Listen to the invaluable stories and poetries from our rich Hindi literature. Stories from eminent writers and creators like Munshi Premchand, Fanishwar Nath Renu, Amrita Pritam, Mahadevi Verma, and many more gems! Aaiye, hindi saahitya ko phir se jagaaein... Suniye adbhut aur atulniya kahaniyaan, mere yaani Renu ke saath. ☺️
Aakhir kya hua ki chalte samay Buaji royi ? Janne ke liye suniye ye kahani buaji...
एक भावुक कर देने वाली कहानी - "लली, अब तो दो तीन साल भी बहुत भारी लगे हैं। खैर मरना जीना तो भगवान के हाथ में है। पर जब तक जिऊंगी तुझे असीसती रहूंगी। ये पंद्रह बीस दिन मेरे खूब सुख से बीते , मन भर के खाया , मन भर के सोई । हाथ पैरों में थोड़ी जान आ गईं।" " तुम्हें अब आराम करना चाहिए बुआ।" " आराम भी बिटिया ऊपर से लिखा कर लाना होता है तब मिलता है । हमारे भाग में तो नरक उलिचना लिखा है .... जानने के लिए सुनिए ये कहानी - बुआजी
"ये हिसाब किताब की बात नहीं है बेटी, जिंदगी भर का सवाल है ।" तो इसे मुझे अपने ढंग से हल करने दीजिए न। अब तक तो मेरी ज़िंदगी का गणित दूसरे ही लगाते रहे हैं। कल तक आप अपने लाभ हनी का समीकरण बिठा रहे थे। आज वे प्रदीप शर्मा , जिन्हें कल तक हम जानते भी नहीं थे , अपना हिसाब फिट... पूरी कहानी सुनने के लिए सुनिए ये कहानी - गणित!!
बाल शोषण के उपर एक लघु कथा बच्ची का पिता के सचमुच बच्ची के ठीक होने के लिए प्रार्थना कर रहा था ? जानने के लिए सुनिए ये कहानी - प्रार्थना
एक महिला का ब्याह से पहले भावी पति के बारे में छानबीन क्या सही है!!!! मेरे मन में बड़ी दुविधा है। आपका तो प्रेमविवाह था फिर भी नहीं चला । यहां तो प्रेम - व्रेम का कोई चक्कर ही नहीं है। मैं आपकी तरह सुंदर भी नहीं हूं। कैसे निभेगी... जानने के लिए पूरी कहानी - प्रत्यावर्तन!!!
एक माँ की कहानी जो शहर में आकर अपनी आदतानुसार लोगों की मदद करती है और लोग उनकी मदद का क्या अर्थ निकालते हैं और कैसे उनकी बहु उनकी आत्मसम्मान के लिए कड़ी होती है ? सुनिए , बहुत ही inspiring story !!!!!!! "लो इसमें भला चिंता की क्या बात है। मैं क्या छोटी बच्ची हूँ जो कहीं गुम हो जाउंगी ? घर से निकलकर ज़रा पास -पड़ोस में घूम आती हूँ तो मेरा भी मन बदल जाता है और उनकी भी सहायता हो जाती है। सच कहूँ तो बड़ा संतोष होता है कि यह जीवन किसी के काम आ रहा है , कामिनी बड़े संतोष से ..... If you like this story please liker, share and follow my page :)
एक पत्नी की कहानी जिसे उसके ससुराल वालों ने हमेशा से एक पनौती के रूप में देखा हो और वह चुप रही , लेकिन जब उसके पति ने उसे इस संज्ञा से नवाजा तो वह चुप नहीं रही बल्कि उसने उसने जवाब दिया और जवाब माँगा भी !!! सुनिए, इस कहानी में किस तरह उसने पनौती शब्द कोचुनौती में बदला ? तो अब सुनिए , मैंने शुरू किया ," आपकी माताजी का कहना था कि मैं अपने साथ दलिद्दर लेकर आयी हूँ। शायद आप भी उस राय से इत्तिफाक रखते हैं । तो आपको बता दूँ , मैं दलिद्दर नहीं पंद्रह तोला सोना और बत्तीस साल पहले पचास हज़ार लेकर आयी थी। आज उसका हिसाब माँगूँ तो क्या आप ... अगर आपको ये कहानी पसंद आये तो please like and follow my page :)
एक माँ जो अपने बेटे को गरीबी से लड़कर पालती-पोसती और पढ़ाती -लिखाती है और बड़ा अफसर बनाती है लेकिन उसके अफसर बनते ही उसके लिए बड़े-बड़े घरों से रिश्ते आते हैं। लेकिनबेटा किसी और को पसंद करता है और माँ को दुःख न पहुंचे उसे नहीं बताता है। फिर कहानी में कौन सा ऐसा बिंदु आता है, सुनिए ये कहानी - अंतिम बिंदु
सुनिए कैसे , एक विधवा और वृद्धा नौकरानी ने पूरी मेहनत और ईमानदारी से काम किया लेकिन उसे इस बात का क्या इनाम मिला !!! एक वफादार नौकरानी कि कहानी जिसने तन मन से उस घर और परिवार को अपना माना किन्तु उस घर के लोगों ने उसके साथ कैसा व्यवहार किया ???? मृदुला बिहारी की हिंदी कहानी
सुनिए , एक ऐसी बेटी की कहानी जिसने बिना पिता की जिंदगी गुजारी है और पिता के लिए उसके मन में क्या विचार हैं ? कैसे वह सहेलियों और अपने परिवार के बीच में पिता की कमी को किस प्रकार महसूस करती है और और उस कमी को पूरा करने के लिए उसने क्या किया !!!!! सुनिए बहुत ही दिलचस्प कहानी - बिना छतवाला घर !! BINA CHHATWALA GHAR BY MALTI JOSHI हिंदी कहानी
Psychological problems से जूझती हुई एक मां बेटी की कहानी, जिसमें एक मां ने अपने ही आश्रयदाता के घर में आखिर चोरी क्यों की... जानने के लिए सुनिए ये कहानी - छीना हुआ सुख!!
अपने प्यारे से दुधमुंहे बच्चे वहां उतनी दूर हॉस्टल में रख छोड़े हैं और यहां कुत्ते बिल्लियों पर प्यार लुटाया जा रहा है । कल से देख रही हूं सुनीता उस kutiya के लाड़ प्यार में खो सी गई थी। जबकि उसके असली हकदार वहां अनुशासन की जंजीरों में कैद हैं । उनकी किलकारियों के बिना घर कैसे भांय - भांय करता है , देखो.... सुनिए, आखिर क्यों मायके में आकर एक स्त्री का मोहभंग हुआ !!!
एक नईं नवेली बहु जिसने अपनी स्वाभिमान और इज्जत बचाने के लिए, घर के इकलौते और अकडू जमाई राजा को ऐसी सबक सिखाई कि वह फिर किसी के साथ ऐसी हरकत करने से पहले सौ बार सोचेगा ... कैसी हरकत जानने के लिए सुनिए ये बहुत ही अच्छी और सीख देनेवाली कहानी प्रतिरोध!!!!!
सुनिए, आखिर क्यों बेटे के विदेश जाने की खरीदारी करते समय एक पिता को लगा कि वे अपने ही पैसों से अपना एकाकी बुढ़ापा खरीद रहे हैं!!!
कहने के तो लोग मुझे मिसेज आचार्य भी कहते हैं। वैसे मेरा नाम आनंदी। आपको जो भी अच्छा लगे, कह लें। "आनंदी, नाम तो बहुत अच्छा है, मां बाप ने बहुत सोच समझ कर रखा है। जीवन में न सही,नाम में तो आनंद है ही..... सुनिए, कैसे एक महिला अपनी सारी परेशानियों को परे कर आनंदित रहती है!!!!
एक मां से भी बढ़कर कैसे एक अंधी भिखारिन ने अपने उस बेटे के लिए क्या क्या किया ! सुनिए, इस कहानी भिखारिन में!!!!!
एक उम्र के बाद इंसान का जितना हक अपने घर पर होता है, उतना कहीं नहीं होता। सुनिए इस कहानी में कैसे एक पिता को हर जगह को छोड़ कर अपने घर में ही शरण लेनी पड़ी और वहीं आकर सुकून और शांति मिली। इसलिए कहते हैं अपना घर आखिर अपना होता है!!!!
एक धाय मां के निस्वार्थ भाव से की गई प्यार और त्याग की कहानी! सुनिए...
एक मां के मन का सन्नाटा। जब उसका परिवार उससे दूर जाने लगता है, तो उसकी क्या दशा होती है और उसके मन का उतार चढ़ाव की कहानी। सुनिए क्या होता है, इस कहानी में!!
जैसे पीड़ा का हर क्षण उन्होंने मेरे साथ जिया है। इसके अतिरिक्त मेरी संभावित मृत्यु की आशंका भी उन्हें पस्त कर गई थी। मैने एक बेटे के जन्म को सहा है, उन्होंने एक बेटे की मृत्यु को सहा है। पीड़ा की ये अनुभूतियां हमें एक साथ बांध गई थीं। मैने उनका हाथ अपने हाथ में लेकर...
एक teenager girl के सपने और नारी सुलभ संवेदना की कहानी - सपने मालती जोशी की कहानी
Devar aur bhabhi ke pyare se rishte aur apnepan ki kahani hai - gumshuda ki talash ! Suniye kaise ek devar ke ghar se jaane se lekr wapas aane tak ki kahani....
Bhai-behan ke pyar aur masoom bachpan, nonk- jhonk ki kahani - Khel khel mein
उन्चास साल की पत्नी से दुखी होकर एक पति ने आखिर क्यों घर छोड़ दिया? सुनिए कहानी, गुस्सा!!
एक शमशान की दिली तमन्ना और इंसान के प्रति उसके विश्वास की कहानी। कैसे इंसान के प्रति उसका नज़रिया बदलता है और फिर क्या होता है ? सुनिए ये अद्भुत कहानी और हमें comments करके बताएं कि आपको ये कहानी कैसी लगी ?
तिन्नी, तो तू मूझसे ब्याह क्यों नहीं कर लेती? फिर हम दोनों जीवन भर साथ-साथ डांड़ चलाते रहेंगे.' क्षणभर के लिए तिन्नी के चेहरे पर लज्जा की लाली दौड़ गई. किन्तु तुरंत ही वह संभलकर बोली,‘कहने के लिए तो कह गए. मनोहर! किन्तु आज मैं ब्याह के लिए तैयार हो जाऊं तो?' ‘तो मैं ख़ुशी के मारे पागल हो जाऊं.' ‘फिर उसके बाद?' ‘फिर मैं तुम्हें रानी बनाकर अपने आपको दुनिया का बादशाह समझूं.' ‘अपने आपको बादशाह समझोगे, क्यों मनोहर? और मैं बनूंगी रानी. पर मैं रानी बनने के बाद डांड़ तो...
पहले जब इन्होंने मुझे गुण्डों से बचाकर अपने घर में आश्रय दिया था, तब मेरे हृदय में इनके लिए श्रद्धा और कृतज्ञताके भाव थे। परन्तु वे धीरे-धीरे घृणा और तिरस्कार में बदल गये। मैंने देखा कि बैरिस्टर साहब की खुद की नीयत ठिकाने नहीं है। वह मुझे अपनी वासना का शिकार बनाने पर तुले हुए हैं। धीरे धीरे वह मुझे हर तरह की लालच दिखाने लगे और धमकियां देने ...
उन्होंने अपने जेब से एक पत्र निकाल कर वीणा के सामने फेंक दिया और शान्त स्वर में बोले- 'मुझे तो कोई आपत्ति नहीं आप इस पत्र को पढ़ लीजिए। इसके बाद भी यदि आपकी यही धारणा रही कि मैं न जाऊँ तो जब तक आप न कहेंगी मैं न जाऊँगा ।' वीणा ने सर हिलाते हुए कहा-'जी नहीं,रहने दीजिए; मैं कोई पत्र-वत्र न पढ़ूँगी और न आपको...
मैं जरा हंसी और अपना घूँघट सरकाने लगी । मुझे घूँघट सरकाते देख वे जरा मुस्कराए, मैं भी जरा हंस पड़ी पर कुछ बोली नहीं। उनके नौकर आए और देखते-ही-देखते रस्सी समेत घड़ा निकाल लिया गया। मैं घड़ा उठाकर अपने घर की तरफ चली। शब्दों में नहीं, किंतु कृतज्ञता भरी आँखों से मैंने उनसे कहा, “मैं आपके इस उपकार का बदला जीवन में कभी न चुका सकूँगी।” करीब पौन घंटा कुएँ पर लग गया। अम्मा जी की घुड़कियों का डर तो लगा ही था। जल्दी-जल्दी आई, घड़े को घिनौची पर रख, रस्सी को खूँटी पर टाँगने के लिए मैंने ज्योंही हाथ ऊपर उठाया, देखा कि एक हाथ का
एक दिन मैं कॉलेज जा रहा था. देखा केठानी सिर पर गारे का तसला रखे चाली पर से कारीगरों को दे रहा है. चालीस फ़ुट ऊपर चाली पर चढ़ा आह बूढ़ा केठानी, खड़ा काम कर रहा था. मेरी अंतरात्मा ने मुझे काटा. यह सब मेरे कारण है और मैंने निश्चय कर लिया कि शाम को लौट कर मां से कहूंगा अब केठानी को बुला लो. वह बहुत बूढ़ा और कमज़ोर हो गया है. इतनी कड़ी सज़ा उसे न मिलनी चाहिए. दिन भर मुझे उसका ख़्याल बना रहा. शाम ज़रा जल्दी लौटा. रास्ते पर ही रायसाहब का घर था. मजदूरों में विशेष प्रकार की हलचल थी. सुना कि एक मजदूर ....
नरेश के जाने के आधे घंटे बाद ही करुणा के पति जगत प्रसाद ने घर में प्रवेश किया. उनकी आंखें लाल थीं. मुंह से तेज़ शराब की बू आ रही थी. जलती हुई सिगरेट को एक ओर फेंकते हुए वे कुर्सी खींचकर बैठ गए. भयभीत हिरनी की तरह पति की ओर देखते हुए करुणा ने पूछा,‘‘दो दिन तक घर नहीं आए, क्या कुछ तबीयत ख़राब थी? यदि न आया करो तो ख़बर तो भिजवा दिया करो. मैं प्रतीक्षा में ही बैठी रहती हूं.'' उन्होंने करुणा की बातों पर कुछ भी ध्यान न दिया. जेब से रुपए निकाल कर मेज़ पर ढेर लगाते हुए बोले,‘‘पंडितानी जी की तरह रोज़ ही सीख दिया करती हो कि जुआ न खेलो, शराब न पियो, यह न करो, वह न करो. यदि मैं, जुआ न खेलता तो
किशन चुप रहा, पर जीवन बोल उठा-पंडितजी, रामायण-भागवत और पूजा- पाठ से फायदा ही क्या अगर हम आदमी को आदमी न समझ सके ! मैं तो रामायण-भागवत का पाठ करता नहीं , पर आदमी को आदमी समझता हूँ भगवान मंदिरों में नहीं हम आप और गरीबों में हैं । पर किराये के लिए उस दिन जैसा जो कुछ आपने उस गरीब स्त्री के साथ किया वह उचित ...
सीढ़ियों पर चढ़ते ही देखा, कल्याणी नहाकर बाल सुखा रही है। खूब लंबे, घने काले केशों के बीच गोरा-गोरा मुँह बिलकुल चाँद-सा लग रहा था। बड़ी-बड़ी आँखों में एक विशेष प्रकार का आकर्षण था। ऐसा सौंदर्य तो जयकृष्ण ने कभी देखा ही न था। अंग-प्रत्यंग से यौवन जैसे फूटा-सा पड़ता था। क्षण भर निहारने का लोभ जयकृष्ण संवरण न कर सके। और तभी कल्याणी की नजर जयकृष्ण पर पड़ी। उसने सिर ढँक लिया। लज्जा की लाली उसके चेहरे पर दौड़ गई। उसका सौंदर्य दूना हो गया। इधर जयकृष्ण का अधीर मन बेकाबू हो चला। वे अब सीढ़ियों से ऊपर जाकर कुरसी पर बैठ गए। कल्याणी से बोले, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है कल्याणी
पंडित रामधन तिवारी को परमात्मा ने बहुत धन-संपत्ति दी थी, किंतु संतान के बिना उनका घर सूना था। धन धान्य से भरा पूरा घर उन्हें जंगल की तरह जान पड़ता। संतान की लालसा में उन्होंने न जानें कितने जप-तप एवं विधान करवाए और अंत में उनकी ढलती उम्र में पुत्र तो नहीं, किंतु एक पुत्री का जन्म अवश्य हुआ। तिवारी जी ने खूब खुले हाथ से खर्च किया। सारे गाँव को प्रीतिभाज दिया गया। महीनों घर में डोलक ठनकती रही। कन्या ही सही पर इसके जन्म से तिवारी के निःसंतान होने का कलंक धुल गया। कन्या का रंग गोरा - चिट्टा, आँखें बड़ी-बड़ी, चौड़ा माथा और सुंदर-सी नासिका थी। उसका नाम रखा गया सोना। सोना का लालन-पालन बड़े लाड-प्यार से होने लगा। सोना के सात साल की होने पर तिवारी जी ने घर में एक मास्टर लगाकर सोना को हिंदी पढ़वाना
भामा अब कुछ चिढ़ गई थी, बोली-बड़प्पन कैसे निकालोगी मां जी, क्या मारोगी?' मां जी को और भी क्रोध आ गया और बोलीं,‘मारूंगी भी तो मुझे कौन रोक लेगा? मैं गंगा को मार सकती हूं, तो क्या तुझे मारने में कोई मेरा हाथ पकड़ लेगा?' ‘मारो, देखूं कैसे मारती हो? मुझे वह बहू न समझ लेना जो सास की मार चुपचाप सह लेती हैं.' ‘तो क्या तू भी मुझे मारेगी? बाप रे बाप! इसने तो घड़ी भर में मेरा पानी उतार दिया. मुझे मारने कहती है. आने दे गंगा को मैं कहती हूं कि भाई तेरी स्त्री की मार सह कर अब मैं घर में न रह सकूंगी; मुझे अलग झोपड़ा डाल दे; मैं वहीं पड़ी रहूंगी. जिस घर में बहू सास को मारने के लिए खड़ी हो जाय वहां रहने का धरम नहीं.' यह कहते-कहते मां जी ज़ोर-ज़ोर से रोने लगीं.
सावित्री बोली,‘‘पर हींग लेकर करूंगी क्या? ढेर-सी तो रखी है.'' ख़ान ने कहा,‘‘ले लो अम्मा! घर में पड़ी रहेगी. हम अपने देश कू जाता है. ख़ुदा जाने, कब लौटेगा?'' और ख़ान बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए हींग तोलने लगा. इसपर सावित्री के बच्चे नाराज़ हुए. सभी बोल उठे,‘‘मत लेना मां. ज़बरदस्ती तोले जा रहा है.'' सावित्री ने बच्चों को उत्तर न देकर, हींग की पुड़िया ले ली. पूछा,‘‘कितने पैसे हुए ख़ान?'' ‘‘पैंतीस पैसे अम्मा!'
किस्मत कौन है, भौजी ! वह भी क्या अम्मा की तरह तुमसे लड़ा करती है और गालियाँ देती है ।” सात साल की मुन्नी ने किशोरी के गले में बाहें डाल कर पीठ पर झूलते हुए पूँछा–“किस्मत कहाँ है ? भौजी मुझे भी बता दो ।” सिल पर का पिसा हुआ मसाला कटोरी में उठाते हुए किशोरो ने एक ठंडी साँस ली; बोली-"किस्मत कहाँ है मुन्नी, क्या बताऊँ"।
हाँ, तो मेरी कैलाशी नानी, उस गाँव के रहनेवालों के जानवर चराने ले जाया करती थीं। उस गाँव में करीब चालीस घर थे और प्रत्येक घर से एक सेर अनाज चराई में मिल जाया करता था। कैलाशी नानी की जीविका यही थी। इसी में कैलाशी नानी का दान-पुण्य हो जाया करता था और इसी अनाज को बदलकर उन्हें रोज़ के व्यवहार के लिए नमक, मिर्च, मसाला भी लेना पड़ता था। पैसे तो गांव वालों को वैसे ही बड़ी कठिनाई से देखने को मिलते हैं। कैलाशी नानी की तरह गरीबनी को पैसों का दर्शन दुर्लभ होना ही चाहिए। इस प्रकार जीवन बिताकर भी कैलाशी नानी दुखी न थी। वे सदा प्रसन्न और हँसती रहती थीं। दूसरों की सेवा के लिए तत्पर रहतीं। आधी रात को भी बुला लो तो वह तुम्हारा काम कर देगीं और .....
इसी समय, कुछ युवतियाँ; मेरे पास से निकलीं। उनके पैरों के लच्छे और स््लीपरों की ध्वनि मैंने साफ-साफ सुनी। वे लोग आपस में हँसती, खिलखिलाती और बातें करती हुई चली जा रही थीं। ऐसा लगता था जैसे सांसारिक चिंताओं को इनके पास पहुँचने का साहस ही नहीं होता। परंतु मुझे उनसे क्या प्रयोजन? मैंने तो उनकी ओर आँख उठाकर देखा भी नहीं। देखकर करता भी क्या? व्यर्थ ही हृदय में एक प्रकार की टीस उठती। वेदना और बढ़ जाती। मेरे लिए तो कदाचित् विधाता ने अपने ही हाथों एक निरक्षरा और बेढंगी प्रतिमा का निर्माण किया था जो इच्छा न होने पर भी, बरबस मेरे जीवन के साथ बाँध दी गई थी; जिसके सहवास से मेरा सुखी जीवन, मेरा आशावादी हृदय, कल्पना के पंखों द्वारा ऊँची-से-ऊँची उड़ान भरने वाला मेरा मन सभी दुःख तथा घोर निराशा से न जाने कितनी भीषण वेदना का अनुभव कर रहे थे। जिस दिन मैंने पहले-पहल यशोदा को देखा... Angoothi ki khoj : by Subhadra Kumari Chauhan
रुपया-पैसा, होश-हवास खोकर उसे पगली की पदवी मिली और अब वह सचमुच पगली थी। अकेली बैठी अपने-आप घण्टों बातें किया करती जिसमें रामसेवक के मांस, हड्डी, चमड़े, आँखें, कलेजा आदि को खाने, मसलने, नोचने, खसोटने की बड़ी उत्कट इच्छा प्रकट की जाती थी और जब उसकी यह इच्छा सीमा तक पहुंच जाती, तो वह रामसेवक के घर की ओर मुँह करके खूब चिल्लाकर और डरावने शब्दों में हाँक लगाती, तेरा लोहू पीऊँगी। प्रायः रात के सन्नाटे में यह गरजती हुई आवाज सुनकर स्त्रियाँ चौंक पड़ती थीं। परन्तु इस आवाज से भयानक उसका ठठाकर हँसना था ! मुंशीजी के लहू पीने की कल्पित खुशी में वह जोर से हँसा करती थी। इस, ठठाने से ऐसी आसुरिक उद्दण्डता, ऐसी पाशविक उग्रता टपकती थी कि रात को सुनकर लोगों का खून ठंडा हो जाता था। मालूम होता, मानो, सैकड़ों उल्लू एक साथ हँस रहे हैं Story by Munshi Premchand ❤️
क्यों, रोने का कोई कारण है, या यों ही रोना चाहती हो?' 'क्या मेरे रोने का कारण तुम नहीं जानते ?' 'मैं तुम्हारे दिल की बात कैसे जान सकता हूँ ?' 'तुमने जानने की चेष्टा कभी की है ?' 'मुझे इसका सान-गुमान भी न था कि तुम्हारे रोने का कोई कारण हो सकता है।' 'तुमने तो बहुत कुछ पढ़ा है, क्या तुम भी ऐसी बात कह सकते हो ?' स्वामी ने विस्मय में पड़कर कहा, 'तुम तो पहेलियाँ बुझवाती हो ?' 'क्यों, क्या तुम कभी नहीं रोते ?' 'मैं क्यों रोने लगा।' 'तुम्हें अब कोई अभिलाषा नहीं है ?' 'मेरी सबसे बड़ी अभिलाषा पूरी हो गई। अब मैं और.... Abhilasha by Munshi Premchand ❤️
दारोगाजी ने उन्हें देखते ही झुककर सलाम किया और शायद मिज़ाज शरीफ़ पूछना चाहते थे कि उस भले आदमी ने सलाम का जवाब गालियों से देना शुरू किया। जब तांगा कई क़दम आगे निकल आया, तो वह एक पत्थर लेकर तांगे के पीछे दौड़ा। तांगेवाले ने घोड़े को तेज किया। उस भलेमानुस ने भी क़दम तेज किये और पत्थर फेंका। मेरा सिर बाल-बाल बच गया। उसने दूसरा पत्थर उठाया, वह हमारे सामने आकर गिरा। तीसरा पत्थर इतनी ज़ोर से आया कि दारोगाजी के घुटने में बड़ी चोट आयी; पर इतनी देर में तांगा इतनी दूर निकल आया था कि हम पत्थरों की मार से दूर हो गये थे। हाँ, गालियों की मार अभी तक जारी थी। जब तक वह आदमी आँखों से ओझल न हो गया, हम उसे एक हाथ में पत्थर उठाये, गालियाँ बकते हुए देखते रहे।
मोहिनी में वह अदायें न थीं जिन पर रंगीली तबीयतें फिदा हो जाया करती हैं। तिरछी चितवन, रूप-गर्व की मस्ती भरी हुई आंखें, दिल को मोह लेने वाली मुस्कराहट, चंचल वाणी, उनमें से कोई चीज यहॉँ न थी! मगर जिस तरह चॉँद की मद्धिम सुहानी रोशनी में कभी-कभी फुहारें पड़ने लगती हैं, उसी तरह निश्छल प्रेम में उसके चेहरे पर एक मुस्कराहट कौंध जाती और आंखें नम हो जातीं। यह अदा न थी, सच्चे भावों की तस्वीर थी जो मेरे हृदय में पवित्र प्रेम की खलबली पैदा कर देती थी....... Munshi Premchand story : Aakhiri Manjil
किंतु उसके टूटे हुए पंखों में इतनी शक्ति नहीं थी कि वो उसके घायल शरीर का बोझ सँभाल सकें इसीलिए वह सीधे समुद्र में जा गिरा और थोड़ी देर बहता हुआ समुद्र की लहरों में गायब हो गया। साँप , बाज का ऐसा हाल देखकर हैरान हो गया और उसने मन ही मन सोचा कि आसमान में उड़ने में ऐसा क्या आनंद आता है कि बाज ने अपने प्राण तक गँवा दिए।
सावन का महीना था। रेवती रानी ने पांव में मेहंदी रचायी, मांग-चोटी संवारी और तब अपनी बूढ़ी सास ने जाकर बोली—अम्मां जी, आज भी मेला देखने जाऊँगी। रेवती पण्डित चिन्तामणि की पत्नी थी। पण्डित जी ने सरस्वती की पूजा में ज्यादा लाभ न देखकर लक्ष्मी देवी की पूजा करनी शुरू की थी। लेन-देन का कार-बार करते थे मगर और महाजनों के विपरीत खास-खास हालतों के सिवा पच्चीस फीसदी से ज्यादा सूद लेना उचित न समझते थे। रेवती की सास बच्चे को गोद में लिये खटोले पर बैठी थी। बहू की बात सुनकर बोली—भीग जाओगी तो बच्चे को जुकाम हो जायगा। रेवती—नहीं अम्मां, कुछ देर न लगेगी, अभी चली आऊँगी। रेवती के दो बच्चे थे—एक लड़का, दूसरी लड़की। लड़की अभी गोद में थी और लड़का हीरामन सातवें साल में था। रेवती ने उसे अच्छे-अच्छे कपड़े पहनाये। नजर लगने से बचाने के लिए माथे और गालों पर काजल के टीके लगा दिये, गुड़ियॉँ पीटने के लिए एक अच्छी रंगीन छड़ी दे दी और अपनी सहेलियां के साथ मेला देखने चली।
जब पड़ोसियों की भीड़ छँट गयी तो रुक्मिन ने पयाग से पूछा—इसे कहाँ से लाये ? पयाग ने हँस कर कहा —घर से भागी जाती थी, मुझे रास्ते में मिल गयी। घर का काम-धांधा करेगी, पड़ी रहेगी। 'मालूम होता है, मुझसे तुम्हारा जी भर गया।' पयाग ने तिरछी चितवनों से देख कर कहा —दुत् पगली ! इसे तेरी सेवा-टहल करने को लाया हूँ। 'नयी के आगे पुरानी को कौन पूछता है ?' 'चल, मन जिससे मिले वही नयी है, मन जिससे न मिले वही पुरानी है। ला, कुछ पैसा हो तो दे दे, तीन दिन से दम नहीं लगाया, पैर सीधे नहीं पड़ते। हाँ, देख दो-चार दिन इस बेचारी को खिला-पिला दे, फिर तो आप ही काम करने लगेगी।' रुक्मिन ने पूरा रुपया ला कर पयाग के हाथ पर रख दिया। दूसरी बार कहने की जरूरत ही न पड़ी। पयाग में चाहे और कोई गुण हो या न हो, यह मानना पड़ेगा कि वह शासन के मूल सिध्दांतों से परिचित था। उसने भेद-नीति को अपना लक्ष्य बना लिया था। एक मास तक किसी प्रकार की विघ्न-बाधा न पड़ी। रुक्मिन अपनी सारी चौकड़ियाँ भूल गयी थी। बड़े तड़के उठती, कभी लकड़ियाँ तोड़ कर, कभी चारा काट कर, कभी उपले पाथ कर बाजार ले जाती। वहाँ जो कुछ मिलता, उसका आधा तो पयाग के हत्थे चढ़ा देती। आधो में घर का काम चलता। वह सौत को कोई काम न करने देती। पड़ोसियों से कहती , बहन, सौत है तो क्या, है तो अभी कल की बहुरिया। दो-चार महीने भी आराम से न रहेगी, तो क्या याद करेगी। मैं तो काम करने को हूँ ही। गाँव भर में रुक्मिन के शील-स्वभाव का बखान होता था। सुनिए, ये बहुत ही अद्भुत रचना!!!!!!
कजाकी' एक न मिटने वाला व्यक्ति है। आज चालीस साल गुजर गये; कजाकी की मूर्ति अभी तक आँखों के सामने नाच रही है। मैं उन दिनों अपने पिता के साथ आजमगढ़ की एक तहसील में था। कजाकी जाति का पासी था, बड़ा ही हँसमुख, बड़ा ही साहसी, बड़ा ही जिंदादिल। वह रोज शाम को डाक का थैला लेकर आता, रात-भर रहता और सबेरे डाक लेकर चला जाता। शाम को फिर उधर से डाक लेकर आ जाता। सुनिए, ये बहुत ही अद्भुत रचना!!!!!
आज भोर से ही गिरिजा की अवस्था शोचनीय थी। विषम ज्वर उसे एक-एक क्षण में मूर्च्छित कर रहा था। एकाएक उसने चौंक कर आँखें खोलीं और अत्यंत क्षीण स्वर में कहा-आज तो दीवाली है। देवदत्त ऐसा निराश हो रहा था कि गिरिजा को चैतन्य देख कर भी उसे आनंद नहीं हुआ। बोला-हाँ आज दीवाली है। गिरिजा ने आँसू-भरी दृष्टि से इधर-उधर देख कर कहा-हमारे घर में क्या दीपक न जलेंगे देवदत्त फूट-फूट कर रोने लगा। गिरिजा ने फिर उसी स्वर में कहा-देखो आज बरस-भर के दिन भी घर अँधेरा रह गया। मुझे उठा दो मैं भी अपने घर दिये जलाऊँगी। सुनिए, ये बहुत ही अद्भुत कहानी!!!!!!!!
पत्नी के मरने के बाद प्रभाती, दूसरी शादी कर आता है. उसकी नई बीवी अंगूरी उससे उम्र में काफ़ी छोटी है. कहानी शुरू होती है अंगूरी के शहर आने से. अल्हड़ अंगूरी ख़ूब सजती संवरती है. वह लेखिका को अपने गांव के कई रस्मों-रिवाज़ों के बारे में बताया करती है....... सुनिए ये कहानी!!!!
एक दिन संयोगवश किसी लड़के ने पिंजड़े का द्वार खोल दिया। तोता उड़ गया। महादेव ने सिर उठाकर जो पिंजड़े की ओर देखा, तो उसका कलेजा सन्न-से हो गया। तोता कहाँ गया। उसने फिर पिंजड़े को देखा, तोता गायब था ! महादेव घबड़ा कर उठा और इधर-उधर खपरैलों पर निगाह दौड़ाने लगा। उसे संसार में कोई वस्तु अगर प्यारी थी, तो वह यही तोता। तो सुनिए, तोते और उसके मालिक की कहानी!!!!!
तिलोत्तमा अभी कुछ जवाब न देने पायी थी कि अचानक बारात की ओर से रोने के शब्द सुनायी दिये, एक क्षण में हाहाकर मच गया। भंयकर शोक-घटना हो गयी। वर को सौंप ने काट लिया। वह बहू को बिदा कराने आ रहा था। पालकी में मसनद के नीचे एक काला साँप छिपा हुआ था। वर ज्यों ही पालकी में बैठा, साँप ने काट लिया। चारों ओर कुहराम मच गया। सुनिए आगे की कहानी में क्या हुआ !!!!!