Listen to Bhajan, Kirtan and Arati from bhajans.ramparivar.com
अब मुझे राम भरोसा तेराराम भरोसा तेराअब मुझे राम भरोसा तेरा ॥मुझे भरोसा राम का रहे सदा सब काल ।दीनबन्धु वह देव है सुखकर दीन दयाल ॥पकड़ शरण अब राम की सुदृढ निश्चय साथ ।तज कर चिंता मैं फिरूँ पा कर उत्तम नाथ ॥अब मुझे राम भरोसा तेरा राम भरोसा तेराअब मुझे राम भरोसा तेरा ॥मधुर महारस नाम पान कर, मुदित हुआ मन मेरा ॥अब मुझे राम भरोसा तेराराम भरोसा तेराअब मुझे राम भरोसा तेरा ॥जो देवे सब जगत को अन्न पान शुभ प्राण । वही दाता मेरा हरि सुख का करे विधान ॥वन अटवी गिरि शिखर पर, घोर विपद के बीच ।तज कर चिंता मैं फिरूँ, निर्भय आँखें मींच ॥कष्ट क्लेश के काल में निंदा हो अपमान । राम भरोसे शांत रह सोऊँ चादर तान ॥ अब मुझे राम भरोसा तेराराम भरोसा तेराअब मुझे राम भरोसा तेरा ॥दीपक ज्ञान जगा जब भीतर, मिटा अज्ञान अन्धेरा ।निशा निराशा दूर हुई सब, आया शांत सबेरा ॥अब मुझे राम भरोसा तेराराम भरोसा तेराअब मुझे राम भरोसा तेरा ॥...... राम राम राम राम ......मुझे भरोसा राम तू दे अपना अनमोल । रहूँ मस्त निश्चिंत मैं कभी न जाऊँ डोल ॥मुझे भरोसा परम है राम राम श्री राम ।मेरी जीवन ज्योति है वही मेरा विश्राम ॥ Download this bhajan in the voice of Shri Atul Shrivastava.
यू ट्यूब के "भोला कृष्णा चेनल " में उपलब्ध -व्ही. एन . श्रीवास्तव "भोला" द्वारा गाये भजननिःशुल्क सीखिये और जी भर के गाइए,सीखने के साथ साथ अपने इष्ट को रिझाइये,मन वांछित फल पाइयेइन में से अनेक भजनों के लिखने और गाने की प्रेरणा पारम्परिक रचनाओं से मिली है, पुरातन उन सभी अज्ञेय रचनाकारों एवं संगीतज्ञों का गुरुत्व शिरोधार्य है !अंजनी सुत हे पवन दुलारे , हनुमत लाल राम के प्यारे !! शब्द स्वर = भोला अब तुम कब सुमिरोगे राम जिवडा दो दिन को मेहमान !! पारंपरिक - एमपी3गुरु की कृपा दृष्टि हो जिसपर !! शब्द स्वर = भोला गुरु चरनन में ध्यान लगाऊँ !! प्रेरणा स्रोत - पंडित जसराज गुरु बिन कौन सम्हारे !! शब्द स्वर = भोला जय शिव शंकर औगढ़ दानी, विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी !! शब्द स्वर = भोला तुझसे हमने दिल है लगाया !! शब्द स्वर = भोला तेरे चरणों में प्यारे अय पिता !! प्रेरणा - राधास्वामी सत्संग - स्वर = भोला दाता राम दिए ही जाता, भिक्षुक मन पर नहीं अघाता !! शब्द स्वर = भोला पायो निधि राम नाम !! शब्द स्वर - व्ही के मेहरोत्रा तथा भोला बिरज में धूम मचायो कान्हा !! होली !! = स्वर भोला रहे जनम जनम तेरा ध्यान यही वर दो मेरे राम !! प्रेरणा पारम्परिक - शब्द-स्वर = भोला राम बोलो राम !! शब्द स्वर = भोला राम राम काहे ना बोले !! प्रेरणा - मिश्र बन्धु - संशोधित शब्द एवं स्वर = भोला राम राम बोलो !! शब्द स्वर = भोला - एमपी3राम हि राम बस राम हि राम, और नाही काहू सों काम !! शब्द स्वर = भोला रोम रोम में रमा हुआ है मेरा राम रमैया तू !! शब्द स्वर = भोला शंकर शिव शम्भु साधु संतन सुखकारी !! शब्द स्वर = भोला श्याम आये नैनों में बन गयी मैं सांवरी !! प्रेरणा - आकाशवाणी = स्वर - भोला हारिये न हिम्मत बिसारिये न राम !! पारंपरिक - स्वर = भोला =============================महावीर बिनवउँ हनुमाना से साभार उद्धृत
डगमग डगमग डोले नैयापार लगावो तो जानूँ खेवैया चंचल चित्त को मोह ने घेरा, पग-पग पर है पाप का डेरा,लाज रखो तो लाज रखैयापार लगावो तो जानूँ खेवैया छाया चारों ओर अँधेरा, तुम बिन कौन सहारा मेरा,हाथ पकड़ कर बंसी बजैयापार लगावो तो जानूँ खेवैया भक्तों ने तुमको मनाया भजन से, मैं तो रिझाऊँ तुम्हें आँसुवन से,गिरतों को आ के उठावो कन्हैयापार लगावो तो जानूँ खेवैया Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
ये बिनती रघुबीर गुसांई,और आस बिस्वास भरोसो, हरो जीव जड़ताई,चहौं न कुमति सुगति संपति कछु, रिधि सिधि बिपुल बड़ाई,हेतू रहित अनुराग राम पद बढै अनुदिन अधिकाई,कुटील करम लै जाहिं मोहिं जहं जहं अपनी बरिआई,तहं तहं जनि छिन छोह छांडियो कमठ-अंड की नाईं,या जग में जहं लगि या तनु की प्रीति प्रतीति सगाई,ते सब तुलसी दास प्रभु ही सों होहिं सिमिटि इक ठाईं,Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
चितचोरन छबि रघुबीर की।बसी रहति निसि बासर हिय मेंबिहरनि सरजू तीर की ।चितचोरन छबि रघुबीर की...उर मणि माल पीत पट राजतचलनि मस्त गज गीर की ।चितचोरन छबि रघुबीर की...सिया अलि लखि अवध छैल छबिसुधि नहीं भूषण चीर की ।चितचोरन छबि रघुबीर की...Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
ऐसो को उदार जग माहीं ।बिनु सेवा जो द्रवै दीन पर, राम सरस कोउ नाहीं ॥जो गति जोग बिराग जतन करि, नहिं पावत मुनि ज्ञानी ।सो गति देत गीध सबरी कहँ, प्रभु न बहुत जिय जानी ॥जो संपति दस सीस अरप करि, रावण सिव पहँ लीन्हीं ।सो संपदा विभीषण कहँ अति सकुच-सहित हरि दीन्हीं ॥तुलसीदास सब भांति सकल सुख जो चाहसि मन मेरो ।तो भजु राम, काम सब पूरन करहि कृपानिधि तेरो ॥Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
नाथ मेरो कहा बिगरेगोजायेगी लाज तुम्हारीभूमि बिहीन पाण्डव सुत डोले, जब ते धरमसुत हारेरही है ना पैज प्रबल पारथ की, कि भीम गदा महि डारी,नाथ मेरो कहा बिगरेगो ...शूर समूह भूप सब बैठे, बड़े बड़े प्रणधारी,भीष्म द्रोण कर्ण दुशासन, जिन्ह मोपे आपत डारी,नाथ मेरो कहा बिगरेगो ...तुम तो दीनानाथ कहावत, मैं अति दीन दुखारी,जैसे जल बिन मीन जो तड़पै, सोई गति भई हमारी,नाथ मेरो कहा बिगरेगो ...मम पति पांच, पांचन के तुम पति, मो पत काहे बिसारी,सूर श्याम पाछे पछितहिओ, कि जब मोहे देखो उघारी,नाथ मेरो कहा बिगरेगो ...Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
सुनि कान्हा तेरी बांसुरी,बांसुरी तेरी जादू भरी॥सारा गोकुल लगा झूमने,क्या अजब मोहिनी छा गयी,मुग्ध यमुना थिरकने लगी,तान बंसी की तड़पा गयी,छवि मन में बसी सांवरी।सुनि कान्हा तेरी बांसुरीबांसुरी तेरी जादू भरीहौले से कोई धुन छेड़ के,तेरी मुरली तो चुप हो गयी,सात सुर भंवर में कहीं,मेरे मन की तरी खो गयी,मैं तो जैसे हुई बावरी।सुनि कान्हा तेरी बांसुरी,बांसुरी तेरी जादू भरी।Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
म्हाणे चाकर राखो जी, गिरधारी ...चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरशन पास्यूँ।वृन्दावन की कुञ्ज गलिन में गोविन्द लीला गास्यूँ।म्हाणे चाकर राखो जी, गिरधारी ...ऊँचे ऊँचे महल बनाऊँ बिच बिच राखूँ क्यारी।साँवरिया के दरशन पाऊँ पहर कुसुम्बी साड़ी।म्हाणे चाकर राखो जी, गिरधारी ...मीराँ के प्रभु गहर गम्भीरा हृदय धरो री धीरा।आधी रात प्रभु दरशन दीन्हे प्रेम नदी के तीरा।म्हाणे चाकर राखो जी, गिरधारी ...…चाकरी में दरसन पास्यूँ सुमरन पास्यूँ खरची।भाव भगती जागीरी पास्यूँ तीनूं बाताँ सरसी।मोर मुगट पीताम्बर सौहे गल वैजन्ती माला।बिन्दरावन में धेनु चरावे मोहन मुरली वाला।Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Click here to listen to bhajan in the voice of Dr. Uma Shrivastavयदि नाथ का नाम दयानिधि है, तो दया भी करेंगे कभी न कभी ।दुखहारी हरी, दुखिया जन के, दुख क्लेश हरेगें कभी न कभी ।जिस अंग की शोभा सुहावनी है, जिस श्यामल रंग में मोहनी है ।उस रूप सुधा से स्नेहियों के, दृग प्याले भरेगें कभी न कभी ।जहां गीध निषाद का आदर है, जहां व्याध अजामिल का घर है ।वही वेश बनाके उसी घर में, हम जा ठहरेगें कभी न कभी ।करुणानिधि नाम सुनाया जिन्हें, कर्णामृत पान कराया जिन्हें ।सरकार अदालत में ये गवाह, सभी गुजरेगें कभी न कभी ।हम द्वार में आपके आके पड़े, मुद्दत से इसी जिद पर हैं अड़े ।भव-सिंधु तरे जो बड़े से बड़े, तो ये 'बिन्दु' तरेगें कभी न कभी ।
नमो अंजनिनंदनं वायुपूतम् सदा मंगलाकर श्रीरामदूतम् ।महावीर वीरेश त्रिकाल वेशम् घनानन्द निर्द्वन्द हर्तां कलेशम् ।नमो अंजनिनंदनं वायुपूतम् सदा मंगलाकर श्रीरामदूतम् ।संजीवन जड़ी लाय नागेश काजेगयी मूर्च्छना रामभ्राता निवाजे।सकल दीन जन के हरो दुःख स्वामीनमो वायुपुत्रं नमामि नमामि।नमो अंजनि नंदनं वायुपूतम् सदा मंगलागार श्री राम दूतम् ।Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
रघुवर तेरो ही दास कहाऊँतेरो नाम जपूँ निसि वासरतेरो ही गुण गाऊँरघुवर तेरो ही दास कहाऊँतुम ही मेरे प्राण जीवन धनतुम तजि अनत न जाऊँतुम्हरे चरण कमल को भज कररतन हरि सुख पाऊँरघुवर तेरो ही दास कहाऊँListen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
साधो, मन का मान त्यागो।काम, क्रोध, संगत दुर्जन की, इनसे अहि निशि भागो,साधो, मन का मान त्यागो…सु:ख-दुःख दोऊ सम करि जानो, और मान अपमाना,हर्ष-शोक से रहै अतीता, तीनों तत्व पहचाना,साधो, मन का मान त्यागो…अस्तुति निंदा दोऊ त्यागो, जो है परमपद पाना,जन नानक यह खेल कठिन है, सद्गुरु के गुन गाना, साधो, मन का मान त्यागो…alternateअस्तुति निंदा दोऊ त्यागो, खोजो पद निरवाना,जन नानक यह खेल कठिन है, कोऊ गुरुमुख जाना, साधो, मन का मान त्यागो…Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
मंगल मूरति राम दुलारे,आन पड़ा अब तेरे द्वारे,हे बजरंगबली हनुमान,हे महावीर करो कल्याण,हे महावीर करो कल्याण ॥तीनों लोक तेरा उजियारा,दुखियों का तूने काज सँवारा,हे जगवंदन केसरीनंदन,कष्ट हरो हे कृपानिधान ॥मंगल मूरति राम दुलारे…तेरे द्वारे जो भी आया,खाली नहीं कोई लौटाया,दुर्गम काज बनावन हारे,मंगलमय दीजो वरदान ॥मंगल मूरति राम दुलारे…तेरा सुमिरन हनुमत वीरा,नासे रोग हरे सब पीरा,राम लखन सीता मन बसिया,शरण पड़े का कीजे ध्यान ॥मंगल मूरति राम दुलारे…Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
रघुवर तुमको मेरी लाज ।सदा सदा मैं शरण तिहारी,तुम हो गरीब निवाज़ ॥पतित उधारण विरद तिहारो,श्रवनन सुनी आवाज ।तुमको मेरी लाज, रघुवर तुमको मेरी लाज …हौँ तो पतित पुरातन कहिए,पार उतारो जहाज ॥तुलसीदास पर किरपा कीजै,भगति दान देहु आज ॥तुमको मेरी लाज, रघुवर तुमको मेरी लाज …अघ खंडन दुःख भन्जन जन के,यही तिहारो काज ।तुमको मेरी लाज, रघुवर तुमको मेरी लाज …Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर,प्रभु को नियम बदलते देखा ।उनका मान भले टल जाए,भक्त का मान न टलते देखा ॥जिनकी केवल कृपा दृष्टि से,सकल सृष्टि को पलते देखा ।उनको गोकुल के गोरस पर,सौ-सौ बार मचलते देखा ॥प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर…जिनके चरण कमल कमला के,करतल से न निकलते देखा ।उनको बृज करील कुञ्जों में,कंटक पथ पर चलते देखा ॥प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर…जिनका ध्यान विरंचि शम्भुसनकादिक से न सम्हलते देखा ।उनको बाल सखा मंडल में,लेकर गेंद उछलते देखा ॥प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर…जिनकी वक्र भृकुटि के भय से,सागर सप्त उबलते देखा ।उनको ही यशोदा के भय से,अश्रु बिंदु दृग ढलते देखा ॥प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर…Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
अब तो माधव मोहे उबार |दिवस बीते रैन बीती, बार बार पुकार ||नाव है मझधार भगवान्, तीर कैसे पाए,घिरी है घनघोर बदली पार कौन लगाये |काम क्रोध समेत तृष्णा, रही पल छिन घेर,नाथ दीनानाथ कृष्ण मत लगाओ देर |दौड़ कर आये बचाने द्रौपदी की लाज,द्वार तेरा छोड़ के किस द्वार जाऊं आज |Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
गोविंद कबहुं मिलै पिया मेरा॥चरण-कंवल को हंस-हंस देखूं राखूं नैणां नेरा।गोविंद, राखूं नैणां नेरा।गोविंद कबहुं मिलै पिया मेरा॥निरखणकूं मोहि चाव घणेरो कब देखूं मुख तेरा।गोविंद, कब देखूं मुख तेरा।गोविंद कबहुं मिलै पिया मेरा॥व्याकुल प्राण धरत नहिं धीरज मिल तूं मीत सबेरा।गोविंद, मिल तूं मीत सबेरा।गोविंद कबहुं मिलै पिया मेरा॥मीरा के प्रभु गिरधर नागर ताप तपन बहुतेरा।गोविंद, ताप तपन बहुतेरा।गोविंद कबहुं मिलै पिया मेरा॥Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Click here to listen to the bhajan sung by Dr. Uma Shrivastavaभगवान मेरी नैया उस पार लगा देना ।अब तक तो निभाया है, आगे भी निभा देना ॥दल बल के साथ माया, घेरे जो मुझको आ कर ।तो देखते न रहना, झट आ के बचा लेना ॥भगवान मेरी नैया उस पार लगा देना ।संभव है झंझटों में मैं तुमको भूल जाऊं ।पर नाथ कहीं तुम भी मुझको ना भुला देना ॥भगवान मेरी नैया उस पार लगा देना ।तुम देव मैं पुजारी, तुम ईश मैं उपासक ।यह बात सच है तो फिर सच कर के दिखा देना ॥भगवान मेरी नैया उस पार लगा देना ।
Click here to listen to the bhajan sung by Dr. Uma Shrivastavaअब सौंप दिया इस जीवन का,सब भार तुम्हारे हाथों में.उद्धार पतन अब मेरा है,भगवान तुम्हारे हाथों में.अब सौंप दिया इस जीवन का…हम तुमको कभी नहीं भजते,फिर भी तुम हमें नहीं तजते.अपकार हमारे हाथों में,उपकार तुम्हारे हाथों में.अब सौंप दिया इस जीवन का…हम में तुम में है भेद यही,हम नर हैं, तुम नारायण हो.हम हैं संसार के हाथों में,संसार तुम्हारे हाथों में.अब सौंप दिया इस जीवन का…दृग 'बिंदु' बनाया करते हैं,एक सेतु विरह के सागर में.जिससे हम पहुंचा करते हैं,उस पार तुम्हारे हाथों में.अब सौंप दिया इस जीवन का…
Click here to listen to the bhajan by Dr. Uma Shrivastavयही हरि भक्त कहते हैं, यही सद्-ग्रन्थ गाते हैं ।कि जाने कौन से गुण पर दयानिधि रीझ जाते हैं ॥नहीं स्वीकार करते हैं निमंत्रण नृप सुयोधन का ।विदुर के घर पहुंचकर भोग छिलकों का लगाते हैं ॥कि जाने कौन से गुण पर दयानिधि रीझ जाते हैं ।यही हरि भक्त कहते हैं, यही सद्-ग्रन्थ गाते हैं ॥न आये मधुपुरी से गोपियों की दुख कथा सुनकर ।द्रुपदाजी की दशा पर द्वारका से दौड़ आते हैं ॥यही हरि भक्त कहते हैं, यही सद्-ग्रन्थ गाते हैं ।न रोये वन-गमन में श्री पिता की वेदनाओं पर ।उठा कर गीध को निज गोद में आंसू बहाते हैं ॥न जाने कौन से गुण पर दयानिधि रीझ जाते हैं ।यही हरि भक्त कहते हैं, यही सद्-ग्रन्थ गाते हैं ॥कठिनता से चरण धोकर मिले कुछ 'बिन्दु' विधि हर को ।वो चरणोदक स्वयं केवट के घर जाकर लुटाते हैं ॥कि जाने कौन से गुण पर दयानिधि रीझ जाते हैं ।यही हरि भक्त कहते हैं, यही सद्-ग्रन्थ गाते हैं ॥
कान्हा तोरी जोहत रह गई बाट ।जोहत जोहत एक पग ठानी,कालिंदी के घाट,कान्हा तोरी जोहत रह गई बाट ।झूठी प्रीत करी मनमोहन,या कपटी की बात,कान्हा तोरी जोहत रह गई बाट ।मीरा के प्रभु गिरघर नागर,दे गियो बृज को चाठ,कान्हा तोरी जोहत रह गई बाट ।Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
अबकी टेक हमारी, लाज राखो गिरिधारी।जैसी लाज रखी पारथ की, भारत जुद्ध मंझारी। सारथि होके रथ को हांक्यो, चक्र-सुदर्शन-धारी।भगत की टेक न टारी।अबकी टेक हमारी…जैसी लाज रखी द्रौपदि की, होन्हिं न दीन्हिं उघारी। खैंचत खैंचत दोऊ भुज थाके, दु:शासन पचि हारी।चीर बढ़ायो मुरारी ।अबकी टेक हमारी…सूरदास की लज्जा राखो, अब को है रखवारी ? राधे राधे श्रीवर-प्यारी श्रीवृषभान-दुलारी। सरन तकि आयो तुम्हारी।अबकी टेक हमारी…Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
किसकी शरण में जाऊं अशरण शरण तुम्हीं हो ॥गज ग्राह से छुड़ाया प्रह्लाद को बचाया।द्रौपदी का पट बढ़ाया निर्बल के बल तुम्हीं हो ॥अति दीन था सुदामा आया तुम्हारे धामा।धनपति उसे बनाया निर्धन के धन तुम्हीं हो ॥तारा सदन कसाई अजामिल की गति बनाई।गणिका सुपुर पठाई पातक हरण तुम्हीं हो ॥मुझको तो हे बिहारी आशा है बस तुम्हारी।काहे सुरति बिसारी मेरे तो एक तुम्हीं हो ॥Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
तू दयालु, दीन हौं, तू दानि, हौं भिखारी।हौं प्रसिद्ध पातकी, तू पाप-पुंज-हारी॥नाथ तू अनाथ को, अनाथ कौन मोसो।मो समान आरत नहिं, आरतिहर तोसो॥ब्रह्म तू, हौं जीव, तू है ठाकुर, हौं चेरो।तात-मात, गुरु-सखा, तू सब विधि हितु मेरो॥तोहिं मोहिं नाते अनेक, मानियै जो भावै।ज्यों त्यों तुलसी कृपालु! चरन-सरन पावै॥Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava
जो भजे हरि को सदा सो परम पद पायेगा ..देह के माला तिलक और भस्म नहिं कुछ काम के .प्रेम भक्ति के बिना नहिं नाथ के मन भायेगा ..जो भजे हरि को सदा सो परम पद पायेगा ..दिल का दर्पण साफ कर और दूर कर अभिमान को .खाक हो गुरु के चरण की फिर जनम नहीं पायेगा ..जो भजे हरि को सदा सो परम पद पायेगा ..छोड़ दुनिया के मज़े और बैठ कर एकांत में .ध्यान धर हरि के चरण का तो प्रभु मिल जायेगा ..जो भजे हरि को सदा सो परम पद पायेगा ..दृढ़ भरोसा रख के मन में जो भजे हरि नाम को .कहत ब्रह्मानंद ब्रह्मानंद में ही समायेगा ..जो भजे हरि को सदा सो परम पद पायेगा ..Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
श्याम आये नैनों मेंबन गयी मैं साँवरीशीश मुकुट बंसी अधररेशम का पीताम्बरपहने है वनमाल, सखीसलोनो श्याम सुन्दरकमलों से चरणों परजाऊँ मैं वारि रीमैं तो आज फूल बनूँधूप बनूँ दीप बनूँगाते गाते गीत सखीआरती का दीप बनूँआज चढ़ूँ पूजा मेंबन के एक पाँखुड़ीListen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Listen to this Holi `Holi aayii re kaanhaa brij ke basiya' in the voice of Dr. Uma Shrivastavaहोलीआई रे कान्हा बृज के बसियाहोलीआई रे कान्हा…आज बिरज में धूम मची है, सब मिल खेलें होलीझांझ मृदङ्ग मंजीरा बाजे,नाचे छोरा छोरीऐसी धूम मची बृज में रसियाहोलीआई रे कान्हा…अपने अपने घर से निकसी, कोई श्यामल कोई गोरी,किसी के हाथ गुलाल पिटारी कोई मारे पिचकारीअब तो धूम मची बृज में रसियाहोलीआई रे कान्हा…इत से आई कुंवरि राधिका, हाथ गुलाल पिटारी,उत से धाये कृष्ण कन्हाई,भर मारी पिचकारी ऐसा फाग रच्यो बृज में रसियाहोलीआई रे कान्हा…
Listen to the Holi `Ram Janki ki Hori` sung by Shri Vibhu Varmaराम-जानकी की होरी (२)जनकपुर देखन चलो री, राम-जानकी की होरी…कौशल भूषण इत रघुनन्दन, उत मिथिलेश किशोरी, (२)सखा राम के, सखी सिया की, (२)कैसा ये फाग रचो री, जुगल छवि आज लखो री, राम जानकी की होरी…लपक झपक सीता ने लक्ष्मण, पकड़ लिये बरजोरी, (२)कहां गये वो धनुष बाण अब, (२)बेंदी माथे धरो री, सखी इनके रोली मलो री,राम जानकी की होरी…इतने में पिचकारी मारी, भरत सियाजू की ओरी, (२)भींज गई मिथिलेश नन्दिनी, (२)अब कहो भाभी मोरी, कहो, और खेलोगी होरी ॥राम जानकी की होरी…Other audios of this Holi can be heard at Holi-Geet on archive.org.
Listen to the Holi `Holi Aaj jale chahe kaal jale` in the voice of Shri Abhay Shrivastava.होली आज जले चाहे काल जले (२)मोरा श्याम सुन्दर मोसे आन मिले (२)होली आज जले ... जब सब सखियाँ श्रृंगार करत हैं, मैं बिरहन बिरहा से जलूँ सखीमैं बिरहन बिरहा से जलूँ होली आज जले ... सब के पिया घर ही बसत हैं, हमरे पिया परदेस बसे री सखीहमरे पिया परदेस बसेहोली आज जले ... मीरा के प्रभु गिरिधर नागरश्याम सुन्दर मोसे आन मिले सखीश्याम सुन्दर मोसे आन मिले होली आज जले ...
Listen to the Holi, Mohan Ajab Khilari` in the voice of Shri Abhay Shrivastavaमोहन अजब खिलाड़ी, देखो होली कौतुक भारीमोहन अजब...नर तन धर सोई नट नागर, श्री वृषभानु दुलारी, (२)दिखलावत नित नये तमाशे, (२)चतुरन बहुत विचारी, बुद्धि सबकी पचि हारी मोहन अजब... मन मटकी भर प्रेम रंग से, सुचिता की पिचकारी (२)तक तक मारिये श्याम सुंदर पर, (२)चूके न अवसर भारी, कपट को घूंघट हटा री मोहन अजब...ज्ञान गुलाल अबीर भक्त को, याको चन्दन लगा री (२)विनती ये मधुरेश चरण की, (२)आवागमन मिटा री, बोलो, जय कृष्ण मुरारी मोहन अजब...variationमाय मोह जाल के माँही, सृष्टि फँसा कर सारी (२)दिखलावत नित नये तमाशे, (२)चतुरन बहुत विचारी, बुद्धि सबकी थक हारी मोहन अजब... नर तन धर सोई नट नागर, सुंदर श्री गिरधारी, (२)नन्द नन्दन श्री कुंज बिहारी, (२)खेलत होली भारी, बोलो, जय कृष्ण मुरारी मोहन अजब...
राम परिवार में गाये जाने वाले पारंपरिक होली गीतबिरज में धूम मचायो कान्हामैं तो रंगी तुम ही रंग प्यारेमोहन अजब खिलाड़ीराम जानकी की होरीहोरी खेलत गिरधारीहोली आज जले चाहे काल जलेहोली आयी रे कान्हा बृज के बसिया
Listen to the Holi, Biraj me dhoom machayo Kanha in the voice of Shri V N Shrivastav, Bhola. बिरज में धूम मचायो कान्हा (2)बिरज में धूम …बिरज में धूम मचायो कान्हाबिरज में धूम …कैसे कैसे जाऊँ,कैसे कैसे जाऊँ, अपने धामबिरज में धूम मचायो कान्हा (2)बिरज में धूम …कैसे कैसे जाऊँ, मैं,कैसे कैसे जाऊँ, अपने धामबिरज में धूम मचायो कान्हा (2)बिरज में धूम …सब सखियाँ मिल, होली खेलत हैं (3)होली खेलत हैंसब सखियाँ मिल, होली खेलत हैं (2)होली खेलत हैं (2)सब सखियाँ मिल, होली खेलत हैं (2)अँखियन डार गुलाल ...बिरज में धूम मचायो कान्हा (2)कैसे कैसे जाऊँ, मैं, (2)कैसे कैसे जाऊँ, (2)कैसे कैसे जाऊँ, अपने धामबिरज में धूम मचायो कान्हाबिरज में धूम …
Bhajan: Ram Bhaja so Jeeta Jag MeListen to the bhajan sung by Shri V N Shrivastav 'Bhola'राम भजा सो जीता जग में,राम भजा सो जीता रे।हृदय शुद्ध नही कीन्हों मूरख,कहत सुनत दिन बीता रे।राम भजा सो जीता जग में ...हाथ सुमिरनी, पेट कतरनी,पढ़ै भागवत गीता रे।हिरदय सुद्ध किया नहीं बौरे,कहत सुनत दिन बीता रे।राम भजा सो जीता जग में ...और देव की पूजा कीन्ही,हरि सों रहा अमीता रे।धन जौबन तेरा यहीं रहेगा,अंत समय चल रीता रे।राम भजा सो जीता जग में ...बाँवरिया बन में फंद रोपै,संग में फिरै निचीता रे।कहे 'कबीर' काल यों मारे,जैसे मृग कौ चीता रे।राम भजा सो जीता जग में ...
Listen to VNS 'Bhola' teaching the bhajan to Prarthana & Chhavi.ये सब तुम्हारी मैहर है प्यारे,ये सब तुम्हारी मैहर है बाबा, कि अब भी महफिल जमी हुई है ।जहाँ भी देखूँ जिधर भी देखूँ, तुम्हारी मूरत/सूरत पड़े दिखाई ।यहाँ के हर शय में प्यारे बाबा, तुम्हारी ख़ुशबू भरी हुई है ॥ये सब तुम्हारी मैहर है बाबा, कि अब भी महफिल जमी हुई है ।जो आँख मूदूँ तो यूँ लगे ज्योँ, तू पास में ही खड़ा हुआ है ।ज़मीं से अम्बर तलक फि़ज़ा ये, तेरे ही रंग में रंगी हुई है ॥ये सब तुम्हारी मैहर है बाबा, कि अब भी महफिल जमी हुई है ।सजल हमारे नयन मगर तू, मधुर मधुर मुस्कुरा रहा है ।तेरी मधुर मुसकान से अपनी, अंतर्ज्योति जगी हुई है ॥ये सब तुम्हारी मैहर है बाबा, कि अब भी महफिल जमी हुई है ।साईं राम साईं राम -----------
Dhun: aate bhi Ram bolo, jaate bhi Ram boloListen in the Voice of Shri VNS Bholaवृद्धि आस्तिक भाव की शुभ मंगल संचार ।अभ्युदय सद्धर्म का राम नाम विस्तार ॥ (३)गुरु को करिए वंदना, भाव से बारम्बार ।नाम सुनौका से किया, जिसने भव से पार ॥कर्म धर्म का बोध दे, जिसने बताया राम ।उसके चरण सरोज को, नतशिर हो प्रणाम ॥वारे जाऊं संत के, जो देवे शुभ नाम ।बांह पकड़ सुस्थिर करै, राम बतावे धाम ॥श्री राम जय राम जय जय राम ॥आते भी राम बोलो, जाते भी राम बोलो ।सुबह और शाम बोलो, राम राम राम ॥ (२)राम राम राम, बोलो राम राम राम ।राम राम राम, बोलो राम राम राम ।बोलो राम राम राम, बोलो राम राम राम (२)आते भी राम बोलो, जाते भी राम बोलो ।सुबह और शाम बोलो, राम राम राम ॥मैंने अपने आप की, दे दी तुझको डोर । (३)आगे मर्ज़ी आपकी, ले जाओ जिस ओर ॥ (२)ले जाओ जिस ओर, ले जाओ जिस ओर ॥आते भी राम बोलो, जाते भी राम बोलो ।सुबह और शाम बोलो, राम राम राम ॥ (२)चिंतामणि हरि नाम है, सफल करे सब काम । (२)महा मंत्र मानो यह, राम राम श्री राम ॥ (२)बोलो राम, बोलो राम, बोलो राम राम राम ।बोलो राम, बोलो राम, बोलो राम राम राम ॥आते भी राम बोलो, जाते भी राम बोलो ।सुबह और शाम बोलो, राम राम राम ॥ (२)राम राम राम, बोलो राम राम राम ।राम राम राम, बोलो राम राम राम ।बोलो राम राम राम, बोलो राम राम राम ॥आते भी राम बोलो, जाते भी राम बोलो ।सुबह और शाम बोलो, राम राम राम ॥बोलो राम राम राम, बोलो राम राम राम ।बोलो राम राम राम, बोलो राम राम राम ॥
Listen to Amritvanisung by Shri V N Shrivastav 'Bhola', Family and Friendsसर्वशक्तिमते परमात्मने श्री रामाय नम: (७)(राम-कृपा अवतरण)परम कृपा सुरूप है, परम प्रभु श्री राम ।जन पावन परमात्मा, परम पुरुष सुख धाम ।। १ ।।सुखदा है शुभा कृपा, शक्ति शान्ति स्वरूप ।है ज्ञान आनन्द मयी, राम कृपा अनूप ।। २ ।।परम पुण्य प्रतीक है, परम ईश का नाम ।तारक मंत्र शक्ति घर, बीजाक्षर है राम ।। ३ ।।साधक साधन साधिए, समझ सकल शुभ सार ।वाचक वाच्य एक है, निश्चित धार विचार ।। ४ ।।मंत्रमय ही मानिए, इष्ट देव भगवान् ।देवालय है राम का, राम शब्द गुण खान ।। ५ ।।राम नाम आराधिए, भीतर भर ये भाव ।देव दया अवतरण का, धार चौगुना चाव ।। ६ ।।मन्त्र धारणा यों कर, विधि से ले कर नाम ।जपिए निश्चय अचल से, शक्ति धाम श्री राम ।। ७ ।।यथा वृक्ष भी बीज से, जल रज ऋतु संयोग ।पा कर, विकसे क्रम से, त्यों मन्त्र से योग ।। ८ ।।यथा शक्ति परमाणु में, विद्युत् कोष समान ।है मन्त्र त्यों शक्तिमय, ऐसा रखिए ध्यान ।। ९ ।।ध्रुव धारणा धार यह, राधिए मन्त्र निधान ।हरि-कृपा अवतरण का, पूर्ण रखिए ज्ञान ।। १० ।।आता खिड़की द्वार से, पवन तेज का पूर ।है कृपा त्यों आ रही, करती दुर्गुण दूर ।। ११ ।।बटन दबाने से यथा, आती बिजली धार ।नाम जाप प्रभाव से, त्यों कृपा अवतार ।।१२ ।।खोलते ही जल नल ज्यों, बहता वारि बहाव ।जप से कृपा अवतरित हो, तथा सजग कर भाव ।। १३ ।।राम शब्द को ध्याइये, मन्त्र तारक मान ।स्वशक्ति सत्ता जग करे, उपरि चक्र को यान ।। १४ ।।दशम द्वार से हो तभी, राम कृपा अवतार ।ज्ञान शक्ति आनन्द सह, साम शक्ति संचार ।। १५ ।।देव दया स्वशक्ति का, सहस्र कमल में मिलाप ।हो सत्पुरुष संयोग से, सर्व नष्ट हों पाप ।। १६ ।।(नमस्कार सप्तक)करता हूं मैं वन्दना, नत शिर बारम्बार ।तुझे देव परमात्मन्, मंगल शिव शुभकार ।। १ ।।अंजलि पर मस्तक किये, विनय भक्ति के साथ ।नमस्कार मेरा तुझे, होवे जग के नाथ ।। २ ।।दोनों कर को जोड़ कर, मस्तक घुटने टेक ।तुझ को हो प्रणाम मम, शत शत कोटि अनेक ।। ३ ।।पाप-हरण मंगल-करण, चरण शरण का ध्यान ।धार करूँ प्रणाम मैं, तुझ को शक्ति-निधान ।। ४ ।।भक्ति-भाव शुभ-भावना, मन में भर भरपूर ।श्रद्धा से तुझ को नमूँ, मेरे राम हजूर ।। ५ ।।ज्योतिर्मय जगदीश हे, तेजोमय अपार ।परम पुरुष पावन परम, तुझ को हो नमस्कार ।। ६ ।।सत्यज्ञान आनन्द के, परम धाम श्री राम ।पुलकित हो मेरा तुझे होवे बहु प्रणाम ।। ७ ।।(प्रात: पाठ)परमात्मा श्री राम परम सत्य, प्रकाश रूप,परम ज्ञानानन्दस्वरूप, सर्वशक्तिमान्,एकैवाद्वितीय परमेश्वर, परम पुरुष,दयालु देवाधिदेव है, उसको बार-बारनमस्कार, नमस्कार, नमस्कार, नमस्कार ।।(अमृत वाणी)रामामृत पद पावन वाणी,राम नाम धुन सुधा समानी ।पावन पाठ राम गुण ग्राम,राम राम जप राम ही राम ।।१ ।।परम सत्य परम विज्ञान,ज्योति-स्वरूप राम भगवान् ।परमानन्द, सर्वशक्तिमान्,राम परम है राम महान् ।।२ ।।अमृत वाणी नाम उच्चारण,राम राम सुखसिद्धि-कारण ।अमृत-वाणी अमृत श्री नाम,राम राम मुद मंगल-धाम ।।३ ।।अमृतरूप राम-गुण गान,अमृत-कथन राम व्याख्यान ।अमृत-वचन राम की चर्चा,सुधा सम गीत राम की अर्चा ।।४ ।।अमृत मनन राम का जाप,राम राम प्रभु राम अलाप ।अमृत चिन्तन राम का ध्यान,राम शब्द में शुचि समाधान ।।५ ।।अमृत रसना वही कहावे,राम राम जहाँ नाम सुहावे ।अमृत कर्म नाम कमाई,राम राम परम सुखदाई ।।६ ।।अमृत राम नाम जो ही ध्यावे,अमृत पद सो ही जन पावे ।राम नाम अमृत-रस सार,देता परम आनन्द अपार ।।७ ।।राम राम जप हे मना,अमृत वाणी मान ।राम नाम में राम को,सदा विराजित जान ।।८ ।।राम नाम मुद मंगलकारी,विध्न हरे सब पातक हारी ।राम नाम शुभ शकुन महान्,स्वस्ति शान्ति शिवकर कल्याण ।।९ ।।राम राम श्री राम विचार,मानिए उत्तम मंगलाचार ।राम राम मन मुख से गाना,मानो मधुर मनोरथ पाना ।।१० ।।राम नाम जो जन मन लावे,उस में शुभ सभी बस जावे ।जहां हो राम नाम धुन-नाद,भागें वहां से विषम विषाद ।।११ ।।राम नाम मन-तप्त बुझावे,सुधा रस सींच शांति ले आवे ।राम राम जपिए कर भाव,सुविधा सुविधि बने बनाव ।।१२ ।।राम नाम सिमरो सदा,अतिशय मंगल मूल ।विषम-विकट संकट हरण,कारक सब अनुकूल ।।१३ ।।जपना राम राम है सुकृत,राम नाम है नाशक दुष्कृत ।सिमरे राम राम ही जो जन,उसका हो शुचितर तन मन ।।१४ ।।जिसमें राम नाम शुभ जागे,उस के पाप ताप सब भागे ।मन से राम नाम जो उच्चारे,उस के भागें भ्रम भय सारे ।।१५ ।।जिस में बस जाय राम सुनाम,होवे वह जन पूर्णकाम ।चित्त में राम राम जो सिमरे,निश्चय भव सागर से तरे ।।१६ ।।राम सिमरन होवे सहाई,राम सिमरन है सुखदाई ।राम सिमरन सब से ऊंचा,राम शक्ति सुख ज्ञान समूचा ।।१७ ।।राम राम ही सिमर मन,राम राम श्री राम ।राम राम श्री राम भज,राम राम हरि-नाम ।।१८ ।।मात-पिता बान्धव सुत दारा,धन जन साजन सखा प्यारा ।अन्त काल दे सके न सहारा,राम नाम तेरा तारन हारा ।।१९ ।।सिमरन राम नाम है संगी,सखा स्नेही सुहृद् शुभ अंगी ।युग युग का है राम सहेला,राम भक्त नहीं रहे अकेला ।।२० ।।निर्जन वन विपद् हो घोर,निबड़ निशा तम सब ओर ।जोत जब राम नाम की जगे,संकट सर्व सहज से भगे ।।२१ ।।बाधा बड़ी विषम जब आवे,वैर विरोध विघ्न बढ़ जावे ।राम नाम जपिए सुख दाता,सच्चा साथी जो हितकर त्राता ।।२२ ।मन जब धैय्र्य को नहीं पावे,कुचिन्ता चित्त को चूर बनावे ।राम नाम जपे चिन्ता चूरक,चिन्तामणि चित्त चिन्तन पूरक ।।२३ ।।शोक सागर हो उमड़ा आता,अति दुःख में मन घबराता ।भजिए राम राम बहु बार,जन का करता बेड़ा पार ।।२४ ।।कड़ी घड़ी कठिनतर काल,कष्ट कठोर हो क्लेश कराल ।राम राम जपिए प्रतिपाल,सुख दाता प्रभु दीनदयाल ।।२५ ।।घटना घोर घटे जिस बेर,दुर्जन दुखड़े लेवें घेर ।जपिए राम नाम बिन देर,रखिए राम राम शुभ टेर ।।२६ ।।राम नाम हो सदा सहायक,राम नाम सर्व सुखदायक ।राम राम प्रभु राम का टेक,शरण शान्ति आश्रय है एक ।।२७ ।।पूंजी राम नाम की पाइये,पाथेय साथ नाम ले जाइये ।नाशे जन्म मरण का खटका,रहे राम भक्त नहीं अटका ।।२८ ।।राम राम श्री राम है,तीन लोक का नाथ ।परम पुरुष पावन प्रभु,सदा का संगी साथ ।।२९ ।।यज्ञ तप ध्यान योग ही त्याग,बन कुटी वास अति वैराग ।राम नाम बिना नीरस फोक,राम राम जप तरिए लोक ।।३० ।।राम जाप सब संयम साधन,राम जाप है कर्म आराधन ।राम जाप है परम अभ्यास,सिमरो राम नाम 'सुख-रास' ।।३१ ।।राम जाप कही ऊँची करणी,बाधा विध्न बहु दुःख हरणी ।राम राम महा-मन्त्र जपना,है सुव्रत नेम तप तपना ।।३२ ।।राम जाप है सरल समाधि,हरे सब आधि व्याधि उपाधि ।ऋद्धि सिद्धि और नव निधान,दाता राम है सब सुख खान ।।३३ ।राम राम चिन्तन सुविचार,राम राम जप निश्चय धार ।राम राम श्री राम ध्याना,है परम पद अमृत पाना ।।३४ ।।राम राम श्री राम हरि,सहज परम है योग ।राम राम श्री राम जप,दाता अमृत भोग ।।३५ ।।नाम चिन्तामणि रत्न अमोल,राम नाम महिमा अनमोल ।अतुल प्रभाव अति प्रताप,राम नाम कहा तारक जाप ।।३६ ।।बीज अक्षर महा-शक्ति-कोष,राम राम जप शुभ सन्तोष ।राम राम श्री राम राम मंत्र,तन्त्र बीज परात् पर यन्त्र ।।३७ ।।बीजाक्षर पद पद्म प्रकाशे,राम राम जप दोष विनाशे ।कुँडलिनी बोधे शुष्मणा खोले,राम मंत्र अमृत रस घोले ।।३८ ।।उपजे नाद सहज बहु भांत,अजपा जाप भीतर हो शान्त ।राम राम पद शक्ति जगावे,राम राम धुन जभी रमावे ।।३९ ।।राम नाम जब जगे अभंग,चेतन भाव जगे सुख-संग ।ग्रन्थी अविद्या टूटे भारी,राम लीला की खिले फुलवारी ।।४० ।।पतित पावन परम पाठ,राम राम जप याग ।सफल सिद्धि कर साधना,राम नाम अनुराग ।।४१ ।।तीन लोक का समझिए सार,राम नाम सब ही सुखकार ।राम नाम की बहुत बड़ाई,वेद पुराण मुनि जन गाई ।।४२ ।।यति सती साधु-संत सयाने,राम नाम निश दिन बखाने ।तापस योगी सिद्ध ऋषिवर,जपते राम राम सब सुखकर ।।४३ ।।भावना भक्ति भरे भजनीक,भजते राम नाम रमणीक ।भजते भक्त भाव भरपूर,भ्रम भय भेद-भाव से दूर ।।४४ ।।पूर्ण पंडित पुरुष प्रधान,पावन परम पाठ ही मान ।करते राम राम जप ध्यान,सुनते राम अनाहद तान ।।४५ ।।इस में सुरति सुर रमाते,राम राम स्वर साध समाते ।देव देवीगण दैव विधाता,राम राम भजते गणत्राता ।।४६ ।।राम राम सुगुणी जन गाते,स्वर संगीत से राम रिझाते ।कीर्तन कथा करते विद्वान,सार सरस संग साधनवान् ।।४७ ।।मोहक मंत्र अति मधुर,राम राम जप ध्यान ।होता तीनों लोक में,राम नाम गुण गान ।।४८ ।।मिथ्या मन-कल्पित मत-जाल,मिथ्या है मोह कुमद बैताल ।मिथ्या मन मुखिया मनोराज,सच्चा है राम नाम जप काज ।।४९ ।।मिथ्या है वाद विवाद विरोध,मिथ्या है वैर निंदा हठ क्रोध ।मिथ्या द्रोह दुर्गुण दुःख खान,राम नाम जप सत्य निधान ।।५० ।।सत्य मूलक है रचना सारी,सर्व सत्य प्रभु राम पसारी ।बीज से तरु मकड़ी से तार,हुआ त्यों राम से जग विस्तार ।।५१ ।।विश्व वृक्ष का राम है मूल,उस को तू प्राणी कभी न भूल ।साँस साँस से सिमर सुजान,राम राम प्रभु राम महान् ।।५२ ।।लय उत्पत्ति पालना रूप,शक्ति चेतना आनंद स्वरूप ।आदि अन्त और मध्य है राम,अशरण शरण है राम विश्राम ।।५३ ।।राम नाम जप भाव से,मेरे अपने आप ।परम पुरुष पालक प्रभु,हर्ता पाप त्रिताप ।।५४ ।।राम नाम बिना वृथा विहार,धन धान्य सुख भोग पसार ।वृथा है सब सम्पद् सम्मान,होवे तन यथा रहित प्राण ।।५५ ।।नाम बिना सब नीरस स्वाद,ज्यों हो स्वर बिना राग विषाद ।नाम बिना नहीं सजे सिंगार,राम नाम है सब रस सार ।।५६ ।।जगत् का जीवन जानो राम,जग की ज्योति जाज्वल्यमान ।राम नाम बिना मोहिनी माया,जीवन-हीन यथा तन छाया ।।५७ ।।सूना समझिए सब संसार,जहां नहीं राम नाम संचार ।सूना जानिए ज्ञान विवेक,जिस में राम नाम नहीं एक ।।५८ ।।सूने ग्रंथ पन्थ मत पोथे,बने जो राम नाम बिन थोथे ।राम नाम बिन वाद विचार,भारी भ्रम का करे प्रचार ।।५९ ।।राम नाम दीपक बिना,जन-मन में अन्धेर ।रहे, इस से हे मम मन,नाम सुमाला फेर ।।६० ।।राम राम भज कर श्री राम,करिए नित्य ही उत्तम काम ।जितने कर्तव्य कर्म कलाप,करिए राम राम कर जाप ।।६१ ।।करिए गमनागम के काल,राम जाप जो करता निहाल ।सोते जगते सब दिन याम,जपिए राम राम अभिराम ।।६२ ।।जपते राम नाम महा माला,लगता नरक द्वार पै ताला ।जपते राम राम जप पाठ,जलते कर्मबन्ध यथा काठ ।।६३ ।।तान जब राम नाम की टूटे,भांडा भरा अभाग्य भय फूटे ।मनका है राम नाम का ऐसा,चिन्ता-मणि पारस-मणि जैसा ।।६४ ।।राम नाम सुधा-रस सागर,राम नाम ज्ञान गुण-आगर ।राम नाम श्री राम महाराज,भव-सिन्धु में है अतुल जहाज ।।६५ ।।राम नाम सब तीर्थ स्थान,राम राम जप परम स्नान ।धो कर पाप-ताप सब धूल,कर दे भय-भ्रम को उन्मूल ।।६६ ।।राम जाप रवि-तेज समान,महा मोह-तम हरे अज्ञान ।राम जाप दे आनन्द महान्,मिले उसे जिसे दे भगवान् ।।६७ ।।राम नाम को सिमरिये,राम राम एक तार ।परम पाठ पावन परम,पतित अधम दे तार ।।६८ ।।माँगूं मैं राम-कृपा दिन रात,राम-कृपा हरे सब उत्पात ।राम-कृपा लेवे अन्त सम्हाल,राम प्रभु है जन प्रतिपाल ।।६९ ।।राम-कृपा है उच्चतर योग,राम-कृपा है शुभ संयोग ।राम-कृपा सब साधन-मर्म,राम-कृपा संयम सत्य धर्म ।।७० ।।राम नाम को मन में बसाना,सुपथ राम-कृपा का है पाना ।मन में राम-धुन जब फिरे,राम-कृपा तब ही अवतरे ।।७१ ।।रहूँ, मैं नाम में हो कर लीन,जैसे जल में हो मीन अदीन ।राम-कृपा भरपूर मैं पाऊँ,परम प्रभु को भीतर लाऊँ ।।७२ ।।भक्ति-भाव से भक्त सुजान,भजते राम-कृपा का निधान ।राम-कृपा उस जन में आवे,जिस में आप ही राम बसावे ।।७३ ।।कृपा-प्रसाद है राम की देनी,काल-व्याल जंजाल हर लेनी ।कृपा-प्रसाद सुधा-सुख-स्वाद,राम नाम दे रहित विवाद ।।७४ ।।प्रभु-प्रसाद शिव शान्ति दाता,ब्रह्म-धाम में आप पहुँचाता ।प्रभु-प्रसाद पावे वह प्राणी,राम राम जपे अमृत वाणी ।।७५ ।।औषध राम नाम की खाइये,मृत्यु जन्म के रोग मिटाइये ।राम नाम अमृत रस-पान,देता अमल अचल निर्वाण ।।७६ ।।राम राम धुन गूँज से,भव भय जाते भाग ।राम नाम धुन ध्यान से,सब शुभ जाते जाग ।।७७ ।।माँगूं मैं राम नाम महादान,करता निर्धन का कल्याण ।देव द्वार पर जन्म का भूखा,भक्ति प्रेम अनुराग से रूखा ।।७८ ।।'पर हूँ तेरा' -यह लिये टेर,चरण पड़े की रखियो मेर ।अपना आप विरद विचार,दीजिए भगवन् ! नाम प्यार ।।७९ ।।राम नाम ने वे भी तारे,जो थे अधर्मी अधम हत्यारे ।कपटी कुटिल कुकर्मी अनेक,तर गये राम नाम ले एक ।।८० ।।तर गये धृति धारणा हीन,धर्म-कर्म में जन अति दीन ।राम राम श्री राम जप जाप,हुए अतुल विमल अपाप ।।८१ ।।राम नाम मन मुख में बोले,राम नाम भीतर पट खोले ।राम नाम से कमल विकास,होवें सब साधन सुख-रास ।।८२ ।।राम नाम घट भीतर बसे,साँस साँस नस नस से रसे ।सपने में भी न बिसरे नाम,राम राम श्री राम राम राम ।।८३ ।।राम नाम के मेल से,सध जाते सब काम ।देव-देव देवे यदा,दान महा सुख धाम ।।८४ ।।अहो ! मैं राम नाम धन पाया,कान में राम नाम जब आया ।मुख से राम नाम जब गाया,मन से राम नाम जब ध्याया ।।८५ ।।पा कर राम नाम धन-राशी,घोर अविद्या विपद् विनाशी ।बढ़ा जब राम प्रेम का पूर,संकट संशय हो गये दूर ।।८६ ।।राम नाम जो जपे एक बेर,उस के भीतर कोष कुबेर ।दीन दुखिया दरिद्र कंगाल,राम राम जप होवे निहाल ।।८७ ।।हृदय राम नाम से भरिए,संचय राम नाम धन करिए ।घट में नाम मूर्ति धरिए,पूजा अन्तर्मुख हो करिए ।।८८ ।।आँखें मूँद के सुनिए सितार,राम राम सुमधुर झंकार ।उस में मन का मेल मिलाओ,राम राम सुर में ही समाओ ।।८९ ।।जपूँ मैं राम राम प्रभु राम,ध्याऊँ मैं राम राम हरे राम ।सिमरूँ मैं राम राम प्रभु राम,गाऊँ मैं राम राम श्री राम ।।९० ।।अमृत वाणी का नित्य गाना,राम राम मन बीच रमाना ।देता संकट विपद् निवार,करता शुभ श्री मंगलाचार ।।९१ ।।राम नाम जप पाठ से,हो अमृत संचार ।राम-धाम में प्रीति हो,सुगुण-गण का विस्तार ।।९२ ।।तारक मंत्र राम है,जिस का सुफल अपार ।इस मंत्र के जाप से,निश्चय बने निस्तार ।।९३ ।।(धुन)१. बोलो राम, बोलो राम, बोलो राम राम राम ।२. श्री राम, श्री राम, श्री राम राम राम ।३. जय जय राम, जय जय राम, जय जय राम राम राम ।४. जय राम जय राम, जय जय राम,राम राम राम राम, जय जय राम ।५. पतित पावन नाम, भज ले राम राम राम ।भज ले राम राम राम, भज ले राम राम राम ।।६. अशरण शरण शान्ति के धाम, मुझे भरोसा तेरा राम ।मुझे भरोसा तेरा राम, मुझे भरोसा तेरा राम ।।७. रामाय नमः श्री रामाय नमः,रामाय नमः श्री रामाय नमः ।८. अहं भजामि रामं, सत्यं शिवं मंगलम् ।सत्यं शिवं मंगलं, सत्यं शिवं मगलम् ।।वृद्धि-आस्तिक भाव की, शुभ मंगल संचार ।अभ्युदय सद्धर्म का, राम नाम विस्तार ।। (२)--------------------------------------------------------------------------लेखकश्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराजकेवल प्रेमी राम-भक्तों में निशुल्क बांटने के लियेप्राप्ति स्थान -श्रीरामशरणम्,८, रिंग रोड,लाजपत नगर-४,नई दिल्ली-११० ०२४प्राप्ति समय -प्रतिदिन प्रातः ७ से ८ १/२रविवार प्रातः ९ से ११----------------------------------
Do the Sundarkand Path along with Shri Shiv Dayal Ji and Anil Shrivastava.कथा प्रारम्भ होत है, सुनहु वीर हनुमान ।राम लक्षमण जानकी, करहुँ सदा कल्याण ॥श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि । बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार । बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार ॥श्री गणेशाय नमः श्रीजानकीवल्लभो विजयतेश्रीरामचरितमानसपञ्चम सोपानसुन्दरकाण्डशान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदंब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम् ।रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिंवन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणिम्॥१॥नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीयेसत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मेकामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥२॥अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहंदनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।सकलगुणनिधानं वानराणामधीशंरघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥३॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई॥जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा। चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥बार बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी॥जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना॥जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रमहारी॥हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम॥१॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥जात पवनसुत देवन्ह देखा। जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा॥सुरसा नाम अहिन्ह कै माता। पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता॥आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा। सुनत बचन कह पवनकुमारा॥राम काजु करि फिरि मैं आवौं। सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं॥तब तव बदन पैठिहउँ आई। सत्य कहउँ मोहि जान दे माई॥कबनेहुँ जतन देइ नहिं जाना। ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना॥जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा। कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा॥सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ। तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ॥जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि रूप देखावा॥सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा। अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा॥बदन पइठि पुनि बाहेर आवा। मागा बिदा ताहि सिरु नावा॥मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा। बुधि बल मरमु तोर मै पावा॥राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान॥२॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई। करि माया नभु के खग गहई॥जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं। जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं॥गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई। एहि बिधि सदा गगनचर खाई॥सोइ छल हनूमान कहँ कीन्हा। तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा॥ताहि मारि मारुतसुत बीरा। बारिधि पार गयउ मतिधीरा॥तहाँ जाइ देखी बन सोभा। गुंजत चंचरीक मधु लोभा॥नाना तरु फल फूल सुहाए। खग मृग बृंद देखि मन भाए॥सैल बिसाल देखि एक आगें। ता पर धाइ चढेउ भय त्यागें॥उमा न कछु कपि कै अधिकाई। प्रभु प्रताप जो कालहि खाई॥गिरि पर चढि लंका तेहिं देखी। कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी॥अति उतंग जलनिधि चहु पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा॥कनक कोट बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना।चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना॥गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथिन्ह को गनै॥बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै॥१॥बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं।नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं॥कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं।नाना अखारेन्ह भिरहिं बहु बिधि एक एकन्ह तर्जहीं॥२॥करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं।कहुँ महिष मानषु धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं॥एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही।रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही॥३॥पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार।अति लघु रूप धरौं निसि नगर करौं पइसार॥३॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी॥जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ लगि चोरा॥मुठिका एक महा कपि हनी। रुधिर बमत धरनीं ढनमनी॥पुनि संभारि उठि सो लंका। जोरि पानि कर बिनय संसका॥जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा। चलत बिरंचि कहा मोहि चीन्हा॥बिकल होसि तैं कपि कें मारे। तब जानेसु निसिचर संघारे॥तात मोर अति पुन्य बहूता। देखेउँ नयन राम कर दूता॥तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग॥४॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कौसलपुर राजा॥गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई॥गरुड़ सुमेरु रेनू सम ताही। राम कृपा करि चितवा जाही॥अति लघु रूप धरेउ हनुमाना। पैठा नगर सुमिरि भगवाना॥मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा। देखे जहँ तहँ अगनित जोधा॥गयउ दसानन मंदिर माहीं। अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं॥सयन किए देखा कपि तेही। मंदिर महुँ न दीखि बैदेही॥भवन एक पुनि दीख सुहावा। हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा॥रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ।नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरषि कपिराइ॥५॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा॥मन महुँ तरक करै कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा॥राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा॥एहि सन हठि करिहउँ पहिचानी। साधु ते होइ न कारज हानी॥बिप्र रुप धरि बचन सुनाए। सुनत बिभीषण उठि तहँ आए॥करि प्रनाम पूँछी कुसलाई। बिप्र कहहु निज कथा बुझाई॥की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई। मोरें हृदय प्रीति अति होई॥की तुम्ह रामु दीन अनुरागी। आयहु मोहि करन बड़भागी॥तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम।सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम॥६॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी॥तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा। करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा॥तामस तनु कछु साधन नाहीं। प्रीति न पद सरोज मन माहीं॥अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥जौ रघुबीर अनुग्रह कीन्हा। तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा॥सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती। करहिं सदा सेवक पर प्रीती॥कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना॥प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा॥अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर।कीन्ही कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर॥७॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥जानतहूँ अस स्वामि बिसारी। फिरहिं ते काहे न होहिं दुखारी॥एहि बिधि कहत राम गुन ग्रामा। पावा अनिर्बाच्य बिश्रामा॥पुनि सब कथा बिभीषन कही। जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही॥तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता। देखी चहउँ जानकी माता॥जुगुति बिभीषन सकल सुनाई। चलेउ पवनसुत बिदा कराई॥करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ। बन असोक सीता रह जहवाँ॥देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा। बैठेहिं बीति जात निसि जामा॥कृस तन सीस जटा एक बेनी। जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी॥निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन।परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन॥८॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥तरु पल्लव महुँ रहा लुकाई। करइ बिचार करौं का भाई॥तेहि अवसर रावनु तहँ आवा। संग नारि बहु किएँ बनावा॥बहु बिधि खल सीतहि समुझावा। साम दान भय भेद देखावा॥कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी। मंदोदरी आदि सब रानी॥तव अनुचरीं करउँ पन मोरा। एक बार बिलोकु मम ओरा॥तृन धरि ओट कहति बैदेही। सुमिरि अवधपति परम सनेही॥सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा। कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा॥अस मन समुझु कहति जानकी। खल सुधि नहिं रघुबीर बान की॥सठ सूने हरि आनेहि मोहि। अधम निलज्ज लाज नहिं तोही॥आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान।परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन॥९॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥सीता तैं मम कृत अपमाना। कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना॥नाहिं त सपदि मानु मम बानी। सुमुखि होति न त जीवन हानी॥स्याम सरोज दाम सम सुंदर। प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर॥सो भुज कंठ कि तव असि घोरा। सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा॥चंद्रहास हरु मम परितापं। रघुपति बिरह अनल संजातं॥सीतल निसित बहसि बर धारा। कह सीता हरु मम दुख भारा॥सुनत बचन पुनि मारन धावा। मयतनयाँ कहि नीति बुझावा॥कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई। सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई॥मास दिवस महुँ कहा न माना। तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना॥भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद।सीतहि त्रास देखावहि धरहिं रूप बहु मंद॥१०॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥त्रिजटा नाम राच्छसी एका। राम चरन रति निपुन बिबेका॥सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना। सीतहि सेइ करहु हित अपना॥सपनें बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी॥खर आरूढ़ नगन दससीसा। मुंडित सिर खंडित भुज बीसा॥एहि बिधि सो दच्छिन दिसि जाई। लंका मनहुँ बिभीषन पाई॥नगर फिरी रघुबीर दोहाई। तब प्रभु सीता बोलि पठाई॥यह सपना मैं कहउँ पुकारी। होइहि सत्य गएँ दिन चारी॥तासु बचन सुनि ते सब डरीं। जनकसुता के चरनन्हि परीं॥जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच।मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच॥११॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥त्रिजटा सन बोली कर जोरी। मातु बिपति संगिनि तैं मोरी॥तजौं देह करु बेगि उपाई। दुसहु बिरहु अब नहिं सहि जाई॥आनि काठ रचु चिता बनाई। मातु अनल पुनि देहि लगाई॥सत्य करहि मम प्रीति सयानी। सुनै को श्रवन सूल सम बानी॥सुनत बचन पद गहि समुझाएसि। प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि॥निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी। अस कहि सो निज भवन सिधारी॥कह सीता बिधि भा प्रतिकूला। मिलहि न पावक मिटिहि न सूला॥देखिअत प्रगट गगन अंगारा। अवनि न आवत एकउ तारा॥पावकमय ससि स्त्रवत न आगी। मानहुँ मोहि जानि हतभागी॥सुनहि बिनय मम बिटप असोका। सत्य नाम करु हरु मम सोका॥नूतन किसलय अनल समाना। देहि अगिनि जनि करहि निदाना॥देखि परम बिरहाकुल सीता। सो छन कपिहि कलप सम बीता॥कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारी तब।जनु असोक अंगार दीन्हि हरषि उठि कर गहेउ॥१२॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥तब देखी मुद्रिका मनोहर। राम नाम अंकित अति सुंदर॥चकित चितव मुदरी पहिचानी। हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी॥जीति को सकइ अजय रघुराई। माया तें असि रचि नहिं जाई॥सीता मन बिचार कर नाना। मधुर बचन बोलेउ हनुमाना॥रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा॥लागीं सुनैं श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई॥श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई। कहि सो प्रगट होति किन भाई॥तब हनुमंत निकट चलि गयऊ। फिरि बैंठीं मन बिसमय भयऊ॥राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की॥यह मुद्रिका मातु मैं आनी। दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी॥नर बानरहि संग कहु कैसें। कहि कथा भइ संगति जैसें॥कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास॥जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास॥१३॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी। सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी॥बूड़त बिरह जलधि हनुमाना। भयउ तात मों कहुँ जलजाना॥अब कहु कुसल जाउँ बलिहारी। अनुज सहित सुख भवन खरारी॥कोमलचित कृपाल रघुराई। कपि केहि हेतु धरी निठुराई॥सहज बानि सेवक सुख दायक। कबहुँक सुरति करत रघुनायक॥कबहुँ नयन मम सीतल ताता। होइहहि निरखि स्याम मृदु गाता॥बचनु न आव नयन भरे बारी। अहह नाथ हौं निपट बिसारी॥देखि परम बिरहाकुल सीता। बोला कपि मृदु बचन बिनीता॥मातु कुसल प्रभु अनुज समेता। तव दुख दुखी सुकृपा निकेता॥जनि जननी मानहु जियँ ऊना। तुम्ह ते प्रेमु राम कें दूना॥रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर।अस कहि कपि गद गद भयउ भरे बिलोचन नीर॥१४॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥कहेउ राम बियोग तव सीता। मो कहुँ सकल भए बिपरीता॥नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू। कालनिसा सम निसि ससि भानू॥कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा। बारिद तपत तेल जनु बरिसा॥जे हित रहे करत तेइ पीरा। उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा॥कहेहू तें कछु दुख घटि होई। काहि कहौं यह जान न कोई॥तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा। जानत प्रिया एकु मनु मोरा॥सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं। जानु प्रीति रसु एतेनहि माहीं॥प्रभु संदेसु सुनत बैदेही। मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही॥कह कपि हृदयँ धीर धरु माता। सुमिरु राम सेवक सुखदाता॥उर आनहु रघुपति प्रभुताई। सुनि मम बचन तजहु कदराई॥निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु।जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु॥१५॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥जौं रघुबीर होति सुधि पाई। करते नहिं बिलंबु रघुराई॥रामबान रबि उएँ जानकी। तम बरूथ कहँ जातुधान की॥अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई। प्रभु आयसु नहिं राम दोहाई॥कछुक दिवस जननी धरु धीरा। कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा॥निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं। तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना। जातुधान अति भट बलवाना॥मोरें हृदय परम संदेहा। सुनि कपि प्रगट कीन्ह निज देहा॥कनक भूधराकार सरीरा। समर भयंकर अतिबल बीरा॥सीता मन भरोस तब भयऊ। पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ॥सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल।प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल॥१६॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥मन संतोष सुनत कपि बानी। भगति प्रताप तेज बल सानी॥आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना। होहु तात बल सील निधाना॥अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू॥करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना। निर्भर प्रेम मगन हनुमाना॥बार बार नाएसि पद सीसा। बोला बचन जोरि कर कीसा॥अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता। आसिष तव अमोघ बिख्याता॥सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा। लागि देखि सुंदर फल रूखा॥सुनु सुत करहिं बिपिन रखवारी। परम सुभट रजनीचर भारी॥तिन्ह कर भय माता मोहि नाहीं। जौं तुम्ह सुख मानहु मन माहीं॥देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु।रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु॥१७॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा। फल खाएसि तरु तोरैं लागा॥रहे तहाँ बहु भट रखवारे। कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे॥नाथ एक आवा कपि भारी। तेहिं असोक बाटिका उजारी॥खाएसि फल अरु बिटप उपारे। रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे॥सुनि रावन पठए भट नाना। तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना॥सब रजनीचर कपि संघारे। गए पुकारत कछु अधमारे॥पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा। चला संग लै सुभट अपारा॥आवत देखि बिटप गहि तर्जा। ताहि निपाति महाधुनि गर्जा॥कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि।कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि॥१८॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥सुनि सुत बध लंकेस रिसाना। पठएसि मेघनाद बलवाना॥मारसि जनि सुत बांधेसु ताही। देखिअ कपिहि कहाँ कर आही॥चला इंद्रजित अतुलित जोधा। बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा॥कपि देखा दारुन भट आवा। कटकटाइ गर्जा अरु धावा॥अति बिसाल तरु एक उपारा। बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा॥रहे महाभट ताके संगा। गहि गहि कपि मर्दइ निज अंगा॥तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा। भिरे जुगल मानहुँ गजराजा।मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई। ताहि एक छन मुरुछा आई॥उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया। जीति न जाइ प्रभंजन जाया॥ब्रह्म अस्त्र तेहिं साँधा कपि मन कीन्ह बिचार।जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार॥१९॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहि मारा। परतिहुँ बार कटकु संघारा॥तेहि देखा कपि मुरुछित भयऊ। नागपास बाँधेसि लै गयऊ॥जासु नाम जपि सुनहु भवानी। भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥तासु दूत कि बंध तरु आवा। प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥कपि बंधन सुनि निसिचर धाए। कौतुक लागि सभाँ सब आए॥दसमुख सभा दीखि कपि जाई। कहि न जाइ कछु अति प्रभुताई॥कर जोरें सुर दिसिप बिनीता। भृकुटि बिलोकत सकल सभीता॥देखि प्रताप न कपि मन संका। जिमि अहिगन महुँ गरुड़ असंका॥कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद।सुत बध सुरति कीन्हि पुनि उपजा हृदयँ बिषाद॥२०॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥कह लंकेस कवन तैं कीसा। केहिं के बल घालेहि बन खीसा॥कीधौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही। देखउँ अति असंक सठ तोही॥मारे निसिचर केहिं अपराधा। कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा॥सुन रावन ब्रह्मांड निकाया। पाइ जासु बल बिरचित माया॥जाकें बल बिरंचि हरि ईसा। पालत सृजत हरत दससीसा।जा बल सीस धरत सहसानन। अंडकोस समेत गिरि कानन॥धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह ते सठन्ह सिखावनु दाता।हर कोदंड कठिन जेहि भंजा। तेहि समेत नृप दल मद गंजा॥खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली। बधे सकल अतुलित बलसाली॥जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि।तासु दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि॥२१॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई। सहसबाहु सन परी लराई॥समर बालि सन करि जसु पावा। सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा॥खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा। कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा॥सब कें देह परम प्रिय स्वामी। मारहिं मोहि कुमारग गामी॥जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे। तेहि पर बाँधेउ तनयँ तुम्हारे॥मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा। कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा॥बिनती करउँ जोरि कर रावन। सुनहु मान तजि मोर सिखावन॥देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी। भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी॥जाकें डर अति काल डेराई। जो सुर असुर चराचर खाई॥तासों बयरु कबहुँ नहिं कीजै। मोरे कहें जानकी दीजै॥प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि।गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि॥२२॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥राम चरन पंकज उर धरहू। लंका अचल राज तुम्ह करहू॥रिषि पुलिस्त जसु बिमल मंयका। तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका॥राम नाम बिनु गिरा न सोहा। देखु बिचारि त्यागि मद मोहा॥बसन हीन नहिं सोह सुरारी। सब भूषण भूषित बर नारी॥राम बिमुख संपति प्रभुताई। जाइ रही पाई बिनु पाई॥सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं। बरषि गए पुनि तबहिं सुखाहीं॥सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी। बिमुख राम त्राता नहिं कोपी॥संकर सहस बिष्नु अज तोही। सकहिं न राखि राम कर द्रोही॥मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान॥२३॥श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥जदपि कहि कपि अति हित बानी। भगति बिबेक बिरति नय सानी॥बोला बिहसि महा अभिमानी। मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी॥मृत्यु निकट आई खल तोही। लागेसि अधम सिखावन मोही॥उलटा होइहि कह हनुमाना। मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना॥सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना। बेगि न हरहुँ मूढ़ कर प्राना॥सुनत निसाचर मारन धाए। सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए।नाइ सीस करि बिनय बहूता। नीति बिरोध न मारिअ दूता॥आन दंड कछु करिअ गोसाँई। सबहीं कहा मंत्र भल भाई॥सुनत बिहसि बोला दसकंधर। अंग भंग करि पठइअ बंदर॥कपि कें ममता पूँछ पर सबहि कहउँ समुझाइ।&
bhajan: Shankar Shiv Shambhu Sadhu Santan Sukhkariस्टार हिन्दुस्तान रिकार्ड कम्पनी के लिये १९५८ में लिखा और तभी इस भजन से अपना पहला कोमर्शियल रिकार्ड बना। राम कृपा से रेडियो सूरिनाम डच गयाना का सिग्नेचर ट्यून बना जो हमने १९७६ में अपने ब्रिटिश गयाना प्रवास में स्वयं सुना। आश्चर्य हुआ कि मेरा भजन मुझसे पहले अमरीका पहुंच गया। - 'Bhola'On the occasion of MahaShivaRatri on Feb 13, 2018, listen to this bhajanराम नाम मधुबन का, भ्रमर बना, मन शिव का ।निश दिन सिमरन करता, नाम पुण्यकारी ॥शंकर शिव शम्भु साधु सन्तन सुखकारी ॥निश दिन सिमरन करते, नाम पुण्यकारी ॥लोचन त्रय अति विशाल, सोहे नव चन्द्र भाल,रुण्ड मुण्ड व्याल माल, जटा गंग धारी ।शंकर शिव शम्भु साधु सन्तन सुखकारी ॥शंकर शिव शम्भु साधु सन्तन सुखकारी ॥सतत जपत राम नाम अतिशय शुभकारी ॥पारवती पति सुजान, प्रमथ राज वृषभ यान,सुर नर मुनि सैव्यमान, त्रिविध ताप हारी ।शंकर शिव शम्भु साधु सन्तन सुखकारी ॥औघड़ दानी महान, कालकूट कियो पान,आरत-हर तुम समान, को है त्रिपुरारी ।शंकर शिव शम्भु साधु सन्तन सुखकारी ॥Listen to bhajan written, composed and sung by Shri V N Shrivastav 'Bhola' at https://www.youtube.com/watch?v=KzoJ7isIxfs
Bhajan: jay shiv shankar aughaddani(Words/Voice - Shri V N S 'Bhola')Text and link taken from Mahavir Binavau Hanumanaजय शिव शंकर औघड़दानीजय शिव शंकर औघड़दानी , विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामीसकल बिस्व के सिरजन हारे , पालक रक्षक 'अघ संघारी'जय शिव शंकर औघड़दानी , विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामीहिम आसन त्रिपुरारि बिराजें , बाम अंग गिरिजा महरानीजय शिव शंकर औघड़दानी , विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामीऔरन को निज धाम देत हो , हमसे करते आनाकानीजय शिव शंकर औघड़दानी , विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामीसब दुखियन पर कृपा करत हो हमरी सुधि काहे बिसरानीजय शिव शंकर औघड़दानी , विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी View and Listen to the bhajan on BholaKrishna youtube channel at https://www.youtube.com/watch?v=GjozaYcXoOE
Bhajan: Padho pothi me RamListen to the bhajan by clicking here(Audio from Bhajan Sandhya at Krishna Shivalaya on Nov 29, 2017)पढ़ो पोथी में राम, लिखो तख्ती पे राम .देखो खम्बे में राम, हरे राम राम राम ..राम, राम, राम, राम, राम ॐ . ( २) राम, राम, राम, राम, राम, राम . ( २) राम, राम, राम, राम, हरे राम राम राम ..देखो आंखों से राम, सुनो कानों से राम .बोलो जिव्हा से राम, हरे राम राम राम ..राम राम पियो पानी में राम, जीमो खाने में राम .चलो घूमने में राम, हरे राम राम राम ..राम राम बाल्यावस्था में राम, युवावस्था में राम .वृद्धावस्था में राम, हरे राम राम राम ..राम राम जपो जागृत में राम, देखो सपनों में राम .पाओ सुषुप्ति में राम, हरे राम राम राम ..राम राम
rom rom me ramA huA haiListen to bhajan in the voice of V N Shrivastav 'Bhola'रोम रोम में रमा हुआ है, मेरा राम रमैया तू,सकल सृष्टि का सिरजनहारा, राम मेरा रखवैया तू,तू ही तू, तू ही तू, ...डाल डाल में, पात पात में,मानवता के हर जमात में, हर मज़हब, हर जात पात मेंएक तू ही है, तू ही तू, तू ही तू, तू ही तू, ...सागर का ख़ारा जल तू है,बादल में, हिम कण में तू है,गंगा का पावन जल तू है, रूप अनेक, एक है तू,तू ही तू, तू ही तू, ...चपल पवन के स्वर में तू है, पंछी के कलरव में तू है, भौरों के गुंजन में तू है ,हर स्वर में ईश्वर है तू, तू ही तू, तू ही तू, ..."तन है तेरा, मन है तेरा,प्राण हैं तेरे, जीवन तेरा,सब हैं तेरे, सब है तेरा,"पर मेरा इक तू ही तू,तू ही तू, तू ही तू, ...
Bhajan: re man murakh janam gavaayoListen to bhajan by Shri VNS Bholaरे मन मूरख जनम गँवायौ ।करि अभिमान विषय को राच्यो, नाम शरण नहिं आयौ ॥मन मूरख जनम गँवायौ, रे मन मूरख जनम गँवायौ ।ये संसार फूल सेमल ज्यौं, सुन्दर देखि रिझायो ।चाखन लाग्यौ रुई उडि़ गई, हाथ कछू नहिं आयौ ॥मन मूरख जनम गँवायौ, रे मन मूरख जनम गँवायौ ।कहा भये अब के मन सोचें, पहिलैं नाहिं कमायौ ।सूरदास हरि नाम भजन बिनु, सिर धुनि-धुनि पछितायौ ॥मन मूरख जनम गँवायौ, रे मन मूरख जनम गँवायौ । View video on BholaKrishna Channel at youtubeat https://www.youtube.com/watch?v=sseihTzzGvM
Bhajan: bhaj man ram charan sukhdaiListen to the bhajan in the voice of Madhu Chandra भज मन राम चरण सुखदाई ..जिन चरनन से निकलीं सुरसरिशंकर जटा समायी .जटा शन्करी नाम पड़्यो हैत्रिभुवन तारन आयी ..राम चरण सुखदाई ..शिव सनकादिक अरु ब्रह्मादिकशेष सहस मुख गायी .तुलसीदास मारुतसुत की प्रभुनिज मुख करत बड़ाई ..राम चरण सुखदाई ..
bhajan: ab kaise chhute ram rat lagiListen to bhajan by Shri V N S 'Bhola'अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी ।प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी , जाकी अँग-अँग बास समानी ।प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा , जैसे चितवत चंद चकोरा ।प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती , जाकी जोति बरै दिन राती ।प्रभु जी, तुम मोती हम धागा , जैसे सोनहिं मिलत सुहागा ।प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा , ऐसी भगति करै रैदासा । View on Bholakrishna youtube channelat https://www.youtube.com/watch?v=-E7tM7QogA0
Listen to the bhajanrahe janam janam tera dhyan, yahee var do mere raamLyrics & Music Direction - V N Shrivastav 'Bhola'Voices - V N Shrivastav 'Bhola' and Amita Shrivastavaअर्थ न धर्म न काम रुचि, पद न चहहुं निरवान |जनम जनम रति राम पद, यह वरदान न आन || रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम सिमरूँ निश दिन हरि नाम, यही वर दो मेरे राम ।रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥मेरे राम, मेरे राम, मेरे राम, मेरे राम । मन मोहन छवि नैन निहारे, जिह्वा मधुर नाम उच्चारे,कनक भवन होवै मन मेरा, जिसमें हो श्री राम बसेरा, or कनक भवन होवै मन मेरा, तन कोसलपुर धाम,यही वर दो मेरे राम |रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥ सौंपूं तुझको निज तन मन धन, अरपन कर दूं सारा जीवन,हर लो माया का आकर्षण, प्रेम भगति दो दान,यही वर दो मेरे राम |रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥ गुरु आज्ञा ना कभी भुलाऊँ, परम पुनीत राम गुन गाऊँ,सिमरन ध्यान सदा कर पाऊँ, दृढ़ निश्चय दो राम !यही वर दो मेरे राम,रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥ संचित प्रारब्धों की चादर, धोऊं सतसंगों में आकर,तेरे शब्द धुनों में गाकर, पाऊं मैं विश्राम,यही वर दो मेरे राम |रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥Listen to the bhajan by Shri V N S 'Bhola' - Youtube link
Bhajan: Ram se bada Ram ka namListen in voice of Shri VNS Bhola, family and friendsराम से बड़ा राम का नाम .अंत में निकला ये परिणाम, ये परिणाम,राम से बड़ा राम का नाम ..सिमरिये नाम रूप बिनु देखे,कौड़ी लगे ना दाम .नाम के बांधे खिंचे आयेंगे,आखिर एक दिन राम .राम से बड़ा राम का नाम ..जिस सागर को बिना सेतु के ,लांघ सके ना राम .कूद गये हनुमान उसी को,लेकर राम का नाम .राम से बड़ा राम का नाम ..वो दिलवाले डूब जायेंगे or वो दिलवाले क्या पायेंगे ,जिनमें नहीं है नाम ..वो पत्थर भी तैरेंगे जिन परलिखा हुआ श्री राम.राम से बड़ा राम का नाम ..Many Thanks to Anil Dada for corrections.
bhajan: hari hari hari hari sumiran karo MP3 Audio - Bholaहरि हरि, हरि हरि, सुमिरन करो,हरि चरणारविन्द उर धरो ..हरि की कथा होये जब जहाँ,गंगा हू चलि आवे तहाँ ..हरि हरि, हरि हरि, सुमिरन करो ...यमुना सिंधु सरस्वती आवे,गोदावरी विलम्ब न लावे .सर्व तीर्थ को वासा तहाँ,सूर हरि कथा होवे जहाँ ..हरि हरि, हरि हरि, सुमिरन करो ...hari hari, hari hari, sumiran karo,hari charaNAravind ur dharo ..hari kI kathA hoye jab jahA.N,gaMgA hU chali Ave tahA.N ..hari hari, hari hari, sumiran karo ...yamunA siMdhu sarasvatI Ave,godAvrI vilamb na lAve .sarv tIrth ko vAsA tahA.N,sUr hari kathA hove jahA.N ..hari hari, hari hari, sumiran karo ... Listen to the bhajan at Bholakrishna youtube channel athttps://www.youtube.com/watch?v=R4iTCjip0I8
hanuman janmotsav ki bahut bahut badhaiListen toHanuman Chalisa MP3 by Shri V N Shrivastav 'Bhola', family and friendsश्री राम जय राम जय जय दयालु ।श्री राम जय राम जय जय कृपालु ॥अतुलित बल धामं हेम शैलाभ देहम् । दनुज वन कृषाणं ज्ञानिनां अग्रगणयम् । सकल गुण निधानं वानराणामधीशम् । रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि ॥श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि ।वरनऊँ रघुवर विमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार ।बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार ॥हमारे रामजी से राम राम, कहियो जी हनुमान ,कहियो जी हनुमान , कहियो जी हनुमान ॥जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनिपुत्र पवन सुत नामा ॥महावीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमिति के संगी ॥कंचन वरन विराज सुवेसा । कानन कुंडल कुंचित केसा ॥हाथ बज्र औ ध्वजा विराजै । काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥शंकर सुवन केसरीनंदन । तेज प्रताप महा जग बंदन ॥विद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥हमारे रामजी से राम राम, कहियो जी हनुमान ,कहियो जी हनुमान, कहियो जी हनुमान ॥सूक्ष्म रूप धरि सियहि देखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचंन्द्र के काज सँवारे ॥लाय सजीवन लखन जियाये । श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरत सम भाई ॥सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥हमारे रामजी से राम राम, कहियो जी हनुमान ,कहियो जी हनुमान , कहियो जी हनुमान ॥तुम्हरो मंत्र विभीषन माना । लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥जुग सहस्त्र जोजन पर भानू । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥दु्र्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥सब सुख लहैं तुम्हारी सरना । तुम रच्छक काहू को डर ना ॥आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥भूत पिसाच निकट नहिं आवै । महावीर जब नाम सुनावैं ॥हमारे रामजी से राम राम, कहियो जी हनुमान ,कहियो जी हनुमान , कहियो जी हनुमान ॥नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥संकट तें हनुमान छुड़ावै । मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥सब पर राम तपस्वीं राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥और मनोरथ जो कोइ लावै । तासु अमित जीवन फल पावै ॥चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥साधु संत के तुम रखबारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥हमारे रामजी से राम राम, कहियो जी हनुमान ,कहियो जी हनुमान , कहियो जी हनुमान ॥तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥अंत काल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरैं हनुमत बलबीरा ॥जै जै जै हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरू देव की नाईं ॥जो शत बार पाठ कर कोई । छूटे बंदि महा सुख होई ॥जो यह पढै हनुमान चलीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥हमारे रामजी से राम राम, कहियो जी हनुमान ,कहियो जी हनुमान , कहियो जी हनुमान ॥पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप ।राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥श्री राम जय राम जय जय राम ।sing along video on youtubehttps://www.youtube.com/watch?v=h1UayiWhhDA
Listen to Bhajan: Ram Nam Japne Vale ko Ram Milegaby Shri V N Shrivastav 'Bhola'राम नाम जपने वाले को राम मिलेगा,राम नाम जपने वाले को राम मिलेगा,राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा,राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा..राम नाम जपने वाले को राम मिलेगा,राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा,राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा..राम धाम में दिव्य शांति विश्राम मिलेगा,राम धाम में दिव्य शांति विश्राम मिलेगा,राम मिलेगा, राम मिलेगा,राम नाम जपने वाले को राम मिलेगा,राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा,राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा..राम ब्रह्म हैं, चिन्मय हैं, अविनाशी हैं,राम ब्रह्म हैं, चिन्मय हैं, अविनाशी हैं,सर्वरहित हैं, लेकिन घट-घट वासी हैं,सर्वरहित हैं, लेकिन घट-घट वासी हैं,जो ये नाम जपेगा, उसको राम मिलेगा,जो ये नाम जपेगा, उसको राम मिलेगा..राम नाम जपने वाले को राम मिलेगा,राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा,राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा..राम नाम जपते जपते सब कर्म करो जी,राम नाम जपते जपते सब कर्म करो जी,राम नाम जपने में न कोई शर्म करो जी,राम नाम जपने में न कोई शर्म करो जी,सत्य नाँव पर चढ़ो, साथ में राम चढ़ेगा, हो...सत्य नाँव पर चढ़ो, साथ में राम चढ़ेगा, हो...साथ में राम चढ़ेगा, हो... ओ...सत्य नाँव पर चढ़ो, साथ में राम चढ़ेगा,नहीं डूबने देगा,नहीं डूबने देगा, भव नद पार करेगा..राम नाम जपने वाले को राम मिलेगा,राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा,राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा..राम नाम में निहित मन्त्र की शक्ति है,राम नाम में निहित मन्त्र की शक्ति है,राम नाम जपने से कृपा बरसती है,राम नाम जपने से कृपा बरसती है,कृपा वृष्टि में भींगो, कृपा वृष्टि में भींगो, भाई,कृपा वृष्टि में भींगो, कृपा वृष्टि में भींगो,कृपा वृष्टि में भींगो, भींगो, भींगो, भींगो,कृपा वृष्टि में भींगो, मन का मैल धुलेगा,कृपा वृष्टि में भींगो, मन का मैल धुलेगा,मैल धुलेगा, नाम भक्ति का रंग चढ़ेगा,मैल धुलेगा, नाम भक्ति का रंग चढ़ेगा..राम नाम जपने वाले को राम मिलेगा, हो...राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा,राम नाम जपने वाले को राम मिलेगा, हो...राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा,राम धाम में दिव्य शांति विश्राम मिलेगा,राम धाम में दिव्य शांति विश्राम मिलेगा,राम नाम जपने वाले को राम मिलेगा, हो...राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा ..
naiharavaa hamakaa naa bhaave - bhajan by Sant KabirdasListen to this bhajan sung by Shri V N Shrivastav 'Bhola' by clicking here.कबीर दास जी की अति सारगर्भित रचनानैहरवा हमका न भावे !!साई की नगरी परम् अति सुंदर जहाँ कोई जान न पावे !चाँद सूरज जहाँ पवन न पानी, को सन्देश पहुचावे !दर्द ये साईं को सुनावे .. .!! टेक !!आगे चलों पन्थ नही सूझे, पीछे दोष लगावेकेहि विधि ससुरे जाऊं मोरि सजनी बिरहा जोर जरावेबिषय रस नाच नचावे ... !!टेक!!बिनु सद्गुरु अपनों नहीं कोऊ जो ये राह बतावे !कहत कबीर सुनो भाई साधो सुपनन पीतम पावे !तपन जो जिय की बुझावे .. !! टेक !!दुल्हनिया है "जीवात्मा" और दुलहा हैं "परमात्मा""जीव" को उसका मायका अथवा "यह संसार" तनिक भी नहीं भाता !मानव परिवेश में बंधा जीवात्मा बेचैन है ! वह शीघ्रातिशीघ्र अपने स्थाई निवास स्थान अथवा परमपिता परमेश्वर की नगरी - उसकी सुसराल पहुंचना चाहता है !