Audiobooks Narrated By Uttam Agrahari

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Hi Everyone, I am Uttam Agrahari. I will share some important audiobooks by famous authors which are narrated by me. For any suggestion's please write us @ my email I'd.

uttam agrahari


    • Jul 13, 2021 LATEST EPISODE
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    श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 17 श्रद्धा के विभाग

    Play Episode Listen Later Jul 13, 2021 38:44


    अध्याय 16 दैवी तथा आसुरी स्वाभाव

    Play Episode Listen Later Jun 21, 2021 29:11


    हरे कृष्णा

    श्रीमद्भागवत गीता यथारूप अध्याय - 15

    Play Episode Listen Later Jun 19, 2021 20:38


    हरे कृष्ण

    अध्याय 15 - पुरुषोत्तम योग भाग 2

    Play Episode Listen Later Jun 19, 2021 10:59


    हरे कृष्णा

    Chapter 7. Honor Your Past

    Play Episode Listen Later Apr 3, 2021 3:54


    My name is Uttam Agrahari.   I am sharing an Audiobooks "Who Will Cry When You Die", written by Robin Sharma and narrated by me.         Thank You!

    Chapter 6. Develop An Honesty Philosophy

    Play Episode Listen Later Apr 2, 2021 2:54


    My name is Uttam Agrahari.   I am sharing an Audiobooks "Who Will Cry When You Die", written by Robin Sharma and narrated by me.         Thank You!

    Chapter 5- Maintaining A Journal

    Play Episode Listen Later Apr 2, 2021 2:52


    My name is Uttam Agrahari.   I am sharing an Audiobooks "Who Will Cry When You Die", written by Robin Sharma and narrated by me. Thank You!

    Chapter 4. Practice Tough Love (Book Name- Who Will Cry When You Die)

    Play Episode Listen Later Apr 2, 2021 3:30


    My name is Uttam Agrahari.  I am sharing an Audiobooks "Who Will Cry When You Die", written by Robin Sharma and narrated by me. Thank You!

    Chapter 3. Maintain Your Perspective

    Play Episode Listen Later Mar 30, 2021 4:13


    My name is Uttam Agrahari. I am sharing an Audiobooks "Who Will Cry When You Die", written by Robin Sharma and narrated by me. Thank You!

    Chapter 2. Everyday, Be kind to a Stranger (Book- Who Will Cry When You Die)

    Play Episode Listen Later Mar 28, 2021 2:51


    Hello Everyone, My name is Uttam Agrahari. I am sharing an Audiobooks "Who Will Cry When You Die", written by Robin Sharma and narrated by me. Thank You!

    Chapter 1. Discover your Calling

    Play Episode Listen Later Mar 27, 2021 4:47


    Hello my name is Uttam Agrahari.  I am sharing an Audiobook "WHO WILL CRY WHEN YOU DIE?", written by "Robin Sharma" and narrated by me.

    अध्याय 15 – पुरुषोत्तमयोग Part - 1

    Play Episode Listen Later Jan 29, 2021 28:44


    श्री भगवान ने कहा - हे अर्जुन! इस संसार को अविनाशी वृक्ष कहा गया है, जिसकी जड़ें ऊपर की ओर हैं और शाखाएँ नीचे की ओर तथा इस वृक्ष के पत्ते वैदिक स्तोत्र है, जो इस अविनाशी वृक्ष को जानता है वही वेदों का जानकार है। इस संसार रूपी वृक्ष की समस्त योनियाँ रूपी शाखाएँ नीचे और ऊपर सभी ओर फ़ैली हुई हैं, इस वृक्ष की शाखाएँ प्रकृति के तीनों गुणों द्वारा विकसित होती है, इस वृक्ष की इन्द्रिय-विषय रूपी कोंपलें है, इस वृक्ष की जड़ों का विस्तार नीचे की ओर भी होता है जो कि सकाम-कर्म रूप से मनुष्यों के लिये फल रूपी बन्धन उत्पन्न करती हैं৷৷ इस संसार रूपी वृक्ष के वास्तविक स्वरूप का अनुभव इस जगत में नहीं किया जा सकता है क्योंकि न तो इसका आदि है और न ही इसका अन्त है और न ही इसका कोई आधार ही है, अत्यन्त दृड़ता से स्थित इस वृक्ष को केवल वैराग्य रूपी हथियार के द्वारा ही काटा जा सकता है৷৷ वैराग्य रूपी हथियार से काटने के बाद मनुष्य को उस परम-लक्ष्य (परमात्मा) के मार्ग की खोज करनी चाहिये, जिस मार्ग पर पहुँचा हुआ मनुष्य इस संसार में फिर कभी वापस नही लौटता है, फिर मनुष्य को उस परमात्मा के शरणागत हो जाना चाहिये, जिस परमात्मा से इस आदि-रहित संसार रूपी वृक्ष की उत्पत्ति और विस्तार होता है৷৷

    अध्याय 14 – प्रकृति के तीन गुण Part - 2

    Play Episode Listen Later Jan 27, 2021 24:48


    प्रकृति अर्थात् क्या हे ? प्र = विशेष और कृति = किया गया। स्वाभाविक की गई चीज़ नहीं। लेकिन विभाव में जाकर, विशेष रूप से की गई चीज़, वही प्रकृति है। प्रकृति के तीन गुण से ( सत्त्व , रजस् और तमस् ) सृष्टि की रचना हुई है । ये तीनों घटक सजीव-निर्जीव, स्थूल-सूक्ष्म वस्तुओं में विद्यमान रहते हैं । इन तीनों के बिना किसी वास्तविक पदार्थ का अस्तित्व संभव नहीं है। किसी भी पदार्थ में इन तीन गुणों के न्यूनाधिक प्रभाव के कारण उस का चरित्र निर्धारित होता है।

    अध्याय 14 – प्रकृति के तीन गुण Part - 1

    Play Episode Listen Later Jan 24, 2021 28:06


    भगवान् ने कहा – अब मैं तुमसे समस्त ज्ञानोंमें सर्वश्रेष्ठ इस परम ज्ञान को पुनः कहूँगा, जिसे जान लेने पर समस्त मुनियों ने परम सिद्धि प्राप्त की है | इस ज्ञान में स्थिर होकर मनुष्य मेरी जैसी दिव्य प्रकृति (स्वभाव) को प्राप्त कर सकता है | इस प्रकार स्थित हो जाने पर वह न तो सृष्टि के समय उत्पन्न होता है और न प्रलय के समय विचलित होता है | भौतिक प्रकृति तीन गुणों से युक्त है | ये हैं – सतो, रजो तथा तमोगुण | हे महाबाहु अर्जुन! जब शाश्र्वत जीव प्रकृति के संसर्ग में आता है, तो वह इन गुणों से बँध जाता है |

    अध्याय -13 : प्रकृति, पुरुष तथा चेतना Part-3

    Play Episode Listen Later Jan 16, 2021 23:40


    अर्जुन ने पूछा - हे केशव! मैं आपसे प्रकृति एवं पुरुष, क्षेत्र एवं क्षेत्रज्ञ और ज्ञान एवं ज्ञान के लक्ष्य के विषय में जानना चाहता हूँ। श्री भगवान बोले- हे अर्जुन! यह शरीर 'क्षेत्र' (जैसे खेत में बोए हुए बीजों का उनके अनुरूप फल समय पर प्रकट होता है, वैसे ही इसमें बोए हुए कर्मों के संस्कार रूप बीजों का फल समय पर प्रकट होता है, इसलिए इसका नाम 'क्षेत्र' ऐसा कहा है) इस नाम से कहा जाता है और इसको जो जानता है, उसको 'क्षेत्रज्ञ' इस नाम से उनके तत्व को जानने वाले ज्ञानीजन कहते हैं॥

    अध्याय-13 प्रकृति, पुरुष तथा चेतना Part - 2

    Play Episode Listen Later Jan 15, 2021 29:12


    अर्जुन ने कहा - हे कृष्ण! मैं प्रकृति एवं पुरुष (भोक्ता), क्षेत्र एवं क्षेत्रज्ञ तथा ज्ञान एवं ज्ञेय के विषय में जानने का इच्छुक हूँ | श्रीभगवान् ने कहा - हे कुन्तीपुत्र! यह शरीर क्षेत्र कहलाता है और इस क्षेत्र को जानने वाला क्षेत्रज्ञ है | तात्पर्य: अर्जुन प्रकृति, पुरुष, क्षेत्र, क्षेत्रज्ञ, ज्ञान तथा ज्ञेय के विषय में जानने का इच्छुक था | जब उसने इन सबों के विषय में पूछा, तो कृष्ण ने कहा कि यह शरीर क्षेत्र कहलाता है, और इस शरीर को जानने वाला क्षेत्रज्ञ है | यह शरीर बद्धजीव के लिए कर्म-क्षेत्र है | बद्धजीव इस संसार में बँधा हुआ है, और वह भौतिक प्रकृति पर अपना प्रभुत्व प्राप्त करने का प्रयत्न करता है | इस प्रकार प्रकृति पर प्रभुत्व दिखाने की क्षमता के अनुसार उसे कर्म-क्षेत्र प्राप्त होता है | यह कर्म-क्षेत्र शरीर है | और यह शरीर क्या है? शरीर इन्द्रियों से बना हुआ है | बद्धजिव इन्द्रियतृप्ति चाहता है, और इन्द्रियतृप्ति को भोगने की क्षमता के अनुसार ही उसे शरीर या कर्म-क्षेत्र प्रदान किया जाता अहि | इसीलिए बद्धजीव के लिए यह शरीर क्षेत्र अथवा कर्मक्षेत्र कहलाता है | अब, जो व्यक्ति अपने आपको शरीर मानता है, वह क्षेत्रज्ञ कहलाता है | क्षेत्र तथा क्षेत्रज्ञ अथवा शरीर और शरीर के ज्ञाता (देही) का अन्तर समझ पाना कठिन नहीं है | कोई भी व्यक्ति यह सोच सकता है कि बाल्यकाल से वृद्धावस्था तक उसमें अनेक परिवर्तन होते रहते हैं, फिर भी वह व्यक्ति वही रहता है | इस प्रकार कर्म-क्षेत्र के ज्ञाता तथा वास्तविक कर्म-क्षेत्र में अन्तर है | एक बद्धजीव यह जान सकता है कि वह अपने शरीर से भिन्न है | प्रारम्भ में ही बताया गया है कि देहिनोऽस्मिन् - जीव शरीरके भीतर है, और यह शरीर बालक से किशोर, किशोर से तरुण तथा तरुण से वृद्ध के रूप में बदलता जाता है , और शरीरधारी जानता है कि शरीर परिवर्तित हो रहा है | स्वामी स्पष्टतः क्षेत्रज्ञ है | कभी कभी हम सोचते हैं 'मैं सुखी हूँ', 'मैं पुरुष हूँ', 'मैं स्त्री हूँ', 'मैं कुत्ता हूँ', 'मैं बिल्ली हूँ' | ये ज्ञाता की शारीरिक अपाधियाँ हैं, लेकिन ज्ञाता शरीर से भिन्न होता है | भले ही हम तरह-तरह की वस्तुएँ प्रयोग में लाएँ - जैसे कपड़े इत्यादि, लेकिन हम जानते हैं कि हम इन वस्तुओं से भिन्न हैं | इसी प्रकार, थोड़ा विचार करने पर हम यह भी जानते हैं कि हम शरीर से भिन्न हैं | मैं, तुम या अन्य कोई, जिसने शरीर धारण कर रखा है, क्षेत्रज्ञ कहलाता है -अर्थात् वह कर्म-क्षेत्र का ज्ञाता है और यह शरीर क्षेत्र है - साक्षात् कर्म-क्षेत्र है | भगवद्गीता के प्रथम छह अध्यायों में शरीर के ज्ञाता (जीव), तथा जिस स्थिति में वह भगवान् को समझ सकता है, उसका वर्णन हुआ है | बीच के छह अध्यायों में भगवान् तथा भगवान् के साथ जीवात्मा के सम्बन्ध एवं भक्ति के प्रसंग में परमात्मा का वर्णन है | इन अध्यायों में भगवान् की श्रेष्ठता तथा जीव की अधीन अवस्था की निश्चित रूप से परिभाषा की गई है | जीवात्माएँ सभी प्रकार से अधीन हैं, और अपनी विस्मृति के कारण वे कष्ट उठा रही हैं | जब पुण्य कर्मों द्वारा उन्हें प्रकाश मिलता है, तो वे विभिन्न परिस्थितियों में - यथा आर्त, धनहीन, जिज्ञासु तथा ज्ञान-पिपासु के रूप में भगवान् के पास पहुँचती हैं, इसका भी वर्णन हुआ है | अब तेरहवें अध्याय से आगे इसकी व्याख्या हुई है कि किस प्रकार जीवात्मा प्रकृति के सम्पर्क में आता है, और किस प्रकार कर्म ,ज्ञान तथा भक्ति के विभिन्न साधनों के द्वारा परमेश्र्वर उसका उद्धार करते हैं | यद्यपि जीवात्मा भौतिक शरीर से सर्वथा भिन्न है, लेकिन वह किस तरह उससे सम्बद्ध हो जाता है, इसकी व्याख्या की गई है |

    अध्याय -13 प्रकृति, पुरुष तथा चेतना Part -1

    Play Episode Listen Later Dec 11, 2020 30:16


    अर्जुन ने पूछा - हे केशव! मैं आपसे प्रकृति एवं पुरुष, क्षेत्र एवं क्षेत्रज्ञ और ज्ञान एवं ज्ञान के लक्ष्य के विषय में जानना चाहता हूँ। श्री भगवान बोले- हे अर्जुन! यह शरीर 'क्षेत्र' (जैसे खेत में बोए हुए बीजों का उनके अनुरूप फल समय पर प्रकट होता है, वैसे ही इसमें बोए हुए कर्मों के संस्कार रूप बीजों का फल समय पर प्रकट होता है, इसलिए इसका नाम 'क्षेत्र' ऐसा कहा है) इस नाम से कहा जाता है और इसको जो जानता है, उसको 'क्षेत्रज्ञ' इस नाम से उनके तत्व को जानने वाले ज्ञानीजन कहते हैं॥

    श्रीमद्भागवतगीता विराट रूप भाग 3

    Play Episode Listen Later Dec 10, 2020 28:34


    श्रीमद्भागवतगीता विराट रूप भाग 3

    Chapter-9 What Everybody Wants

    Play Episode Listen Later Jul 5, 2020 20:56


    This is 7th chapter of a book Names ( What Everybody Wants) from How to win friends and influence people. This book is written by Dale Cornegie & Narrated by me.

    Chapter-8 The Magic Formula

    Play Episode Listen Later Jul 5, 2020 13:49


    This is 7th chapter of a book Names ( The Magic Formula) from How to win friends and influence people. This book is written by Dale Cornegie & Narrated by me.

    Chapter-7 How to get coopration

    Play Episode Listen Later Jul 1, 2020 13:28


    This is the 7th chapter of a book Names (How to get coopration) from How to win friends and influence people. This book is written by Dale Cornegie & Narrated by me.

    Chapter - 6 The Safety Valve In Handling Complaints

    Play Episode Listen Later Jun 29, 2020 15:04


    This is the 6th chapter of a book Names ( The Safety Valve In Handling Complaints) from How to win friends and influence people. This book is written by Dale Cornegie & Narrated by me.

    complaints safety valve
    Chapter 5 - The secret of Socrates

    Play Episode Listen Later Jun 28, 2020 15:54


    Chapter 5- The secret of Socrates. This is the 5th chapter of a book Names (The secret of Socrates) from How to win friends and influence people. This book is written by Dale Cornegie & Narrated by me.

    A Drop Of Honey

    Play Episode Listen Later Jun 27, 2020 25:12


    This is the 4th chapter of a book Names (A Drop Of Honey) from How to win friends and influence people. This book is written by Dale Cornegie & Narrated by me.

    If You're Wrong, Admit It

    Play Episode Listen Later Jun 16, 2020 22:50


    This is the 3rd chapter of a book How to win friends and influence people. This book is written by Dale Cornegie & Narrated by me.

    HOW TO AVOID MAKING ENEMIES

    Play Episode Listen Later Jun 3, 2020 36:22


    How to Win Friends and Influence People

    Play Episode Listen Later Jun 2, 2020 20:33


    Hi listener, Hope you are doing well! This is a highly recommended books written by DALE CARNEGIE. If you believe in what you are doing, then let nothing hold you up in your work. Much of the best work of the world has been done against seeming impossibilities. The thing is to get the work done.

    श्रीमद्भगवद्गीता यथारुप विराट रूप भाग- 2

    Play Episode Listen Later Jun 1, 2020 30:07


    श्रीभगवान कृष्ण अर्जुन को दिव्य दृष्टि प्रदान करते हैं और विश्वरूप में अपना अद्भुत असीम रूप प्रकट करते हैं। इस प्रकार वे अपनी दिव्यता स्थापित करते हैं । कृष्ण बतलाते हैं कि उनका सर्व आकर्षक मानव रूप ही ईश्वर का आदि रूप है। मनुष्य शुद्ध भक्ति के द्वारा ही इस रूप का दर्शन कर सकता है ।

    अध्याय - 11 श्रीमद्भगवद्गीता यथारुप विराट रुप

    Play Episode Listen Later Jun 1, 2020 30:07


    श्रीभगवान कृष्ण अर्जुन को दिव्य दृष्टि प्रदान करते हैं और विश्वरूप में अपना अद्भुत असीम रूप प्रकट करते हैं। इस प्रकार वे अपनी दिव्यता स्थापित करते हैं । कृष्ण बतलाते हैं कि उनका सर्व आकर्षक मानव रूप ही ईश्वर का आदि रूप है। मनुष्य शुद्ध भक्ति के द्वारा ही इस रूप का दर्शन कर सकता है ।

    अध्याय 10- श्रीमद्भगवद्गीता श्रीभगवान् का ऐश्वर्य

    Play Episode Listen Later May 30, 2020 80:09


    बल, सौंदर्य, ऐश्वर्य या उत्कृष्टता प्रदर्शित करने वाली समस्त अद्भुत घटनाएं चाहे वे इस अध्यात्मिक लोक में हों या अध्यात्मिक जगत में जगत में, कृष्ण के दैवी शक्तियों एवं ऐश्वर्यों की आंशिक अभिव्यक्तियाँ हैं । समस्त कारणों के कारण स्वरूप तथा सर्वस्वरूप कृष्ण समस्त जीवों के परम पूजनीय हैं।

    श्रीमद्भगवद्गीता परमगुह्वा ज्ञान भाग- 2

    Play Episode Listen Later May 20, 2020 60:00


    जय श्री कृष्णा

    श्रीमद्भगवद्गीता परम गुह्वा ज्ञान भाग- 1

    Play Episode Listen Later May 19, 2020 40:14


    जय श्री कृष्णा

    श्रीमद्भगवद्गीता भगवतप्राप्ति

    Play Episode Listen Later May 18, 2020 58:45


    जय श्री कृष्णा

    श्रीमद्भगवद्गीता भगवद्ज्ञान भाग- 2

    Play Episode Listen Later May 17, 2020 54:34


    जय श्री कृष्णा

    श्रीमद्भगवद्गीता भगवदज्ञान भाग -1

    Play Episode Listen Later May 13, 2020 34:54


    जय श्री कृष्णा

    श्रीमद्भगवद्गीता ध्यानयोग भाग- 2

    Play Episode Listen Later May 12, 2020 47:31


    जय श्री कृष्णा

    ध्यानयोग भाग -1

    Play Episode Listen Later May 10, 2020 47:22


    जय श्री श्याम

    श्रीमद्भगवद्गीता कर्मयोग- श्रीकृष्णभावनामृत कर्म

    Play Episode Listen Later May 8, 2020 58:45


    जय श्री कृष्णा

    श्रीमद्भगवद्गीता कर्मयोग (Karmyog)

    Play Episode Listen Later Apr 24, 2020 92:57


    यहाँ भगवान श्री कृष्ण कर्मयोग का ज्ञान देतें हैं।

    श्रीमद्भगवद्गीता

    Play Episode Listen Later Apr 20, 2020 124:48


    श्रीमद्भगवद्गीता

    Gita Ka Sar (गीता का सार)

    Play Episode Listen Later Apr 17, 2020 41:26


    श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को उपदेश

    कुरुक्षेत्र के युद्ध स्थल में सैन्य निरीक्षण

    Play Episode Listen Later Apr 16, 2020 55:15


    भगवान श्री कृष्ण अर्जुन का रथ युद्धभूमि में ले जातें हैं जहाँ वह अपने सगे सम्बन्धी देख कर युद्ध से विमुख होना चाहता है और क्या करना श्रेयस्कर होगा वह नारायण से पूछता है।

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