 2018 4:22


    आठवीं कहानी-सबसे बढ़कर कौन अंग देश के एक गाँव मे एक धनी ब्राह्मण रहता था। उसके तीन पुत्र थे। एक बार ब्राह्मण ने एक यज्ञ करना चाहा। उसके लिए एक समुद्री कछुए की जरूरत हुई। उसने तीनों भाइयों को कछुआ लाने को कहा। वे तीनों समुद्र पर पहुँचे। वहाँ उन्हें एक कछुआ मिल गया। बड़े ने कहा, “मैं भोजनचंग हूँ, इसलिए कछुए को नहीं छुऊँगा।” मझला बोला, “मैं नारीचंग हूँ, मैं नहीं ले जाऊँगा।” सबसे छोटा बोला, “मैं शैयाचंग हूँ, सो मैं नहीं ले जाऊँगा।” वे तीनों इस बहस में पड़ गये कि उनमें कौन बढ़कर है। जब वे आपस में इसका फैसला न कर सके तो राजा के पास पहुँचे। राजा ने कहा, “आप लोग रुकें। मैं तीनों की अलग-अलग जाँच करूँगा।” इसके बाद राजा ने बढ़िया भोजन तैयार कराया और तीनों खाने बैठे। सबसे बड़े ने कहा, “मैं खाना नहीं खाऊँगा। इसमें मुर्दे की गन्ध आती है।” वह उठकर चला। राजा ने पता लगाया तो मालूम हुआ कि वह भोजन श्मशान के पास के खेत का बना था। राजा ने कहा, “तुम सचमुच भोजनचंग हो, तुम्हें भोजन की पहचान है।” रात के समय राजा ने एक सुन्दर स्त्री को मझले भाई के पास भेजा। ज्योंही वह वहाँ पहुँची कि मझले भाई ने कहा, “इसे हटाओ यहाँ से। इसके शरीर से बकरी की दूध की गंध आती है।” राजा ने यह सुनकर पता लगाया तो मालूम हुआ कि वह स्त्री बचपन में बकरी के दूध पर पली थी। राजा बड़ा खुश हुआ और बोला, “तुम सचमुच नारीचंग हो।” इसके बाद उसने तीसरे भाई को सोने के लिए सात गद्दों का पलंग दिया। जैसे ही वह उस पर लेटा कि एकदम चीखकर उठ बैठा। लोगों ने देखा, उसकी पीठ पर एक लाल रेखा खींची थी। राजा को ख़बर मिली तो उसने बिछौने को दिखवाया। सात गद्दों के नीचे उसमें एक बाल निकला। उसी से उसकी पीठ पर लाल लकीर हो गयी थीं। राजा को बड़ा अचरज हुआ उसने तीनों को एक-एक लाख अशर्फियाँ दीं। अब वे तीनों कछुए को ले जाना भूल गये, वहीं आनन्द से रहने लगे। इतना कहकर बेताल बोला, “हे राजन! तुम बताओ, उन तीनों में से बढ़कर कौन था?” राजा ने कहा, “मेरे विचार से सबसे बढ़कर शैयाचंग था, क्योंकि उसकी पीठ पर बाल का निशान दिखाई दिया और ढूँढ़ने पर बिस्तर में बाल पाया भी गया। बाकी दो के बारे में तो यह कहा जा सकता है कि उन्होंने किसी से पूछकर जान लिया होगा।” इतना सुनते ही बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा लौटकर वहाँ गया और उसे लेकर लौटा तो उसने अगली कहानी कही।

    8: बेताल पच्चीसी : सातवीं कहानी-किसका पुण्य बड़ा, Kiska Punya bada

    Play Episode Listen Later Apr 7, 2018 5:24


    सातवीं कहानी-किसका पुण्य बड़ा मिथलावती नाम की एक नगरी थी। उसमें गुणधिप नाम का राजा राज करता था। वह बड़ा ही प्रतापी और यशस्वी था उसे शिकार खेलने का बड़ा शौक था। एक दिन राजा शिकार खेलने चला। सैनिक भी साथ हो लिये। चलते-चलते राजा एक घने वन में पहुँचा। कुछ ही देर बाद राजा को एक मृग दिखाई दिया। वह उसके पीछे चल पड़ा। हिरण का पीछा करते-करते राजा के सैनिक उससे बिछड़ गये। राजा जंगल के बीचोंबीच पहुंच गया लेकिन हिरण पकड़ में नही आया। राजा ने पीछे मुड़ कर देखा दूर-दूर तक कोई नहीं था। उसके नौकर-चाकर, सैनिक, मंत्री सब बिछुड़ गये थे। “देखो, विक्रम भाग्य का खेल देखों।” राजा उस डरावनी जंगल में भी निडर था लेकिन उसे एक बात बड़ी बेचैन कर रही थीं वह थी भूख। भूख-प्यास के कारण राजा का बुरा हाल था तभी एक लकड़हारे ने राजा को टोका। राजा ने जब उस सुनसान जंगल में मनुष्य की आवाज सुनी तो बहुत प्रसन्न हुआ। राजा के पूछने पर लकड़हारे ने बताया, वह इस वन में लकड़ी काटने आता है। उसने राजा को भूखा देख अपना भोजन राजा को दिया। राजा अपनी त्रास मिटाने लगा और दोनों में बातचीत शुरू हुई। राजन्, सज्जनता हर मनुष्य को एक-दूसरे की मदद करने के लिए प्रेरित करती हैं और छ: बातें आदमी को हल्का करती हैं—खोटे नर की प्रीति, बिना कारण हँसी, स्त्री से विवाद, असज्जन स्वामी की सेवा, गधे की सवारी और बिना संस्कृत की भाषा। और हे राजा, ये पाँच चीज़ें आदमी के पैदा होते ही विधाता उसके भाग्य में लिख देता है—आयु, कर्म, धन, विद्या और यश। राजन्, जब तक आदमी का पुण्य उदय रहता है, तब तक उसके बहुत-से दास रहते हैं। जब पुण्य घट जाता है तो भाई भी बैरी हो जाते हैं। पर एक बात है, स्वामी की सेवा अकारथ नहीं जाती। कभी-न-कभी फल मिल ही जाता है।” यह सुन राजा के मन पर उसका बड़ा असर हुआ। जंगल से निकलने के बाद उस लकड़हारे को अपने साथ ले राजा नगर में लौट आये। राजा ने उसे अपने यहाँ सिपहसालार बना लिया। उसे बढ़िया-बढ़िया कपड़े और गहने दिये। एक दिन वो सिपहसालार किसी काम से कहीं गया। रास्ते में उसे देवी का मन्दिर मिला। उसने अन्दर जाकर देवी की पूजा की। जब वह बाहर निकला तो देखता क्या है, उसके पीछे एक सुन्दर स्त्री चली आ रही है। वह उसे देखते ही उसकी ओर आकर्षित हो गया। स्त्री ने कहा, “पहले तुम कुण्ड में स्नान कर आओ। फिर जो कहोगे, सो करूँगी।” इतना सुनकर सिपहसालार कपड़े उतारकर जैसे ही कुण्ड में घुसा और गोता लगाया कि अपने नगर में पहुँच गया। उसने जाकर राजा को सारा हाल कह-सुनाया। राजा ने कहा, “यह अचरज मुझे भी दिखाओ।” दोनों घोड़ों पर सवार होकर देवी के मन्दिर पर आये। अन्दर जाकर दर्शन किये और जैसे ही बाहर निकले कि वह स्त्री प्रकट हो गयी। राजा को देखते ही बोली, “महाराज, मैं आपके रूप पर मुग्ध हूँ। आप जो कहेंगे, वही करुँगी।” राजा भी उस रूपवती पर मुग्ध हो गये थे। राजा ने संभलकर कहा, “ऐसी बात है तो तू मेरे इस सेवक से विवाह कर ले।” स्त्री बोली, “यह नहीं होगा। मैं तो तुम्हें चाहती हूँ।” राजा ने कहा, “सज्जन लोग जो कहते हैं, उसे निभाते हैं। तुम अपने वचन का पालन करो।” इसके बाद राजा ने उसका विवाह अपने सेवक से करा दिया। इतना कहकर बेताल बोला, “हे राजन्! यह बताओ कि राजा और सेवक, दोनों में से किसका काम बड़ा हुआ? किसकी सज्जनता अधिक थी?” राजा ने कहा, “नौकर का।” बेताल ने पूछा, “सो कैसे?” राजा बोला, “उपकार करना राजा का तो धर्म ही था। इसलिए उसके उपकार करने में कोई खास बात नहीं हुई। लेकिन जिसका धर्म नहीं था, उसने उपकार किया तो उसका काम बढ़कर हुआ? इसलिये लकड़हारा कि ही सज्जनता ज्यादा है” इतना सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा जब उसे पुन: लेकर चला तो उसने राजा को राह में फिर एक कहानी सुनायी।

    7: बेताल पच्चीसी : छठी कहानी -पत्नी किसकी, Patni kiski

    Play Episode Listen Later Apr 6, 2018 5:59


    छठी कहानी -पत्नी किसकी धर्मपुर नाम की एक नगरी थी। उसमें धर्मशील नाम का राजा राज करता था। उसके अन्धक नाम का दीवान था। एक दिन दीवान ने कहा, “महाराज, एक मन्दिर बनवाकर देवी को बिठाकर पूजा की जाए तो बड़ा पुण्य मिलेगा।” राजा ने ऐसा ही किया। एक दिन देवी ने प्रसन्न होकर उससे वर माँगने को कहा। राजा के कोई सन्तान नहीं थी। उसने देवी से पुत्र माँगा। देवी बोली, “अच्छी बात है, तुझे बड़ा प्रतापी पुत्र प्राप्त होगा।” कुछ दिन बाद राजा को एक लड़का हुआ। सारे नगर में बड़ी खुशी मनायी गयी। एक दिन एक धोबी अपने मित्र के साथ उस नगर में आया। उसकी निगाह देवी के मन्दिर में पड़ी। उसने देवी को प्रणाम करने का इरादा किया। उसी समय उसे एक धोबी की लड़की दिखाई दी, जो बड़ी सुन्दर थी। उसे देखकर वह इतना पागल हो गया कि उसने मन्दिर में जाकर देवी से प्रार्थना की, “हे देवी! यह लड़की मुझे मिल जाये। अगर मिल गयी तो मैं अपना सिर तुझपर चढ़ा दूँगा।” इसके बाद वह हर घड़ी बेचैन रहने लगा। उसके मित्र ने उसके पिता से सारा हाल कहा। अपने बेटे की यह हालत देखकर वह लड़की के पिता के पास गया और उसके अनुरोध करने पर दोनों का विवाह हो गया। विवाह के कुछ दिन बाद लड़की के पिता के यहाँ उत्सव हुआ। इसमें शामिल होने के लिए न्यौता आया। मित्र को साथ लेकर धोबी और उसकी पत्नी चले। रास्ते में उसी देवी का मन्दिर पड़ा तो धोबी को अपना वादा याद आ गया। उसने मित्र और स्त्री को थोड़ी देर रुकने को कहा और स्वयं जाकर देवी को प्रणाम कर के इतने ज़ोर-से तलवार मारी कि उसका सिर धड़ से अलग हो गया। देर हो जाने पर जब उसका मित्र मन्दिर के अन्दर गया तो देखता क्या है कि उसके मित्र का सिर धड़ से अलग पड़ा है। उसने सोचा कि यह दुनिया बड़ी बुरी है। कोई यह तो समझेगा नहीं कि इसने अपने-आप शीश चढ़ाया है। सब यही कहेंगे कि इसकी सुन्दर स्त्री को हड़पने के लिए मैंने इसकी गर्दन काट दी। इससे कहीं मर जाना अच्छा है। यह सोच उसने तलवार लेकर अपनी गर्दन उड़ा दी। उधर बाहर खड़ी-खड़ी स्त्री हैरान हो गयी तो वह मन्दिर के भीतर गयी। देखकर चकित रह गयी। सोचने लगी कि दुनिया कहेगी, यह बुरी औरत होगी, इसलिए दोनों को मार आयी इस बदनामी से मर जाना अच्छा है। यह सोच उसने तलवार उठाई और जैसे ही गर्दन पर मारनी चाही कि देवी ने प्रकट होकर उसका हाथ पकड़ लिया और कहा, “मैं तुझपर प्रसन्न हूँ। जो चाहो, सो माँगो।” स्त्री बोली, “हे देवी! इन दोनों को जिला दो।” देवी ने कहा, “अच्छा, तुम दोनों के सिर मिलाकर रख दो।” घबराहट में स्त्री ने सिर जोड़े तो गलती से एक का सिर दूसरे के धड़ पर लग गया। देवी ने दोनों को जिला दिया। अब वे दोनों आपस में झगड़ने लगे। एक कहता था कि यह स्त्री मेरी है, दूसरा कहता मेरी। इतनी कहानी सुनाने के बाद बेताल रूक गया। कुछ देर बाद बेताल बोला, “हे राजन्! बताओ कि यह स्त्री किसकी हो?” राजा ने कहा, “नदियों में गंगा उत्तम है, पर्वतों में सुमेरु, वृक्षों में कल्पवृक्ष और अंगों में सिर। इसलिए जिस शरीर पर पति का सिर लगा हो, वही पति होना चाहिए।” इतना सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा उसे फिर लाया तो उसने अगली कहानी कही।

    6: बेताल पच्चीसी : पाँचवी कहानी-असली वर कौन, Asli ver kaun

    Play Episode Listen Later Apr 5, 2018 4:06


     पाँचवी कहानी-असली वर कौन मगध देश में महाबल नाम का एक राजा राज्य करता था । जिसके महादेवी नाम की बड़ी सुन्दर कन्या थी। वह अद्वितीय रूपवती थीं। जब वह विवाह योग्य हुई तो राजा को बहुत चिन्ता होने लगी। बहुत से राजकुमार आये लेकिन राजकुमारी को कोई पसंद न आया। राजा ने सोचा जो राजकुमार शक्तिशाली और गुणवान होगा उसी से राजकुमारी का विवाह होगा। एक दिन एक राजकुमार राजदरबार में आया और बोला, “मैं राजकुमारी का हाथ मांगने आया हूँ।” राजा ने कहाँ, “मैं अपनी लड़की उसे दूँगा, जिसमें सब गुण होंगे।” राजकुमार ने कहा, “मेरे पास एक ऐसा रथ है, जिस पर बैठकर जहाँ चाहो, घड़ी-भर में पहुँच जाओगे।” राजा बोला, “ठीक है। कुछ दिन इंतजार करें, मैं राजकुमारी से पूछकर बताता हूँ।” फिर एक दिन एक और राजकुमार आया। उसने कहा- “मैं त्रिकालदर्शी हूँ। मैं भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों की बातें बता सकता हूँ।” राजा ने उसे भी इंतजार करने को कहा। कुछ दिन बाद एक और राजकुमार आया। जब राजा ने उससे पूछा कि आपमें क्या गुण हैं तब उसने कहा- “मैं धनुर्विद्या में निपुण हूँ। धनुष चलाने में मेरा कोई मुकाबला नहीं कर सकता।” इस तरह तीन वर इकट्ठे हो गये। राजा सोचने लगा कि कन्या एक है, राजकुमार तीन हैं। तीनों ही सुंदर और गुणवान हैं। क्या करे! इसी बीच एक राक्षस आया और राजकुमारी को उठाकर विंध्याचल पहाड़ पर ले गया। तीनों वरों में जो त्रिकालदर्शी था। राजा ने उससे पूछा तो उसने बता दिया कि एक राक्षस राजकुमारी को उड़ा ले गया है और वह विंध्याचल पहाड़ पर है। दूसरे ने कहा, “मेरे रथ पर बैठकर चलो। ज़रा सी देरी में वहाँ पहुँच जायेंगे।” तीसरा बोला, “मैं शब्दवेधी तीर चलाना जानता हूँ। राक्षस को मार गिराऊँगा।” वे सब रथ पर चढ़कर विंध्याचल पहुँचे और राक्षस को मारकर राजकुमारी को बचा लाये। इतना कहकर बेताल बोला “हे राजन्! न्यायी विक्रम, अब तुम न्याय करो। बताओ, वह राजकुमारी उन तीनों में से किसको मिलनी चाहिए?” राजा ने कहा, “जिसने राक्षस को मारा, उसकों मिलनी चाहिए, क्योंकि असली वीरता तो उसी ने दिखाई। बाकी दो ने तो सिर्फ मदद की।” राजा का इतना कहना था कि बेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा जब उसे लेकर आया तो रास्ते में बेताल ने फिर एक कहानी सुनायी।

    5: बेताल पच्चीसी : चौथी कहानी-ज़्यादा पापी कौन : Zyada Papi Kaun

    Play Episode Listen Later Apr 4, 2018 9:19


    चौथी कहानी-ज़्यादा पापी कौन भोगवती नाम की एक नगरी थी। उसमें राजा रूपसेन राज करता था। उसके पास चिन्तामणि नाम का एक तोता था। एक दिन राजा ने उससे पूछा, “हमारा ब्याह किसके साथ होगा?” तोते ने कहा, “मगध देश के राजा की बेटी चन्द्रावती के साथ होगा।” राजा ने ज्योतिषी को बुलाकर पूछा तो उसने भी यही कहा। उधर मगध देश की राज-कन्या के पास एक मैना थी। उसका नाम था मदन मंञ्जरी। एक दिन राज-कन्या ने उससे पूछा कि मेरा विवाह किसके साथ होगा तो उसने कह दिया कि भोगवती नगर के राजा रूपसेन के साथ। इसके बाद दोनों का विवाह हो गया। रानी के साथ उसकी मैना भी आ गयी। राजा-रानी ने तोता-मैना का ब्याह करके उन्हें एक पिंजड़े में रख दिया। एक दिन की बात है तोता-मैना में बहस हो गयी। मैना ने कहा, “आदमी बड़ा पापी, दग़ाबाज़ और अधर्मी होता है।” तोते ने कहा, “स्त्री झूठी, लालची और हत्यारी होती है।” दोनों का झगड़ा बढ़ गया तो राजा ने कहा, “क्या बात है, तुम आपस में लड़ते क्यों हो?” मैना ने कहा, “महाराज, मर्द बड़े बुरे होते हैं।” इसके बाद मैना ने एक कहानी सुनायी। इलाहापुर नगर में महाधन नाम का एक सेठ रहता था। विवाह के बहुत दिनों के बाद उसके घर एक लड़का पैदा हुआ। सेठ ने उसका बड़ी अच्छी तरह से लालन-पालन किया, पर लड़का बड़ा होकर जुआ खेलने लगा। इस बीच सेठ मर गया। लड़के ने अपना सारा धन जुए में खो दिया। जब पास में कुछ न बचा तो वह नगर छोड़कर चन्द्रपुरी नामक नगरी में जा पहुँचा। वहां हेमगुप्त नाम का साहूकार रहता था। उसके पास जाकर उसने अपने पिता का परिचय दिया और कहा कि मैं जहाज़ लेकर सौदागरी करने गया था। माल बेचा, धन कमाया लेकिन लौटते समय समुद्र में ऐसा तूफ़ान आया कि जहाज़ डूब गया और मैं जैसे-तैसे बचकर यहां आ गया। उस सेठ के एक लड़की थी रत्नावती। सेठ को बड़ी खुशी हुई कि घर बैठे इतना अच्छा लड़का मिल गया। उसने उस लड़के को अपने घर में रख लिया और कुछ दिन बाद अपनी लड़की से उसका विवाह कर दिया। दोनों वहीं रहने लगे। अन्त में एक दिन वहां से बिदा हुए। सेठ ने बहुत-सा धन दिया और एक दासी को उनके साथ भेज दिया। रास्ते में एक जंगल पड़ता था। वहाँ आकर लड़के ने स्त्री से कहा, “यहाँ बहुत डर है, तुम अपने गहने उतारकर मेरी कमर में बाँध दो, लड़की ने ऐसा ही किया। इसके बाद लड़के ने कहारों को धन देकर डोले को वापस करा दिया और दासी को मारकर कुएँ में डाल दिया। फिर स्त्री को भी कुएँ में पटककर आगे बढ़ गया। स्त्री रोने लगी। एक मुसाफ़िर उधर से जा रहा था। जंगल में रोने की आवाज़ सुनकर वह वहाँ आया; उसने स्त्री को कुएँ से निकालकर उसके घर पहुँचा दिया। स्त्री ने घर जाकर माँ-बाप से कह दिया कि रास्ते में चोरों ने हमारे गहने छीन लिये और दासी को मारकर, मुझे कुएँ में ढकेलकर, भाग गये। बाप ने उसे ढाँढस बँधाया और कहा कि तू चिन्ता मत कर। तेरा स्वामी जीवित होगा और किसी दिन आ जायेगा। उधर वह लड़का जेवर लेकर शहर पहुँचा। उसे तो जुए की लत लगी थी। वह सारे गहने जुए में हार गया। उसकी बुरी हालत हुई तो वह फिर अपनी ससुराल चला। वहाँ पहुँचते ही सबसे पहले उसकी स्त्री मिली। वह बड़ी खुश हुई। उसने पति से कहा, “आप कोई चिन्ता न करें, मैंने यहाँ आकर दूसरी ही बात कही है।” जो कहा था, वह उसने बता दिया। सेठ अपने जमाई से मिलकर बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे बड़ी अच्छी तरह से घर में रखा। कुछ दिन बाद एक रोज़ जब वह लड़की गहने पहने सो रही थी, उसने चुपचाप छुरी से उसे मार डाला और उसके गहने लेकर चम्पत हो गया। मैना बोली, “महाराज, यह सब मैंने अपनी आँखों से देखा। ऐसा पापी होता है आदमी!” राजा ने तोते से कहा, “अब तुम बताओ कि स्त्री क्यों बुरी होती है?” इस पर तोते ने यह कहानी सुनायी। कंचनपुर में सागरदत्त नाम का एक सेठ रहता था। उसके श्रीदत्त नाम का एक लड़का था। वहां से कुछ दूर पर एक और नगर था श्रीविजयपुर। उसमें सोमदत्त नाम का सेठ रहता था। उसके एक लड़की थी जिसका नाम जयश्री था वह श्रीदत्त को ब्याही थी। ब्याह के बाद श्रीदत्त व्यापार करने परदेस चला गया। बारह बरस हो गये और वह न आया तो जयश्री व्याकुल होने लगी। एक दिन वह अपनी अटारी पर खड़ी थी कि एक आदमी उसे दिखाई दिया। उसे देखते ही वह उस पर मोहित हो गयी। उसने उसे अपनी सखी के घर बुलवा लिया। रात होते ही वह उस सखी के घर चली जाती और रात-भर वहाँ रहकर दिन निकलने से पहले ही लौट आती। इस तरह बहुत दिन बीत गये। इस बीच एक दिन उसका पति परदेस से लौट आया। स्त्री बड़ी दु:खी हुईं अब वह क्या करे? पति हारा-थका था। जल्दी ही उसकी आँख लग गई और स्त्री उठकर अपने दोस्त के पास चल दी। रास्ते में एक चोर खड़ा था। वह देखने लगा कि स्त्री कहाँ जाती है। धीरे-धीरे वह सहेली के मकान पर पहुँची। चोर भी पीछे-पीछे गया। संयोग से उस आदमी को साँप ने काट लिया था ओर वह मरा पड़ा था। स्त्री ने समझा सो रहा है। वहीं आँगन में पीपल का एक पेड़ था, जिस पर एक पिशाच बैठा यह लीला देख रहा था। उसने उस आदमी के शरीर में प्रवेश करके अपनी काम पिपासा मिटाई और उत्तेजित होकर उसने उन स्त्री की नाक काट ली और फिर उस आदमी की देह से निकलकर पेड़ पर जा बैठा। स्त्री रोती हुई अपनी सहेली के पास गयी। सहेली ने कहा कि तुम अपने पति के पास जाओ ओर वहां बैठकर रोने लगो। कोई पूछे तो कह देना कि पति ने नाक काट ली है। उसने ऐसा ही किया। उसका रोना सुनकर लोग इकट्ठे हो गये। आदमी जाग उठा। उसे सारा हाल मालूम हुआ तो वह बड़ा दु:खी हुआ। लड़की के बाप ने कोतवाल को ख़बर दे दी। कोतवाल उन सबको राजा के पास ले गया। लड़की की हालत देखकर राजा को बड़ा गुस्सा आया। उसने कहा, “इस आदमी को सूली पर लटका दो।” वह चोर वहां खड़ा था। जब उसने देखा कि एक बेक़सूर आदमी को सूली पर लटकाया जा रहा है तो उसने राजा के सामने जाकर सब हाल सच-सच बता दिया। बोला, “अगर मेरी बात का विश्वास न हो तो जाकर देख लीजिए, उस आदमी के मुँह में अभी भी स्त्री की नाक है।” राजा ने दिखवाया तो बात सच निकली। इतना कहकर तोता बोला, “हे राजा! स्त्रियाँ ऐसी होती हैं! राजा ने उस स्त्री का सिर मुँड़वाकर, गधे पर चढ़ाकर, नगर में घुमवाया और शहर से बाहर छुड़वा दिया।” यह कहानी सुनाकर बेताल बोला, “विक्रम अब तुम फैसला करो, बताओ कि दोनों में ज्यादा पापी कौन है?” राजा ने कहा, “स्त्री।” बेताल ने पूछा, “कैसे?” विक्रम ने कहा, “मर्द कैसा ही दुष्ट हो, उसे धर्म का थोड़ा-बहुत विचार रहता ही है। स्त्री को नहीं रहता। अब चोर को ही देखो, वह इन दोनों से ज्यादा दुष्ट हैं पर जब उसने एक बेकसूर आदमी को मरते देखा तो उससे नहीं रहा गया और उसने अपनी परवाह किये बगैर राजा को सब बात बता दी। इसलिए स्त्री ही अधिक पापिन है।” राजा के इतना कहते ही बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। विक्रमादित्य लौटकर गया और उसे पकड़कर लाया। फिर बेताल ने राजा को चालाकी से अपनी शर्तों में फंसा कर एक और कहानी सुनाई।

    4: बेताल पच्चीसी : तीसरी कहानी-पुण्य किसका : Punny kiska

    Play Episode Listen Later Apr 3, 2018 6:23


    तीसरी कहानी-पुण्य किसका वर्धमान नाम के एक नगर में रूपसेन नाम का एक दयालु और न्यायप्रिय राजा राज करता था। एक दिन उसके यहाँ वीरवर नाम का एक राजपूत नौकरी के लिए आया। राजा ने उससे पूछा कि उसे ख़र्च के लिए क्या चाहिए तो उसने जवाब दिया, हज़ार तोले सोना। सुनकर सबको बड़ा आश्चर्य हुआ। राजा ने पूछा, “तुम्हारे साथ कौन-कौन है?” उसने जवाब दिया, “मेरी स्त्री, बेटा और बेटी।” राजा को और भी अचम्भा हुआ। आख़िर चार जने इतने धन का क्या करेंगे? फिर भी राजा ने सोचा जरूर कोई कारण होगा और उसने उसकी बात मान ली। उस दिन से वीरवर रोज हज़ार तोले सोना भण्डारी से लेकर अपने घर आता। उसमें से आधा ब्राह्मणों में बाँट देता, बाकी के दो हिस्से करके एक मेहमानों, वैरागियों और संन्यासियों को देता और दूसरे से भोजन बनवाकर पहले ग़रीबों को खिलाता, उसके बाद जो बचता, उसे स्त्री-बच्चों को खिलाता, आप खाता। काम यह था कि शाम होते ही ढाल-तलवार लेकर राजा के पलंग की चौकीदारी करता। राजा को जब कभी रात को ज़रूरत होती, वह हाज़िर रहता। एक दिन आधी रात के समय राजा को मरघट की ओर से किसी के रोने की आवाज़ आयी। उसने वीरवर को पुकारा तो वह आ गया। राजा ने कहा, “जाओ, पता लगाकर आओ कि इतनी रात गये यह कौन रो रहा है ओर क्यों रो रहा है?” वीरवर तत्काल वहाँ से चल दिया। मरघट में जाकर देखता क्या है कि सिर से पाँव तक एक स्त्री गहनों से लदी कभी नाचती है, कभी कूदती है और सिर पीट-पीटकर रोती है। लेकिन उसकी आँखों से एक बूँद आँसू नहीं निकलती। वीरवर ने पूछा, “तुम कौन हो? क्यों रोती हो?” उसने कहा, “मैं राज-लक्ष्मी हूँ। रोती इसलिए हूँ कि राजा रूपसेन के घर में खोटे काम होते हैं, इसलिए वहाँ दरिद्रता का डेरा पड़ने वाला है। मैं वहाँ से चली जाऊँगी और राजा दु:खी होकर एक महीने में मर जायेगा।” सुनकर वीरवर ने पूछा, “इससे बचने का कोई उपाय है!” स्त्री बोली, “हाँ, है। यहां से पूरब में एक योजन पर एक देवी का मन्दिर है। अगर तुम उस देवी पर अपने बेटे का शीश चढ़ा दो तो विपदा टल सकती है। फिर राजा सौ बरस तक बेखटके राज करेगा।” वीरवर घर आया और अपनी स्त्री को जगाकर सब हाल कहा। स्त्री ने बेटे को जगाया, बेटी भी जाग पड़ी। जब बालक ने बात सुनी तो वह खुश होकर बोला, “आप मेरा शीश काटकर ज़रूर चढ़ा दें। एक तो आपकी आज्ञा, दूसरे स्वामी का काम, तीसरे यह देह देवता पर चढ़े, इससे बढ़कर बात और क्या होगी! आप जल्दी करें।” वीरवर ने अपनी स्त्री से कहा, “अब तुम बताओ।” स्त्री बोली, “स्त्री का धर्म पति की सेवा करने में है।” निदान, चारों जने देवी के मन्दिर में पहुँचे। वीरवर ने हाथ जोड़कर कहा, “हे देवी, मैं अपने बेटे की बलि देता हूँ। मेरे राजा की सौ बरस की उम्र हो।” इतना कहकर उसने इतने ज़ोर से खांडा मारा कि लड़के का शीश धड़ से अलग हो गया। भाई का यह हाल देख कर बहन ने भी खांडे से अपना सिर अलग कर डाला। बेटा-बेटी चले गये तो दु:खी माँ ने भी उन्हीं का रास्ता पकड़ा और अपनी गर्दन काट दी। वीरवर ने सोचा कि घर में कोई नहीं रहा तो मैं ही जीकर क्या करूँगा। उसने भी अपना सिर काट डाला। राजा को जब यह मालूम हुआ तो वह वहाँ आया। उसे बड़ा दु:ख हुआ कि उसके लिए चार प्राणियों की जान चली गयी। वह सोचने लगा कि ऐसा राज करने से धिक्कार है! यह सोच उसने तलवार उठा ली और जैसे ही अपना सिर काटने को हुआ कि देवी ने प्रकट होकर उसका हाथ पकड़ लिया। बोली, “राजन्, मैं तेरे साहस से प्रसन्न हूँ। तू जो वर माँगेगा, सो दूँगी।” राजा ने कहा, “देवी, तुम प्रसन्न हो तो इन चारों को जिला दो।” देवी ने अमृत छिड़ककर उन चारों को फिर से जिला दिया। इतना कहकर बेताल बोला, विक्रम, बताओ, सबसे ज्यादा पुण्य किसका हुआ?” विक्रम बोला, “राजा का।” बेताल ने पूछा, “क्यों?” विक्रम ने कहा, “इसलिए कि स्वामी के लिए चाकर का प्राण देना धर्म है; लेकिन चाकर के लिए राजा का राजपाट को छोड़, जान को तिनके के समान समझकर देने को तैयार हो जाना बहुत बड़ी बात है।” यह सुन बेताल ग़ायब हो गया और पेड़ पर जा लटका। विक्रम दौड़ा-दौड़ा वहाँ पहुँचा ओर उसे फिर पकड़कर लाया तो बेताल ने चौथी कहानी कही।

    3: बेताल पच्चीसी : दूसरी कहानी -पति कौन, Pati kaun

    Play Episode Listen Later Apr 2, 2018 6:05


    दूसरी  कहानी -पति कौन यमुना के किनारे धर्मस्थान नामक एक नगर था। उस नगर में गणाधिप नाम का राजा राज करता था। उसी में केशव नाम का एक ब्राह्मण भी रहता था। ब्राह्मण यमुना के तट पर जप-तप किया करता था। उसकी एक पुत्री थी, जिसका नाम मालती था। वह बड़ी रूपवती थी। जब वह ब्याह के योग्य हुई तो उसके माता, पिता और भाई को चिन्ता हुई। संयोग से एक दिन जब ब्राह्मण अपने किसी यजमान की बारात में गया था और भाई पढ़ने गया था, तभी उनके घर में एक ब्राह्मण का लड़का आया। लड़की की माँ ने उसके रूप और गुणों को देखकर उससे कहा कि मैं तुमसे अपनी लड़की का ब्याह करूँगी। उधर ब्राह्मण पिता को भी एक दूसरा लड़का मिल गया और उसने उस लड़के को भी यही वचन दे दिया। उधर ब्राह्मण का लड़का जहाँ पढ़ने गया था, वहां वह एक लड़के से यही वादा कर आया। कुछ समय बाद बाप-बेटे घर में इकट्ठे हुए तो देखते क्या हैं कि वहां एक तीसरा लड़का और मौजूद है। दो उनके साथ आये थे। अब क्या हो? ब्राह्मण, उसका लड़का और ब्राह्मणी बड़े सोच में पड़े। दैवयोग से हुआ क्या कि लड़की को साँप ने काट लिया और वह मर गयी। उसके बाप, भाई और तीनों लड़कों ने बड़ी भाग-दौड़ की, ज़हर झाड़नेवालों को बुलाया, पर कोई नतीजा न निकला। सब अपनी-अपनी करके चले गये। दु:खी होकर वे उस लड़की को श्मशान में ले गये और क्रिया-कर्म कर आये। तीनों लड़कों में से एक ने तो उसकी हड्डियाँ चुन लीं और फकीर बनकर जंगल में चला गया। दूसरे ने राख की गठरी बाँधी और वहीं झोपड़ी डालकर रहने लगा। तीसरा योगी होकर देश-देश घुमने लगा। एक दिन की बात है, वह तीसरा लड़का घूमते-घामते किसी नगर में पहुँचा और एक ब्राह्मण के घर भोजन करने बैठा। उस ब्राह्मण का बेटा राजा के यहां सैनिक था। भोजन के दौरान ही कुछ सैनिक ब्राह्मण के बेटे की शव लेकर आये और वो सभी घटना ब्राह्मण को बता दी जिसके कारण उसका बेटा मरा था। ब्राह्मणी रोने लगी, वह योगी भी भोजन छोड़ उठ खड़ा हुआ। ब्राह्मणी का विलाप उसके पति से नही देखा गया। ब्राह्मण के पास उसके पूर्वजों की दी हुयी संजीवनी विद्या की पोथी थी। ब्राह्मण ने संजीवनी विद्या की पोथी लाकर जैसे ही एक मन्त्र पढ़ा। उसका मरा हुआ लड़का फिर से जीवित हो गया। यह देखकर वह योगी सोचने लगा कि अगर यह पोथी मेरे हाथ पड़ जाये तो मैं भी उस लड़की को फिर से जिला सकता हूँ। इसके बाद उसने भोजन किया और वहीं ठहर गया। जब रात को सब खा-पीकर सो गये तो वह योगी चुपचाप वह पोथी लेकर चल दिया। जिस स्थान पर उस लड़की को जलाया गया था, वहां जाकर उसने देखा कि दूसरे लड़के वहां बैठे बातें कर रहे हैं। इस लड़के के यह कहने पर कि उसे संजीवनी विद्या की पोथी मिल गयी है और वह मन्त्र पढ़कर लड़की को जिला सकता है, उन दोनों ने हड्डियाँ और राख निकाली। ब्राह्मण ने जैसे ही मंत्र पढ़ा, वह लड़की जी उठी। अब तीनों उसके पीछे आपस में झगड़ने लगे। इतना कहकर बेताल बोला, “राजन्, बताओ कि वह लड़की किसकी स्त्री होनी चाहिए?” राजा ने जवाब दिया, “जो वहां कुटिया बनाकर रहा, उसकी।” बेताल ने पूछा, “क्यों?” विक्रम बोला, “जिसने हड्डियाँ रखीं, वह तो उसके बेटे के बराबर हुआ। जिसने विद्या सीखकर जीवन-दान दिया, वह बाप के बराबर हुआ। जो राख लेकर रमा रहा, वही उसकी हक़दार है।” विक्रम का यह जवाब सुनकर बेताल ने कहा- “तुमने बहुत अच्छा गणित किया परन्तु अपनी शर्त भूल गये और फिर बेताल पीपल के पेड़ पर जा लटका। विक्रम को फिर लौटना पड़ा और जब वह उसे लेकर चला तो बेताल ने फिर एक कहानी सुनायी।

    2: बेताल पच्चीसी : पहली कहानी -पापी कौन : Paapi kaun

    Play Episode Listen Later Apr 1, 2018 11:35


    पहली कहानी -पापी कौन काशी में प्रतापमुकुट नाम का राजा राज्य करता था। उसके वज्रमुकुट नाम का एक बेटा था। एक दिन राजकुमार दीवान के लड़के को साथ लेकर शिकार खेलने जंगल गया। घूमते-घूमते उन्हें तालाब मिला। उसके पानी में कमल खिले थे और हंस किलोल कर रहे थे। किनारों पर घने पेड़ थे, जिन पर पक्षी चहचहा रहे थे। दोनों मित्र वहाँ रुक गये और तालाब के पानी में हाथ-मुँह धोकर ऊपर महादेव के मन्दिर पर गये। घोड़ों को उन्होंने मन्दिर के बाहर बाँध दिया। वो मन्दिर में दर्शन करके बाहर आये तो देखते क्या हैं कि तालाब के किनार कोई राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ स्नान करने आई है। दीवान का लड़का तो वहीं एक पेड़ के नीचे बैठा रहा, पर राजकुमार से न रहा गया। वह आगे बढ़ गया। राजकुमार ने उसकी ओर देखा तो वह उस पर मोहित हो गया। राजकुमारी भी उसकी तरफ़ देखती रही। फिर उसने किया क्या कि जूड़े में से कमल का फूल निकाला, कान से लगाया, दाँत से कुतरा, पैर के नीचे दबाया और फिर छाती से लगा, अपनी सखियों के साथ चली गयी। उसके जाने पर राजकुमार निराश हो अपने मित्र के पास आया और सब हाल सुनाकर बोला, “मैं इस राजकुमारी के बिना नहीं रह सकता। पर मुझे न तो उसका नाम मालूम है, न ठिकाना। वह कैसे मिलेगी?” दीवान के लड़के ने कहा, “राजकुमार, आप इतना घबरायें नहीं। वह सब कुछ बता गयी है।” राजकुमार ने पूछा, “कैसे?” वह बोला, “उसने कमल का फूल सिर से उतार कर कानों से लगाया तो उसने बताया कि मैं कर्नाटक की रहनेवाली हूँ। दाँत से कुतरा तो उसका मतलब था कि मैं दंतावट राजा की बेटी हूँ। पाँव से दबाने का अर्थ था कि मेरा नाम पद्मावती है और छाती से लगाकर उसने बताया कि तुम मेरे दिल में बस गये हो।” इतना सुनना था कि राजकुमार खुशी से फूल उठा। बोला, “अब मुझे कर्नाटक देश में ले चलो।” दोनों मित्र वहां से चल दिये। घूमते-फिरते, सैर करते, दोनों कई दिन बाद वहां पहुँचे। राजा के महल के पास गये तो एक बुढ़िया अपने द्वार पर बैठी चरखा कातती मिली उसके पास जाकर दोनों घोड़ों से उतर पड़े और बोले, “माई, हम सौदागर हैं। हमारा सामान पीछे आ रहा है। हमें रहने को थोड़ी जगह दे दो।” उनकी शक्ल-सूरत देखकर और बात सुनकर बुढ़िया के मन में ममता उमड़ आयी। बोली, “बेटा, तुम्हारा घर है। जब तक जी में आए, रहो।” दोनों वहीं ठहर गये। दीवान के बेटे ने उससे पूछा, “माई, तुम क्या करती हो? तुम्हारे घर में कौन-कौन है? तुम्हारी गुज़र कैसे होती है?” बुढ़िया ने जवाब दिया, “बेटा, मेरा एक बेटा है जो राजा की चाकरी में है। मैं राजा की बेटी पद्मावती की धाय थी। बूढ़ी हो जाने से अब घर में रहती हूँ। राजा खाने-पीने को दे देता है। दिन में एक बार राजकुमारी को देखने महल में जाती हूँ।” राजकुमार ने बुढ़िया को कुछ धन दिया और कहा, “माई, कल तुम वहां जाओ तो राजकुमारी से कह देना कि जेठ सुदी पंचमी को तुम्हें तालाब पर जो राजकुमार मिला था, वह आ गया है।” अगले दिन जब बुढ़िया राजमहल गयी तो उसने राजकुमार का सन्देशा उसे दे दिया। सुनते ही राजकुमारी ने गुस्सा होंकर हाथों में चन्दन लगाकर उसके गाल पर तमाचा मारा और कहा, “मेरे घर से निकल जा।” बुढ़िया ने घर आकर सब हाल राजकुमार को कह सुनाया। राजकुमार हक्का-बक्का रह गया। तब उसके मित्र ने कहा, “राजकुमार, आप घबरायें नहीं, उसकी बातों को समझें। उसने दसों उँगलियाँ सफ़ेद चन्दन में डुबो कर गाल पर मारीं, इससे उसका मतलब यह है कि अभी दस रोज़ चाँदनी के हैं। उनके बीतने पर मैं अँधेरी रात में मिलूँगी।” दस दिन के बाद बुढ़िया ने फिर राजकुमारी को ख़बर दी तो इस बार उसने केसर के रंग में तीन उँगलियाँ डुबोकर उसके मुँह पर मारीं और कहा, “भाग यहाँ से” बुढ़िया ने आकर सारी बात सुना दी। राजकुमार शोक से व्याकुल हो गया। दीवान के लड़के ने समझाया, “इसमें हैरान होने की क्या बात है? उसने कहा है कि मुझे मासिक धर्म हो रहा है। तीन दिन और ठहरो।” तीन दिन बीतने पर बुढ़िया फिर वहाँ पहुँची। इस बार राजकुमारी ने उसे फटकार कर पश्चिम की खिड़की से बाहर निकाल दिया। उसने आकर राजकुमार को बता दिया। सुनकर दीवान का लड़का बोला, “मित्र, उसने आज रात को तुम्हें उस खिड़की की राह बुलाया है।” मारे खुशी के राजकुमार उछल पड़ा। समय आने पर उसने बुढ़िया की पोशाक पहनी, इत्र लगाया, हथियार बाँधे। दो पहर रात बीतने पर वह महल में जा पहुँचा और खिड़की में से होकर अन्दर पहुँच गया। राजकुमारी वहाँ तैयार खड़ी थी। वह उसे भीतर ले गयी। अन्दर का हाल देखकर राजकुमार की आँखें खुल गयीं। एक-से-एक बढ़कर चीजें थीं। रात-भर राजकुमार राजकुमारी के साथ रहा। जैसे ही दिन निकलने को आया कि राजकुमारी ने राजकुमार को छिपा दिया और रात होने पर फिर बाहर निकाल लिया। इस तरह कई दिन बीत गये। अचानक एक दिन राजकुमार को अपने मित्र की याद आयी। उसे चिन्ता हुई कि पता नहीं, उसका क्या हुआ होगा। उदास देखकर राजकुमारी ने कारण पूछा तो उसने बता दिया। बोला, “वह मेरा बड़ा प्यारा दोस्त हैं बड़ा चतुर है। उसकी होशियारी ही से तो तुम मुझे मिल पाई हो।” राजकुमारी ने कहा, “मैं उसके लिए बढ़िया-बढ़िया भोजन बनवाती हूँ। तुम उसे खिलाकर, तसल्ली देकर लौट आना।” खाना साथ में लेकर राजकुमार अपने मित्र के पास पहुँचा। वे महीने भर से मिले नही थे। राजकुमार ने मिलने पर सारा हाल सुनाकर कहा कि राजकुमारी को मैंने तुम्हारी चतुराई की सारी बातें बता दी हैं, तभी तो उसने यह भोजन बनाकर भेजा है। दीवान का लड़का सोच में पड़ गया। उसने कहा, “यह तुमने अच्छा नहीं किया। राजकुमारी समझ गयी कि जब तक मैं हूँ, वह तुम्हें अपने बस में नहीं रख सकती। इसलिए उसने इस खाने में ज़हर मिलाकर भेजा है।” यह कहकर दीवान के लड़के ने थाली में से एक लड्डू उठाकर कुत्ते के आगे डाल दिया। खाते ही कुत्ता मर गया। राजकुमार को बड़ा बुरा लगा। उसने कहा, “ऐसी स्त्री से भगवान बचाये! मैं अब उसके पास नहीं जाऊँगा।” दीवान का बेटा बोला, “नहीं, अब ऐसा उपाय करना चाहिए, जिससे हम उसे घर ले चलें। आज रात को तुम वहां जाओ। जब राजकुमारी सो जाये तो उसकी बायीं जाँघ पर त्रिशूल का निशान बनाकर उसके गहने लेकर चले आना।” राजकुमार ने ऐसा ही किया। उसके आने पर दीवान का बेटा उसे साथ ले, योगी का भेस बना, मरघट में जा बैठा और राजकुमार से कहा कि तुम ये गहने लेकर बाज़ार में बेच आओ। कोई पकड़े तो कह देना कि मेरे गुरु के पास चलो और उसे यहाँ ले आना। राजकुमार गहने लेकर शहर गया और महल के पास एक सुनार को उन्हें दिखाया। देखते ही सुनार ने उन्हें पहचान लिया और कोतवाल के पास ले गया। कोतवाल ने पूछा तो उसने कह दिया कि ये मेरे गुरु ने मुझे दिये हैं। गुरु को भी पकड़वा लिया गया। सब राजा के सामने पहुँचे। राजा ने पूछा, “योगी महाराज, ये गहने आपको कहाँ से मिले?” योगी बने दीवान के बेटे ने कहा, “महाराज, मैं मसान में काली चौदस को डाकिनी-मंत्र सिद्ध कर रहा था कि डाकिनी आयी। मैंने उसके गहने उतार लिये और उसकी बायीं जाँघ में त्रिशूल का निशान बना दिया।” इतना सुनकर राजा महल में गया और उसने रानी से कहा कि पद्मावती की बायीं जाँघ पर देखो कि त्रिशूल का निशान तो नहीं है। रानी ने देखा, तो सही में निशान था। राजा को बड़ा दु:ख हुआ। बाहर आकर वह योगी को एक ओर ले जाकर बोला, “महाराज, धर्मशास्त्र में खोटी स्त्रियों के लिए क्या दण्ड है?” योगी ने जवाब दिया, “राजन्, ब्राह्मण, गऊ, स्त्री, लड़का और अपने आसरे में रहनेवाले से कोई खोटा काम हो जाये तो उसे देश-निकाला दे देना चाहिए।” यह सुनकर राजा ने पद्मावती को डोली में बिठाकर जंगल में छुड़वा दिया। राजकुमार और दीवान का बेटा तो ताक में बैठे ही थे। राजकुमारी को अकेली पाकर साथ ले अपने नगर में लौट आये और आनंद से रहने लगे। इतनी बात सुनाकर बेताल बोला, “राजन्, यह बताओ कि पाप किसको लगा है?” विक्रम ने कहा, “पाप तो राजा को लगा। दीवान के बेटे ने अपने स्वामी का काम किया। कोतवाल ने राजा का कहना माना और राजकुमार ने अपना मनोरथ सिद्ध किया। राजा ने पाप किया, जो बिना विचारे उसे देश-निकाला दे दिया।” राजा का इतना कहना था कि बेताल फिर उसी पेड़ पर जा लटका। राजा वापस गया और बेताल को लेकर चल दिया। बेताल बोला, “विक्रम तुम बड़े हठी मालूम होते हो, लेकिन कोई बात नहीं। देखता हूँ कितने हठी और कितने धैर्यवान हो।”

    1: विक्रम बेताल : आरंभ की कहानी, Vikram Betal : Aarambh ki kahani

    Play Episode Listen Later Mar 31, 2018 11:23


    बेताल पचीसी की आरंभिक कहानी बहुत पुरानी बात है। धारा नगरी में गंधर्वसेन नाम के एक राजा राज करते थे। उनकी चार रानियाँ तथा छ: लड़के थे। सब-के-सब बड़े ही चतुर और बलवान थे। उसी में से एक विक्रम थे। संयोग से एक दिन राजा की मृत्यु हो गई और उनकी जगह उनका बड़ा बेटा शंख गद्दी पर बैठा। राजा शंख बड़ा विलासी प्रवृत्ति का था। उसका मन राज-काज में नही लगता था। उसके विलासिता के कारण राज्य की स्थिति दिन-प्रतिदिन बदतर होने लगी। राजकोष घटने लगा। दुश्मनों की नजरें राज्य पर पड़ने लगी। प्रजा के साथ ही सभी मंत्रीगण चाहते थे कि विक्रम राजा बने। विक्रम से भी राज्य की दुर्दशा देखी नही जाती थी। सभी लोग विक्रम के साथ थे। इसके बाद की कहानी सुनिए इस पॉडकास्ट मे……. राजा विक्रम जब अपने राजी वापिस लौटे उसके बाद की कहानी कुछ यूँ है…. भर्तृहरि के राजपाट छोड़कर वन में चले जाने की बात विक्रम को मालूम हुई तो वह लौटकर अपने देश में आया। आधी रात का समय था। जब वह नगर में घुसने लगा तो देव ने उसे रोका। राजा ने कहा, “मैं विक्रम हूँ। यह मेरा राज है। तुम रोकने वाले कौन होते हो?” देव बोला, “मुझे राजा इन्द्र ने इस नगर की चौकसी के लिए भेजा है। तुम सच्चे राजा विक्रम हो तो आओ, पहले मुझसे लड़ो क्योंकि सिर्फ विक्रम ही मुझे हरा सकता हैं।” दोनों में लड़ाई हुई। राजा ने ज़रा-सी देर में देव को पछाड़ दिया। तब देव बोला, “हे राजन्! तुमने मुझे हरा दिया। मैं तुम्हें जीवन-दान देता हूँ।” इसके बाद देव ने एक कथा कहीं, “राजन्, एक नगर और एक नक्षत्र में तुम तीन आदमी पैदा हुए थे। तुमने राजा के घर में जन्म लिया, दूसरे ने तेली के और तीसरे ने कुम्हार के। तुम यहाँ का राज करते हो, तेली पाताल में राज करता था और साथ ही वह महान साधक भी था। आपसी शत्रुता तथा लोभ के कारण कुम्हार ने योग साधकर तेली को मारकर श्मशान में पिशाच बना पीपल के पेड़ से लटका दिया है। अब वह तुम्हें मारने की फिराक में है। उससे सावधान रहना।” इतना कहकर देव चला गया और राजा महल में आ गया। राजा को वापस आया देख सबको बड़ी खुशी हुई। नगर में आनन्द मनाया गया। विक्रम फिर राज करने लगा। कहानी के आगे का हिस्सा पॉडकास्ट मे सुनिए…..फिर राजा ने सोचा, हो-न-हो, यह वही योगी है, जिसकी बात देव ने बतायी थी। पेड़ पर रस्सी से बँधा मुर्दा लटक रहा था। राजा पेड़ पर चढ़ गया और तलवार से रस्सी काट दी। मुर्दा नीचे गिर पड़ा और दहाड़ मार-मार कर रोने लगा। विक्रम ने नीचे आकर पूछा, “तू कौन है?” विक्रम का इतना कहना था कि वह मुर्दा खिलखिलाकर हँस पड़ा। विक्रम को बड़ा अचरज हुआ। तभी वह मुर्दा फिर पेड़ पर जा लटका। विक्रम फिर चढ़कर ऊपर गया और रस्सी काटते ही, मुर्दे को बगल में दबा, नीचे आया। बोला, “बता, तू कौन है?” मुर्दा चुप रहा। तब विक्रम ने उसे एक चादर में बाँधा और योगी के पास ले चला। रास्ते में वह मुर्दा बोला, “मैं बेताल हूँ। तू कौन है और मुझे कहाँ ले जा रहा है?” विक्रम ने कहा, “मेरा नाम विक्रम है। मैं धारा नगरी का राजा हूँ। मैं तुझे योगी के पास ले जा रहा हूँ।” बेताल बोला, “मैं एक शर्त पर चलूँगा। अगर तू रास्ते में बोलेगा तो मैं लौटकर फिर पेड़ पर जा लटकूँगा।” विक्रम ने उसकी बात मान ली। फिर बेताल बोला, “पण्डित, चतुर और ज्ञानी, इनके दिन अच्छी-अच्छी बातों में बीतते हैं, जबकि मूर्खों के दिन कलह और नींद में। अच्छा होगा कि हमारी राह भली बातों की चर्चा में बीत जाये। मैं तुझे एक कहानी सुनाता हूँ लेकिन तुम हु-हाँ भी नहीं करना न ही कोई प्रश्न।” इसके बाद बेताल ने अपनी कहानी आरंभ की और दोस्तों यही से बैताल पच्चीसी की कहानी शुरू होती हैं।

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